चाचा -चाची अपमानित होकर, अमृता के घरसे बाहर तो आ गए, किंतु उन्हें अपने किए पर। पछतावा नहीं था ,बल्कि चाची तो क्रोध के कारण ,बिलबिला रही थी ,किस तरह अमृता को मजा चखाया जाए ? किस तरह उसकी औकात उसे दिखाई जाए ?
उसके पति ने उसे समझाना भी चाहा ,जो कुछ हुआ ,उसे भूल जाओ ! यह क्या कम है ? सब कुछ जानते हुए भी, अमृता ने किसी से कुछ नहीं कहा ,हमारा सम्मान बनाए रखा।
इसे तुम सम्मान कह रहे हो, क्रोधित होते हुए, उनकी पत्नी बोली-उसे किस बात का घमंड है ? मैं उसे मजा चखा कर रहूंगी, किसी नागिन की तरफ फुफकारती हुई बोली।
ठीक है, अभी हम घर चलते हैं, बाद में देखेंगे ,गलती करने के पश्चात भी, उसकी चाची को अपनी गलती का एहसास नहीं था। अमृता की मां को मरे हुए पच्चीस वर्ष हो गए , चाचा -चाची की उम्र भी बढ़ गई लेकिन चाची का क्रोध अभी भी वैसा ही था। अमृता ने अपनी जिंदगी में बहुत कुछ देखा है, उसे किसी भी बात की परवाह नहीं है। वह बस अपनी जिंदगी में, शांति से और खुशी से रहना चाहती है। जो हो चुका है उन सबको भुला देना चाहती है। लेकिन ईश्वर भी तो सबकी परीक्षा लेने के लिए बैठे रहते हैं, किस परिस्थिति में कौन आदमी कैसा व्यवहार करता है ? यह तो उसकी परीक्षा से ही पता चलता है ,अब यही परिक्षा अमृता की आरम्भ होने वाली है।
शायद ,ईश्वर भी अपने अच्छे विद्यार्थियों की परिक्षा समय - समय पर लेता रहता है। कहीं उसका विद्यार्थी कमजोर तो नहीं पड़ गया। किंतु यह परीक्षा इतनी कठिन हो जाती है, हर कोई इस परीक्षा से घबराता है। खुशियां हो तो, न जाने जिंदगी कैसे बीत जाती है ? कुछ पता ही नहीं चल पाता। किंतु यह परीक्षा ही, जिंदगी के होने का एहसास कराती है, वही जिंदगी इतनी लंबी नजर आने लगती है, कि ना जाने इन समस्याओं का कब अंत होगा ? कई बार परीक्षा देते-देते , इंसान इतना आहत हो जाता है, अपने जीवन को ही नष्ट कर डालने की योजना बना लेता है या नष्ट कर डालता है। या फिर उसका अपना कोई उससे दूर हो जाता है। इसीलिए इस जिंदगी की परीक्षा से हर कोई घबराता है।
एक दिन अचानक हिमांशु घर आया , शरीर में थोड़ी थकावट महसूस कर रहा था। शूटिंग भी बीच में ही छोड़कर आ गया। अमृता, उसकी हालत देखकर, बुरी तरह घबरा गई ,अमृता ने डॉक्टर को बुलाया।
डॉक्टर ने कहा-शायद ,थोड़ी थकावट है ,उसने दवाई दे दी , हिमांशु ने आराम भी किया। अगले दिन भी उससे उठा नहीं जा रहा था, शरीर में बहुत कमजोरी महसूस हो रही थी , जैसे किसी ने सारा खून निचोड़ लिया हो। उसे बुखार भी नहीं था, न जाने क्या बीमारी उसे लगी है ? कुछ समझ नहीं आ रहा था। घर में सभी परेशान हो उठे , डॉक्टर को भी बीमारी समझ नहीं आ रही थी और हिमांशु से उठा ही नहीं, जा रहा था।
मेरे घर को न जाने, किसकी नजर लग गई ? एक दिन तो उसकी सास ने कहा भी था , तुम्हारा सुख तुम्हारी चाची से देखा नहीं गया , उसी की' काली नजर 'लगी है। अपनी ही परेशानियों में अमृत परेशान थी बच्चों को संभाले या पति को देखें। वो तो उसके साथ ससुर अच्छे थे उन्होंने बच्चों को संभाल लिया, अमृता को हिमांशु के लिए छोड़ दिया ,बच्चों से फ्री होकर ,अमृता का संपूर्ण ध्यान हिमांशु पर ही केंद्रित हो गया। वह रात दिन उसकी सेवा में लगी रहती।
