Jail 2[ part 51]

धनंजय जी, बरखा की बस्ती में गए और उसकी मां को उसके विषय में बताया और यह भी बताया कि वह शहर के ही किसी थाने में है। यह सुनकर बरखा की मां बहुत परेशान होती है। उस समय उसका पिता भी घर पर भी नहीं था। अब तो मोहल्ले वाले भी, उसे चार बात  बनाने लगे। बत्तो  की मां उससे कहती है -मैंने तो पहले ही कहा था ,लड़की को इतनी छूट देना ठीक नहीं , पढ़- लिखकर कौन सा अफसर बन जाएगी , अब  देख लिया , अपनी नासमझी का नतीजा !अब तेरी बेटी थाने पहुंच गई। पता नहीं, किस जुर्म में पुलिस उसे पकड़कर ले गयी।

वो तो मैं भी नहीं जानती ,अब आप ही सोचो ! मेरी बेटी ने क्या कभी बंदूक चलाई है ?बंदूक तो उसके बाप को भी चलानी नहीं आती और उसके पास बंदूक कहाँ से आई ?न जाने  किसने गोली चलाई है ?और नाम मेरी बेटी पर आ गया। पुलिस वालों को कोई गलतफहमी हुई होगी। न जाने किसका इल्जाम मेरी बेटी के मथ्थे मढ़ रहे हैं। 

चंपा ताई ,आपने सुना नहीं, जो लड़का इस घर में बरखा को ब्याहने आने वाला था , इस पर गोली चलवा दी है ,उसने , तभी मोेहल्ले का एक लड़का बोला। 

हैं ...... यह तू  क्या कह रहा है ? मैंने तो सुना ही नहीं , अभी तो इस घर का दामाद भी नहीं हुआ और गोली चल गई ,जरूर  कुछ लफड़ा है। गोलियां ऐसे ही नहीं चलतीं ,कोई बड़ी ही बात होगी। 



जब तक बात का पता ना हो, इस तरह बतंगड़ मत बनाओ ! मैंने  लड़की को पढ़ाकर ,कौन सी गलती कर दी ? अरे जिनकी बेटियां बिगड़ने वाली होती हैं , बिन पढे भी बिगड़ जाती हैं , वह रामफल की धी [बेटी ]कौन सा पढ़ी -लिखी थी ? सबके मुंह पर कालिख़  पोतकर चली गई। जिसकी जैसी लड़की है, मैं सब जानती हूं ,मुझे मत समझाओ ! तुम्हारे दिलों पर तो ''यूं ही सांप लोट रहे हैं'' कि इसकी लड़की पढ़ कैसे गई ? अब तो कलेजे को शांति मिल गई, अब तो ठंडक पड़ गई होगी, जलने वालों के दिलों में, चिल्लाकर बरखा की मां मोहल्ले वालों से बोली। 

अरे ,हमें क्या पड़ी है ? तेरी लड़की है, थाने जाए या जेल ! हम तो तेरे भले के लिए कह रहे थे , तेरे जैसे जी में  आए वैसा कर , खुद ही चली जा और उसे छुड़ा ला रामकली बोली ,कहते हुए अपनी लाठी टेकती हुई अपने घर की तरफ बढ़ चली। 

हां हां चली जाऊंगी , अभी क्या मैं तुम्हारी खुशामंद करने गई थी ? तुम ही कान लगाकर बात सुनने आ गईं। कम से कम दो  घंटे पश्चात, मंगलू दौड़ता हुआ आया और बोला- चाचा जी ,बड़ा गजब हो गया , हमारे होने वाले जीजा को तो गोली लगी है ,वह तो अस्पताल में है। सुना है , बरखा का तो किसी और से भी टांका भिड़ा था , होने वाले जीजा ने उन दोनों को साथ देख लिया और वहीं  झगड़ा हो गया और तब उसने गोली मार दी ,गोली मार कर भाग गया। 

तुझे यह सब किसने बताया ?

थाने में भी सब यही जिक्र कर रहे थे, फिर मैं कॉलेज के नजदीक भी गया जहां वह पढ़ती है , वहां तो पुलिस की घेराबंदी हो गई है, बहुत सारी पुलिस घूम रही है एक दो से सुनने पर पता चला ,कि  क्या कांड हुआ है ? बरखा की मां समझ गई , जरूर इससे मिलने विशाल आया होगा इसीलिए वह उसका मालिक यहाँ आँखें  दिखाता हुआ आया था। मुझे तो लगता है, उसके पोते ने ही गोली चला दी है , वह तो दूसरे शहर में रहता है तब उसके  कॉलेज में कैसे पहुंच गया ? क्या करूं ? बेटी को थाने देखने जाऊं या होने वाले दामाद को अस्पताल में देखकर आऊं। जब  बात इतनी बढ़ गई है , अब तो वो शादी भी नहीं करेगा। सारे बिरादरी और मोेहल्ले में बात फैल गई है। असल बात क्या थी ? यह अभी भी, नहीं पता चल पा रहा था। तभी उसे प्यारेलाल का स्मरण  हो आया। मंगलू  से बोली- मंगलू !क्या तेरा चाचा नहीं मिला तुझे ,

वह तो थाने में ही है। 

तू जरा यहां बैठ घर में ,मैं अभी आती  हूं , कहकर वह घर पर अपने बच्चों और मंगलू को छोड़कर बाहर निकल गई , नजदीक के ही अस्पताल में खोजती लगी , तभी पता चला ,कि एक गोली लगने का केस आया है ? पूछते हुए ,वहीं अस्पताल में पहुंच गई। उसके कमरे के दरवाजे पर भी  दो पुलिसवाले खड़े थे , साहब ! अब वह लड़का कैसा है ?

