Shrapit kahaniyan [part 107]

तांत्रिक बाबा ने प्रीति को, एक घेरे में बिठा दिया और कुछ मंत्र पढ़ने लगे, जिसके कारण, उनके घर में जो प्रेत था ,वह प्रीति के अंदर आ गया। उनका उद्देश्य यही जानना था, कि वह इस परिवार को बर्बाद करने, क्यों आया है ? किंतु पहले तो वह प्रेत, कोई जवाब नहीं देता नाराज होता है। वह इतना बता देता है कि उसको उन लोगों को बर्बाद करने के लिए भेजा गया है उसकी प्रीति से कोई दुश्मनी नहीं है। तभी वहां करण आ जाता है और प्रीति की हालत देखकर परेशान होता है , तब वह तांत्रिक बाबा से यह सब करने के लिए मना करता है तब वह प्रेत नाराज होकर कारण से ही कहता है तू ही तो इस सब की जड़ है। और जब वह गौतमी के नाम लेता है , तब करण को सभी बातें याद स्मरण हो जाती हैं।


सुजानपुर की गौतमी , उसकी जिंदगी में आई थी। उसे अपने गांव पर गर्व था ,शहर में रहकर पढ़ रही थी किन्तु अपने गांव की मिटटी से जुडी थी। बड़े शान से अपना गांव उसे दिखाने ले जाती है। करण कुछ दिनों पश्चात , अपनी बुआ के गांव से आ तो गया , किंतु कुछ अच्छी सी यादें लेकर आया। जिन्हें स्मरण करते ही, उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती। इस सब का श्रेय गौतमी को जाता है। गौतमी ने उसे गांव ही नहीं दिखाया वरन  उसकी सोच, पर भी असर किया। उसे गांव से आकर कुछ दिनों तक , वह गौतमी की यादों में ही खोया रहा , उसे लगा ,उसने आने में जल्दी कर दी। पता नहीं ,अब उससे कब मिलना होगा ? अब तो वह सोच रहा था शीघ्र ही गर्मियों की छुट्टियां पड़े और वह फिर से एक बार सुजानपुर जाए जहां पर उसकी गौतमी से मुलाकात होनी है। 

''खेल दिवस'' चल रहे थे , करण ने भी खेल में भाग लिया था इसीलिए नहीं, कि उसे खेल में जीतना है बल्कि इसलिए , जब वह गेंद को, पकड़ लेता यानी कैच कर लेता, तब उसे गौतमी अपने सामने खड़ी दिखलाई देती,जैसे वो कह रही हो -तुम अच्छा' कैच' करते हो । कैसी मधुर यादें हैं ? पिकनिक के लिए, वह लोग दिल्ली गए थे। वह लोग जिस स्थल पर गए थे, अचानक करण को लगा ,जैसे गौतमी अभी उसकी नजरों के सामने थी। यह भ्रम तो नहीं हो सकता , उसने उसे ढूंढने का प्रयास किया। खुशी से उसकी ''बांछें  खिल गई '', हां, वही तो है।  यह भी शायद घूमने  ही आई होगी किंतु उसकी सहेलियों को देखकर, वहीँ रुक गया। दिल किया ,उससे मिले और उसे कसकर गले लगा ले किंतु एक झिझक ने, उसे रोक दिया किंतु वहीं आसपास मंडराता रहा। बस, एक मौके की तलाश थी।

 गौतमी भी, इतनी शरारती थी , उसने करण को देख तो लिया किंतु अनजान बनी रही , करण को  परेशान करने में, उसे मजा आ रहा था। अब करण को उसके दोस्तों ने  बुलाया -वापस चलना है ,और भी स्थल देखने हैं किंतु अब करण की घूमने में, कोई रुचि नहीं रह गयी थी , थककर  वहीं  बेंच पर बैठा रहा, सोचने लगा -इतने दिनों पश्चात मिले हैं ,किंतु सामने होकर भी मिलना नहीं हो रहा। तभी उसका एक दोस्त आया और बोला - चलो मैडम !ने बुलाया है। 

आता हूं, कह कर उसे भेज दिया। अब  गौतमी भी कहीं नहीं दिख रही ,न  जाने कहां चली गई ? उसकी तलाश में भटकने लगा। वापस जाने के लिए मुड़ा ही था ,तभी सामने गौतमी उसे अपनी सहेलियों के संग फिर से दिखलाई दी ,उसे वापस भी जाना है यही सोचकर ,अब वह अपने को रोक सका , वह दौड़कर उसके करीब गया और जाते ही बोला -इतनी देर से तुम्हारे लिए भटक रहा हूं ,एक बार भी पलटकर नहीं देख सकती थीं। गौतमी की दोस्त भी ,आश्चर्य से करण को देखने लगीं। तुम यहाँ कब आईं ?भावावेश में करण उससे बोले जा रहा था ,उसे इस बात का ड़र सता रहा था ,उसकी बस चली गयी  ,तब वो अपने दिल की बात ,गौतमी से कैसे कहेगा ?

ऐ..... तुम कौन हो ?यहाँ हमारा पीछा क्यों कर रहे हो ?क्या ये तुमको जानती है ?

