Pratishodh

 क्रोध की अति ही ,''प्रतिशोध ''है।

 बढ़ती जलन ही ,''प्रतिशोध '' है। 


हर ले जो बुद्धि -संस्कार वही प्रतिशोध है। 

पतन का मार्ग जो दिखलाये ''प्रतिशोध 'है।


क्या ?साथ ले जायेगा ,तू !

इस प्रतिशोध की अग्नि में जलकर ,

ख़ाली हाथ आया था ,ख़ाली हाथ ही जायेगा। 

  


 पतंगे को जलाने के लिए,

शमा को स्वयं भी, जलना पड़ता है। 

'प्रतिशोध' की आग में जलता है, जो... 

 स्वयं भी ,उसे जलना पड़ता है। 

रह -रहकर ,पल -पल ,छिन -छिन ,

उसे अग्नि में ,जलते रहना पड़ता है। 

न जाने कब मौका मिले ?

बदले की तलाश में, जीना पड़ता है। 

प्रतिदिन यह अग्न जलाती है, उसे। 

कब सोया ?हरपल जागना पड़ता है।

ये अग्न ऐसी ,जैसे सुलगती है ,

धीरे -धीरे ,गीली लकड़ी ,

मशाल सी ,'प्रतिशोध 'की ज्वाला ,

धधकती है ,जलते सीनों में ,

न जाने कब ''प्रतिशोध '' पूर्ण हो ?

उससे पहले ही, सब अपना होम हो। 

झांकता है , जब अतीत के घेरों में ,

यही ''प्रतिशोध ''बेमानी लगता हैं।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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