अचानक ही जब करण को पता चलता है, कि उसकी कुंडली में भी दोष है, उसकी पत्नी शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हो जाएगी ,वह दुखी हो गया, उसने सोच लिया-' कि वह अब गौतमी से संबंध नहीं रखेगा, उससे विवाह नहीं करेगा। किंतु गौतमी यह मानने के लिए तैयार नहीं थी ,वह परेशान हो उठी ,कि अब तो ''मंगल दोष ''भी समाप्त हो गया। करण विवाह की बात, मेरे घरवालों से क्यों नहीं करता है ? वह जानना चाहती थी ,उसने यह चुप्पी क्यों साध रखी है? किंतु करण उसे कुछ भी नहीं बताना चाहता था। एक दिन वह उसके घर ही पहुंच गई, और उससे विवाह न करने का कारण जानना चाहा। तब करण की मम्मी ने ही ,उसे सारी परेशानी समझा दी। उन्होंने सोचा था -अभी बच्ची है, जब पंडित जी समझाएंगे, तो समझ जाएगी किंतु उस समय तो गौतमी उनके घर से चली गई और उसका कोई जवाब नहीं आया। इससे कर ण की मम्मी संतुष्ट हो गईं , कि उसने सच्चाई को स्वीकार कर लिया है।
एक दिन करण खुश होता हुआ, घर पर आया और बोला -मम्मी मैं विवाह करने के लिए तैयार हूं, यह सुनकर, उसकी मम्मी आश्चर्यचकित रह गईं और बोलीं -यह तू क्या कह रहा है?क्या तू जानता नहीं है ,तेरी कुंडली में, क्या दोष है ? हां मैं सब जानता हूं।
मेरा तो विचार था , अभी तक गौतमी ने भी यह विचार त्याग दिया होगा। तब से उसका कोई न ही कोई फोन आया है ,न ही वह मिलने आई है ,उन्होंने उसे सम्पूर्ण बातें जो बतला दी थीं । उस दिन ,न जाने उन दोनों के बीच क्या बातें हुई थी ?जो करण विवाह के लिए तैयार हो गया ,मैं नहीं जानती। करण ने मुझे कुछ नहीं बताया।
एक दिन घर आकर बोला -आप विवाह की तैयारी कीजिए।
क्या तेरी उससे कुछ बात हुई है ? मैंने करण से प्रश्न किया-सब कुछ जानते हुए भी , क्या वह ऐसी स्थिति में ,तुझसे विवाह करने के लिए तैयार है ? मैंने घबराकर पूछा
आप उसकी चिंता छोड़ दीजिए, आप कोई और लड़की देखिये , मैं गौतमी से विवाह ही नहीं करूंगा।
मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, यह विवाह करने के लिए तैयार है , किंतु किसी और लड़की से, क्या गौतमी मान जाएगी ? क्या वह तेरे विवाह में कोई अड़चन पैदा नहीं करेगी। मेरे मन में ,अनेक प्रश्न उमड़ रहे थे ,मैं कुछ भी नहीं समझ पा रही थी। मैंने करण से पूछा- क्या तेरी गौतमी से बात हुई है ?
हां ,मैंने उससे बात की है।
तब उसका जवाब क्या है ?
वह मेरी दूसरी पत्नी बनने के लिए तैयार है।
मैं आश्चर्य से पूछा - तू यह क्या कह रहा है ?
हां ,उसी ने तो यह उपाय मुझे सुझाया है। उसके पंडित ने कहा है ,यदि मैं विवाह कर लेता हूं , उस लड़की की मृत्यु के पश्चात, हम दोनों विवाह कर लेंगे।
हे भगवान !तुम ऐसा कैसे सोच सकते हो ?मैं आश्चर्य से बोली -यानि तुम अपने विवाह के लिए किसी अन्य लड़की की बलि देना चाहते हो, तुम ऐसा सोच भी कैसे सकते हो ? यदि उस लड़की को पता चल गया तो उस पर क्या बीतेगी ? तुमने कभी सोचा है , कौन तुम्हें अपनी लड़की देगा ?जिनकी कुंडली में ऐसा दोष हो। इस दोष के साथ ,कौन लड़की तुमसे विवाह करना चाहेगी ?
