आज गोेतमी ने सबके सामने स्वीकार कर ही लिया, कि उसने ही, करण और प्रीति के बच्चे को मारा है वह उससे अपना बदला ले रही है। हम दोनों ने मिलकर ,जो भी योजना बनाई थी , यह अपनी योजना पर आगे नहीं बढ़ा , इसने मुझे प्रीति के आते ही, अकेला छोड़ दिया ,इसका झुकाव प्रीति और अपने बच्चे की तरफ हो गया। इसके लिए मैंने क्या-क्या नहीं किया ? तब भी उसने मुझे अकेला ही छोड़ दिया। प्रेत ने उन सब से कहा भी था -कि यदि यह[गौतमी ] इस बात से इनकार कर देती है ,तब मैं चुपचाप यहां से चला जाऊंगा, क्योंकि मैं यह जानता हूं कि यह सब कार्य बदले की भावना से हो रहा है। किंतु गौतमी तो और भी गुस्से में आ गई ,जब उसे पता चला कि उसे धोखे से यहां बुलाया गया है , उससे तो बोला गया था, कि प्रीति अब नहीं रही , इसीलिए वह यहां पर आई थी किंतु प्रीति को सामने देखकर ,वह समझ गई यह सब इन सबकी चाल है। इस क्रोध में उसने प्रीति को एक पत्थर भी फेंक कर मारा था, जिसके कारण , उसके माथे से रक्त बहने लगा।
उसके इस व्यवहार से, अब करण भी चुप नहीं रहा और बोला -तुम इसके जैसी कभी भी नहीं बन सकतीं , इसके अच्छे व्यवहार और इसकी अच्छी सोच के कारण ही ,हमारी सोच भी बदल गई , जिसके कारण हमें अपने गलतियों का एहसास हुआ हमें अपने धोखे का एहसास हुआ ,कि हम अब तक इसके साथ क्या कर रहे थे ? करण के मुंह से यह शब्द सुनकर गौतमी को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा।
वह चिल्ला कर बोली- तुम इसके रूप के जाल में फंस गए ,अब मुझसे तुम्हारा मन भर गया तो इसके अधिकार ,पति धर्म की ,इसके अधिकारों की दुहाई देने लगे। मैं भी ,इससे कोई कम नहीं हूं तुम्हारे लिए ही तो यह सब मैंने किया है और अब तुम ही मुझे आंखें दिखा रहे हो।
तुमने ही ,कौन सा अच्छा कार्य किया है, क्या यह अच्छा कार्य है ,एक छोटे बच्चे की तुमने जान ले ली , और अब इसकी जान के पीछे पड़ी हो, करण ने उससे प्रश्न किया।
मुझे इन लोगों से कोई दुश्मनी नहीं थी , मुझे तो तुम्हारे बदले हुए ,व्यवहार पर क्रोध था, तुम अपनी बात पर अड़िग नहीं रहे ,इसीलिए मुझे यह कदम उठाना पड़ा ,यदि तुम्हारे बेटे की जान गई है ,तो उसके दोषी भी तुम ही हो। ना ही तुम्हारा व्यवहार बदलता, ना ही मुझे क्रोध आता और न ही मैं ऐसा करने का सोचती। तुमने कभी सोचा है -तुम्हारे इस धोखे से मुझे कितना दुख पहुंचा होगा? मेरा आगे का जीवन क्या होगा ?