एक से एक बड़े वैद्य और डॉक्टर को दिखाया गया किंतु हिमांशु बिस्तर से न उठ सका। जिस फिल्म को वो कर रहा था ,उनका भी फोन आ रहा था सभी चिंतित थे ,फिल्म में बहुत पैसा लग चुका है ,वह भी अधूरी पड़ी है अपनी बीमारी से हिमांशु भी निराश होने लगा। न ही कोई दवा लग रही थी और न ही कोई बीमारी नजर आ रही थी, दिन -प्रतिदिन कमजोर होता जा रहा था। पैसा भी बहुत खर्च हो चुका था ,आगे बच्चों का भविष्य भी नजर आ रहा था ,क्या किया जाए ? इस तरह हिमांशु की बीमारी को एक वर्ष हो गया वह इतना कमजोर हो चुका था ,पहचान में ही नहीं आ रहा था कि यह व्यक्ति किसी जमाने में ,इतना खूबसूरत ,स्मार्ट अभिनेता था। चारों तरफ से निराश होकर, अमृता एक दिन मंदिर में भगवान से प्रार्थना करने पहुंच गई।
सुना था -इस मंदिर में सब की दुआएं कबूल होती हैं। भगवान से शिकायत करने लगी, मैंने सभी परेशानियों को अपने ऊपर ले लिया, कभी आपसे शिकायत करने नहीं आई, कुछ दिन मेरी जिंदगी के अनमोल पल आए ,तुमसे वह भी नहीं देखा गया जिस कारण आज मेरा पति, ''मृत्यु सैय्या ' पर लेटा है। कुछ समझ नहीं आ रहा ,आप क्या चाहते हैं ? मुझे और क्या जिंदगी में देखना बाकी बचा है, परेशान होकर बोली - कब तक परीक्षा लेते रहोगे ? कहते हुए वह रोने लगी।
वहीं एक साधु बाबा बैठे थे ,जो उसकी प्रार्थना सुन रहे थे।वे अमृता से बोले - बेटा ! वह जो भी सोचते हैं या करते हैं ,हम सब की भलाई के लिए ही होता है किंतु इंसान ही कुछ ऐसे कर्म भी कर देता है जिसका भी दोष हो ,किन्तु ईश्वर को ही उसका जिम्मेदार ठहराता है , कुछ लोग जीवन में गलती और गलत काम करने के लिए ही पैदा हुए हैं , वे अपनी उन गलतियों से कुछ सीखते नहीं है ना ही सुधारना चाहते हैं।
बाबा आप यह क्या पहेलियां बुझा रहे हैं , मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा मैंने ऐसी कौन सी गलतियां की हैं ? जिसका दुष्परिणाम मुझे इस तरह चुकाना पड़ रहा है।
बेटा !गलतियां तो तुमसे हुई हैं किंतु वह गलतियां इतनी गंभीर भी नहीं, जिनका दंड तुम्हें इस तरह से मिले,तुम्हारी जिंदगी में अवश्य ही कोई ऐसा आया है जिससे तुम्हारी खुशी नहीं देखी गईं । तुम मुझे बताओ तुम्हारे पति को क्या हुआ है ?
तब अमृता ने उन्हें अपनी सारी परेशानी बतला दी।
उसे पर दवाई, गोलियों का असर नहीं होगा क्योंकि उस पर ''काला जादू'' किया गया है जो कोई भी है वह नहीं चाहता कि तुम खुश रहो !
बाबा !उसे मेरे पति से क्या दुश्मनी है ? उसकी दुश्मनी यदि मुझसे है ,तो मुझसे ही बदला ले ,मेरे पति ने उसका क्या बिगाड़ा है ?
वो तुमसे ही तो बदला ले रहा है ,तुम्हारे पति को कष्ट होगा ,तब तुम्हें भी कष्ट होगा ,तुम्हारी परेशानियां बढ़ेंगी , जिनकी कमाई का साधन,जो तुम्हारे लिए सुख लाता है , इस साधन को उसने कमजोर कर दिया है ,सबकी अपनी -अपनी सोच है।
रोते -रोते, कुछ सोचते हुए ,ये हो न हो मेरी चाची का ही काम हो सकता है ,वही एक वर्ष पहले मेरे घर आई थी। उसी ने मेरी माँ और मेरे भाई को मारा ,अब मेरे पति के पीछे पड़ी है। उससे मेरी ख़ुशी देखी नहीं गयीं , न जाने वह कौन सा मनहूस दिन था , जिस दिन उसने मेरे घर में कदम रखा। स्मरण करते हुए ,हाँ ,उसके जाने के पश्चात ही ,तो हिमांशु को परेशानी आरम्भ हो गयी। उसने तबसे ही, बिस्तर पकड़ा हुआ है। न ही कोई दवा काम कर रही है ,न ही आराम लग रहा है।
बाबा !आप कोई राह सुझाइये !हम बड़ी परेशानी में हैं ,मेरे छोटे -छोटे दो बच्चे हैं ,उनके सर पर अपने बाप का साया बना रहे ,आप ही ,अब हमें इस परेशानी से उबार सकते हैं। उन बाबा की बातों से ,अमृता का विश्वास उन पर बढ़ गया था ,हो न हो यही बाबा हमारी समस्या का समाधान कर सकते हैं। अमृता उनसे मिन्नतें करने लगी।
कुछ सोचते हुए बाबा बोले -बहुत कठिन समय चल रहा है , तुमने आने में भी बहुत देर कर दी।

