आज बरखा की गोद भराई है , फल, मिठाई और कपड़े लेकर ,उसकी सास उसके घर आई है , साथ में, दो-तीन रिश्तेदार, और श्याम भी है। आरंभ में , श्याम ने बरखा से कई बार मिलने का प्रयास किया था किन्तु आज श्याम के मन में ,उसके प्रति , वह उत्साह नहीं था , जब से उसने फिरोज के मुंह से , सुना था कि वह कॉलेज में किसी लड़के के साथ मिल रही थी। फिर भी न जाने क्यों ? घर वालों के साथ आ गया और रिश्ता भी नहीं तोड़ा।
शायद ,उसे एक उम्मीद थी, कि जो उसने सुना है , वह बात झूठ निकले अमृता जी बोलीं।
बरखा से मिलने की कोई इच्छा नहीं है। जब वह लोग बरखा के घर गए, बरखा के चेहरे पर मुस्कुराहट थी। वह अभी भी समझ नहीं पा रहा था, यह मुस्कुराहट कैसी है ? घर में ही सारी रस्में होनी थीं। पास में ही एक खाली जगह पर , खाने का प्रबंध किया गया था । घर में तो ,इतनी जगह थी ही नहीं। खाना खाने के पश्चात, श्याम भी उस रस्म में शामिल हो गया। उसकी तरफ देखकर बरखा मुस्कुराई , श्याम भी फ़ीकी सी हंसी हंस दिया। तब एक महिला हंस कर बोली-अब इतनी दूर-दूर क्यों हो ? दूल्हे मियां , जरा अपनी दुल्हन के पास तो खड़े हो जाओ ! देखें तो जरा ,जोड़ी कैसी लग रही है ? कहकर उसने, श्याम को जबरदस्ती उसके स्थान से उठाकर, बरखा के समीप बैठा दिया।
देखने से तो लग रहा था वह बहुत खुश है , तब धीमे स्वर में ,श्याम ने बरखा से पूछा - तुम इस रिश्ते से खुश तो हो ना...... बरखा ने गर्दन हिलाकर अपनी सहमति जतलाई। श्याम को उसके इस अभिनय पर क्रोध आया किन्तु यह स्थल ऐसा था चार मेहमानों के सामने कुछ नहीं कह सकता था। तब अचानक उसके विचारों ने पलटा खाया। सोचने लगा -कहीं फ़िरोज को ही तो कोई गलतफ़हमी नहीं हो गयी है। कभी कोई और लड़की ,उसने देख ली हो। तब उसने अच्छे से ,बरखा के संग खड़े होकर ,अपनी तस्वीर खिंचवाई ,ताकि अपने दोस्तों को दिखा सके और उन्हें समझा सके ,फ़िरोज को कोई गलतफ़हमी ही हुई है।
सम्पूर्ण रस्में होने के पश्चात ,श्याम बरखा से फिर से बोला -मन में कोई संदेह हो या कोई परेशानी ,मुझसे कह सकती हो। बरखा ने एक नजर उसकी तरफ देखा ,और मन ही मन सोचने लगी -ये बार -बार एक ही बात को क्यों दोेहरहा रहा है ?
तब एक उम्मीद के साथ ,श्याम बोला -अब हम कब मिलेंगे ? अकेले में मिलकर,तुमसे कुछ बातें करनी हैं।
अकेले में क्यों ?जो कहना है ,यहीं कह दो !
क्यों ? तुम्हारा दिल नहीं करता ,मुझसे मिलने का , आपस में एक दूसरे को जानने का। मैं जब भी, मिलने की बात करता हूँ ,तुम कोई दिलचस्पी नहीं दिखाती हो।
नहीं , ऐसी कोई बात नहीं है , मिलने की कोई सही जगह भी तो नहीं है , मिले भी तो कहां ?
कॉलेज कैसा रहेगा ? तुम्हारे कॉलेज में मिलते हैं।
कॉलेज के नाम से बरखा हड़बड़ा गई , कॉलेज में क्यों ? हर बार तो मैं कॉलेज नहीं जाती , कभी-कभी जाती हूं।
मैं क्या रोज मिलने वाला हूं ? मेरी अपनी भी नौकरी है , मुझे बता दो !तुम कब-कब कॉलेज जाती हो। मैं वहीं आ जाऊंगा।
नहीं -नहीं ,तुम्हें वहां आने की कोई आवश्यकता नहीं है।
श्याम चिढ़ गया और बोला- क्या ,वहां कोई और मिलने आता है ?