तुम कौन हो ? क्या तुम उसकी मां हो ?

नहीं साहब !माँ  तो नहीं हूं, हां ,मां जैसी हूं। 

मतलब !

मतलब यह की मेरी बेटी का ,इस लड़के से विवाह होने वाला है , वैसे रिश्ते में तो मैं ,इसकी सास लगती हूं , किंतु सास भी तो एक माँ ही होती है। 

हां ,ठीक है। तुम्हारी बेटी के कारण ही ,यह सब हुआ है ,हो सकता है , तुम यह देखने आई हो, कि वह अभी जिंदा है या मर गया।   

यह आप क्या कह रहे हैं ? साहब ! भला मैं क्यों ऐसा सोचूंगी ? विवाह से पहले ही क्या मैं ,अपनी बेटी को विधवा बनाने का सोचूंगी ?

जब तुम्हारी बेटी उस पर गोली चलवा सकती है , तो तुम ऐसा भी नहीं सोच सकती कि उसके विरुद्ध कोई सबूत न बचा रह जाए। 

साहब ! मेरी बेटी ऐसी नहीं है , अवश्य ही कोई गलतफहमी हुई है, वह ऐसा करने का सोच भी नहीं सकती।वो भला ऐसा क्यों करने लगी ?

 ये बात ,तुम अपनी बेटी से पूछो ! तुम लोग क्या सोच सकते हो ?क्या नहीं ,इस बात से हमें कोई मतलब नहीं है। अब तुम यहां से जाओ !

एक बार साहब ! उसे देख लेने की दीजिए , फिर मैं यहां से चली जाऊंगी। 

ज्यादा हमदर्दी दिखाने की जरूरत नहीं है , जिंदा रहा ,तो सच्चाई तक हम पहुंच ही जाएंगे और नहीं रहा तो तुम्हारी बेटी ' जेल 'जाएगी। पहले जाकर, उससे थाने में मिल लो, कहकर पुलिस वाले अपने कार्य में लग गए किंतु उन्होंने उसे श्याम से मिलने नहीं दिया , न ही उसे देखने दिया। उनकी नजर में हर व्यक्ति संदिग्ध था।

 वहां से बे आबरू होकर, वापस घर आई और मंगलू से थाने के विषय में पूछा , मंगलू बोला -चाची !आप वहां जाकर क्या करोगी ? थोड़ा इंतजार कर लो ! चाचा भी आते ही होंगे। 

ठीक है ,कहकर वह घर के अंदर चली गई किंतु उसका मन किसी भी कार्य में नहीं लग रहा था। वह वहां के हालात जानना चाहती थी कि मेरी बच्ची के साथ क्या हो रहा है ? जानना चाहती थी ,कि कॉलेज में क्या हुआ था ?

 प्यारेलाल जब थाने में पहुंचा , उसने इंस्पेक्टर से पूछा -साहब  क्या हुआ ?मेरी बेटी ने क्या किया है ?जो आप उसे, इस तरह पकड़ कर लाए हैं। 

हमें कोई शौक नहीं है किसी को पकड़ कर यहाँ लाने का , ना ही हमने यहां कोई धर्मशाला खोल रखी है , ना ही इस थाने में भीड़ करने का हमें शौक है। तू आ गया यहां ,तू ही अपनी बेटी से पूछ ले! इसने क्या कांड किया है ? तूने इसे पढ़ने भेजा था कि लड़कों को फसाने के लिए भेजा था। एक लड़के से , सगाई कर ली है और दूसरे से इश्क लड़ा रही है। 



इंस्पेक्टर की बात सुनकर प्यारेलाल सकते में आ गया , वह सोच भी नहीं सकता था कि उसकी बेटी ऐसा भी कुछ कर सकती है। वह बोला -इंस्पेक्टर साहब !यह सब झूठ है ,मेरी बेटी ने ऐसा कुछ भी नहीं किया है उसकी जिंदगी में श्याम  के आलावा कोई नहीं है। 

पास ही खड़े, एक हवलदार ने कहा -तो क्या इंस्पेक्टर साहब झूठ बोल रहे हैं , या अपने मन से कहानी बना रहे हैं। तू अपनी लड़की से खुद पूछ ले , यह लड़कों के हॉस्टल में क्या करने गई थी ? किससे मिलने गई थी ? एक लड़की होकर लड़कों के हॉस्टल के कमरे में मिली है ,यह कहते हुए हवलदार ने आंखें तरेरी। 

प्यारेलाल उनके पास से हटकर ,अपनी बेटी के करीब गया बरखा !यह इंस्पेक्टर साहब ,क्या कह रहे हैं, ऐसा तूने क्या कर दिया ? क्या वह गोली तूने चलाई थी ?  यह सब कहानी क्या है ? मुझे सब बता ! बरखा चुप हो गई , वह सोच रही थी, कि अपने पिता को विशाल के विषय में क्या बताए ? मां को तो उसने सब कुछ बताया हुआ है। बरखा को चुप देखकर प्यारेलाल को इंस्पेक्टर की बातों पर यकीन हो जाता है। वह उस पर चिल्लाते हुए बोलता है - कुछ कहती ,क्यों नहीं? वहां क्या करने गई थी ,तू 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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