नमस्कार दोस्तों ! आज मैं तुम्हें एक नई ''रहस्यपूर्ण '' कहानी सुना रही हूं , एक बार क्या हुआ? मैं ''स्वप्न लोक ''में चली गई। स्वप्न लोक से होते हुए ,ब्रह्मलोक, विष्णु लोक का भ्रमण करते हुए ,मैं आगे बढ़ रही थी। तभी मुझे राह में ,ब्रह्मा जी दिखलाई दिए। मैंने उनके' चरण स्पर्श 'किए।
उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया और कहने लगे -पुत्री !तुम यहां कहां घूम रही हो ? मनुष्य के लिए तो हमने ''भूलोक '' बनाया हुआ है , सभी के लिए अलग-अलग स्थान बनाए गए हैं , कोई इंसान इस तरह हमारे लोक में भ्रमण नहीं कर सकता।
मैंने मन ही मन सोचा, तभी इंसानों में यह तेर -मेर की भावना बनी हुई है , हर चीज को बांट लेना चाहते हैं इसलिए परिवार भी घटते जा रहे हैं।मैंने कहा -प्रभु ! जीते जी तो मैं इन लोकों का भ्रमण नहीं कर सकती सोचा ,'स्वप्न लोक' से ही इनका भ्रमण कर लो !
तुम सही कह रही हो, सपनों में कल्पनाओं में कहीं भी जा सकती हो ,ईश्वर ने मानव को कल्पना करने की बहुत बड़ी शक्ति दी है, वह अपनी कल्पना से कहीं भी जा सकता है।
तब क्या प्रभु मैं ''अंतरिक्ष के रहस्यों '' को भी जान सकती हूं , मैंने प्रश्न किया।
कल्पना करने में क्या जाता है ? कल्पना से तुम कहीं के भी रहस्य जान सकती हो।
नहीं ,प्रभु ! मैं सत्य में ही ''अंतरिक्ष के रहस्य'' को जानना चाहती हूं , इसी तरह के शीर्षक मुझे लिखने के लिए मिलते हैं।
प्रभु हंसने लगे ,बोले -अभी तक तो तुमने ''भूलोक'' का भ्रमण भी ठीक से नहीं किया। ''अंतरिक्ष के रहस्यों '' को जानना चाहती हो। आज तक इतने बड़े-बड़े महान व्यक्ति हुए हैं ,वह भी' अंतरिक्ष के रहस्यों ' को नहीं जान सके , न ही बडे - बड़े वैज्ञानिक उनका पता लगा सके हैं। तुम कैसे पता लगाओगी ?
आपका आशीर्वाद रहा तो,सब संभव है , अब पृथ्वी लोक पर यह कहावत तो चली आ रही है -''जहां न पहुंचे रवि ,वहां पहुंचे कवि '' तब मैं भी सोचती हूं -क्यों ना एक' भ्रमण अंतरिक्ष 'का भी किया जाए।
तुम वहां खो जाओगी , वहां ना ही नेट है, ना ही गूगल है , न ही उन स्थानों की तख्तियां वहां लगी हैं , कैसे जानोगी? कि तुम किस क्षेत्र में हो और कैसे तुम्हें आगे बढ़ना है ?वहां वायु भी नहीं है ,वहां तुम उड़ने लगोगी। यदि तुम परेशानी में आ गयीं तो कैसे, किसी को पुकारोगी ? चाहकर भी, रो नहीं सकतीं। न जाने कितनी ''आकाश गंगायें ''हैं ?न जाने कितने ''कृष्ण विवर ''यानि ''ब्लैक हॉल '' जिनसे निकलना असम्भव है। ब्रह्मा जी ने मुझे बहुत डराया।
किंतु मैं अपने विश्वास पर अडिग रही , यदि मेरे साथ आप हैं ,आपका आशीर्वाद है, तो मेरे लिए सब संभव हो जाएगा। जो मानव जीते जी ना कर सके शायद मैं कल्पनाओं में कर जाऊं या हकीकत में ही पहुंच जाऊं। इसका रहस्य तो पता लगाना ही होगा। ब्रह्मा जी से आशीर्वाद लेकर मैं अंतरिक्ष की ओर उड़ चली , पहले तो वहाँ मैंने बादलों को अपना यान बनाया उसके पश्चात मैं स्वयं भी उड़ने में सक्षम थी। अब मेरी यात्रा अंतरिक्ष की ओर थी। जब मैं वहां पहुंची ,वहां पर' शांति' थी जिस शांति की तलाश में मानव 'भूलोक 'पर ताउम्र घूमता रहता है। वैसी ही शांति वहां थी, ना परिवार की चिंता ,ना रिश्तो की चिंता , ना किसी अहम के नष्ट होने का भय , न ही मान सम्मान की चिंता। मैं उड़ती जा रही थी, ब्रह्मा जी का आशीर्वाद जो था और पापा की परी जो ठहरी , न जाने कहां पहुंच गई ? अजीब तरह के लोग मिले मुझे , मुझसे मिलकर प्रसन्न हुए , उनके लिए मैं एक विचित्र प्राणी थी क्योंकि उनके जैसी तो नहीं थी। वह मेरे लिए विचित्र थे। उन्हें मैंने अपने 'भूलोक ' के विषय में बताया , मेरी बातों से वह अत्यंत प्रभावित हुए। मैंने उनसे कहा -कभी हमारी पृथ्वी पर भी घूमने आया करो !
