कभी-कभी किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व ,हम पर इतना प्रभाव डालता है, कि जीवन भर इसका ,असर रहता है। पहली मुलाकात प्रेमी या प्रेमिका से ही नहीं होती है, पहली मुलाकात में कोई भी व्यक्ति अपने व्यवहार से, अपने स्वभाव से, अपनी बातों से, अपने व्यक्तित्व से ऐसा प्रभाव डाल देता है ,कि उसका जीवन पर बहुत असर पड़ता है। बात बहुत पुरानी है , एक बार कहीं रिश्तेदारी में जाने का मौका मिला , अपनी दादी के साथ गई थी , वह ग्रामीण क्षेत्र था। वहाँ मैंने देखा ,गांव के सभी व्यक्ति बहुत ही मेहनती और मिलनसार थे। एकजुट होकर कार्य करते थे , एक दूसरे के साथ सुख -दुख में खड़े होते थे। उन लोगों का, यह व्यवहार मुझे बहुत अच्छा लगा। हमें कुछ दिन वही रहना था , क्योंकि उस रिश्तेदार की बेटी की शादी भी थी। हंसी खुशी का वातावरण था , नए-नए लोगों को देखना, उनसे मिलना बहुत अच्छा लग रहा था।अपने रोजमर्रा के वातावरण से निकलकर ,कहीं अलग जाते हैं। कुछ न कुछ अलग देखने और सुनने को मिल ही जाता है।
उस गांव के समीप ही यमुना नदी भी बहती थी , जो बरसात आने पर बढ़ती जाती थी , सभी लोग मेहनती थे, स्त्री हों या पुरुष सभी खेतों में काम करते थे। एक -दूसरे के साथ खड़े रहते थे। एक दिन एक व्यक्ति ने ''पुलिस की ड्रेस ''में घर के अंदर प्रवेश किया। उसका व्यक्तित्व बेहद प्रभावशाली था ,बड़ी-बड़ी आंखें, नुकीली मुछें , चौड़ी ठुड्डी , उसे देखते ही मुझे अपनी पुस्तक में जो तस्वीर देखी थी ,वो स्मरण हो आई ,बिल्कुल ''चंद्रशेखर आजाद ''जैसा वो व्यक्ति लग रहा था। उसे देखकर पहले तो मैं घबरा गई ,न जाने उनके घर पुलिस क्या करने आई है ? बाद में मालूम हुआ कि वह व्यक्ति, उस लड़की का भाई है जिसके विवाह में हम लोग गए थे। रिश्ते में ,वह मेरे चाचा लगते थे ,मैंने देखा , उस व्यक्ति ने, अपनी यूनिफॉर्म उतार कर ,वह सब के साथ कार्य में शामिल हो गया. शांत स्वभाव का व्यक्ति था। शाम को देखा तो वह व्यक्ति '' दिया जलाकर,'' देवी मां की पूजा कर रहा है। इस बात ने मुझे बहुत प्रभावित किया जब उसकी मां ने बताया यह देवी मां का बहुत भक्त है ,बिना देवी माँ की आराधना किये यह खाना नहीं खाता। देवी मां इसके सपनों में भी आती हैं । कहीं भी चला जाए ,देवी के दर्शन करके जाता है। बाहर भी ,देवी माँ के दर्शन करके ही नौकरी पर जाता है। किस्से की तरह मैं उनकी बातें सुन रही थी या उनके बताने का तरीका इतना प्रभावशाली था ,मैं उनकी सभी बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी।
तभी मेरे मन में भी, 'देवी' के प्रति आस्था जागृत हुई, मैंने भी पूजा -पाठ करने का निर्णय लिया, किस तरह देवी के आराधना करनी होती है ,किस-किस सामग्री की आवश्यकता होती है ,और क्या करना होता है ?कैसे नौ दिनों तक पाठ करने चाहिए ?यह सब जानकारी मैंने ग्रहण की।वहीँ पर मेरी 'पहली मुलाकात' अथवा प्रथम भेंट ''देवी माँ के चरित्र ''से हुई। उस गांव की कुछ हसीन यादें लेकर मैं अपने घर आ गई। और जैसा उन्होंने बतलाया था ,वैसे ही मैंने पूजा -पाठ आरंभ किया। हमारे घर में कोई पूजा नहीं करता था , ऐसा नहीं था ,किन्तु परिवारवाले 'निर्गुणमार्गी 'थे। लेकिन उन चाचा की भक्ति से मैं अत्यंत प्रभावित हुई ,जिसका असर यह हुआ ,इस बात को बरसों बीत गए , आज भी वह विश्वास ,वह आस्था चली आ रही है। जो हम कई बार लोगों के मिलने पर भी, वह प्रभाव नहीं छोड़ पाते, जो एक ही मुलाकात में छोड़ जाते हैं।
