Shrapit kahaniyan [part 113]

अभी तक गौतमी, इस उम्मीद से जी रही थी , कि करण उसका है , एक उम्मीद लगाए बैठी थी, कब प्रीति  उसकी जिंदगी से दूर हो और कब गौतमी उसकी जिंदगी में प्रवेश करें ? आज उसके दफ्तर के बिल्डिंग में वो गई थी,वहां देखा तो वहां मिठाइयां बँट रही थीं। मिठाई उसे भी मिली, मिठाई खाने के पश्चात, उसने पूछा-यह मिठाई किस खुशी में बांटी जा रही है ?

अरे आपको नहीं मालूम! आप तो उनकी अच्छी दोस्त हैं ,करण सर ,के घर बेटा हुआ है। 

अभी मिठाई गौतमी के हाथ में ही थी, कुछ हिस्सा खा चुकी थी , कुछ मुंह में और कुछ हाथ में। इसी तरह उसकी जिंदगी भी तो बटी हुई है ,देखने में उसकी जिंदगी इस मिठाई की तरह ही लग रही है। जो ना निग लते बन रहा है ना उगलते। जब तक खुशखबरी का पता न था, तब तक वह मिठाई मीठी थी , किंतु अब वह मिठाई उसके मुंह की  मिठास को ,कड़वाहट में बदल गई। एक पल भी उसके लिए बैठना मुश्किल हो गया , उसकी आंखों में नमी आ गई ,कहीं कोई देख ना ले इसलिए शीघ्र उठकर ,वहां से चली गई।

 मुझसे  झूठे वादे, झूठी कसमें , क्या यह रिश्ता भी ,झूठ पर ही टिका था ? उसने मुझसे आगे बढ़ने के लिए इसीलिए कहा था।  मैं सोच रही थी- कि मेरे अकेलेपन को देखकर ,वह परेशान होता होगा ,किंतु मुझे तो लगता है, वह मुझसे पीछा छुड़ाना चाहता था क्योंकि वह अपनी जिंदगी में स्वयं जो आगे बढ़ चुका था। उसके चेहरे पर अब दुख नहीं क्रोध था , करण के धोखे का क्रोध, उसे अकेले छोड़ देने का क्रोध, जिसके सहारे वह अब तक रुकी हुई थी ,अब वह सहारा ही नहीं रहा। 



इस तरह मैं , उस लड़की को [प्रीति ] अपनी जिंदगी बर्बाद नहीं करने दूंगी, उसने मेरा करण ,मुझसे छीन लिया, दफ्तर से उसने छुट्टी ले ली। अब तो यहां रुकने का उद्देश्य ही समाप्त हो गया। मुझे नहीं मालूम था , दूसरी लड़की को देखकर, यह इतना बदल जाएगा। उसके यौवन में खो गया, मुझे तो उसने ''दूध में से मक्खी की तरह निकाल फेंका।'' इसी तरह के एहसास गौतमी को हो रहे थे। वह करण से भी नहीं मिली, उससे मिलकर ही क्या हो जाता , करना भी क्या है? क्या उसे बधाई देने जाऊं? बधाई हो !तुम्हें बेटा हुआ है कहते हुए, वह  फिर से रोने लगी ,चहुँ  ओर निराशा फैल रही थी। सारा दिन बिस्तर में पड़ी, रोती रही और सोचती रही। जीने की इच्छा तो थी उसकी, अपने करण के साथ, किंतु अब जी कर भी करना क्या है ? किसके लिए जिऊं ? मैं मर क्यों नहीं जाती ? न ही मैं, घर वालों को कोई खुशी दे पाई, अपनी जिंदगी में  स्वयं ही आग लगा डाली। उस दिन को कोस रही थी ,जिस दिन उसे पहली बार करण मिला था। क्या यह मेरी जिंदगी बर्बाद करने के लिए ही आया था। कहां जाऊं? कुछ समझ नहीं आ रहा। दिमाग थकने लगा उसे नींद ने  घेर लिया , औंधी  पड़ी ,ऐसे ही सोती रही, उसे कोई भी सुध नहीं थी। 

अगले दिन की रोशनी के साथ, उसकी आंखें खुली, मन मस्तिष्क को आराम मिला , अभी मन शांत था। चाय बना कर पी , रात्रि में खाना भी नहीं खाया था। थोड़ी भूख भी लगी है , नाश्ता करके वह थोड़े तन मन से अपने को, अच्छा महसूस कर रही थी। आराम से कुर्सी पर बैठकर ,फिर से सोचने लगी , जिंदगी क्या से क्या हो गई ? क्या मैं इतनी जल्दी हार मान सकती हूं ?अपने आप से ही प्रश्न किया। अब तक मैंने अपनी लड़ाई स्वयं ही लड़ी है , जब तक जीत न जाऊं, तब तक हार नहीं मान सकती। मुझे कुछ तो सोचना  ही होगा। 

 ऐसे में यदि उसे कोई समझाने वाला होता ,उसका कोई अपना होता, कोई  बड़ा होता ,तो उसे सही सलाह दे सकता था। किंतु वह तो अकेली थी, परिवार वालों को ,उसने कुछ भी नहीं बताया था। उसकी जिद के कारण उसके मन में गलत ही विचार आ रहे थे। और अब उसने इस बात को अपनी जिंदगी की लड़ाई समझ लिया था और जिसमें वह जीतना चाहती थी। अब वह करण से भी नहीं मिलती थी। एक बार मैंने कहा भी था - क्या यह बात गौतमी को पता है ?

