जिंदगी भी न जाने, क्या-क्या खेल खेलती रहती है ? इतने बड़े परिवार , से निकल कर आई अमृता, अनाथ हो गई। कुछ अपनी मेहनत, कुछ किस्मत ने साथ दिया , अपने परिवार से तो, अलग हो गई किंतु अपना नाम कर दिया ,एक श्रेष्ठ अभिनेत्री के रूप में। आज मैं ,अपनी मेहनत और अभिनय के बल पर अपना एक स्थान बना पाई हूँ । जिंदगी में बहुत से लोग आए ,बहुत से चले गए किंतु जिस पर उसने विश्वास किया उन्होंने साथ नहीं दिया। धोखे भी बहुत मिले , भरी भीड़ में भी अकेली नजर आती थी। सच्चे प्यार की तलाश में, उसकी आंखें सूनी नजर आती थीं। अपनी जिंदगी में कोई ऐसा हो जिस पर वह विश्वास कर सके , जिसके साथ अपना बाकी का जीवन व्यतीत कर सके जिसको अपना सर्वस्व मान ,अपना सर्वस्व सौंप दे , ऐसा उसने हिमांशु के रूप में , एक अच्छे पति ,एक अच्छे प्रेमी , को पाया। इस भरी दुनिया में अब वह अकेली नहीं थी ,कहने को उसके भी अपने थे ,जो उसके साथ थे। उसका पति ,उसके बच्चे , माता-पिता के रूप में, उसके साथ ससुर , देखने में कितना खुशहाल जीवन नजर आता है ?
किंतु उसकी खुशियां ज्यादा समय तक ना ठहर सकीं , न जाने किसकी नजर लग गई ? इंसान पर विश्वास करते-करते अब उसकी जिंदगी से ही भरोसा उठने लगा। यह तो जिंदगी भी अपनी नहीं , जिसने मेरे पति हिमांशु को छीन लिया। अभी तो जिंदगी से बेफिक्र भी नहीं हुई थी और जिंदगी ने उसे हिला कर रख दिया। क्या करें, कहां जाए ?कुछ समझ नहीं आ रहा। पास में दो छोटे-छोटे बच्चे , अपनी निशानी के रूप में हिमांशु इन्हें छोड़ गया। एक साथ घर में दो मौतें ! इस घर को संभालने में, इस गम से उभरने में ,बहुत समय लग जाएगा। अपने आप को संभाले बच्चों को संभाले या ससुर को देखें , जिन्होंने अपनी पत्नी और बेटा खोया है। लोग भी न जाने कैसे हैं ?किसी दुःख को कम करने की बजाय ,उसके दुःख को ही बांटकर ,उसकी कहानियाँ बनाकर ,अपनी कमाई कर लेना चाहते हैं। मेरा क्या होगा ?मैं कैसे अपने हिमांशु के बिना जिऊंगी ? मुझ पर क्या बीत रही है? यह कोई नहीं सोच रहा था, सबको अपनी खबरों की पड़ी थी। किसी ने मुझसे कुछ पूछा ही नहीं, कि मेरा आगे का जीवन कैसे बीतेगा ? मेरे बच्चों का क्या होगा ?मेरा परिवार टूट कर बिखर गया था।
भगवान को भी मुझ पर दया नहीं आती, हर बार मेरी परीक्षा लेता रहता है , मैंने अपने आंसू पोँछ लिए थे , अपने बच्चों की खातिर , मैं बिखर नहीं सकती, मैंने अपने आपको ही सांत्वना दिया। मुझे तो इस परिवार का सहारा बनना होगा। मैं क्यों कोई सहारा तलाश करूं? अब तक भी तो अपने दम पर जीती आई हूं , माना कि ईश्वर ने कुछ पल मुझे उपहार स्वरूप दिए थे वह भी मुझसे छीन लिए, मैं इस तरह हारूंगी नहीं , ना ही टूटूंगी , जब तक मेरे तन में जान है, मैं अपने हिमांशु की निशानी को अपने सीने से लगा कर रखूंगी इन्हें किसी भी चीज की कमी नहीं होने दूंगी। जितना रोना था रो ली, अपनी भावनाओं को अपने सीने में दफन करके, अपने बच्चों को अपने सीने से लगाया कुछ दिन तक लोग मिलने आते रहे। उसके पश्चात घर में वही चिंता और परेशानी हिमांशु की बीमारी में भी बहुत खर्च हो चुका था आगे बच्चों की पढ़ाई के लिए उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए तो पैसा चाहिए।
