प्रीति ने ,करण को ऊपर खींचने में अपनी ,सम्पूर्ण ताकत झोंक दी ,महीनों से बिमार थी ,शरीर में कमजोरी थी। करण को ऊपर खींचने से ,वो बुरी तरह थक गयी थी।करण के ,छत पर सही -सलामत आने पर , प्रीति करण से लिपटकर रोने लगी , उसका संपूर्ण शरीर काँप रहा था। करण स्वयं भी, नहीं समझ पा रहा था यह मेरे साथ क्या हुआ ? मैं यहां कैसे आ गया ? हैरान- परेशान से, दोनों नीचे आ गए। नीचे आकर तब प्रीति बोली-आप मेरी बातों पर विश्वास ही नहीं करते हैं , ना ही कुछ समझना चाहते हैं , जब मैंने आपके माथे पर सिंदूर लगाया था ,तब आपने क्यों पोंछ दिया ?
यह क्या मूर्खों जैसी, बातें कर रही हो ? सिंदूर का, मेरे छत पर जाने से क्या मतलब है ?
क्या तुम्हें कुछ भी, याद है ? प्रीति ने पूछा।
नहीं ,मुझे कुछ भी स्मरण नहीं है। मैं तो यहां पर सो रहा था, ऊपर कैसे गया ?
यह सब उसी प्रेत का कार्य है , उसी से बचाने के लिए मैंने, मम्मी जी के पलंग के आसपास और तुम्हारे माथे पर सिंदूर लगाया था।
भला , इस सिंदूर से प्रेत कैसे भाग सकता है ? पहली बात तो प्रेत होते ही नहीं।
मैं भी नहीं मानती थी, किंतु मैंने अब झेला है , अपने बेटे को खोया है, विश्वास करने लगी हूं। तुम ईश्वर को मानते हो , क्या तुमने उन्हें देखा है ?
सभी मानते हैं , देखा किसी ने भी नहीं है , इसी तरह से, कुछ अन्य शक्तियाँ भी होती हैं , उन्हें हम ''नकारात्मक ऊर्जा ''भी कह सकते हैं।
होगीं , मुझे इन बातों से कोई लेना देना नहीं है।
लेना-देना मुझे भी नहीं है।
किंतु लेना -देना पड़ जाता है , जब अपना अहित होते देखते हैं , जब अपने पर बीतती है , तब विश्वास करना पड़ जाता है।
उनकी भला हमसे क्या दुश्मनी होगी ? हमने उनका क्या बिगाड़ा है? करण झल्लाकर बोला।
हमने उनका कुछ नहीं बिगाड़ा , न ही हम जानते हैं, किंतु जिसने उसे हमारे लिए भेजा है , वह अवश्य ही हमारा बहुत कुछ बिगाड़ना चाहता है। कल प्रातः काल ही, तुम्हें इस विषय में पता चल जाएगा , करण से वह और ज़िरह नहीं करना चाहती थी , वैसे भी इन हालातो में वह बहुत ज्यादा थक गई थी , अब तुम्हारे बाकी के सवालों के जवाब सुबह ही मिलेंगे, अब सो जाओ ! कह कर पलंग के दूसरे कोने पर सो गई।
प्रातः काल प्रीति ने ,नहा -धोकर अपने घर का' दिया 'जलाया , थोड़ी सकारात्मकता तो घर में आए , उसकी सास अब पहले से बेहतर थी। आज बहुत दिनों पश्चात, प्रीति ने अपनी रसोई घर का मुख देखा , हालांकि अभी भी कमजोरी थी किंतु घर का वातावरण पहले से अच्छा हो जाए , इसके लिए वह अस्वस्थ होने पर भी ,प्रयास कर रही थी। अभी इसी परेशानी में थी , करण को घर पर रोकूं या नहीं। उसकी इस परेशानी को भी, करण ने दूर कर दिया , जब वह तैयार होकर , बाहर आ गया।
क्या आप जा रहे हैं ?
हां जाना ही पड़ेगा , घर में रहकर तो कोई खाने के लिए नहीं दे जाएगा।
इस विषय में भी वो , दुविधा में थी, एक मन कह रहा था ,कि करण को जाने दे , दूसरे ही पल ,उसकी इच्छा हो रही थी, करण भी यहां रहकर देख ले कि मैंने , इसे जो भी बताया, वह सही था। अंत में प्रीति ने कुछ नहीं कहा और करण अपनी नौकरी पर चला गया। कुछ देर पश्चात , चंदा, अपने कार्य के लिए आ गई , घर की हालत देखकर ,वह आश्चर्य चकित रह गई और बोली -भाभी ! यह सब क्या हो गया , किसने किया ?ये सब !