वहां........ और कोईईईईई मिलने क्यों आने लगा ? बरखा के शब्द लड़खड़ा गए किंतु अब श्याम को पूर्णतः विश्वास हो गया फिरोज गलत नहीं था।
तभी श्याम की मां की आवाज सुनाई दी, हम तो गोद भराई से पहले ही विवाह और सगाई का मुहूर्त निकलवा कर आए थे। अब तुम्हारी बेटी हमारी हुई , अगले माह ही ,इनकी शादी कर देंगे।
यह शब्द बरखा के कानों में भी पड़े , यह सुनकर एकदम परेशान हो गई और श्याम की तरफ देखते हुए बोली- मैंने तो तुमसे पहले ही कह दिया था , हम अभी शादी नहीं करेंगे ,जब तक मेरी पढ़ाई पूरी नहीं हो जाती।
अब मैं ,इसमें क्या कर सकता हूं ? यह बड़ों का फैसला है , मैंने तो मना भी किया था किंतु मम्मी ने डांट दिया , कहने लगीं -' जैसे यहां रहकर पढेगी , वैसे ही ,वहां भी पढ़ लेगी। क्या शादी के बाद लड़की पढ़ती नहीं , यहां से तो बेहतर वातावरण मिलेगा उसे , ऐसी कुछ भी बात श्याम की अपनी मम्मी से नहीं हुई थी किंतु इस समय मौके को देखते हुए , उसने छक्का लगा दिया।
बरखा के चेहरे पर जो थोड़ी बहुत बनावटी खुशी दिख रही थी, वह भी उड़न छू हो गई और वह वहां से उठकर दूसरी जगह चली गई।
बरखा ! यह तो अच्छा नहीं हुआ , तुम एक ही समय में दो-दो लोगों को घूमा रही थीं , यह तो सही नहीं है , मन कि बाद में, उसे तुमसे लगाव हो गया, किंतु इसे प्रेम नहीं कह सकते। तब भी ,वह तुम्हारा साथ दे रहा था। यदि तुम्हारा प्यार सच्चा था , तब तुम दोनों को, सामने आना चाहिए था। घर वालों को विश्वास में लेकर उनसे बात करनी चाहिए थी, अमृता जी ने बरखा से कहा।
नहीं मैडम! ऐसा नहीं हो सकता था, विशाल और मेरे घर की ,पारिवारिक पृष्ठभूमि बिल्कुल विपरीत थी। हमारा मेल ऐसे था जैसे धरती और आकाश , राजा और रंक , रहन-सहन, खान -पीन , सोच एकदम विपरीत थे। ऐसे में हमारे परिवार वाले ,हमारा विवाह तो क्या? हमें साथ देखना भी पसंद नहीं करते। हालांकि मैं ,अपने को उस स्तर पर लाने का प्रयास कर रही थी किंतु पढ़ने से ही, मेरा स्तर उनके बराबर नहीं हो जाता। इस बात को तो हम दोनों भी समझते थे , इसीलिए तो हमने घरवालों को न बताकर , आगे बढ़ने का प्रयास किया ताकि हम अपने पैरों पर खड़े हो सके और विद्रोह करने की शक्ति हममें आए ,'' घर वालों का विरोध हो, या समाज में विद्रोह करना हो , सबके लिए शारीरिक और आर्थिक दृष्टि से मजबूत होना आवश्यक है और वहीं हमने सोचा था,'' बरखा ने बताया।
तुम लोग अपने चारों तरफ एक सुरक्षा कवच बनाकर चल रहे थे , तुम्हारी तरफ से भी प्यार नहीं था तुम्हारी शारीरिक जरूर और पैसे की जरूरत ,उसकी इसी घर से पूर्ति होती इसीलिए तुम इस रिश्ते पर जोर लगा रही थी और विशाल तुम्हारे मोहपाश में बंध गया था क्योंकि वह वह दुनियादारी से बेखबर, एक अमीर लड़का है ,लड़कों की उम्र ही ऐसी होती है, इस उम्र में किसी भी लड़के का बहकना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं ,जिसमें कि लड़की को कोई आपत्ति नहीं। तुम्हारा यह रिश्ता प्यार का नहीं, जरूरत से जुड़ा था।
तब मुझे ऐसे में क्या करना चाहिए था ? आप ही बताइए !जो सुख -सुविधा ,आराम मुझे विशाल के साथ मिल सकता था , क्या वह श्याम, वे सुख -सुविधा दे सकता था ?
हाँ..... यही बात !'जो बात मैं कहना चाह रही थी, वही तुम्हारे मुंह पर आ गई , जब प्यार होता है , तब उसमें स्वार्थ नहीं होता, उसमें किसी चीज को पाने की लालसा नहीं होती , श्याम, तुमसे जुड़ने लगा था , तुमसे प्यार करने लगा था, प्यार में, दूसरे की खुशी के लिए ,अपने से जुड़े आदमी को अधिक से अधिक खुश रखने का प्रयास करता है , श्याम , कम से कम आमदनी में भी , तुम्हें ज्यादा से ज्यादा खुश रखने का प्रयास करता। तुम्हारी एक खुशी के लिए , अपना जीवन खपा देता। कई बार हमारे पास बहुत पैसा होता है, जैसे मेरे पास था, मेरे पास पैसे की कोई कमी नहीं थी , लेकिन मेरे पास, निस्वार्थ और प्यार भरे रिश्तों की कमी थी। यह तो सभी जानते हैं ,कि मैं इतनी बड़ी कलाकार थी , अभिनेत्री थी ,तो पैसा तो होना स्वाभाविक है ,लेकिन जो मुझसे बिना स्वार्थ के जुड़े ,बिना किसी लालच के या फिर उसका स्तर भी मेरे बराबर ही हो ,तब यह रिश्ता निःश्वार्थी होता किन्तु कई बार हम प्रेम में ,इतने अंधे भी हो जाते हैं। हम सामने वाले व्यक्ति की मंशा को ,नहीं समझ पाते। जैसे मैं यश के लालच को नहीं समझ पाई। कि वह लालच में, मुझसे जुड़ा था।
मैडम ! यह यश कौन था ?
अमृता जी , के मुंह से यह शब्द निकला ,उन्हें लगा जैसे उन्होंने कोई गलती कर दी हो , बोलीं -कोई नहीं , मेरा पहला पति था।
था ,मतलब !आपने उसे मार दिया था इसीलिए आप'' जेल ''में आई हैं।
नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है ,वह जिंदा है अपनी बीवी बच्चों के साथ है , मैं अभी उन बातों को छेड़ना नहीं चाहती, तुम आगे अपनी कहानी बताओ ! क्या तुम्हारा अगले महीने विवाह हो गया था ? या विशाल ने कुछ किया या तुम दोनों ने मिलकर कुछ किया ,आगे क्या हुआ था ?यह बताओ !

