Shrapit kahaniyan [part 112]

करण की मम्मी, मालिनी जी और प्रभा को करण और गौतमी की कहानी सुनाती हैं। वह बताती हैं, करण और गौतमी ने विवाह करने के लिए एक योजना बनाई। उस योजना के तहत, वह पहले प्रीति से विवाह करता है। प्रीति एक गरीब परिवार की लड़की थी ,किंतु व्यवहारिक और समझदार, सुलझी हुई लड़की थी। उसके व्यवहार को देखकर, हमें अपने घ्रणित कार्य पर , अफसोस हो रहा था। समझ नहीं आ रहा था ,यह हमने सही किया या गलत। प्रीति ने मुझसे तो कभी किसी काम की उम्मीद ही नहीं रखी।  सारा घर का काम अपने हाथों में ले लिया। करण का भी, इसी तरह ख्याल रखती , जैसे एक पत्नी को अपने पति का ख्याल रखना चाहिए। प्रीति को अपने नजदीक देखकर ,करण को उस पर क्रोध तो आता लेकिन कुछ कह नहीं पाता। प्रीति की अच्छाई ही उसे, क्रोध दिलवाती थी क्योंकि इससे उसे अपने गलत होने का एहसास होता था। करण और गौतमी बाहर ही मिल लेते थे और बाहर ही योजना बनाते रहते थे। करण के विवाह को छह  महीने हो गए थे किंतु प्रीति को कुछ नहीं हुआ। 


गौतमी करण से प्रतिदिन प्रीति का हाल-चाल पूछती , कोई तो दिन ऐसा हो,जब प्रीति के  बीमार होने या उसकी मृत्यु का समाचार सुनने के लिए , गौतमी आतुर हो रही थी। समय व्यतीत होता रहा जा रहा था , कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें ? इधर करण भी ,प्रीति के व्यवहार के कारण, अपने को गुनहगार मन बैठा था ,अपने मन में ग्लानि लिए बैठा था। एक तरफ ऐसा रिश्ता था जो उसके साथ बंध  चुका था और उसके लिए विश्वसनीय था , दूसरी तरफ करण का प्यार था , किंतु इस योजना से उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हो पा रहा था। करण दो नाव में बैठा हुआ था। इस असंतोष के कारण ,करण अपनी परेशानी में, एक दिन बहुत सारी शराब पीकर आया। शराब पीकर वह, प्रीति के साथ किए गए धोखे को भुला देना चाहता था। या फिर गौतमी के प्यार को भूलना चाहता था। वह कुछ भी समझ नहीं पा रहा था।  वह किस नाव  में बैठे ? ऐसी परेशानी में प्रीति ने ही ,उसे सहारा दिया। प्रीति उसकी धर्मपत्नी थी उस पर करण का पूर्ण अधिकार था। प्रीति ने तन -मन से, अपने पति को, अपने को समर्पण कर दिया। नशे में ही सही किंतु करण ने उसे पत्नी का दर्जा तो दिया ,अर्धांगिनी होने का स्थान तो दिया। वह खुश थी , करण के अंदर जो हीन भावना पनप रही थी ,उसको भी थोड़ा सा ,सहारा मिला। करण ने सोचा -जब तक भी प्रीति है, वह उसके अधिकार से उसे वंचित नहीं करेगा। उसे वह सभी खुशियां देगा जो एक परिवार में सुखी परिवार में, एक पति अपनी पत्नी को देता है। 

