Jail 2 [part 47]

कॉलेज में भीड़ , इकट्ठी हो जाती है। कुछ लड़के, बाहरी लड़कों से, हाथापाई  करने में लगे हैं। बरखा को इस स्थिति  की उम्मीद भी नहीं थी, कि कुछ ऐसा भी हो जाएगा , या श्याम के मन में ऐसा कुछ चल रहा है। कि वह अपने दोस्तों को, इस हॉस्टल में लेकर आ जाएगा। बात बहुत बढ़ चुकी थी , दोनों के बीच बहुत विवाद हुआ और अंत में विशाल से गोली चल ही गई , जो श्याम को लगी। कॉलेज के अन्य लड़के भी आ गए थे। श्याम को गोली लगने के पश्चात, विशाल  भाग खड़ा हुआ किंतु इतनी भीड़ में और इतने लड़कों में, बरखा का निकलना मुश्किल हो रहा था बल्कि उसका साहस ही नहीं था कि वह उसे कमरे से बाहर जा सके। उसे नहीं पता था, परिस्थितियाँ  इतनी बिगड़ जाएंगी। भीड़ में से न जाने किसने पुलिस को भी फोन कर दिया था। कॉलेज के स्टाफ के लोग भी, लड़कों की भीड़ को कम करने के लिए क्रियान्वित हो गए थे। उनका यही प्रयास था, कि  भीड़ जितनी कम हो ,उतना ही बेहतर है , तभी स्थिति को संभाला  जा सकता है। 


इतनी भीड़ में किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, जिसको जितना भी समझ में आ रहा था उतना ही दूसरे के कान में पहुंचा देता था। अब तक पुलिस भी आ गई थी, लड़के थोड़े शांत थे। श्याम  के दोस्तों को लगता था ,कि हम लोग सही हैं, हमें किस बात का डर ? जब हमने कोई गलती की ही नहीं वरन हमारे दोस्त को ही गोली लगी है। इतने सारे बड़े-बड़े लड़कों की भीड़ देखकर, एक बार को तो पुलिस के आदमी भी, घबरा ही गए किंतु अपने ओहदे  का ख्याल रखते हुए , वह उसे कमरे की तरफ बढ़े, जिस कमरे में श्याम को गोली लगी थी। लड़कों ने भी उन्हें रास्ता दिया और इस प्रतीक्षा में खड़े रहे ,देखते हैं ,पुलिस क्या करती है ? तब तक '' आपातकालीन वाहन '' भी आ गया था। शीघ्रता से श्याम  को ,उस वाहन  में डाला गया। श्याम की सांसें  अभी चल रही थीं। इसका एक दोस्त भी उसके साथ गया और बाकी के दोस्तों को समझाकर गया। 

 इंस्पेक्टर कपिल ने,उस कमरे में आकर पूछा-इस कमरे में कौन रहता है ?

जी, मैं....... प्रवीण ने आगे बढ़कर बताया। 

तुम कौन हो ?

जी मैं, इस कॉलेज का एक विद्यार्थी हूं, मेरा नाम प्रवीण है और मैं इस कमरे में रहता हूं। 

यह जो घटना घटी , उस समय तुम कहां थे ?

जी, मैं यहीं था। 

श्याम के दोस्त भी वहीं  खड़े थे , और उन्हें लगता था कि वह सही हैं , उन्हें सब कुछ पुलिस को सच-सच बताना चाहिए इसीलिए उनमें से एक बोला -सर ! श्याम हमारा दोस्त है , इनमें से ही किसी ने उसको गोली मारी है , इनको सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए। 

तुम कौन हो ? जी मैं श्याम का दोस्त, जिसके गोली लगी है , वह अपनी अकड़ में बोला। 

हमने तुमसे प्रश्न किया , या तुमसे कुछ पूछा , जब तुमसे बोला जाए या पूछा जाए तब बोलना, बाहर जाकर खड़े हो जाओ! इंस्पेक्टर कपिल ने उसको डांटते  हुए कहा।

तब इंस्पेक्टर ,प्रवीण की तरफ देखते हुए बोला -हां ,तो मैं तुमसे क्या पूछ रहा था ? जिस समय यह घटना घटी उस समय तुम यही थे ,यही बताया ना तुमने। 

जी, उसने छोटा सा उत्तर दिया। 

तब तुम ,क्या मुझे विस्तार से बताओगे ? हकीकत में क्या हुआ था ? इंस्पेक्टर की पारखी  नजरें , उस कमरे का मुआयना कर रही थीं , और उसकी नजर बरखा पर जाकर टिक गई , वह सोचने लगा लड़कों के हॉस्टल में ,यह लड़की क्या कर रही है ?और वह भी इसके कमरे में....... हो ना हो ,यह  लफड़ा इसी के कारण हुआ होगा, तभी यहां पर दुपट्टा लपेटे अपने को छुपाए हुए हैं। ऐ..... तुम इधर आओ ! तुम इस कमरे में क्या कर रही हो ? कौन हो तुम ! 