इसमें सोचना कैसा ?जब हम उसे बताएंगे ही नहीं , तब उसे कैसे पता चलेगा ? किसी गरीब घर की लड़की देख लो ! कुछ दिन हमारे साथ रहेगी और जब वह नहीं रहेगी तब गौतमी और मैं विवाह कर साथ रहेंगे। अपनी इस योजना पर वह खुश था , खुश भी क्यों ना हो ? गौतमी ने उपाय ही ऐसा बताया था, गौतमी खुश तो करण भी खुश। इस योजना के तहत एक लड़की ढूंढी गई ,जिनको अपनी लड़की बिहानी थी उन्हें जन्मपत्री वगैरा से कुछ भी लेना देना नहीं था। उनका उद्देश्य सिर्फ अपनी बेटी को , दो जोड़ी कपड़ों में विदा करना था। उनकी इच्छा थी ,कि उनकी बेटी को अच्छा- घर परिवार मिल जाए , उनकी दृष्टि में,जो हमारा था।
आंटी जी !आप बुरा नहीं मानिएगा, यह लोग एक अच्छी सोच के साथ आगे नहीं बढ़ रहे थे। किसी के माता-पिता की इच्छाओं का लाभ उठाना भी, अच्छा नहीं है। बाहर से तो सब अच्छा ही दिखता है किंतु किसी की सोच के विषय में क्या कहें ? सभ्य दिखने वाले व्यक्ति, ऐसी सोच लेकर आगे बढ़ रहे थे, या यूं कहें उस लड़की की मौत का सामान लेकर आये थे,प्रभा बोली।
वह तो मैं भी जानती हूं ,इस बात का मुझे भी दुख था किंतु जब दोनों की ही ऐसी इच्छा थी तो ,मैं अकेली क्या कर सकती थी ? दुख भरे स्वर में वह बोलीं।
इंसान यह कहता है, कि न जाने, हमने कौन से कर्म किये , किंतु अपने कर्मों को करके वह भूल जाता है वह भूल जाता है, किसी का तुम बुरा चाहोगे, तो बुरा ही होगा, जिसका दंड हमें मिला।आपके बच्चों ने यह अच्छा तो नहीं किया ,मलिनी जी बोलीं -तब आपने क्या किया ?
क्या करती ?उनके अनुसार चलना ही पड़ा ,मैंने सब समय पर छोड़ दिया। ऐसी ही कोई लड़की की तलाश की गयी।
तब आपको प्रीति मिली ,तुम तीन लोग, इसकी ज़िंदगी के साथ खेल गए।
क्या करते ?हमारी भी तो मजबूरी थी।
गौतमी तो ऐसे ही रहने को तैयार थी।
यानि......
यानि ये ,वो कहने लगी -यदि विवाह करने से , मेरी जान को खतरा है ,तो क्यों न हम ,बिना विवाह के ही साथ रह लेते हैं। उस दिन जब मेरे पास आई थी ,उस दिन के पश्चात ,उससे मेरी मुलाकात नहीं हुई क्योकि वो अब वो बाहर ही, करण से मिलती और उसे अपनी योजनाएं बताती रहती और करण जब मेरे पास आकर मुझे अपनी योजनाएं बताता ,मैं समझ जाती ,ये सब वो ही कह और चाह रही है। जब हमें प्रीति मिली ,देखने में सुंदर होने के साथ -साथ ,व्यवहार में मिलनसार थी और कार्य करने में सुघड़। हमने उसके घरवालों को कुछ भी नहीं बताया और विवाह कर उसे अपने घर ले आये। बस यहीं किस्मत ने पलटा खाया।
क्या हुआ था ?
पहले तो करण ने ,उससे कुछ दिनों तक बात ही नहीं की, किन्तु प्रीति ने किसी से कुछ नहीं कहा ,हमेशा खुश रहती ,आते ही सारा घर संभाल लिया। करण के सभी कार्य ख़ुशी -ख़ुशी करती ,उसके कुछ भी मांगने से पहले ही, हाजिर कर देती। उसके इस व्यवहार ने हम दोनों माँ -बेटों के मन में ,ग्लानि भर दी। हम सोच रहे थे -कि इसे हम क्या सोचकर लाये हैं ?और ये हमारे जीवन में ख़ुशियाँ भर रही है। मुझे तो कुछ भी नहीं करने देती थी ,कहती -मम्मी जी ,अब तक सब आपने ही संभाला है ,अब आप आराम करिये ,बहु के रूप में अब आपकी बेटी जो आ गयी है।
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