Shrapit kahaniyan [part 106]

प्रीति के साथ एक  के बाद  एक हादसे हो रहे हैं , वह बहुत ही परेशान है , तब मालिनी जी और प्रभा, उससे मिलने आतीं  हैं , और उसे सांत्वना  देकर चली जाती हैं। अगले दिन ,भी न जाने कौन ? बाबा अघौरी नाथ के रूप में उसे छलने आ जाता है किन्तु शीघ्र ही वो, उस भ्र्म से भी निकल जाती है। तांत्रिक बाबा ,आकर अपना पूजन कार्य संभालते हैं। बाबा अपनी  पूजा आरम्भ करते हैं। प्रीति को एक घेरे के अंदर बैठा दिया जाता है और मंत्रोच्चारण करने लगते हैं  तब बाबा ने ,उससे पूछा-बता ! तू कौन है ?

नहीं, बताऊंगा। 

कैसे नहीं बतायेगा ? बाबा ने , अपनी आंखें मूंदकर ,मंत्रोच्चारण किया उसे अपनी ,छड़ी से मारा , और उस पर मंत्र पढ़कर, कुछ अक्षत फेंके , जिससे प्रीति के अंदर बैठा प्रेत दर्द से बिलबिलाने लगा, और बोला -मुझे छोड़ दो !



पहले तू इस लड़की को छोड़, और यह बता ! तेरी इस लड़की से क्या दुश्मनी है ? तांत्रिक बाबा ने पूछा। 

तभी अचानक से, करण ने घर में प्रवेश किया और आते ही बोला -यह सब ,यहाँ क्या हो रहा है ? उसने देखा, एक तो सुबोध की पत्नी प्रभा है, दूसरी को वह जानता नहीं , उसकी मां दूर बैठी हुई ,वह सब देख रही है , और प्रीति एक घेरे में बैठी झूम रही है और न जाने क्या-क्या बड़बड़ा रही है ?

इससे पहले कि वह दोबारा यही प्रश्न दोहराता , प्रभा ने इशारे से उसे चुप रहने के लिए कहा और एक स्थान पर बैठने के लिए इशारा कर दिया। 

बाबा !अपना कार्य कर रहे थे, बता तू कौन है और क्यों आया है ?

नहीं बताऊंगा, मुझे बताने की मनाही है , उसके इतना कहते ही, बाबा ने फिर उसे छड़ी से मारा। प्रीति दर्द के कारण बिलबिला उठी ,चीखने लगी ,तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा।  

करण से देखा नहीं गया , आप इसे ,इस तरह क्यों मार रहे हैं ? यह सही नहीं है, इसे बंद कर दीजिए ,करण बोला। 

अब तुझे बुरा लग रहा है, तू ही तो इस, फसाद की जड़ है, एकदम से प्रीति के अंदर का प्रेत बोला। यह देखकर सब अचंभित रह गए।

करण को भी विश्वास नहीं था कि प्रीति ,उससे ऐसा कुछ बोलेगी ,उसने उसकी तरफ देखा ,वो उसको ही घूर रही थी। तभी बाबा की आवाज उस वातावरण में गूँजी -तू ये क्या कह रहा है ,इस लड़के ने तेरा क्या बिगाड़ा है ?

 सही तो कह रहा हूँ , इसने ''गौतमी ''का दिल दुखाया है ,तभी तो वो आज इसके परिवार से बदला ले रही है। 

गौतमी....... नाम सुनकर करण और उसकी माँ दोनों ही चौंक गए। 

पूछ इससे ! क्या इसने ,उसका दिल नहीं तोडा ?और अभी तक उसको बहलाता रहा। 

करण एकदम से शांत हो  गया ,जैसे किसी ने उसको चोरी करते पकड़ लिया हो। गौतमी ,उसकी बुआ के पड़ोस में रहती थी। वो भी छुट्टियां मनाने बुआ के घर गया हुआ था। दोनों वहीँ एक -दूसरे से मिले थे। जब वो किसी आम के पेड़ पर बैठी ,आम तोड़ रही थी। करण ,उस पेड़ के पास से निकलकर ,जा रहा था ,न जाने गौतमी को क्या सूझा ? उसने एक आम करण की तरफ फेंका और बोली -लपक !

अचानक करण आवाज की तरफ मुड़ा ,वह यही सोच रहा था ,ये आवाज किधर से आई ?और अपनी तरफ आता' आम 'उसने फौरन लपक लिया। 

तुमने तो कमाल कर दिया ,कहकर गौतमी पेड़ से उतरी। करण के समीप आकर बोली -हैलो !कहते हुए अपना हाथ आगे बढ़ाया। माई नेम इज गौतमी !


