Jail 2[part 40]

अब अमृता के जीवन में खुशियां ही खुशियां थीं। अमृता अपनी जिंदगी को भरपूर जी रही थी ,जिसकी उसे कमी खलती थी। अब वह हिमांशु के परिवार की बहू और दो बच्चों की मां बन चुकी थी , बच्चों की देखभाल में ही सारा समय व्यतीत हो जाता था। उसे पता ही नहीं चल पाता था।  कब दिन निकला और कब रात गई ? सुबह बच्चों को स्कूल भेजना ,दोपहर में उनके खाने का प्रबंध करना ,उनका होमवर्क कराना, बस इन्हीं चीजों में समय व्यतीत हो जाता था। हालाँकि घर में नौकर -चाकर थे किन्तु अपने बच्चों के सभी कार्य वह स्वयं करती थी।  उसके साथ ससुर भी खुश थे, बच्चों के साथ खेलते थे। हिमांशु भी अपनी, जिंदगी में खुश था। कभी फिल्में चलतीं ,, कभी नहीं चलतीं। पर अब उसके पास पैसों की कमी नहीं थी। इसी बीच उसके चाचा -चाची भी आए थे। बेचारे ! बहुत ही परेशान थे सोचा होगा ,लड़की अच्छा काम रही है ,अपने थोड़े  दुखड़े रोकर उससे कुछ पैसा ही ऐंठ लिया जाये।  किंतु उन्हें देखकर ,अमृता को अपने बचपन की, अपने भाई की और अपनी मां की स्मृति ताजा हो गईं , उन्हें देखते ही , अमृता को क्रोध आया। चाची खुश होते हुए उसके परिवार और उसके बच्चों को देखकर, उनकी बलाएँ ले रही थी। 


किंतु अमृता ने ,वहां से उन्हें हटा लिया। अमृता नहीं चाहती थी, कि चाची इस लाड़ -दुलार के बहाने , उसके बच्चों को ही न कुछ कर दे ,उसे तनिक भी चाचा और चाची  पर विश्वास नहीं था। अमृता कुछ ज्यादा ही सतर्क हो रही थी।  उसने अपने सास -ससुर या हिमांशु को ,अपने चाचा -चाची के विषय में ,कुछ भी नहीं बताया था ,किंतु  अमृता का यह व्यवहार देखकर उसकी चाची को बहुत बुरा लगता । अमृता ने उनका अलग कमरा ठीक करवा दिया था और खाना भी वही भिजवा देती थी। किसी भी कार्य को करने नहीं देती थी ना ही किसी चीज को हाथ लगाने देती थी।

 कब तक उसकी चाची यह चीज देखती ? अमृता से बोलीं - मैं कई दिनों से देख रही हूं ,कि तू न ही हमें बच्चों के साथ खेलने देती है और न ही किसी चीज में हाथ लगाने देती है , तू हमसे ऐसे व्यवहार कर रही है , जैसे  हम कोई 'अछूत' हैं। 

हमने तो सोचा था, हमें देखकर, हमारी बच्ची खुश हो जाएगी। बाप तो अब रहा नहीं, मां का कभी लाड़ मिला नहीं, किंतु हम देख रहे हैं ,धन- दौलत, ये ऐश्वर्य तेरे दिमाग पर इतना चढ़ गया है ,तू तो इंसान को इंसान ही नहीं समझ रही, रिश्तों  का भी लिहाज नहीं किया।  अपने सास - ससुर और बच्चों के सामने ,हमें  अपमानित करती है। इस तरह अपने आपको अपमानित होते ,हम नहीं देख सकते , अब हम यहां से चले जाएंगे, कहते हुए चाचा उठने लगे ,वह सोच रहे थे -कि यह अपनी गलतियों की माफी मांग कर , उन्हें जाने से रोकेगी किंतु वह चुप रही। 

देखा, आपने ! कितनी ढीठ है ?इसे अपने पैसे पर गुरुर है। हम लोगों को तो ये, ऐसे ही समझ रही है किन्तु इसका व्यवहार देखा ,हमसे केेसा व्यवहार कर रही है ?इसके बच्चे हमारे पास खेलने आते हैं , तो यह उन्हें बुला लेती है, उन्हें हमारे करीब नहीं आने देती, अपने घर के सदस्यों से भी दूर रखती है। भला ,कोई अपने मायके वालों की इस तरह से बेइज्जती करता है। मैंने तो सोचा था ,हमें देखकर खुश हो जाएगी किंतु इसने तो हमारी बेइज्जती करने का , ठेका ले रखा है ,अपनी ससुराल वालों के सामने भी  ,हम अब नहीं रहेंगे ,तेरे इस  घर में कह कर चाची  अपना सामान समेटने लगी। 

