Shrapit kahaniyan [part 114]

प्रीति ने दरवाजे पर खड़े होकर ही, आधे से ज्यादा बातें सुन लीं थीं , जो करण की मम्मी, मालिनी जी और प्रभा को बतला रही थीं। उसे पता चल गया था, कि उसके बेटे की जान यूं ही नहीं गई, बल्कि उसकी जान ली गई है। उसे गौतमी और करण के रिश्ते की जानकारी भी हो गई थी जो की मालिनी जी उससे छुपाना चाहती थीं। किन्तु आज प्रीति को पता चला ,कि एक योजना के तहत, उसका विवाह करण से हुआ था। इन लोगों की कैसी सोच थी ? मेरे मरने की प्रतीक्षा में थे ,ये लोग ! छिः......  जिस परिवार को मैं ,अपना परिवार समझे बैठी थी जिसके  लिए मैं ,उनकी सेवा में जुटी थी ,वो लोग मेरे मरने की प्रतीक्षा कर रहे थे। जिस पति की बुराई को भी मैंने स्वीकार किया ,उसके बच्चे की माँ बनी। वो मेरा था ही, कब ? मैं कितने भ्र्म में जी रही थी ?उसका दिल टुकड़े -टुकड़े हुए जा रहा था। जितना सोच रही थी ,उतने  ही ,उन लोगों के असली चेहरे उसे, नजर आ रहे थे। मेरा अबोध बालक जिसने ,दुनिया देखी  भी नहीं ,उसने मेरे इन हाथों में तिल -तिलकर दम तोडा । उसकी क्या ख़ता थी ?और अब मेरी प्रतीक्षा में थे ,वो तो अच्छा हो ,प्रभा दीदी ,का जिन्होंने चुपचाप मेरा सहयोग किया इन अपनों से अच्छी तो वो थीं। इसीलिए ही, मेरे पति को इन चीजों पर विश्वास नहीं था क्योंकि कोई देखने आएगा तो इनके कपट की पोल न  खुल ही जाती। 


अपने गाल पर तमाचे मारती है ,और मैं पगली ! अभी भी अपने परिवार अपनी मम्मी जी के विषय में सोच रही थी ,इसीलिए मालिनी जी ,ने मुझे माला के जाप के लिये भेजा ताकि इन लोगों की करतूत ,मुझे पता न चल सके ,जिनके धोखे के कारण ,मेरा ह्रदय अब छलनी हुआ जा रहा है। अब इस घर में रहने से क्या लाभ ?जिस घर में मेरे ,  बच्चे ने तड़प- तड़पकर जान दे दी हो।न जाने कब ?मेरी भी जान ले लें , इसका भी भरोसा नहीं , अब मैं यहां नहीं रहूंगी ,कहते हुए अपने कपड़े संभालने लगी।

 माना कि मेरे मां-बाप गरीब हैं , तो क्या अपनी बेटी को पहले से नहीं पाल रहे थे ? नहीं भी पालेंगे , तब भी मैं इतनी सक्षम हूं अपना बोझ तो वहन कर ही सकती हूं। सामान एक अटैची में भर लिया। एकाएक मन ने कहा- क्या मुझे उनसे मिलकर जाना चाहिए ? या इसी तरह चुपचाप चली जाऊं ! मैं,इन लोगों की तरह धोखेबाज और झूठी नहीं , सोच कर बाहर निकलती है , उसे देखकर उसकी सास की नजरें  झुक जाती हैं। 

करण वहां था ही नहीं, वह अपनी सास के करीब गई और बोली -मैं कितने धोखे में जी रही थी ? कि यह मेरा परिवार है ,यह मेरे अपने लोग हैं ,मेरा परिवार है , किंतु यहां तो मेरे मरने की प्रतीक्षा हो रही थी। कहे जा रही थी और रोए जा रही थी। अच्छा हुआ, आज मेरी गलतफहमी दूर हो गई। न जाने कब तक ?मैं इस गलतफहमी में जीती रहती। अब मैं और गलतफहमी में नहीं जीना चाहती, मैं यहां से चली जाऊंगी मैं किसी के राह में बाधा नहीं बनूंगी, मेरे मरने की प्रतीक्षा नहीं करनी होगी , जिसका जैसा जी चाहे वह अपनी जिंदगी जी सकता है। यह बात उसने कारण को सोचकर कही। 