करण ने देखा ,एक गोरीचिट्टी ,थोड़ी तंदुरुस्त सी लड़की ,आम भाषा में उसे गोलू -मोलू सी लड़की भी कह सकते हैं किन्तु प्यारी लग रही थी।उसके बाल उलझे से थे ,मुस्कान प्यारी सी थी।  इस गांव में ,अंग्रेजी में बोलती और आम के पेड़ पर चढ़कर ,आम तोड़ती लड़की उसने पहली बार देखी ,उसे देखकर करण ने भी ,अपना हाथ आगे बढ़ा दिया ,हाय ! करण !

तुमसे मिलकर अच्छा लगा ,उस पर वो तुम्हारा ,आम '' कैच ''करना , तब उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली- क्या क्रिकेट खेलते हो ?

नहीं ,

तब तुम्हारी'' कैचिंग पॉवर'' बहुत अच्छी है , मैंने सोचा - कोई खेल खेलते होंगे ,गेंद वगैरा पकड़ने का अभ्यास होगा। 

यह जरूरी नहीं, कि क्रिकेट खेलने वाला ही,' कैच 'कर सकता है , तभी करण उस पर रोेब  दिखाते हुए बोला - कुछ लोगों में यह हुनर, पहले से ही होता है उन्हें किसी अभ्यास की आवश्यकता नहीं होती।मन ही मन सोच रहा था ,आज न जाने कैसे भगवान ने ,इसके सामने मेरी इज्जत रख ली ?

 गौतमी समझ गई ,यह मुझ पर रौब झाड़ रहा है  , उसने उसकी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और बोली- तुम्हें आज से पहले तो मैंने  इस गांव में नहीं देखा। 

देखतीं  कैसे ? मैं पहली बार ही यहां आया हूं , इस गांव में मेरी बुआ रहती हैं। वैसे तुम भी क्या, इसी गांव में रहती हो ?या..... 

हां- हां , हूं तो मैं ,इसी गांव की , इस गांव के जो मुखिया है ना उनकी पोती हूं किंतु हम लोग शहर में रहते हैं अपने पापा की नौकरी पर। 

ह्म्म्मम्म , तभी मैं सोचूं , इस गांव में रहने वाली लड़की कैसे इंग्लिश में इंट्रोडक्शन दे रही है। 

ऐसा कुछ भी नहीं है , कि  शहर में रहने वाली लड़कियां ही पढ़ती हैं ,या वे ही अंग्रेजी बोल सकती हैं।  यदि उन्हें सुविधा मिले तो, गांव की लड़कियां भी पढ़ सकती हैं और तुम ही देख लो! मैं भी इस गांव की ही हूं , हर वर्ष हम लोग ,गर्मी की छुट्टियों में आते हैं , मेरा मन यहीं  लगता है। इतना बड़ा परिवार देखकर ,मुझे बड़ी खुशी होती है , सभी एक छत के नीचे मिलजुल कर रहते हैं इसीलिए मैं छुट्टियों की प्रतीक्षा में रहती हूं और यहां आ जाती हूं। तुम अपने विषय में बताओ !

मैं अपने विषय में क्या बताऊं ? हमारे परिवार में, एक बुआ हैं  जिनके यहां मैं आया हूं , गांव में हमारा कोई भी नहीं है , हम शहर में ही रहते हैं इसलिए मैं बुआ का  गांव  देखने चला आया। 

ए मिस्टर करण , आप यह भूल रहे हैं कि यह मेरा भी गांव है , कहकर गौतमी हंस दी , आओ, चलो! तुम्हें अपने गांव की सैर कराती हूं। करण भी उसके साथ हो लिया , करण को उसके साथ रहना अच्छा लग रहा था। वह इस गांव की थी, उसे अपने गांव की मिट्टी से प्यार था , अपने को इस गांव की होने पर नाज़  था , जहां बहुत से लोग गांव का होने में ,अपनी तोेहीन समझते हैं किंतु वह गर्व से बताती थी - कि मैं सुजानपुर गांव की लड़की हूं। उसकी यही बात कारण को अच्छी लगी , शहर में रहकर भी , शहरी लड़कियों जैसे उसमें नाज़ - नखरे नहीं थे। बिंदास अपनी जिंदगी को एंजॉय कर रही थी। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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