अमृता जी ,को जब बरखा अपनी कहानी सुनाती हैं ,तब वह उसे एहसास दिलाती हैं , कि उसका प्रेम भी प्रेम नहीं था , उसका प्रेम स्वार्थ पूर्ण था , किंतु जैसा भी था ,विशाल और वह एक दूसरे के साथ थे। वह उससे कहती हैं - यह तुम्हारा प्रेम एक धोखा था , सुख -सुविधाओं के लिए ,तुम विशाल से जुड़ी थीं। तुम जानती थीं , तुम्हारा रिश्ता स्वार्थ की नींव पर टिका हुआ है। इसीलिए तुम अपने रिश्ते को समय देना चाहती थीं। तुम्हें लगता था शायद, परिस्थितियों बदल जाएं ,इसीलिए तुमने श्याम से रिश्ते के लिए भी यही सोचा , किंतु श्याम के मन में कोई खोट नहीं था , इसीलिए वह अपने रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहता था।
ऐसा आप कह सकती हैं , इस रिश्ते की शुरुआत में सोच तो यही थी ,किंतु धीरे-धीरे मुझे ,उस रिश्ते से लगाव हो गया और विशाल मुझे अपना लगने लगा। किंतु एक सत्य यह भी है , मैं डरती थी ,यदि उसके घर वालों को मेरी और विशाल की सच्चाई के विषय में पता चलेगा ,तो हमारे रिश्ते को हरगिज़ स्वीकार नहीं करेंगे। एक तरीके से आप यह भी कह सकती हैं , मैं उस रिश्ते से जुड़कर अपने मन को बहला रही थी। किंतु इतनी उलझनों के पश्चात भी , मैं उसी रिश्ते में ,अपना भविष्य देख रही थी।
अब तुम आगे बताओ ! तुमने श्याम को कैसे बहलाया ? वह सोच रही थीं -मैंने इस लड़की को, कितना समझदार और सुलझा हुआ समझा था किंतु यह अपनी जिंदगी में,सबसे ज्यादा उलझी हुई है।
एक बार के लिए, मैंने सोचा भी था ,मैं श्याम से अकेले में, मिल लेती हूं किंतु मुझे यह भी डर था यदि विशाल को मालूम पड़ गया ,तब कहीं हमारे रिश्ते में दरार ना पड़ जाए , हो सकता है ,वह नाराज भी हो। उस दिन भी मैंने न जाने कैसे-कैसे उसे समझाया था ? इधर श्याम को मेरे रिश्ते के , विषय में उसके दोस्त ने जानकारी दे दी थी। दूसरी तरफ मेरे पिता ने विशाल के घर वालों को बता दिया था ,कि मेरा रिश्ता तय हो गया है क्योंकि उनका भी स्वार्थ था। इस बहाने से वह धनंजय जी से ,कुछ पैसे लेना चाहते थे। कहने को तो सभी कहते हैं -कि गरीबों के पास इज्जत के सिवा कुछ नहीं होता , किंतु जब पैसे का लोभ आ जाता है तब गैरत, इज्जत , मान सम्मान , सब ताक पर रख आता है। यह धन का लालच है ही इतना बुरा, अमीर हो या गरीब....... यदि तराजू के एक पलड़े में , मान सम्मान रख दिया जाए और दूसरे पलड़े में धन दौलत! कितना भी सिद्धांतवादी इंसान हो ? उसे भी पता है ,धन दौलत से ही मान सम्मान भी मिल जाएगा।'' पीठ पीछे चाहे लोग ,कुछ भी कहें, किंतु सामने तो उसके कोई कुछ नहीं कह पाएगा।'' मेरा बाप भी उन लालचियों में से ,एक ही था , वह धनंजय जी के शब्दों को भूला नहीं ,और पहुंच गया बेटी के विवाह के नाम पर पैसे मांगने।
इंस्पेक्टर तनु अपनी तहकीकात में लगी हुई थी, वह जानना चाहती थी, कि इन लड़कियों के गायब होने में किसका हाथ हो सकता है ? और यह लड़कियां कहाँ जा रही हैं ?कौन उन्हें गायब कर रहा है ? वह चाहती थी ,जब तक 'जेलर साहब 'छुट्टी से आते हैं वह इस केस को सुलझा ले। हो सकता है ,वह उससे खुश होकर , उसे तरक्की दिलवा दें या फिर कोई सम्मान उसे प्राप्त हो। मन में ,अपनी मेहनत अपनी क़ामयाबी के लिए , प्रोत्साहन की सभी को लालसा रहती है।
इधर अमृता जी और बरखा की बातें चल रही थीं , उधर तनु अपने केस को सुलझाने में लगी थी। तभी जेल के अंदर एक स्थान पर कुछ कुत्ते भोंकने लगे , वे कुत्ते भी उनकी तहक़ीक़ात का ही एक हिस्सा थे। उनका खोजी दस्ता ,जेल की ख़ाली जमीन को ,सूंघने में लगा था। धीरे-धीरे भीड़ भी इकट्ठी होने लगी। कुछ कैदियों को बुलवाकर ,वहां पर खुदाई करवाई जा रही थी। इस तरह, उस स्थान पर अन्य लोगों को जाते देखकर बरखा ने, अपनी कहानी रोक दी और अमृता जी से बोली -मुझे लग रहा है ,वहां पर अवश्य ही कुछ हो रहा है। मैं देख कर आती हूं। वह जेल का पथरीला, मिट्टी भरा, हिस्सा था जिधर कोई भी नहीं जाता था किंतु आज, कुछ सिपाही और कुछ कैदी उधर ही खड़े हैं।