तब अमृता बोली-आप लोग, किसी गलतफहमी में ना रहे हैं, मैंने तुम लोगों का सम्मान ही किया है, किसी तरह का अपमान नहीं किया। न ही ,नौकरों से कहकर भगा दिया। वरना  तो तुम लोगों के कर्म ऐसे हैं तुम्हें कोई  घर में ही न घुसने दे। 

यह तू क्या कह रही है? उसकी चाची बोली -हमने क्या किया है ?जो  तू  हमसे दुश्मनी निकाल रही है अरे हमने तेरा क्या बिगाड़ा था ? जो तू हमारी बेइज्जती पर बेइज्जती किये जा रही है , क्रोधित होते हुए चाची बोली।  

यह पूछो ,कि क्या नहीं किया ? अमृता ने जवाब दिया -वह तो मैं अपने सास ससुर के लिहाज के कारण ,तुम लोगों को कुछ नहीं कह रही हूं किंतु यह मत समझना मुझे , कुछ भी मालूम नहीं है , मुझे सब पता है। वे दोनों नहीं समझ पा रहे थे  कि वह किस विषय में कहना, या बताना चाह रही है ? 

साफ-साफ क्यों नहीं रहती ? तू कहना क्या चाहती है? हम क्या तेरा कुछ नुकसान करने आए हैं ?या किया है ,अरे ! हम तो बच्चों से मिलने आए थे। सोचा ,चलो ! मुंबई भी घूम लेंगे और अपने बच्चों से भी मिल लेंगे।क्रोधित स्वर में चाची बोली।  

सही सोचा आपने ,अब तो आपका घूमने हो गया होगा ,कह कर उठकर जाने लगी। चाचा -चाची  को स्पष्ट  नजर आ रहा था ,कि वह उन्हें रोकने वाली नहीं है। तब उसकी चाची क्रोध और अपमान से फुंफकारते हुए बोली -तुझे क्या मालूम है ?बताती क्यों नहीं? बता कर जा ! वरना मैं यहां का अन्न -जल भी ग्रहण नहीं करूंगी। चाची और भी  तैश में आ गई। अमृता अपने मन को नियंत्रित किए हुए थी , अपने क्रोध को शांत किए हुए थी , सोच रही थी -'कि घर वालों के सामने ,या  बच्चों के सामने, किसी भी प्रकार का तमाशा ना हो किंतु चाची के बार-बार उकसाने पर वह भी चुप ना रही। 

, अब तुम्हें मेरी याद आ गई,अपनी बच्ची की, कैसी बच्ची ?वह तो मैं ,न जाने कैसे बच गई ? वरना तुम लोग मुझे भी मार देते जिस तरह मेरी मां और मेरे भाई को मार दिया।  तुम लोग क्या समझते हो ?मैं तुम्हें जानती नहीं ,उस समय क्रोध तो बहुत आया था ,जब मुझे पता चला था ,कि मेरा भाई जो अभी संसार में ही नहीं आया ,मेरी माँ जो रात -दिन मुझे मेरे छोटे भाई के होने का एहसास करा रही थी। मैं जो बड़ी दीदी बनने के सपने देख रही थी ,तुम लोगों ने ,उन्हें ही नहीं मारा मुझे भी अनाथ कर दिया। होली के बड़ो[दही -बड़े ] में कुछ मिलाया था न..... उसने दोनों की तरफ देखा। दोनों ही आश्चर्य चकित हो उसे देख रहे थे।  किंतु मेरे पास उस समय कोई सबूत भी नहीं था और मैं छोटी थी। जब मुझे पता चला ,कि तुम लोगों के कारण ही मेरी मां और मेरा भाई चल बसा, मुझे बचपन में ही ,तुम लोगों ने अनाथ कर दिया। मेरा बचपन तो बर्बाद ही कर दिया ,एक सौतेली माँ के साये में पली। मैं ही जानती हूँ ,मेरा बचपन कैसे गुजरा ? कहते हुए वो रोने लगी। अरे !जब तुम लोग अपने सगे भाई और भाभी के न हुए ,तो मैं कैसे  पर विश्वास कर सकती हूँ ?अपने चाचा की तरफ देखते हुए बोली। 