अपनी जिम्मेदारी समझ कर उसने, प्रीति की तरफ हाथ बढ़ा दिया।  धीरे-धीरे उसका झुकाव ,प्रीति की तरफ बढ़ने लगा ।  इधर गौतमी की जबरदस्ती ,उसका क्रोध प्रीति के मरने का इंतजार , प्रीति के न मरने पर, उसको मारने की नई योजनाएं बनाने लगी। अब करण उसमें शामिल नहीं होना चाहता था। प्रीति को धोखा देने की आत्मग्लानि  से ,अभी-अभी वह बाहर निकला है। प्रीति में उसे, किसी भी तरह की कोई कमी नजर नहीं आ रही थी। गौतमी की बातों से अब वह, आहत होने लगा था। गौतमी की योजनाएं बर्बाद कर देने वाली थीं। वह समझ रहा था ,यह जो कुछ भी कर रही है , मेरे और अपने प्यार के खातिर ही कर रही है किंतु अब वह , उसका साथ देने के लिए तैयार नहीं था। गौतमी को भी लगने लगा -कि यह धीरे-धीरे प्रीति के प्रेम में पड़ गया है।गौतमी ने सोचा - प्रीति का जब समय आएगा ,तब देखा जाएगा किंतु अब प्रीति को अपने  रास्ते से हटाना बहुत जरूरी है। यह सब गोेतमी ने करण को बिना बताए ही सोच लिया।

 तुम्हारे जो भी जी में आए ,वह कार्य करो ! किंतु अब मुझसे किसी भी कार्य की उम्मीद मत करना ,तुम्हारे कहने से मैंने ,उस लड़की से विवाह कर लिया और उसे धोखा दिया। अब मैं और कुछ भी, तुम्हारे कहने से नहीं कर पाऊंगा कहकर उसने अपना पल्ला झाड़ना चाहा। इससे गौतमी को बहुत धक्का पहुंचा। बहुत दिनों तक करण से मिली भी नहीं ,ना ही उससे बात की। करण भी उसकी आदतों से परेशान हो चुका था अपनी जिंदगी में आगे बढ़ जाना चाहता था बल्कि उसने गौतमी से कह दिया-प्रीति के अंजाम का तो मुझे नहीं मालूम किंतु अब तुम जिंदगी में आगे बढ़ जाओ ! मेरा जो होगा देखा जाएगा।

आज बहुत बारिश हो रही है , गौतमी की आंखों से भी टप -टप इसी तरह अश्रु बह रहे हैं , उसने करण के लिए क्या-क्या नहीं किया ? माता-पिता की नाराजगी सहन की , उसी के कारण अपना विवाह' वटवृक्ष 'से भी करवाया। उसी के लिए, वह उसकी दूसरी पत्नी बनने के लिए तैयार हो गई , किंतु यह सब करके उसने क्या पाया ? आज करण की हमदर्दी, प्यार अपनापन लगता है, जैसे सब पीछे छूट गया है। धोखा प्रीति ने नहीं खाया, धोखा तो मैंने खाया है। अपने प्यार को न पास सकी ,उसके लिए मुजरिम तक बनने को तैयार हो गई , मैं जाने क्या-क्या सोचने लगी ? एक तरीके से देखा जाए तो प्रीति की मुजरिम मैं ही हूं। मेरी बनाई योजना के तहत ही तो यह विवाह हुआ था । कुछ समझ नहीं आ रहा ,क्या करूं ,कहां जाऊं ?घर वाले भी क्रोधित हैं ,कह रहे हैं -शादी कर लो ! उम्र बढ़ती जा रही है। वह लड़का भी ,अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गया। सच में ही करण आगे बढ़ गया और मैं पीछे रह गई।  मेरी जिंदगी कहां से कहां पहुंच गई ,क्या चाहती थी और क्या हो गया ? चारों तरफ वीरान दुनिया नजर आती है। कहां जाऊं ,क्या करूं अनेक प्रश्न उसके मन में घुमड़ रहे थे। 

तभी एकाएक उसे कुछ स्मरण हुआ और घर की दराजों  में कुछ ढूंढने लगी। 

अगले दिन तैयार होकर ,पंडित जी के पास गई और करण की जन्मपत्री दिखलाकर उनसे पूछा -कि उसकी पहली पत्नी की मृत्यु कब तक हो जाएगी ?