बहु !जैसा तुम समझ रही हो, ऐसा कुछ नहीं है , हमें इसके विषय में कुछ भी जानकारी नहीं थी , यह तो हमें बाद में पता चला, हां, इतना अवश्य है कि इसकी जन्मपत्री में जो दोष था , उसके कारण यह अपराध तो हमसे अवश्य हुआ है , वरना जब से तुम आई हो तुम्हें हमने अपना ही समझा है। तुम्हारे प्रेम ने तुम्हारे अपने पन ने , हमारे मन में जो मेेल था ,उसे भी धो दिया था। ऐसी सुघड़, होशियार, समझदार बहु पाकर तो मैं धन्य हो गई थी। मेरे बेटा भी ,आत्मग्लानि से भरा जा रहा था। गौतमी के कहने पर भी , करण ने तुम्हें अपनी पत्नी और इस घर की बहू होने का दर्जा दिया। तुम जैसी समझदार और सुलझी हुई लड़की मैंने आज तक नहीं देखी , चाहे गौतमी कैसी भी हो ?वह चाहकर भी ,तुम्हारी तरह नहीं बन सकती। सच मानो ,बहू ! हमें कुछ भी नहीं मालूम था कि गौतमी करण को पाने के लिए ,इस हद तक जा सकती है ? आज यह सब चीज देखकर स्वयं करण भी अचंभित है , वह स्वयं ही अभी,अपने को नहीं समझा पा रहा है ,कि  गौतमी ऐसा कुछ भी कर सकती है ? बेटा ,तुमने ही नहीं खोया है उसने भी, अपना बेटा खोया है। उसे नहीं मालूम था कि गौतमी उसके बच्चे को ही मार देगी।

तुम्हें पाकर, हम अपने जीवन को धन्य समझ रहे थे, तुमने हमारा जीवन संवार दिया किंतु हमें यह नहीं मालूम था, कि गौतमी नाम का एक काला साया हमारे पीछे अभी भी लगा है। धीरे-धीरे करण भी उसे भुलाने का प्रयास कर रहा था। उसकी कुंडली में कोई भी दोष था किंतु उसने सोच लिया था -''जब तक तुम हो ,वह हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा ,तुम्हें कभी धोखा नहीं देगा।'' वह चाहता तो, यह बात तुम्हें बता सकता था, किंतु इन बातों को सुनकर तुम्हें दुख ही होता, जैसे आज हुआ है जब हम अपने जीवन में आगे बढ़ रहे थे। तब यह परेशानी आ खड़ी हुई। 

अब बेटा !इसमें हमारा क्या दोष ? हमें तो यह मालूम ही नहीं था कि गौतमी ऐसा भी कुछ कर रही है या कर सकती है। तुम चाहो तो अपने पति से पूछ लो ! आज वह गौतमी के कारण ही , अपने को कमरे में बंद किए बैठा है। यदि तुम इस तरह उसे बीच में छोड़ कर चली गईं , तो वह टूट जाएगा , अभी उसे गौतमी के कर्मों का दुख है , वह स्वयं ही इस बात से परेशान है, कि  गोेतमी ने उसे बे औलाद कर दिया। प्रीति कुछ देर खड़ी, इसी तरह अपनी सास की बात सुनती रही , उसे इतना तो समझ में आ गया था, भले ही उसका विवाह एक योजना के तहत हुआ था , किंतु अब इन लोगों की मंशा बुरी नहीं थी, अब यह लोग उससे दूरी बनाकर चल रहे थे। इन लोगों ने मुझे दिल से अपनाया है, इन्हीं सब बातों को सोचते हुए धीरे-धीरे उसका क्रोध शांत होने लगा। 

क्रोध शांत होते ही, तब उसे करण की चिंता सताने लगी , उसने तो बहुत देर से करण को देखा ही नहीं और करण कब आया ?यह भी नहीं पता , अपना सब क्रोध त्याग कर, उसने अपनी सास से पूछा -क्या वह आए हैं ? मैंने तो उन्हें नहीं देखा। 

हां, आया था, जब वह तांत्रिक तुम्हें चोट पहुंचा रहा था, करण ने यह सब करने के लिए ,उससे मना भी किया उससे देखा नहीं गया, और उस प्रेत ने ही उसे बता दिया- कि गौतमी के कारण ही ,हमारे घर की हालत यह है। तुम्हारे मुंह से गौतमी का नाम सुनकर, करण चौक गया और चुपचाप अंदर चला गया क्योंकि उस समय मालिनी जी और प्रभा भी बैठे थे। सभी लोग अपनी जिंदगी के कुछ ऐसे हिस्से होते हैं , जिन्हें छुपाना चाहते हैं, जिनसे बचकर निकल जाना चाहते हैं , भूल कर भी याद करना नहीं चाहते और जब वह किस्से  सामने आ जाते हैं , तो दुख देने के सिवा कुछ नहीं मिलता , इसी तरह गौतमी को करण, भुलाने का प्रयास कर रहा था। गौतमी उसकी जिंदगी का एक ऐसा अध्याय है ,जिसको वह विराम देने का प्रयास कर रहा था , किंतु वह अध्याय, इतने लोगों के सामने आ गया , इससे वह विचलित हो गया और अंदर चला गया। 