इससे ही पूछ लो !करण बोला। 

तब गौतमी ,मुस्कुराकर अपनी दोस्तों से बोली -इससे मिलो !ये मेरा गांववाला दोस्त है ,तुम्हें बताया था ,न.... कि गांव में मेरा एक दोस्त बना था। ये वही है। 

ओह ! हाय ! सभी एकसाथ बोलीं। 

करण की किसी से भी, मिलने में कोई दिलचस्पी नहीं थी इसीलिए उन्हें हाय ! करके गौतमी से पूछा -क्या तुम भी ,यहाँ घूमने आई हो। 

मैं तो अक्सर यहाँ आती रहती हूँ ,मैं यहीं तो रहती हूँ। 

तुमने पहले क्यों नहीं बताया ?

तुमने पूछा ही नहीं। 

करण...... करण !शीघ्र आओ ! हम जा रहे हैं। बस के समीप खड़े एक बच्चे ने आवाज लगाई। 

अभी आया कहते हुए ,उसने हाथ मिलाने के बहाने से , गौतमी के हाथ में ,एक पर्ची थमा दी। गौतमी ने एक नजर उस पर्ची को देखा और चुपके से अपनी स्कर्ट की जेब में रख ली। 

तुम्हारा ये , गांव वाला दोस्त तो स्मार्ट है , कहते हुए उसकी सहेलियों ने आपस में एक दूसरे को आंख मारी  और हंसने लगी। 

यह गांव का नहीं है, यह शहर में ही रहता है, यह तो मेरे गांव में घूमने के लिए आया था और आज देखो ! अचानक से मुलाकात हो गई। चलो !अब घर चलते हैं। 

हां ,इस  स्थल पर रखा ही क्या है ? जिससे मिलना था वह तो गया, कहकर वो हंसने लगीं।  

तुम भी न...... बेकार की बातें करती हो ,कह कर गौतमी भी मुस्कुरा दी। घर आकर भी करण बेचैन रहा , वह शायद किसी के इंतजार में था किंतु इंतजार था कि समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा था। अचानक से फोन की घंटी बजी और वह खुश होते हुए दौड़ पड़ा, उससे पहले ही ,उसकी मम्मी ने वह फोन उठा लिया। फोन उठाते ही, उधर से आवाज आई -हाय ! क्या कर रहे हो ? क्या मेरे फोन की प्रतीक्षा में ही थे ?करण की मम्मी ने एक नजर करण को देखा। जब तुमने नंबर दिया है ,फोन करना तो बनता है। अब बोल क्यों नहीं रहे ? क्या मुँह में दही जमा है ?

बेटा ! तुम मुझे बोलने दोगी ,तभी तो मैं तुम्हें बताउंगी कि मैं, करण नहीं ,उसकी मम्मी बात कर रही हूँ। 

जी....... वोओओओओ ,नमस्ते आंटीजी !

नमस्ते !

करण ने मुझे यही नंबर दिया था ,हकलाते हुए गौतमी बोली -क्या करण यहीं रहता है ?

जब करण की मम्मी बोलेगी ,तो करण भी यहीं रहता होगा ,वैसे तुम कौन हो ? क्या करण के स्कूल में पढ़ती हो ?तुम करण से कब और कहाँ मिली ? करण उनके समीप ही खड़ा था ,वो उसे देखकर मुस्कुरा रहीं थीं ,करण उनसे फोन मांग रहा था किन्तु वो तो स्वयं ही गौतमी से बातें करने लगीं। 

क्या आपको करण ने, मेरे विषय में कुछ भी नहीं बताया ?


नहीं तो...... करण उनकी बातें सुनकर अपने '' बाल नौच रहा था ''कहीं मम्मी उससे कोई ऐसी -वैसी बात न कह दें।अच्छा ,तब तुम ही, अपने विषय में बता दो !

आंटीजी मैं गौतमी ,सुजानपुर में उससे मिली थी ,वो जब गर्मी की छुट्टियों में, अपनी बुआ के घर गया था। 

 ओह ! तो तुम उसकी सुजानपुर की दोस्त हो ,करण का इतना सुनना था ,न जाने मम्मी को क्या -क्या बता दे ?सोचकर वो, तुरंत अपनी मम्मी के समीप आया और बोला -थोड़ी बात मैं भी कर लूँ ,या सारी बातें आप ही करने वालीं हैं ,उन्होंने मुस्कुराकर उसे फोन दे दिया।

हम लोग घूमने गए ,मैंने उसे अपना सारा गांव दिखाया ,उसकी बात काटकर करण बोला -ज्यादा ''डींगें मारने की आवश्यकता नहीं है। ''मुझे सब मालूम है ,करण बोला। 

ओह तुम !एक गहरी स्वास लेते हुए गौतमी बोली -भगवान का शुक्र है ,तुमने फोन ले लिया, मैं तो घबरा ही रही थी ,तुम्हारी मम्मी से क्या बात करूं ?तभी एकाएक उसे क्रोध भी आया और बोली -तुम कितने बुरे हो ?तुमने मेरे विषय में अपनी मम्मी को कुछ भी नहीं बताया।   

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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