उस स्थान पर कुछ होते देख, अन्य कैदी भी उधर जा रहे थे किन्तु उनको रोक दिया गया ,उनमें बरखा भी शामिल थी। दूर रहकर भी ,सबकी उत्सुकता बनी हुई थी किंतु जो जानते थे, कि वहां क्या है ?वह नजरें चुराकर, उस स्थान से बचने का प्रयास कर रहे थे , धीरे-धीरे उस स्थान से बदबू आने लगी ,सभी ने अपनी -अपनी नाक पर कपड़ा रख लिया। सभी अपराधी प्रवृत्ति के व्यक्ति थे , इतना तो अंदाज़ सबने लगा ही लिया था। अवश्य ही ,यहां कोई लाश दफन है। तभी किसी व्यक्ति का पेेर नजर आया , खुदाई आराम से होने लगी। तनु उन्हें समझा रही थी , धीरे-धीरे लाश को ऊपर निकाला गया , यह वही लड़की थी ,जो अभी पांच दिन पहले गायब हुई थी। देखा ,मेरा शक़ सही था ,कि हो न हो इस लड़की के साथ यहीं कुछ हुआ है ,जब ये नई -नई इस जेल में आई थी , कोई शातिर अपराधी नहीं थी ,इतनी भी तेज -तर्रार नहीं थी ,जो दीवार फांद जाये। जिसने भी यह कार्य किया है ,वो भली -भांति जानता है ,इस स्थान पर कैमरे की नजर नहीं है ,इसीलिए उसने इस कार्य को अंजाम दिया।
तभी एक सिपाही बोला -मैडम ! यहाँ पर कुछ और कंकाल भी है।
मैं जानती थी ,कहने को तो ये ''जेल'' है किन्तु कुछ लोगों ने तो इसे ही अपराध का अड्डा बना लिया है। कुछ बहुत पुराने कैदी हैं ,जो इस' जेल 'को ही, अपनी सम्पत्ति समझे बैठे हैं। वे यहाँ'' कैदी'' बनकर नहीं ,इस जेल के दामाद हैं। अपनी मनमर्जी चलाते हैं और ठाठ से रहते हैं। डंडे के जोर पर ये लोग समझने वाले नहीं ,इन लोगों की आत्मा मर चुकी है ,उसे ही हमें जगाना है। अपने साथ वाले से बोली -कुछ लोग जंजीरों में बंधे हैं ,हालत कितनी दयनीय है ?हमें उनकी हालत पर तरस आ जाये किन्तु उन्हें अपने आप से हमदर्दी भी नहीं है ,कहाँ से कहाँ पहुंच गए ?किन्तु अभी भी सुधरना नहीं चाहते।
तुम ऐसा करो !सभी कैदियों को प्रार्थना स्थल पर एकत्र करो ! ये जो अनर्थ हो रहा है ,वो बढना नहीं चाहिए।
मेेडम !कुछ कैदी इस जेल में बहुत पुराने हैं। उनका दबदबा है ,जो उनकी बात नहीं मानता। उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ जाता है। उसका ड़र इतना है ,कोई उनके विरुद्ध आवाज नहीं उठा सकता।
सभी कैदियों को एक स्थान पर इकट्ठा किया गया। इंस्पेक्टर तनु चीख -चीखकर कह रही थी -यह जेल अपने कायदे कानून के लिए प्रसिद्ध है , आजकल न जाने इस 'जेल' में क्या हो रहा है ? किस तरह के अपराधी, अपराध में लिप्त हैं ? जेल अपराधियों को , उनके अपराधों की सजा देने के लिए बनाई गई है , ताकि वह उस' जेल 'में रहकर अपने अपराधों की सजा भुगतें , और जो भी उन्होंने अपराध किए हैं , इस दंड को भुगतने के पश्चात उन्हें सुधरने का मौका मिल सके , ताकि उन्हें अपनी गलतियों का एहसास हो , कि हम कहां गलत थे और कहां सही ? किंतु मुझे लगता है, कुछ व्यक्ति अपनी गलतियों से सीखते नहीं हैं, ना ही सीखना चाहते हैं उन्होंने जैसे अपराध को ही अपने जीवन का हिस्सा बना लिया है। क्या वह एक अच्छी जिंदगी नहीं जीना चाहते , जीवन भर इसी ''जेल'' में पड़े सडते रहना चाहते हैं। मैं जानती हूं, जन्म से कोई भी अपराधी नहीं होता कभी-कभी परिस्थितियाँ उन्हें अपराधी बना देती हैं , इसका अर्थ यह नहीं कि उसे जीवन भर अपराधी ही बने रहना है अपराध ही करते रहना है। जिंदगी सबको, संवरने का, आगे बढ़ने का, एक मौका अवश्य देती है। जीवन भर'' जेल ''में रहना ही जिंदगी नहीं है। अपनी जिंदगी को एक मौका तो देकर देखिए ! क्या तुम्हें अपने रिश्तों से अपने माता-पिता से अपनी बहनों और भाई से प्यार नहीं है। उस मां की सोचिए जिसने तुम्हें नौ महीने गर्भ में रखा, उस पिता की सोचिए जिसने तुम्हारे भविष्य के लिए अच्छी योजनाएं बनाईं। कम से कम उनके सपनों का तो सोचिए ! वे आज समाज में तुम्हारे कारण सिर उठाकर नहीं जी सकते। उन्हें सम्मान नहीं दिलवा सकते तो उनके अपमान का कारण तो ना बनो।

