Shrapit kahaniyan [part 105]

आज प्रीति के घर, प्रभा और मालिनी दोनों आई हैं। मालिनी  जी ने पूरे घर की अच्छे से जांच की है , जिससे उन्हें लगा है ,कि इस समय वह प्रेत कहीं छुपा हुआ है या फिर घर में नहीं है।  दिन का समय भी है, और प्रीति ने अपने बचाव के लिए ,देवी मां का भी साथ लिया है। करण अपने दफ्तर चला गया ,प्रीति चाहती थी- कि वह भी मालिनी जी से मिले किंतु अंदर ही कहीं डर भी था , कहीं वह नाराज ना हो जाए। रात्रि में जो भी हादसा होने से रह गया , उसे जानते हुए भी, मनाना नहीं चाह रहा था। वह अभी यही सोच रहा था ,कि यह सब प्रीति के बीमारी के चलते हुए ,उसकी दिमागी हालत का नतीजा है। 


तब मालिनी जी प्रीति से बताती हैं -तुमने जो भी उपाय किया वह सही था लेकिन इसका कोई स्थाई हल नहीं है ,इसके लिए हमें, किसी ''तांत्रिक ''को बुलाना पड़ेगा। तब तक मैं ,तुम्हारे परिवार की सुरक्षा का इंतजाम करके जाती हूं। कहते हुए मालिनी जी ने, दरवाजे पर , षट्कोण के रूप में ,एक आइना लगा दिया और प्रीति को बताया-यदि वह प्रेत बाहर है , तो इस आईने की चमक के कारण ,अंदर नहीं आ पाएगा। और यदि घर में ही है, जो मुझे अभी महसूस नहीं हो रहा है , तब उसकी सुरक्षा के लिए तुम्हारे पास यंत्र तो है ही , अपने पति की सुरक्षा के लिए चुपचाप उनके वस्त्रों में , यह चीज डाल देना ,कहते हुए उन्होंने एक रुद्राक्ष  उसे दिया और उसकी सास के  गले में भी ,एक ताबीज डाल दिया। उन सब की सुरक्षा का प्रबंध करके अगले दिन आने के लिए कह कर चली गईं । 

आज जब, करण घर के अंदर घुसा , उसे अपने अंदर खुशी का एहसास हुआ , इससे पहले जब कभी भी वह अपने घर में प्रवेश करता था,तब उसके सिर पर अजीब सा बोझ हो जाता था। वहां की हवा में कुछ भारीपन सा रहता था। आज ऐसा कुछ भी नहीं लग रहा है। प्रीति आज पहले से ज्यादा स्वस्थ लग रही है और वह उसके लिए चाय बना कर लाती है। आज कुछ घर में अलग ही महसूस हो रहा है , जैसे मेरे अंदर खुशी का संचार हो रहा हो करण बोला। 

हां, जैसे-जैसे कष्ट हमारी जिंदगी से दूर होते चले जाएंगे, हमारी जिंदगी नए सिरे से फिर से खुशहाल हो जाएगी। 

ऐसा तुम्हें लगता है, कितने दिनों से क्या ?सालों  से कष्ट सहने की आदत ,जो पड़ गई है , आज अपने को बहुत  हल्का महसूस कर रहा हूं। 

ईश्वर ने चाहा ,तो आगे भी ऐसा ही महसूस करेंगे और हमारी जिंदगी फिर से खुशहाल हो जाएगी प्रीति विश्वास से बोली। 