कहने लगे- यहीं पर हम लोग अपनी परेशानियों में डटे रहते हैं , एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचने के लिए बहुत समय लगता है। वैसे तो खाने पीने की हमें यहां कोई परेशानी नहीं है , सब कुछ एक गोली खाने से हो जाता है किंतु उस गोली को कमाने के लिए भी ,हमें मेहनत करनी पड़ती है। हमें अपने क्षेत्र को बचाने के लिए दुश्मनों से इसकी रक्षा भी करनी पड़ती है। मैंने वहां उनके बड़े-बड़े जहाज देखें जो शायद लड़ाई के लिए इस्तेमाल होते होंगे। देखने में तो ,वहां की सभी चीज विचित्र थीं।
तभी न जाने कहां से ? अजीब से वस्त्र पहने हुए ,कुछ लोग वहां आए, यह तो अच्छा हुआ, ब्रह्मा जी के आशीर्वाद से मैं ,उनकी सभी भाषाएं समझ पा रही थी। उनमें से एक व्यक्ति कह रहा था -ए ए तुम लोग यहां से जल्दी जगह खाली कर दो ! वरना हमारे सैनिक आकर तुम्हें नष्ट भ्रष्ट कर देंगे और तुम्हारे इस राज्य को भी।
मैंने सोचा जहां भी जाओ ! लोग लड़ाई झगड़ा और अधिकार की बातें ही करते रहते हैं कभी प्रेम की बात नहीं करते , तब मैंने उन्हें समझाया -इतना बडा अंतरिक्ष है ,तुम कहीं भी जाकर रह सकते हो, प्रेम से रहोगे तो एक दूसरे का सहारा मिलेगा। इस तरह लड़ाई झगड़े से कुछ भी लाभ नहीं है।
तभी उनमें से एक महिला सैनिक बोली -ए, तू अपनी यह भूलोक की बातें ,अपने पास रख ,यहाँ हम प्रेम नहीं जानते। हम लोग लड़ते हैं ,शासन करते हैं और जीतकर आगे बढ़ जाते हैं। समझी !
उसने मुझे जिस तरह से समझाया ,मुझे बहुत गलत लगा , उसकी क्या भाषा थी ? बिल्कुल टपोरी ! तुम्हें तो बात करने की तमीज भी नहीं है और अंतरिक्ष में घूम रही हो, यह तो बहुत नाइंसाफी है ,हम लोग इसके रहस्यों को जानने के लिए जुटे पड़े हैं। जब हमारे भूलोक से , मानव आएंगे ,क्या तुम लोग इस तरह उनका स्वागत करोगे ? हम लोग तो सोच रहे हैं ,ना जाने अंतरिक्ष में क्या रखा है ? उसकी खोज में रात -दिन हमारे वैज्ञानिक एक कर रहे हैं और तुम लोगों को यहां बात करने तक की भी तमीज नहीं है। यह बात मुझे बिल्कुल पसंद नहीं आई और मैंने अपने प्रभु का नाम लिया। उसका वह लोहे का जैसे बना हाथ पकड़ा और घुमाया और ब्लैक होल में फेंक दिया। ऐसे लोगों को यहां पर जीने का कोई हक नहीं है कहकर मैं अंतरिक्ष में आगे बढ़ गई।
मेरी शक्ति देखकर वह लोग घबरा गए , किंतु मैंने घमंड नहीं किया , यह तो मेरे प्रभु की कृपा है। अब आप लोग जानते ही हैं ,वायुमंडल तो वहां है नहीं ,वहां आसपास और लोग भी नहीं थे। बहुत जगह घूमी ,बहुत चीजें देखी किंतु धरती जैसी रौनक कहीं नहीं मिली , फिर अपने लोगों की याद सताने लगी और मैं उड़ते हुए अपने भूलोक पर आ गई। अंतरिक्ष बहुत बड़ी जगह है ,एक दिन में तो नहीं घूम जा सकता था फिर भी जितना घूमी अच्छा अनुभव रहा, साथ में दोस्त होते तो शायद पिकनिक हो जाती। यदि वैज्ञानिकों को भी मेरी किसी सहायता की जरूरत पड़ी तो मैं ,आवश्यक ही उनका साथ दूंगी ताकि वे आगे भी कामयाब हो सकें , जो रास्ते मैंने देखे हैं , अभी भूली नहीं हूं। रहस्य तो तब तक ही रहस्य है, जब तक हम वहां नहीं पहुंच जाते , अब मेरे लिए अंतरिक्ष का कोई रहस्य बाकि नहीं रह गया था।