तू जरा देख तो सही वह कर क्या रहा है? बहुत देर हो गई, कमरे से बाहर ही नहीं आया है। अपना क्रोध अपनी चिंता अपनी परेशानी सब भूल कर प्रीति, करण के कमरे की तरफ बढ़ गई , वहां जाकर देखा तो कारण बेसुध सा पड़ा है। उसके करीब गई, पहले वो सोच रही थी -जब उससे मिलेगी तो मैं ,अपने सभी सवालों का जवाब उससे मांगूंगी, उससे पूछूंगी कि उसने मुझे इस तरह क्यों धोखा दिया ? मुझसे  क्यों झूठ बोला -मेरी जान के बदले ,वह अपना प्यार पाना चाहते थे , उन्होंने मेरे साथ ऐसा क्यों किया ? किंतु करण की हालत देखकर, उसके सभी सवाल हवा हो गए। दौड़कर उसके करीब गई , करण ! करण ! उसे उठाने का प्रयास किया किंतु वह नहीं उठा ,मेज पर इसी तरह पडा रहा, शायद ,बैठे-बैठे सो गया प्रीति ने सोचा। उठाने पर भी नहीं उठा तब प्रीति को चिंता सताने लगी। उसके मुंह पर पानी से छींटे मारे और अपनी सास को आवाज़ लगाई-मम्मी जी !आइये तो सही ,देखिए !इन्हें क्या हुआ है ?

उसकी सास दौड़कर, उनके कमरे में आई और करण को उठाने का प्रयास करने लगी। मन ही मन हिल गई कहीं इसे कुछ हो ना गया हो। उसे हिलाया डुलाया और सहारा देकर बिस्तर पर लिटाया। फिर से उसके मुंह पर पानी के छींटे मारे , तब कुछ देर में, उसे होश आया। मां ने पूछा-करण !बेटा तू  ठीक तो है। 

करण को लग रहा था जैसे वह बहुत गहरी नींद में था वह स्वयं ही नहीं समझ पा रहा था ,उसके साथ क्या हुआ था ? उसे समय वहां पर प्रीति नहीं थी क्योंकि वह डॉक्टर को फोन करने चली गई थी ,फोन करके वह कमरे में आती है , मम्मी जी अभी डॉक्टर आने वाले होंगे मैंने उन्हें फोन कर दिया है-कहते हुए कमरे में प्रवेश करती है। करण को उठा हुआ देखकर बोली -आपको क्या हुआ था? अब आप कैसे हैं ? 

उसे देखकर करण को फिर से सारी बातें याद हो आई और वह रोने लगा , मैं तुम्हारा गुनहगार हूं, मेरे से बहुत बड़ा गुनाह हुआ है, मैं अपनी गलतियों को मानता हूं ,मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई है। परिस्थिति वश मैं उसकी बातों में आता चला गया , जिसके कारण आज मैंने अपना बेटा खो दिया ? कहते हुए ,वह  फिर से रोने लगा। मैं नहीं जानता था ,वह इतना नीचे गिर सकती है इसीलिए मैं उससे बचने का प्रयास भी कर रहा था ताकि वह अपनी जिंदगी में आगे बढ़ जाए ,किंतु उसने मेरा पीछा नहीं छोड़ा और आज हमारे घर की क्या हालत हो गई है ? यह सब उसी के कारण हो रहा है। इतने वर्षों से उसके मन में जो ग्लानि थी, वह आज आंसुओं की साथ बहकर बाहर  निकल रही थी। 



इतने दिनों से प्रीति के ''अपराध बोध ''में वह जी रहा था , दिल पर जैसे कोई बोझ रखा हो ,किंतु आज अपनी गलतियों की माफी मांग कर ,उसके सामने रोकर ,अपने दिल को थोड़ा सा हल्का महसूस कर रहा था।

 दोनों मां -बेटे की बात सुनकर, उनकी परेशानियों को समझ कर , प्रीति ने दोनों को ही क्षमा कर दिया और अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने का फैसला लिया। सबसे पहले तो उसे गौतमी के प्रेत से निपटना था, अब सम्पूर्ण  बातें स्पष्ट हो चुकी थीं। किसी के मन में कोई भी दबाव नहीं था एक दूसरे की शिकायत करके, एक दूसरे से कहकर ,सब ने अपना मन हल्का कर लिया था , अब रह गया था , तो उस प्रेत से निपटना , जो कि  मालिनी जी और प्रभा जी उससे पीछा छुड़वाएंगी। बुराई और ग़म के सभी बदल छंट चुके थे। अब आसमान बिल्कुल स्पष्ट और साफ नजर आ रहा था। बस कल की ही प्रतीक्षा है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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