रात्रि आराम से बीतती  क्योंकि घर में जितने भी सदस्य थे सब की सुरक्षा पहले से ही कर दी गई थी।किन्तु अर्धरात्रि में अचानक ,बाहर से कुछ आवाजें आई ,जैसे कोई सामान पटक रहा हो। प्रीति डर के कारण ,भर नहीं आई। वह समझ गयी थी ,उस प्रेत को ,उन सब पर क्रोध आ रहा होगा किन्तु उनका कुछ नहीं बिगाड़ पा रहा था ,तब उसने अपना क्रोध ,सामान पर निकाला। तभी प्रीति को ,अपनी सास का स्मरण हो आया। वह उनके कमरे में गयी। देखा, तो दंग रह गयी। जिस चारपाई पर वो लेटी हुई थीं ,वो तो हवा में घूम रही है। किन्तु उन्हें इसका कोई  आभास नहीं है ,वो निश्चिन्त सोइ हुई हैं। जाग रही होतीं तो शोर मच जाता। कुछ समझ नहीं आ रहा ,वो कैसे इस तरह सो सकती हैं ?शायद मालिनी जी के ताबीज़ का असर है। इससे ज्यादा वो उनका कुछ नहीं कर पायेगा। यदि उसने ये चारपाई नीचे गिरा दी तो अवश्य ही उन्हें चोट लग जाएगी। कुछ देर इसी तरह ,उनके कमरे में बैठी रही,लगभग आधा घंटे पश्चात ,उनकी चारपाई जमीन पर आ गयी।शायद उसका उद्देश्य प्रीति को ही कष्ट देना है इसीलिए उसने मांजी को कुछ नहीं किया। यही सोचकर ,वह अपने कमरे में आ गयी।  इस विषय में प्रीति ने करण को कुछ भी नहीं बताया।  कुछ पल के लिए ही सही,  उसके मन में जो सुकून आया है उसको खोना नहीं चाहती थी। 

अगले दिन करण के जाने के पश्चात , प्रीति के घर के द्वार पर , एक अघोरी अलख जगाता है। प्रीति उसे देखकर पूछती है -बाबा ! क्या आपको मालिनी जी ने भेजा है ?

 हां, इसीलिए तो मैं आया हूं। 

क्या सब तैयारी हो गईं ? सभी सामान आ गया। 

जी बाबा ! मुझे फोन पर मालिनी जी ने पहले ही बता दिया था। कहते हुए ,उन बाबा को अंदर ले आई। बाबा ने घर के अंदर प्रवेश किया , ऐसे लगा ,जैसे तेज हवाएं चलने लगी हों किंतु प्रीति का ध्यान, इस ओर गया ही नहीं , उसने घर के मध्य में बाबा को बैठने के लिए,आसन दिया और वह तैयारियों में जुट गई। कुछ देर इसी तरह पूछ -पूछ कर कार्य करती रही। किंतु बाबा आपने यह सामान तो नहीं मंगवाया था आपने तो कोई दूसरा ही सामान मंगवाया था प्रीति ने प्रश्न किया। 

हां थोड़ा बहुत समान ,अभी मैंने बदला है कहते हुए उन्होंने अपनी बात रखी। 

तभी बाहर द्वार पर घंटी बजी , प्रीति ने समझा मालिनी जी और प्रभा आईं  हैं , तब वह फिर से द्वार खोलने के लिए बाहर गई तो उसने देखा, वहां एक अघोरी खड़े हुए थे ,'' अलख निरंजन'''' शिव शंभू'' उन्हें देखकर प्रीति का दिमाग चकरा गया और बोली -बाबा !आप कौन हैं ?

यह क्या कह रही हो ?बेटी ! तुमने हमें बुलाया और फिर भूल गईं , मालिनी जी ने हमें भेजा है। 

किंतु घर में तो पहले से ही एक बाबा बैठे हुए हैं , उन्हें भी मालिनी जी ने ही भेजा था। 

ऐसा कैसे हो सकता है ? बाबा को शक हुआ, और वह तीव्र गति से घर के अंदर प्रवेश कर गए , कहां है वह पाखंडी ! उन्होंने प्रीति से  प्रश्न किया। 

प्रीति उनके पीछे ही आ रही थी, बोली -यहीं  तो बैठे हैं, जैसे ही उसने, उसे आसन की ओर इशारा किया देखा तो वहां पर कोई भी नहीं था। अपनी आंखें मलने लगी और सोचने लगी -ऐसा कैसे हो सकता है ? उन बाबा को तो मैं अभी , यहीं  आसन पर बिठाया था। 

वह कोई बहुरूपिया होगा , जो हमारी पूजा में विघ्न डालने आया था। 

जो भी है , किंतु अभी तो वह यहीं बैठे थे, फिर इतनी जल्दी कैसे गायब हो गए ? वह कुछ भी नहीं समझ पा रही थी अब तो जो अघोरी बाबा उसे सामने खड़े दिख रहे थे उन पर भी विश्वास नहीं कर पा रही थी। कि  असली 'अघोरी बाबा 'कौन से हैं ? तब उसने अपनी सास से पूछा -मम्मी जी !आपने यहां अभी एक बाबा को बैठे हुए देखा था ना...... 

