Jail 2[part 39]

यहां हर किसी का व्यापार होता है, बरखा ठीक ही तो कह रही थी - यहां हर किसी का व्यापार होता है, रिश्तो का, प्रेम का , मैं भी तो यश से प्रेम कर बैठी थी, किंतु मुझे प्रेम के बदले, प्रेम नहीं मिला बल्कि धोखा खाया।  यह भी एक तरीके का व्यापार ही है ,हम सभी व्यापारी हैं, किसी भी कार्य या भावना के बदले ,हम बदले में ,कुछ न कुछ चाहते हैं। बहुत दिनों से, बरखा की कहानी सुनते-सुनते मैं, अपनी ही कहानी भूल गई थी , यह सोचते हुए , वह अपनी कोठरी में चली जाती हैं।

 आज बहुत दिनों पश्चात,उन्होंने अपनी डायरी उठाई , हिमांशु की मम्मी को न जाने क्या हो गया है ? हिमांशु विवाह नहीं करना चाहता है, तो वह मेरा विवाह ही देखना चाहती हैं ,कितने आश्चर्य की बात है ?मेरे लिए लड़का भी देख लिया और मुझे बताया भी नहीं , पहले तो ,उसे ये सुनकर क्रोध आया। यह कौन होती है ?मेरे लिए लड़का देखने वालीं , इन्हें किसने अधिकार दिया ? कि मेरे लिए लड़का देखें, किंतु फिर विचार आया - इन्होंने सोचा होगा, बेचारी के माता-पिता तो हैं नहीं, जो उसकी फिक्र करें। मैंने अब तक संपूर्ण जिंदगी अपनी इच्छा से ही तो  जी है ,मैं कभी ,अपने बड़ों का आशीर्वाद भी नहीं ले पाई ,उनसे वार्तालाप भी नहीं कर पाई ,कभी उनसे सुझाव भी नहीं लिया ,अबकी बार देख लेते हैं। हिमांशु की मम्मी ने, मेरे लिए किस तरह का लड़का देखा है ? 


 शाम को , अच्छे से तैयार होकर बताए गए समय पर और निश्चित स्थान पर तैयार होकर, अमृता पहुंच जाती है। वह कोई आलीशान जगह नहीं थी , साधारण सा होटल था ,अमृता ने सोचा -न जाने कैसा लड़का होगा ? किस जगह पर बुलाया है ,आसपास देखा कोई नजर नहीं आया। सब अपने-अपने जोड़े के साथ थे तभी कोने में ,एक ब्लू सूट पर, अमृता की नजर गई। हां, यही रंग तो बताया था उन्होंने, हो ना हो ,यह वही लड़का है , वह धीरे-धीरे चलती हुई ,उसके समीप पहुंची। वह भी किसी के इंतजार में बैठा हुआ था। अमृता ने कहा- एक्सक्यूज मी ! 

उस लड़के ने घूम कर देखा और बोला -तुम...... 

अमृता ने भी उसे देखा और बोली तुम...... तुम ही ब्लू सूट में आने वाले थे, अमृता ने उससे प्रश्न किया। 

तुम ही '' लेमन येलो '' साड़ी में आने वाली थीं , कहते हुए , उसने कुर्सी आगे कर दी , और अमृता बैठ गई। 

 इसका अर्थ है- आंटी जी, हम दोनों को ही मिलना चाहती थीं , तुम्हें भी समय नहीं मिल रहा था और मुझे भी मैं जानती हूं ,एक मां के  मन की परेशानी.....  अब उनकी तुम्हारे विवाह की इच्छा है , वह मुझे तुमसे ही मिलवाने वाली थी, आश्चर्यचकित होते हुए , अमृता ने पूछा-वैसे तुम्हें यहां , क्या बहाना बनाकर भेजा था ? 

मम्मी ने कहा था कि हम वहीं पर खाना खाएंगे और तुम हमारा इंतजार करना , और'' लेमन येलो ''साड़ी  में ,मेरी दोस्त आयेगी ,उसका स्वागत करना। 

खुश होते हुए ,अमृता बोली -ऐसा कहा आंटीजी ने...... लेकिन वे लोग तो नहीं आये और तुम्हें भेज दिया।

अब मैं उनकी चाल समझ गई, उन्होंने हमें एक स्थान पर इसीलिए भेजा है ताकि हम एक दूसरे से बात कर सकें। एक -दूसरे के साथ थोड़ा वक़्त बिताएं। 

अब तुम सही समझी हो तभी पीछे से हिमांशु के मम्मी -पापा की आवाज आई। 

मम्मी !आप.... 

 आंटी जी आप...... दोनों अपने  स्थान से उठ खड़े हुए

बैठो !बैठो ! दोनों कितने अच्छे लग रहे हो, मैं चाहती हूं यह जोड़ी हमेशा इसी तरह साथ रहे , अब बताओ ! अमृता की तरफ मुखातिब होते हुए ,हिमांशु की मम्मी ने पूछा -मैंने तुम्हारे लिए जो लड़का देखा है ,क्या तुम्हें पसंद आया ? अमृता की नजरे शर्म से झुक गईं  और बोली -मैं क्या कहूं ?जैसी आपकी इच्छा !' इनसे' पूछ लीजिए। 

