करण के , कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, एक तरफ मां अस्वस्थ हो गई है ,दूसरी तरफ प्रीति बहकी- बहकी बातें कर रही है ,उसे यह नहीं मालूम, कि इस घर में क्या हो रहा है ? प्रीति की बातों से वह परेशान होता है और उसे लगता है -'प्रीति बहुत दिनों से बीमार थी ,कहीं उसने ही तो , मां को कुछ नहीं कर दिया। प्रत्यक्ष उससे कुछ भी नहीं कह पा रहा था , उसे लग रहा था यदि उसने अपनी मंशा प्रीति को बताई -कहीं वह क्रोधित ना हो जाए लेकिन अपने घर में प्रेत होने की बात को स्वीकार नहीं कर पा रहा था।
प्रीति उसे अपना, प्रभा द्वारा दिया गया यंत्र दिखाती है , ताकि करण उस पर विश्वास कर सके। अब आगे-
करण जैसे -तैसे , रसोई घर के समान को समेट कर,तीनों के लिए खिचड़ी बनाता है ,वो अभी प्रीति की मानसिक हालत देखकर ,उससे खाना बनाने के लिए ,मना कर देता है। धीरे-धीरे मां को भी, होश आ जाता है, किंतु वह कुछ भी नहीं बता पाती हैं ,कि उनके साथ क्या हुआ? प्रीति और करण नीचे के कमरे में ही सो जाते हैं क्योंकि सीढ़ियों पर सामान फैला हुआ है और माँ भी स्वस्थ नहीं है, रात्रि में न जाने कब, उन्हें , हमारी आवश्यकता पड़ जाए ? प्रीति ने मां के पलंग को, सिंदूर की रेखा से बांध दिया था स्वयं ने वह 'रक्षा कवच' अपने कपड़े में बांधा हुआ था।
मध्य रात्रि में , अचानक कुछ आहट होने पर, उसकी आंखें खुली , उसने अंधेरे में, करण को अपने बिस्तर पर ढूंढा किंतु करण बिस्तर पर नहीं था। उसने सोचा-शायद किसी कार्य से बाहर गया हो, किंतु कुछ देर पश्चात भी , करण नहीं आया, उसे अंधेरे में एहसास हुआ जैसे कोई, हूं हूं हूं कि बड़ी डरावनी सी आवाज निकाल रहा है।
प्रीति घबरा गई और करण को आवाज लगाने लगी , तब तक उसकी आंखें अंधेरे में देखने की अभ्यस्त हो गईं थीं ,उसे अँधेरे में आभास हुआ , जैसे कोई छत पर, चिपका हुआ है और उसे घूर रहा है। प्रीति ने डरते -डरते, कहा -कौन है ,कौन है ? उधर से कोई उत्तर नहीं आया। वही क्रोध से भरी हुई हूँ हूं की आवाज आती रही। अंधेरे में टटोलते हुए प्रीति ने, जैसे ही लाइट जलाई , उसकी चीख निकल गई। करण ही छत पर चिपका हुआ था, यह ऊपर कैसे पहुंच गया ? जलती हुई नजरों से उसे देख रहा था। उस प्रेत ने करण को, अपने नियंत्रण में ले लिया था। प्रीति की सास और प्रीति पर तो कोई वश नहीं चल रहा था , किंतु यह हुआ कैसे ? प्रीति की नजर ,करण के मस्तक पर गई। उसके माथे पर कोई भी सिंदूर नहीं लगा हुआ था। तब वह समझ गई ,कि प्रेत ने , करण को अपने वश में कर लिया है। मन ही मन सोच रही थी-इसे मैंने कितना समझाया था ? किंतु उसने मेरी बातों पर विश्वास नहीं किया। रोशनी होने पर ,वह छत से चलता हुआ ,कम से कम आठ -दस फीट की ऊंचाई से ,धम्म से कूदा। हो सकता है , यदि प्रीति ने यंत्र ना पहना होता तो शायद वह उसके ऊपर ही आक्रमण करता। क्रोधित करण के अंदर का प्रेत ,कमरे से बाहर निकल गया।
प्रीति घबराई हुई थी , वह न जाने किस तरीके से, करण का अहित कर दे ? अब घबराहट के कारण, उसे नींद नहीं आई। वह अपने बिस्तर से उठकर, अपनी सास के पास आकर बैठ गई। कुछ देर आसपास टहलती रही , फिर से उनके समीप बैठ गई। जब कोई उपाय नहीं सूझा , तब वह अपने घर के मंदिर में गई और वहां से और भी बहुत सारा सिंदूर ले आई और उसे हवा में होली की तरह उड़ाने लगी , कुछ समझ नहीं आ रहा था प्रेत ,करण को लेकर कहां गया है ?घर में ही है या घर से बाहर गया है , बाहर तो शायद नहीं गया होगा, क्योंकि उसे मेरा अहित करने के लिए भेजा गया है। साहस करके सीढ़ियों से वह सामान भी हटाने का प्रयास करने लगी। उसे लगा ,कहीं वह प्रेत करण को लेकर छत पर तो नहीं चला गया। कुछ भी हो सकता है , वो किसी भी प्रकार की गलतफहमी में नहीं रहना चाहती थी , इसलिए थोड़ा-थोड़ा सामान हटाकर उसने, अपने जाने का मार्ग बना लिया और छत पर पहुंच गई। उसका सोचना सही था, करण छत पर ही टहल रहा था , बल्कि उसे देखकर ,छत की दीवार पर चलने लगा।