मैंने तो तुमसे पहले ही कह दिया था ,अपने जीवन में आगे बढ़ जाओ ! लेकिन तुम मानने को तैयार ही नहीं थीं।
अभी यह मरी नहीं, प्रीति की तरफ देखते हुए बोली , कल को यदि मर जाती है, तब तो हम एक हो सकते हैं इसीलिए मैंने उस तांत्रिक से मिलकर,इसे यहां भेजा।
माना कि हमसे गलती हो गई, इस विषय में हमारी सोच गलत थी किंतु हम उस गलती को सुधार भी तो सकते हैं करण ने कहा।
हमसे कोई गलती नहीं हुई, हमने सोच समझ कर ही योजना बनाई थी , लेकिन इसके जीते जी हमारी यह योजना कभी भी सफल नहीं हो पाएगी, प्रीति की तरफ घूरते हुए गौतमी बोली।
इस समय यह तुम्हारा प्रेत कुछ भी नहीं कर पाएगा , अब यह मेरे वश में है , तांत्रिक ने कहा।
तांत्रिक तू यह मत भूल, कि तू ही अकेला इस दुनिया में तांत्रिक नहीं है , जिसके द्वारा मैंने इसे भेजा है वह भी बहुत बड़ा तांत्रिक है। वह कोई ना कोई रास्ता निकाल ही लेगा। तू इसे वश में कर लेगा कोई बात नहीं आगे बहुत रास्ते हैं।
अच्छा !एक बात बताओ !मालिनी ने करण से पूछा -उस पंडित ने तुम्हारी जन्मपत्री में देखकर क्या बताया था ?
यही कि मेरी पहली पत्नी का निधन हो जाएगा , करण ने जवाब दिया।
यानी कि तुम्हारे जीवन में दो स्त्रियों के आने का संयोग है , वैसे देखा जाए तो, तुम्हारे जीवन में दो स्त्रियां आ ही चुकी हैं। पहले गौतमी दूसरी प्रीति। इससे तो यह साबित होता है, कि तुम्हारे जीवन में जो पहले स्त्री आएगी ,वह जीवित नहीं बचेगी , इस आधार पर तो तुम्हारे जीवन में जो पहली स्त्री आई है , वह तो गौतमी ही है, भले ही, विवाह ना हुआ हो किंतु पहली स्त्री तो यही है , यह अभी तक इसीलिए बची हुई है क्योंकि इसका तुमसे विवाह नहीं हुआ है , उस ग्रह दशा को प्रीति झेल रही है। क्या तुम ,अब भी समझी या नहीं ,मालिनी ने उसकी तरफ कुछ इशारा दिया।
इस बात को लेकर गौतमी सोच में पड़ गयी ,ये सही तो कह रहीं हैं ,इसके जीवन में पहले आने वाली स्त्री तो मैं ही हूँ।
हाँ ,तुम सही सोच रही हो ,किन्तु तुम्हारा इससे विवाह नहीं हुआ, इस कारण उसका प्रभाव ,तुम पर कम हो गया किन्तु अभी भी उस ग्रह दशा का प्रभाव बता रहा है ,क्योकि अभी भी तुम इससे भावनाओं से तो जुडी ही हो ,उसका दुष्परिणाम ,ये है ,तुम्हारे मन में विकृति बढ़ गयी।
गौतमी मन ही मन सोच रही थी, क्या ऐसा हो सकता है ? इस आधार पर देखा जाए तो जो कष्ट मुझे झेलने थे वह प्रीति झेल रही है इसके जीवन में आने वाली पहली स्त्री तो मैं ही हूं प्रीति तो दूसरी है। कुछ भी समझ नहीं आ रहा इन लोगों ने मुझे एक ऐसी भूल भुलैया में फँसा दिया है। दूसरे पंडित के आधार पर तो जब इसकी मौत लिखी होगी तभी होगी। इस तरह तो मेरा सारा जीवन ही व्यर्थ गया , अब देखने से तो लगता है करण भी मुझसे प्रेम नहीं करता। कुछ भी समझ नहीं आ रहा ,मेरे साथ यह सब क्या हो गया ? इससे तो अच्छा होता मैं ,करण से विवाह कर लेती, जितने दिन भी जीती उसके प्यार के साथ तो जीती , अब तो वह मुझसे नफरत करने लगा है। यह सब मैंने क्या कर दिया ?अपने ही हाथों से , अपनी खुशियों का गला घोट दिया।
