आज करण को पता चलता है , कि उसके घर में जो भी ,नकारात्मक ऊर्जा है, जिस तरह से भी, अशांति घर में फैली हुई है ,उन सभी का कारण वह स्वयं ही है। आज प्रीति के अंदर विद्यमान प्रेत ने , उसे एहसास कराया- कि वह ही , इन सब परिस्थितियों का जिम्मेदार है। तब उसे अपने वर्षों पुराने रिश्ते का स्मरण होता है, जब वह गौतमी से मिला था। उधर अघोरी बाबा, प्रीति का अपने तंत्र -मंत्र से इलाज कर रहे हैं और इधर करण अपनी यादों में ,गौतमी के समीप पहुंच गया है। वह सोच रहा था, गौतमी , क्या ऐसा कुछ कर सकती है ? उसे विश्वास नहीं हो रहा था, किंतु प्रमाण तो उसके सामने है। इनको झूठलाया भी ,तो नहीं जा सकता। तब उसे वह बातें स्मरण हो जाती हैं ,जब वह उसे पहली बार गांव में मिली थी। गांव में मिलने के पश्चात ,उसके फोन पर उसकी बातें हुई थीं। उसकी ही नहीं ,उसकी मम्मी की बातें भी हुई थीं। फोन उसने अपनी मम्मी के हाथ से ले लिया ,वह नहीं चाहता था , गौतमी मम्मी से , भावावेश में कुछ उल्टा -सीधा न बोल दे ? तभी गौतमी उससे नाराज होती है। तुमने अपनी मम्मी को मेरे विषय में कुछ भी नहीं बताया ,मैं उनसे बात करते हुए, कितना घबरा रही थी ?
अरे ! क्यों नाराज हो रही हो ?मैं तुम्हारे विषय में उन्हें ,कैसे बताता और क्या बताता ? जब तुम्हारी यादें ही मेरे जहन से नहीं जा रही थी ,उन्हीं में व्यस्त था।गौतमी को तो कारण ने, यह अपने दिल की हकीकत कही थी , किंतु गौतमी ने इसे मजाक समझ लिया और बोली -बस -बस रहने दो ! मक्खन बाजी ना करो।
यह मक्खन बाजी नहीं है। बस ऐसे ही दिल किया, कुछ सच्चाई बोल दूँ , अच्छा ,एक बात बताओ ! क्या तुम्हें मेरी याद नहीं आती थी ,तुम तो मुझे बिल्कुल भूल ही गई थीं और मैं यहां ,तुम्हें कितना याद कर रहा था ? तुम्हारे साथ रहना कितना अच्छा लगता था ? कुछ कह नहीं सकता ,इस सबको शब्दों में बयां नहीं कर सकता। एक-एक प्यार भरे लफ्ज़ करण के मुंह से निकल रहे थे।
अच्छा !तुमने मेरे विषय में, इतनी गहराई से सोचा।
क्या तुम्हारा मन ,यानि तुम्हारा दिल मेरे विषय में नहीं सोचता था ?
सोचना तो चाहती थी किंतु क्या करती ? अपने को पढ़ाई में व्यस्त कर लिया , सोच रही थी -कुछ दिन ही यह यादें सताएंगीं। धीरे-धीरे अपने आप ही चली जाएगीं। किंतु मैंने यह नहीं सोचा था -हमारी ,इस तरह दोबारा भी मुलाकात होगी। वह मुस्कुरा दी और बोली तुम्हें एक बात बताऊं -मैंने तुम्हें वहां पहले ही देख लिया था किंतु जब तुम मुझे ढूंढ रहे थे, मेरी तलाश में थे मुझे मजा आ रहा था।
तुम्हें कैसे मालूम ?कि मैं तुम्हें ही ढूंढ़ रहा हूँ ?हो सकता है ,किसी और की तलाश में हूँ।
मैं इतनी भी मूर्ख नहीं ,तुम्हारे सभी दोस्त तो वहीँ थे। अपनी तरफ देखते हुए ,तुम्हें मैंने देख लिया था किन्तु मैंने न देखने का बहाना बनाया।
तब तुम्हें , मुझे परेशान करने में मजा आ रहा था , झूठमूठ नाराजगी जतलाते होते हुए करण बोला - तुम जानती हो, मैं तुम्हारे लिए गर्मियों की छुट्टी की प्रतीक्षा में था तुमसे मिलने की तड़प , बहुत ही तड़पा रही थी।
जाओ ,जाओ ! इस तरह झूठ नहीं बोलते , यदि यह बात सच होती तो तुम मिलने का प्रयत्न नहीं करते।
किया तो था, तुम भी तो कितनी चालाक हो ? मुझे यह भी नहीं बताया, कि मैं कहां रहती हूं ? बहुत दिनों बाद मिले बातों का ना कोई और था, ना ही कोई छोर ,न ही उद्देश्य , बस दोनों को बात करने से मतलब था ,एक दूसरे के साथ समय व्यतीत करना था।
तभी करण की मम्मी ने पीछे से आवाज लगाई , क्या आज ही सारी बातें कर लेनी है ? कल के लिए भी छोड़ दो !