जिसके कारण प्रीति बुरी तरह से घबरा गई , और जोर-जोर से बोली- करण नीचे उतर जाओ ! करण नीचे उतर जाओ ! करण अपने आप में होता तो उसकी सुनता भी , किंतु उसके अंदर तो प्रेत समाया था। प्रेत रह -रहकर प्रीति को तड़पा रहा था। वह दिखलाना चाहता था, यदि उसने किसी भी तरह से अपना बचाव किया , तब वह उससे जुड़े परिवार के अन्य सदस्यों को नहीं छोड़ेगा। करण नीचे आ जाओ !मध्य रात्रि में जब सभी अपने घरों में दुबके सोये हैं ,ऐसे में प्रीति ने अपने पति की प्राण रक्षा की ,उस प्रेत से भीख मांग रही थी। उससे कह रही थी -तुम्हें मुझे मारने के लिए भेजा गया है। तब मुझे मारो ! मेरे घर के अन्य सदस्यों को क्यों चोट पहुंचा रहे हो ? किंतु वह कुछ बोला नहीं , इसी तरह दीवार पर चलता रहा , चलते-चलते ऐसा लगा ,जैसे वह गिर जाएगा। उसे देखकर,प्रीति की चीख़ निकल गई ,उसे लगा ,जैसे उसका दिल हलक में आ गया हो, वह गहरी गहरी सांसें लेने लगी। कुछ समझ नहीं आ रहा था, क्या करूं ? वह बुरी तरह घबराई हुई थी , उसे लग रहा था यदि वह उसके करीब गई , तब वह प्रेत ,करण को नीचे गिरा देगा।
इस समय उसकी सहायता के लिए कोई भी नहीं था , वह क्या करें? ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी। तभी उसे अपने हाथ में सिंदूर का स्मरण हो आया , रोते हुए, प्रेत से प्रार्थना करती हुई ,थोड़ा आगे बढ़ी। मेरे पति को छोड़ दो ! इन्होंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ? यह तो नियम के विरुद्ध है , जब तुम्हें मुझे मारने के लिए भेजा गया है ,तब तुम किसी दूसरे पर कैसे प्रहार कर सकते हो ? कहते हुए ,उसने दोनों हाथों का सिंदूर करण पर उछाल दिया। सिंदूर करण के तन पर लगा और वह चलते-चलते डगमगा गया। प्रीति भागी अब उसे होश ही नहीं रहा , कि प्रेत भी ,उसका कुछ बिगाड़ सकता है। करण का हाथ उसके हाथ में आ गया ,उस सिंदूर के असर के कारण , प्रेत करण को छोड़कर चला गया। जब करण प्रेत के मायाजाल से निकला , तब उसने अपने को छत की दीवार पर लटके हुए पाया। प्रीति उसे ऊपर खींच रही थी। अपने आप को इस हालत में पाकर वह घबरा गया और सोचने लगा, मैं यहां कैसे आया ? मैं तो अपने बिस्तर पर सो रहा था। उसे समझ नहीं आया , प्रीति मुझे ऊपर खींच रही है या नीचे गिरा रही है।
उसने सोचा , जब से मैं ,यहां आया हूं तब से यह बहकी- बहकी बातें कर रही है। कहीं ऐसा तो नहीं , इस पर ही किसी का साया हो , और इसने मुझे गिराने का प्रयास किया और मेरी आंखें खुल गईं।अब मुझे ऊपर खींचने का अभिनय कर रही है। आखिर ये चाहती क्या है ?
क्या सोच रहे हो ? जल्दी से ऊपर आओ ! मेरा हाथ दर्द कर रहा है ,और कुछ न सोचकर करण ,ऊपर की ओर चढ़ने का प्रयास करने लगा। कुछ देर की मशक्क्त के पश्चात ,वह ऊपर आ गया ,उसके ऊपर आते ही प्रीति उससे लिप्त गयी और बोली -भगवान का लाख -लाख धन्यवाद है ,जो तुम बच गए।
ये क्या मज़ाक है , मैं यहाँ कैसे आया ?
ये तुम्हें मज़ाक लग रहा है ,उसी प्रेत ने ये सब किया ,और मुझसे पूछ रहे हो ,ये क्या मज़ाक है ?ये मज़ाक नहीं है ,ये सच्चाई है। मैंने तुमसे कितनी बार कहा है -कोई है ,जो हमें नुकसान पहुंचाना चाहता है ,किन्तु तुम्हें तो मेरी बातों पर विश्वास ही नहीं है। मेरे सिंदूर लगाने पर भी ,तुमने उसे छुड़ा दिया ,जिसका परिणाम तुम्हारे सामने है।