अब इस बात का जवाब तो, प्रभाजी ही दे सकती हैं और उनकी मैडम मालिनी जी !
मैं ,कुछ समझी नहीं।
तुम शीघ्र अति शीघ्र अपना काम निपटा लो , कुछ देर में वह आने वाली ही होगीं , वह स्वयं ही बताएंगीं कि क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है ?
कुछ समय पश्चात प्रभा के साथ मालिनी भी आती हैं। आते ही, वह घर को चारों तरफ से संदिग्ध नजरों से देख रही थीं। उनके हाथ में 'भभूत' जैसा कुछ था , घर में प्रवेश करने से पहले, उन्होंने उसे वहीं ,द्वार के दोनों कोनों पर रख दिया। प्रीति ने देखा , मालिनी जी के हाथ में बड़ी-बड़ी अंगूठियां हैं ,गले में कुछ अलग ही तरह की मालाएं हैं। उनके चेहरे पर एक अज़ीब ही तरीक़े का सुकून है ,उनकी मुस्कुराहट ,उसके घर के अंदर आकर ,गंभीरता में बदल गयी। वे बैठने के स्थान पर ,घर में घूमने लगीं। घर के कोने -कोने में ,जैसे कुछ महसूस करना चाहती थीं ,शायद उन्हें कुछ लग भी रहा था। कुछ देर आँखें बंद कर बैठ गयीं। प्रभा और प्रीति दोनों ही उन्हें देख रहीं थीं। उनकी जिज्ञासा बढ़ रही थी ,आखिर ये क्या बताने वाली हैं ?
अचानक उन्होंने आँखें खोलीं और बोलीं - इस घर में एक बड़ी दुर्घटना होते -होते रह गयी। तब प्रीति की तरफ देखते हुए बोलीं -क्या कल घर में कुछ हुआ था ?
जी ,क्या बताऊं ?मैं आपके इस यंत्र के कारण बच तो गयी हूँ ,किन्तु पल -पल मर रही हूँ ,कहते हुए रोने लगी। उसने पहले मम्मी की हालत खराब कर दी ,उसके पश्चात रात्रि को....... कहते हुए उसने सम्पूर्ण किस्सा कह सुनाया। उसे सुनकर ,प्रभा भी घबरा गयी।
मैं पहले ही ,कह रही थी ,यहाँ कल बहुत बड़ा हादसा होते -होते रह गया। वो भी विवश है ,तुमसे उसकी कोई दुश्मनी तो है, नहीं ,किन्तु उसे विवश करके ,तुम्हारे लिए भेजा गया है।
मेरा दुश्मन ,ऐसा कौन हो सकता है ? क्या आप पता लगा सकती हैं ?कि वो कौन है ?
इतना तो नहीं कह सकती ,किन्तु ये किसी महिला का हाथ लग रहा है।
ऐसी कौन सी महिला ,मेरी दुश्मन हो सकती है ,कल्पनाओं में ही ,प्रीति अपने रिश्तेदारों में ,दोस्तों में घूम आई किन्तु अंदाजा नहीं लगा पाई ,मेरा दुश्मन कौन हो सकता है ?
इसका पता मेरे एक जानने वाले ''तांत्रिक बाबा'' हैं ,ओझा भी कह सकते हैं ,वो ही इस प्रेत को यहाँ से बाहर निकालेंगे और पता लगाएंगे कि उसे यहाँ किसने को भेजा है ?ये सिंदूर तुमने बिखेरा है मालिनी जी ने प्रीति से पूछा।
जी ,इसी के कारण ही तो आज ,मम्मी जी और करण जिन्दा हैं ,वरना उसने तो कोई कसर नहीं छोड़ी थी। ये तुमने बहुत सही किया ,अभी मुझे ,उसके यहाँ होने का आभास नहीं हो रहा है। शायद इसी के कारण ,वो छुपा है ,या बाहर गया है किन्तु ये उसका स्थायी इलाज नहीं है ,वो कभी आ सकता है और किसी पर भी ,अपना अधिकार कर सकता है। अब तुम्हारे कारण ,अब इन दोनों की जान को भी खतरा है।
यह 'तांत्रिक बाबा' कब तक आ जाएंगे ? क्या वह हमारी समस्याओं का निदान कर देंगे , प्रीति थोड़ी राहत की सांस लेते हुए बोली।
हां ,उनका यही काम है , आज ही मैं उनसे बात कर लूंगी और कल वह अपना कार्य आरंभ कर देंगे , जो सामान वह मंगवायें वह लाकर उन्हें दे देना। मालिनी जी ने जवाब दिया।

