Dard pee ja......

दर्द अपना सीने में दफन कर ,

 खुद को तू'' पाषाण ''बना ले। 

कुछ नहीं होता....... 

किसी के आगे दुखड़ा रोने से,

तू स्वयं ही, किसी का संबल बन......

दर्द तू , अपना पी जा......  

अपने को इतना ,मजबूत बना ले।

 



 बहुत दर्द है ,सीने में, जलन तो बहुत होती होगी। 

किसी से न कर उम्मीद तू, रिश्तों की तोेहीन होगी।

 

दिया बहुत कुछ दाता ने , यह उसकी 'इनायत 'है !

दिया दर्द अपनों ने ,कहने को जो तेरे पास रिश्ते हैं।

दर्द का एहसास कराया भी उन्होंने, जो तेरे अपने हैं।

तोड़ कड़ी उन रिश्तों की, तू आगे बढ़ जो तेरे सपने हैं।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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