Insaani bhed

सभी तो  हम जैसे हैं ,सभी तो लगते अपने हैं। 

इन रूपों में ,कुछ भेद नजर न हमको आया। 

प्रेम भरा इस दिल में ,दिल से...... 

हमने भी , सभी से प्रेम का ,रिश्ता निभाया। 



 रिश्ते बहुत इस जीवन में ,

जब बड़े हुए, रिश्तों ने अपना रंग दिखलाया।

बिन बात ,न कोई मुस्कुराया। 

बिन स्वार्थ, किसी ने साथ का हाथ, न बढ़ाया। 

मतलब के रिश्तों का,'' भेद'' न हमने पाया। 

मिठास घोल बातों में ,काम अपना निकलवाया। 

 इंसान सब एक जैसे दिखते ,

क्या अपने, क्या पराये ? दिखते सब एक जैसे हैं। 

किंतु सब की फितरत को अलग-अलग ही पाया। 

कोई दिखता ,साथ खड़ा अगर,

वक्त पर उसने भी ,अपना असली रूप दिखाया। 

एक ही रूप में, इस इंसान के  ,

न जाने ,कितने रूपों को ,इसके अंदर पाया ?

इन रूपों का राज समझ न आया ,

इन्हीं रूपों से,खाये धोखे ,तब 'इंसानी भेद' नजर आया।

इन इंसानों की भीड़ में ,तब अपने को अकेला ही पाया।  


अधूरी कहानी -

तोता -मैना की कहानी ,


 राजा- रानी की कहानी,

 मोहब्बत की कहानी ,

 सुख -दुख की कहानी ,

परियों,राक्षस की कहानी ,

 जादूगर की कहानी ,

 तेरी- मेरी कहानी ,

सब अधूरी रह गईं ,

जब रह गई हमारी ,

जिंदगी की ''अधूरी कहानी''



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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