यह तू क्या कह रही है ? चाची  किसी भी बात से ,अनभिज्ञ होते हुए बोली-हमारी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। हम भला क्यों तेरी मां और तेरे भाई का खून करने लगे ?तेरी माँ तो ज्यादा दही -बड़े खाने  बिमार हुई ,बच्चा भी उसके पेट में ही था। इसमें हमारा क्या दोष ? वह तो बीमारी में चल बसे। 

झूठ मत बोलो ,चाचा !मैंने  सब देखा है और सब अपनी कानों से सुना है। तुम नहीं चाहते थे ,कि मेरा कोई भाई हो,इसीलिए तुमने उसे मार दिया। सम्पत्ति के लालच में ,उस घर के वारिस को ही नहीं ,आने दिया।   सारी संपत्ति तुम लोगों को ही मिलेगी ,मैं तो लड़की हूं ,मैं अपनी ससुराल चली जाऊंगी इसीलिए मैं बच गई। उसे समय मैंने  किसी को कुछ भी नहीं बताया, समय के साथ-साथ मैं भी समझ गई कि तुम्हारे कर्मों का दंड तुम्हें ऊपर वाला ही देगा। आप यह शुक्र मनाओ !मैंने  तुम लोगों को इतने दिनों तक बर्दाश्त किया और कोई होता तो घर में घुसने ही ना देता , और अब तुम्हें बेइज्जती लग रही है। 

कहते हुए ,अमृता ने बचपन की सम्पूर्ण  घटना उन्हें बतला दी जो उसने देखी और सुनी थी। उसे सुनकर उन दोनों के चेहरे, फीके पड़ गए। 


 तब अमृता बोली-मुझे अनाथ कर दिया, मेरा भाई मार दिया। ऐसे लोगों पर , मैं कैसे यकीन कर लूं ?कि आप जैसे लोग ,मेरे परिवार या मेरे बच्चों का  कुछ भी अहित नहीं करेंगे। अरे तुम लोग तो ,दौलत के इतने लालची हो, कि मेरी दौलत पाने के लिए ,मेरे पति ,मेरे सास -ससुर ,यहाँ तक की मेरे बच्चों को कुछ भी कर सकते हो। इसीलिए जब जिस इंसान की फ़ितरत हमें पता चल जाये ,उससे तो बच कर रहना ही पड़ता है। मैं चाहती तो, बड़ी होकर पुलिस को सब सूचना दे सकती थी किंतु मैंने तो अपने पिता को तक को भी नहीं बताया-' कि तुम लोगों की क्या करतूत थी ?या तुम लोगों ने ही हमारे परिवार को बिखेर कर रख  दिया  क्योंकि उन्हें अपने परिवार पर ,अपने भाई पर बहुत विश्वास था।  वह विश्वास टूट जाता इसीलिए यह बात आज तक मैंने, अपने तक ही सीमित रखी थी किसी को नहीं बताई किंतु तुम्हारी इन हरकतों को देखते हुए मुझे बताना पड़ गया। यह कहकर अमृता उठकर चल दी ,तभी जाने से पहले ,फिर वापस आई और बोली -तुम यहां रहना चाहते हो या यहाँ से जाना चाहते हो ,तुम्हारी इच्छा है किंतु मेरा व्यवहार वही रहेगा। वैसे मुझे लगता है ,अब तुम लोगों को अपने घर चले जाना चाहिए।  तुम अपने घर जा सकते हो ,मुझे अपने ऐसे रिश्तेदारों से मिलने में कोई दिलचस्पी नहीं है, कहकर कमरे से बाहर निकल गई। 

दोनों पति-पत्नी अवाक् खड़े एक - दूसरे का मुँह देख रहे थे। अब यहां रुकने का कोई भी अर्थ नहीं है, अपमान के कारण उनका चेहरा लटक गया था।  इतना बड़ा जहर लिए बैठी है ,यह लड़की कहकर ,चाचा सामान बांधने लगे।  अमृता  मन ही मन सोच रही थी -कम से कम मैंने इन्हें सुधरने का एक मौका तो दिया सुधरना भी कैसा ? जबरदस्ती इस रिश्ते को संभाल रही थी लेकिन जो रिश्ते की जड़ को ही काट दें  उनसे कैसा रिश्ता ?वह लोग गए या नहीं उसने न ही जानने का प्रयास किया। नौकर ने ही बताया -चाचा -चाची  चले गए।

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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