काम तो छोड़ दिया था किंतु अब काम की तलाश थी वरना घर की जिम्मेदारियां कैसे पूर्ण होती ? कुछ जानने वालों से बातचीत की, सांत्वना सभी दे देते किंतु काम नहीं, अब दो बच्चों की मां हीरोइन तो बनेगी नहीं पहले इंसान अपना देखता है ,तब दूसरे की तरफ नजर करता है। ससुर बच्चों को संभालते, अपना गम भुलाने का प्रयास करते। उन बच्चों में अपने हिमांशु की छवि देखते। बहुत भटकने के पश्चात ,सह कलाकार का कार्य मिला।'' भागते भूत की लंगोटी भली'' कम से काम काम की शुरुआत तो हुई यह तो दुनिया की रीत ही चली आई है ,चढ़ते सूरज को सभी सलाम करते हैं , इस हकीकत को अमृता ने पहले ही समझ लिया था। उसके जीवन का बस एक ही मकसद रह गया था अपने बच्चों को पढ़ाना और कामयाब करना। अभी वह यह सब लिख ही रही थी , तभी बाहर से बरखा की आवाज आई -मैडम जी !ओ मैडम जी क्या कर रहीं हैं ? अमृता जी बाहर आ जाती हैं।
क्या बात है ? कुछ कहना चाहती हो, बाहर आकर अमृता जी ने पूछा।
आज मैंने सद्दाम और कालू को, दीवार के उस तरफ देखा , मुझे लगता है , अवश्य ही उनके मन में कुछ चल रहा है।
तब यह बात तुम्हें इंस्पेक्टर साहिबा को बतानी चाहिए मुझे क्यों बता रही हो ? उन्हें बरखा का इस तरह उन्हें बाहर बुलाना और उनसे इस तरह की बातें करना अच्छा नहीं लगा।
इंस्पेक्टर साहिब से ,इस तरह नहीं कह सकती , बिना सबूत के वह भी विश्वास नहीं करेंगीं , और यदि कालू ने और सद्दाम ने को यह पता चल गया कि मैं उनका नाम लिया है , तब वे लोग मुझे भी नहीं छोड़ेंगे। इसीलिए आपको बता रही थी आप पर किसी का शक भी नहीं जाएगा और आप उन पर नजर भी रख सकती हैं किंतु आप तो न जाने अंदर पड़े -पड़े क्या करती रहती हैं ?
मुझे अब इन पचडों में नहीं पड़ना है , जिंदगी में क्या कम मुसीबतें झेली हैं? जो अब बैठे बिठाये मुसीबत मोल ले लूँ। तुम अपनी कहानी सुनाओ ! विशाल को भी तुम्हारे विषय में पता चल गया था और श्याम को भी शक हो गया था। तब तुमने श्याम से शादी की या विशाल का विश्वास बनाए रखा। तुमने ऐसा क्या जुर्म किया था जो आज तुम ''जेल'' में हो।
उनकी बातें सुनकर , बरखा का चेहरा उतर गया और बोली -अपने कर्मों की सजा ही भुगत रही हूं।
किंतु तुमने तो कहा था तुमने कुछ भी नहीं किया।
कहने भर से ही, हमारे कर्मों की माफी हमें नहीं मिल जाती जब ''बबुल का वृक्ष लगाया है तो आम की उम्मीद कैसे कर सकते हैं ''?
तुम पहेलियां बहुत बुझा रही हो , आगे बताओ! आगे क्या हुआ ? उससे पहले यह बताओ !यह सद्दाम और कालू कौन है ?
दोनों ही अपराधी प्रवृत्ति के हैं , किसी का कत्ल करना तो उनके बाएं हाथ का काम है, मैं इसीलिए तो आपको बताने आई थी उसे लड़की के मारने में हो सकता है इनका भी हाथ हो।
अच्छा एक बात पूछूं , सही-सही बताना !जब तुम इस जेल में आई थी, क्या तुम्हारे साथ भी कुछ अभद्रता हुई थी ?
उनके इस प्रश्न को सुनते ही , बरखा का चेहरा क्रोध से लाल हो गया। यहां बचा ही कौन है ? जो झेल गया वह बच गया। वह अमृता जी के पास अच्छे मूड से आई थी किंतु अमृता जी ने उसे इस तरह के प्रश्न पूछ कर जैसे उसकी दुखती रग को छेड़ दिया हो। ''