नहीं ,मैंने  किसी को नहीं देखा, उन्होंने स्पष्ट जवाब दिया। 

यह मेरे साथ क्या हो रहा है कुछ भी समझ नहीं आ रहा मैं ,इतनी भ्रमित क्यों हो रही हूं ? कोई नकारात्मक ऊर्जा होती , तब इस यंत्र के कारण मेरे समीप नहीं आती ,तब वह क्या था ?

इतना सोचने की आवश्यकता नहीं है , जिस तरह से प्रेत को तुम्हें मारने के लिए भेजा गया था , इस प्रकार, मेरे रूप को यहां तुम्हें ,किसी ने छलने के लिए भेजा है , ताकि यह पूजा विधि विधान से ना हो सके कहते हुए वह सामग्री देखने लगे और बोले -मैंने जो सामान तुमसे मंगवाया था वह इसमें नहीं है। 

वही तो मैं उन बाबा से पूछ रही थी , जिस  सामान की सूची मुझे लिखवाई गई थी, उससे विपरीत सामान वह मांग रहे थे। हैरान परेशान प्रीति ने , प्रभा को फोन कर दिया -हैलो ,  भाभी जी !अभी तक आप घर से नहीं निकलीं , मुझे डर लग रहा है , आप शीघ्र आइये। 

हां ,मैं तैयार हूं ,मालिनी जी की प्रतीक्षा में बैठी हूं जैसे ही ,वह आती हैं हम दोनों तुम्हारे घर आ जाएंगे , क्या ''अघोरी बाबा ''आ गए ? प्रभा ने प्रश्न किया। 

प्रीति असमंजस में थी, फोन पर प्रभा को क्या बताएं ? कि यहां क्या हो रहा है या हो गया , इसी कारण वह घबराई हुई है। फोन करके प्रीति जैसे ही बाबा के पास आती है , तब देखती है , बाबा ने खोपड़ी रखी हुई है कुछ हड्डियां हैं , यह सब देखकर प्रीति बुरी तरह डर गई , वह तो सोच रही थी, जैसे घरों में आम पूजा होती है , ऐसा ही कुछ हवन होगा किंतु यह चीज देखकर वह बुरी तरह से डर गई। तब वह बोली - बाबा !यह किस तरह की पूजा है ? उन सामानों की तरफ इशारा करते हुए बोली। 

बेटा यह तंत्र पूजा है,  इसमें होम -हवन नहीं है , इसमें' प्रेत 'को हमें अपने वश में करना है , यह पूजा इसी तरह से होती है। प्रीति , प्रभा और मालिनी की प्रतीक्षा में,वहीं पास में बैठ गई। 

कुछ देर पश्चात ,मालिनी जी और प्रभा भी आ गई , उन्हें देखकर प्रीति ने राहत की सांस ली। मालिनी जी  भी ,अपने कुछ सामान लेकर आई थीं , पास के आसन पर ही ,वह भी विराजमान हो गईं।

प्रीति को, सामने एक घेरे में बिठाया गया , पूजा करते-करते ,प्रीति को पता ही नहीं चला कि उसे क्या हुआ है ? क्योंकि प्रेत उसके अंदर प्रवेश कर चुका था , यह सब प्रभा अपनी आंखों से देख रही थी , किसी से भी अपने-अपने स्थान से उठने के लिए मना कर दिया गया था। पूजा चलने लगी और प्रीति अपने घेरे में बैठे-बैठे झूमने लगी।

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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