यह सुनकर वे सभी हंस दिए, अब  कहने -सुनने को कुछ रहा ही नहीं, अब तो हिमांशु 'इनसे 'हो गए हैं तुम्हारी भाषा ने ही तुम्हारी स्वीकृति दे दी है। तुमसे  दिल लगाए बैठा है ,किंतु वह चाहता है ,कि तुम्हें रानी बनाकर रखें ,खूब पैसा कमाए, अब हम सोच रहे हैं -इस पैसे कमाने के चक्कर में ,जो अपनी जिंदगी के कीमती लम्हे हैं, उन्हें मत खो देना इसीलिए हम चाहते हैं ,तुम दोनों, शीघ्र अति शीघ्र शादी कर लो। 

अपनी मम्मी की बात सुनकर, हिमांशु ने अमृता की तरफ देखा और उससे पूछा -तुम्हें  कोई आपत्ति तो नहीं मेरी दुल्हन बनने में, मैं एक छोटा सा कलाकार हूं ,अपनी पत्नी को खुश रखूंगा, बस इतना ही कह सकता हूं उसके लिए खूब मेहनत करूंगा ,आसमान से तारे तो नहीं तोड़ कर लाऊंगा किंतु मेरा प्रयास यही रहेगा कि वह हमेशा खुश रहे ,कहते हुए उसने झुक कर, एक गुलाब का फूल अमृता की तरफ बढ़ा दिया -'मेरा प्रेम स्वीकार करें '! उसकी इस अदा पर अमृता भी हंस दी

मुझे तुम्हारा प्रेम कबूल है ,कहते हुए अमृता ने उसके हाथों से वह गुलाब ले लिया , मुझे धन और पैसों की कोई आवश्यकता नहीं ,वह मेरे पास हैं  किंतु मुझे एक प्रेम भरा दिल चाहिए, क्या वह तुम मुझे दोगे ?जो सिर्फ मेरा हो। 



उनकी बातें सुनकर ,उनके मम्मी -पापा दोनों उस होटल से बाहर निकल गए, इन्हें अकेले में रहने का मौका दिया जाता है। आज सभी खुश थे ,अमृता को आज प्रतीत हो रहा था ,वह धीरे-धीरे हिमांशु को चाहने लगी थी लेकिन यश के धोखे के कारण अपनी जुबान पर नहीं ला पा रही थी। किंतु आज उसके दिल ने गवाही दे ही दी कि वह सच में ही हिमांशु को चाहने लगी है, हिमांशु को भी लगने लगा। मम्मी पापा सही हैं, समय रहते ही विवाह कर लेना आवश्यक है।  दोनों ने एक दूसरे को स्वीकृति दे दी थी। 

सगाई का समय तय हो गया था कुछ मेहमानों के सामने दोनों की सगाई , हो गई अमृता ने कहा -विवाह के पश्चात  और आप लोग मेरे इस घर में आ सकते हैं। 

किंतु इसके लिए, हिमांशु ने मना कर दिया, तुमने उस घर में, हमें बुलाया -यह तुम्हारा बड़प्पन है, किंतु अब तुम हमारे घर की बहू होने वाली हो और हमारे यहां बेटियां विदा होकर ससुराल आती हैं। इसे तुम अपना मायका समझो और वह [मेरा घर ]तुम्हारी ससुराल हुआ। तुम्हें विदा होकर, मेरे घर ही आना होगा। अमृता को कोई आपत्ति नहीं थी ,उसे तो बरसों से इच्छा थी कि कोई अधिकार से, मुझे अपने साथ ले जाए। अमृता सहर्ष विदा होकर, अपनी ससुराल यानी हिमांशु के घर आ गई। विवाह के पश्चात दोनों ही ,बेहद खुश थे, विदेश में घूमने के लिए भी गए थे जिस प्यार अपनेपन के लिए ,अमृता इतने वर्षों से तड़प रही थी वह प्यार और अपनापन उसे हिमांशु और उसके परिवार ने दिया। 

 इसी खुशी का यह नतीजा हुआ , अमृता शीघ्र ही गर्भवती हो गई , सभी बेहद खुश थे, उनके घर में खुशियां जो आने वाली थी, उसमें चार चांद लग गए थे। अमृता को लग रहा था, अब मेरे दुख के दिन गए अब खुशियां उसकी झोली में भरी पड़ी थी।  नौ  महीने पश्चात, अमृता ने चांद सी, एक प्यारी सी बेटी को, जन्म दिया। वह बच्ची प्यारी ही इतनी थी, उसके नामकरण संस्कार पर उसकी दादी ने ,उसका नाम 'कोहिनूर' रखा। कोहिनूर अपनी दादी के लाड -दुलार में पलने लगी अब अमृता ने फिल्मों से दूरी बना ली ताकि वह अपने परिवार को, अपने बच्चों को ,समय दे सके यह खुशियां उसे बरसों पश्चात मिली है।  उनके एक-एक पल को वह खोना नहीं चाहती थी। उन पलों को भरपूर जीना चाहती थी। अभी तक वह एक अभिनेत्री बनाकर जी  है ,अब वह एक मां और अच्छी बहू बनकर जीना चाहती थी। हिमांशु अपने कार्य में व्यस्त रहता और जब कार्य नहीं होता तो तब परिवार सहित बाहर घूमने निकल जाते। इस तरह तीन  वर्ष बीत गए, तीन वर्षों पश्चात ,उनके यहां फिर एक खुशखबरी सुनाई दी, अबकी बार दादी को पोते की लालसा थी, उनकी भगवान ने सुन भी ली।  और एक प्यारा सा पोता उनकी झोली में डाल दिया। दादी -बाबा की ख्वाहिशें पूरी हो गईं । 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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