मम्मी की बात सुनकर करण, को एहसास हुआ शायद, उसने बात करने में बहुत समय लगा दिया , तब गौतमी से बोला -अब तो मेरा नंबर तुम्हारे पास है , जब जी चाहे फोन कर लिया करना।
क्यों, मैं ही हर बार फोन क्यों करूं ? क्या तुम नहीं कर सकते ? हर बार में ही फोन करूंगी तो आंटी क्या सोचेंगीं ? तुम भी मेरा नंबर लिख लो !
यहां तो मेरी मम्मी हैं , तुम मेरी दोस्त हो ,यह भी वह जानती हैं, तुम्हारा फोन आया तो मुझे बता देंगीं किंतु क्या तुम मेरा फोन उठा पाओगी ? किसी और ने उठा लिया तो....... तब उसे क्या जवाब दोगी ?
गौतमी सोचने लगी, हां यह तो तुम सही कह रहे हो , पापा से कैसे बताऊंगी ? अच्छा एक काम करते हैं , हमेशा शाम को 6:00 बजे ही मैं ,तुम्हें फोन किया करुंगी , निश्चित समय पर हम दोनों फोन के करीब होंगे कहते हुए गौतमी हंसने लगी।
हां, यह बात सही है , जब भी मैं तुमको फोन करूंगा तुम फोन के आसपास ही रहना। कह कर करण ने फोन काट दिया।
कौन लड़की थी ? तुमने तो इससे पहले नहीं बताया कि बुआ के गांव में ,कोई लड़की तुम्हें मिली थी , स्वभाव से तो बड़ी अच्छी लग रही है, बातचीत भी खूब करती है। देखने में पता नहीं कैसी होगी ? यह बात मम्मी ने जानबूझकर कही थी।
देखने में एकदम झल्ली है , बस बातें बनाना ही जानती है , खूब बातें करती है ,करण लापरवाही से बोला , वह नहीं चाहता था ,मम्मी उसके इस रिश्ते को कुछ अलग ही समझने लगें।
तभी प्रीति की आवाज, करण को सुनाई दी - प्रीति की आवाज में वही प्रेत, कह रहा था , इसी ने ही ,गौतमी से विवाह का वादा किया, उसे सुंदर सपने दिखलाए और जब वह इसके प्रेम में पड़ गई , तो यह उसे टालता रहा। इन दोनों का प्यार एक-दो दिन का नहीं था कई वर्षों का था , वह तो इससे विवाह करना चाहती थी और इसने उससे कह भी रखा था।
करण को लगा -कहीं, यह प्रेत मेरी पोल ना खोल दे , बातों के मध्य में ,आते हुए बोला-इन सब बातों का इन चीजों से क्या लेना देना ? मेरी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।
चुप कर ! लेना - देना क्यों नहीं है , वो तेरे कारण कितनी तड़पी है ? उसकी तड़प के कारण ही ,आज मैं यहां पर हूं , तुझे पाने के लिए वह कुछ भी कर सकती है , तूने अपने बच्चे का हश्र नहीं देखा ,तू क्या समझता है ? वह अपनी मौत मरा है , यह उसके बदले की आग है , जो तेरे कारण इन्हें भी झुलसा रही है । मुझे तो, जिस कार्य के लिए भेजा गया है ,वह कार्य तो मुझे पूर्ण करना ही है क्योंकि मैं मंत्रों से बंधा हुआ हूं।
वह इस तरह से कुछ भी नहीं कर सकती है , यह सब भ्रम है इस प्रेत का फैलाया मायाजाल है , प्रभा और मालिनी जी के सामने वह अपनी सफाई देने लगा। वह नहीं चाहता था कि गौतमी के विषय में किसी को कुछ भी पता चले। तब बोला - वह बात तो कब की समाप्त हो गई ? अब हमारे बीच कुछ भी नहीं है।
कैसे नहीं है ? क्या तू भूल गया? तू आज भी उससे बातें करता है , उसे एक आश्वासन दिया हुआ है उस दिन के पश्चात ही तो , उसने उस तांत्रिक से बातें की ,मुझे यहां भेजने के लिए...... क्योंकि वह समझ गई थी तुम सिर्फ उसे बहला रहे हो। तुमने न जाने कितने- कितने आश्वासन उसे दिए हैं ? जब संबंध ही नहीं रखना था तो आश्वासन देने की क्या आवश्यकता थी ? वह अपनी राह चली जाती और तुम अपनी राह ... तुम उसे भी नहीं छोड़ना चाहते और यहां अपनी बीवी बच्चों के साथ गृहस्थी बसाई हुई है , वह कब तक तुम्हारी प्रतीक्षा में रहेगी ? उसकी प्रतिक्षा का अंत तो होना ही चाहिए।
मालिनी और प्रभा , करण की तरफ देख रहीं थीं , अपनी सफाई में शायद वह कुछ जवाब दे किंतु उसने आसपास देखा और अंदर कमरे में चला गया।
मैं फिर आऊंगा कहकर,अभी वह प्रेत भी जा चुका था।