यह तुम कैसा सवाल पूछ रही हो ? पंडित जी ने अचंभित होकर उसकी तरफ देखा ,उन्होंने सोचा कोई पागल ही लड़की है, जो ऐसा पूछ रही है। 

गौतमी मन ही मन बहुत ही परेशान थी , और पंडित जी से बोली -आप मुझे यह बताइए कि जिस लड़के की  यह  जन्मपत्री है उस लड़के की पहली पत्नी की ,मृत्यु कब तक हो जाएगी ?

गौतमी के दोबारा कहने पर, पंडित जी ने जन्मपत्री को ध्यान से देखा , और बोले यह सही है ,कि इस लड़के के ग्रह नक्षत्र बताते हैं ,कि उसकी पत्नी की मृत्यु शीघ्र हो जाएगी किंतु यह नहीं बताते कि कब तक हो जाएगी ? क्योंकि लड़की के भी तो अपने ग्रह नक्षत्र होंगे ? वह कितनी उम्र लेकर आई है ,कब तक के लिए लेकर आई है? यह तो उसकी जन्म राशि और जन्मपत्री देखकर ही मालूम होगा ,हो सकता है लड़की के ग्रह उससे ज्यादा भारी हों । शायद वह बीमार होकर ही रह जाए , उसकी उम्र ज्यादा हो, थोड़ी परेशानी तो आएगी किंतु मृत्यु ना हो। मृत्यु का दिन ऊपर वाले ने सबका तय किया हुआ है ,जाना सबको एक न एक दिन है , किंतु कब यह कोई नहीं बता सकता ? यह सुनकर गौतमी पूरी तरह हताश हो गई। इसका अर्थ है उसकी पत्नी मरेगी किंतु कब ?यह निश्चित नहीं है , हो सकता है साल भर में ही मर जाए , हो सकता है, आठ -दस  साल तक जीवित हो या उससे भी ज्यादा जीवित रह सकती है ,यह कोई निश्चित नहीं है।


 

गौतमी हताश निराश पंडित जी के घर से बाहर आ गई , उसे जिंदगी ''कृष्ण विवर ''की तरह नजर आ रही थी , कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, क्या करें, कहां जाए, किससे  पूछे? उसने अपनी होशियारी दिखाने में कुछ ज्यादा ही जल्दबाजी कर दी।वह स्वयं भी जितने वर्ष जीती, कम से कम अपने करण के साथ तो जी सकती थी ,अब तो लगता है जैसे करण ही उसका नहीं रहा। उसने सब कुछ खो दिया। लगता है ,उसके गम में यह बादल भी रो रहे हैं। उसके दुख से प्रकृति को तो दुख है, किंतु कोई इंसान उसके साथ नजर नहीं आ रहा। नितांत अकेली खड़ी है। अपने ही बनाए जाल में वह फड़फड़ा रही है। घरवाले अपनी नाराजगी लिए हुए हैं। करण भी अब ,उससे नज़रे चुराने लगा है। इंतजार है कि खत्म होने का नाम नहीं ले रहा, इसी तरह करण के विवाह को डेढ़ बरस हो गया। 

एक दिन , करण के दफ्तर में, मिठाई बाँटी जा रही थी। करण उसके साथ रहे ,उसकी नजरों के सामने रहे इसीलिए गौतमी ने उसके दफ्तर में ही नौकरी कर ली थी, किंतु उसका फ्लोर अलग था। किसी कार्य से उसी की बिल्डिंग में आ गई। उसे भी मिठाई खाने के लिए दी गई, मिठाई तो गौतमी ने खा ली किंतु मिठाई का जब उसने कारण पूछा ,जो खा चुकी, वह निगल चुकी किंतु जो मुंह में रह गई वह निगलते नहीं बन रहा था। जब उसे बताया गया -'कि  करण सर के बेटा हुआ है।'' 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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