करण ने जवाब दिया- कि वह कुछ भी नहीं जानता बहुत दिनों से वह, उससे मिला भी नहीं है। 

दफ्तर में जाकर भी, उसने पूछने का प्रयास किया ,तब इस लड़की ने बताया- कि जिस दिन ,आपके बेटे के होने की मिठाई बाँटी जा रही थी ,उस दिन वह यहां आई थीं  और मिठाई भी खाई थी ,उसके पश्चात वह नहीं दिखीं। किंतु करण को , अब उसके न रहने का दुख नहीं था। उसे लगा ,शायद वह भी अब  समझ गई होगी, कि जिंदगी में उसे आगे बढ़ना चाहिए । वह भी इन बातों से ,थक चुका था इसीलिए अपने परिवार में अपने बच्चों के साथ खुश रहना चाहता था। नामकरण संस्कार पर, दफ्तर के सभी लोगों को बुलाया गया था। उस समय न जाने कौन आया होगा ? न जाने उसने, अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए किसको माध्यम बनाया होगा ?जो उस मासूम बच्चे की जान ले गया ,कहकर वे रोने लगीं। यह किस्सा प्रेम से शुरू हुआ था, किंतु मुझे लगता है ,अब दुश्मनी पर आ गया।  दुश्मन भी ऐसा जो छुपकर वार कर रहा है और कोई जानता नहीं। इसमें कुछ गलतियां करण की भी थीं , उसने ही कह दिया था- तुम्हारी जैसी इच्छा हो तुम करो !तो वह  कर रही है।

गौतमी मानसिक रूप से, विक्षिप्त हो चुकी है , ऐसे कार्य वही करता है और सोचता है या फिर वह बहुत चालाक है। वह गुप्त रूप से अपने कार्य को अंजाम देना चाहती है ताकि वह फिर से करण की जिंदगी में आ सके। इस बेचारी प्रीति की तो कोई गलती भी नहीं है, वह तो इन दोनों के मध्य में ऐसे ही फंस कर रह गई है । उसने तो अपना कार्य , अपने  उत्तरदायित्व पूरी ईमानदारी से निभायें  हैं। इसमें उस बेचारी की क्या गलती? उस पर करण के गृह तो क्या भारी पड़ेंगे ? यह तो ''गौतमी ''नाम का ग्रह ही बहुत भारी हो गया है उसके लिए ,कह कर मालिनी जी हंस दीं। 

अब तुम ही बताओ? करण की इस उलझी हुई जिंदगी का, सही रास्ता क्या है? 

सबसे पहले तो, इस प्रेत को वापस भेजना ही होगा उसके पश्चात, गौतमी के मन से, करण के विचारों को हटाना होगा। उसे समझना होगा कि वह अपनी जिंदगी में आगे बढ़ जाए। 

ऐसा नहीं होगा ,करण की मम्मी बोलीं -वह लड़की बहुत ही जिद्दी है , आपने देखा नहीं ,अपनी ज़िद  के कारण उसने एक बच्चे की जान ले ली। अपनी जिद को पूरा करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती है। उसका भी इलाज देखेंगे कहकर मालिनी जी  उठीं और बोलीं - हम कल आएंगे। 



जैसे ही मालिनी जी और प्रभा दोनों ने कमरे से बाहर कदम रखे, तब अपने सामने, प्रीति को खड़े पाया उसे देखकर दोनों ही असमंजस में पड़ गईं  , क्या इसने हमारी बातें तो नहीं सुन लीं ? यह इसके रिश्ते के लिए अच्छा नहीं होगा। तब मालिनी की बोलीं -तुमने 101 माला का जाप कर लिया। 

जी, जाप भी कर लिया और जाप का कारण भी मुझे पता चल गया। पहले तो मुझे शक था किंतु आज यकीन हो गया है उनकी जिंदगी में अवश्य ही कोई थी। 

जैसा तुम समझ रही हो, ऐसा कुछ भी नहीं है, प्रभा ने उसे आश्वासन दिया। जो भी आधी -अधूरी जानकारी तुमने सुनी संपूर्ण सत्य नहीं है , वह करण का अतीत था, तुम उसका आज हो। 

उसका अतीत ही तो मुझे कष्ट दे रहा है, प्रीति बोली। 

ग्रहों के हिसाब से ,तुम्हारे कुछ ग्रह भारी थे जो समाप्त होने जा रहे हैं , जो कष्ट तुम्हें झेलना था वह तुम झेल  चुकीं , तुमने देखा नहीं, तुमने अपने व्यवहार से ,अपने प्रेम से, विपरीत सोच वाले व्यक्तियों  की सोच को भी बदल दिया। तुममें  इतनी शक्ति है , तब तुम परिस्थितियों बदलने में भी सक्षम हो सकती हो अपने इश्वर पर अपने आप पर विश्वास रखो मालिनी जी ने उसे जवाब दिया। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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