इंस्पेक्टर के इस तरह डांटकर ,उसे बुलाते हुए , बरखा का हृदय काँप  गया , उसने सपने में भी नहीं सोचा था, उसके प्यार का अंजाम इस तरह होगा। वह घबराते हुए , उस कमरे के कोने से निकलकर बाहर आई थूक सटकते हुए बोली - जी मैं ''बरखा ''

तुम इस समय लड़कों के हॉस्टल के इस कमरे में क्या कर रही हो ? सीधे-सीधे इंस्पेक्टर ने उससे प्रश्न किया। 

जी ,जी..... मैं अपने दोस्त से मिलने आई थी ,अटकते  हुए बरखा बोली। 

प्रवीण की तरफ इशारा करते हुए इंस्पेक्टर ने पूछा -क्या यह तुम्हारा दोस्त है ? उसने  मुंह पर जो कपड़ा लपेटा हुआ था ,उससे इंस्पेक्टर चिढ़ गया और बोला -पहले इस कपड़े को ,अपने मुंह पर से हटाओ ! बरखा ने कपड़ा हटा दिया और इंस्पेक्टर के सामने सर झुका कर खड़ी हो गई, इस समय उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ी हुई थीं। इंस्पेक्टर सोच रहा था, हो सकता है ,इसी ने उस लड़के पर गोली चलाई हो। उसके ऊपर से नीचे तक ,उस लड़की को देखा और सोचा - हो सकता है, इसके लिए ही इन दो लड़कों में , झगड़ा हुआ हो और गोली चल गई। बाहर भी बहुत सारे लड़के खड़े हुए थे , और प्रतीक्षा में थे कि पुलिस किसे बाहर लेकर आती है और कुछ लड़के जा चुके थे। उनके  स्टाफ द्वारा भीड़ हटाया गया था ताकि कॉलेज में शांति बनी रहे।

अब बताओ !तुम यहां कैसे हो और क्यों आई हो ?

बरखा सहम  गई और बोली -मैं यहां किसी से मिलने आई थी। 

किससे मिलने आई थी, प्रवीण की तरफ इशारा करते हुए इससे या जिस पर गोली चली है। सबसे पहले यह बताओ ? कॉलेज में पिस्टल कहां से आई और किसके पास थी ? और अब वह पिस्टल कहां है ? उस  इंस्पेक्टर ,के प्रश्न को सुनकर बरखा की आंखें नम हो गईं , वह समझ नहीं पा रही थी, कि इंस्पेक्टर को क्या जवाब दे ? क्या तुम्हें मालूम नहीं है ,कि यह लड़कों का हॉस्टल है ? अपने यार से मिलना ही था ,तो और कहीं मिल लेतीं । बरखा ने  इंस्पेक्टर की तरफ देखा, उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी। साफ-साफ बात बताओ ,यहाँ क्या हुआ था ?

बरखा की आंखों से अश्रु बहने लगे , उसके देखते ही देखते ,इस स्थान पर इतना बड़ा हादसा हो गया, और जब घर वालों को पता चलेगा तो ,वह क्या जवाब देगी ? कैसे सबका सामना करेगी ? श्याम के घर वाले भी उससे पूछेंगे तो वह क्या कहेगी ?इस समय उसके मन में यही बातें घूम रही थीं। उसे रोते देख, इंस्पेक्टर ने प्रवीण से पूछा -तुम बताओ ! यहाँ  क्या हुआ था ? क्या यह तुमसे मिलने आई थी या अपने किसी और यार से, प्रवीण समझ नहीं पा रहा था कि वह इंस्पेक्टर को क्या बताएं ?  यदि इन लोगों से पीछा छुड़ाना है तो सच्चाई तो बयां करनी ही होगी ,यही सोचकर उसने कहा -जिस लड़के पर गोली चली है, वह इसका मंगेतर था। 

क्या वह ,इसी कॉलेज में पढ़ता है ?

जी नहीं , प्रवीण ने  संक्षेप में उत्तर दिया। 

तब क्या वह तुमसे मिलने आया था ,इंस्पेक्टर ने बरखा की तरफ देखकर पूछा। क्या तुम इसी कॉलेज में पढ़ती हो ?

हां , में अपनी सहमति जतलाई।


 तुम्हें अपने मंगेतर से मिलना ही था ही था तो, बाहर भी तो मिल सकती थी , उसे यही क्यों बुलाया ?

जी मैंने नहीं बुलाया , वह अपने आप ही चला आया बरखा बोली।  

तब यह झगड़ा कैसे बढा ? प्रवीण और बरखा दोनों ही चुप खड़े हो गए। बाहर खिड़की पर कमरे के दरवाजे पर लड़के कान लगाकर, बातों को सुनने का प्रयास कर रहे थे। श्याम के दोस्त भी बाहर ही  खड़े थे , उन्हें अपनी सच्चाई पर पूर्ण विश्वास था , इसीलिए अपने दोस्त की खातिर ,वह लोग इंस्पेक्टर को सच्चाई बताने के लिए वहीं पर खड़े थे।

तभी इंस्पेक्टर उठ खड़ा हुआ और बोला -चलो ,मेरे साथ कहते हुए , कमरे से बाहर निकल आया , अब बरखाने फिर से अपने मुंह पर दुपट्टा लपेट लिया था और साथ में प्रवीण भी था। बाहर जो लड़के एकत्रित थे उनमें से एक लड़का बोला -सर! जिसने गोली चलाई है वह लड़का तो भाग गया। 

चलते-चलते इंस्पेक्टर ने पूछा -तुम कौन हो ?

जी मैं ,श्याम  का दोस्त !

तुम भी मेरे साथ चलो ! कह कर उसे भी अपने साथ ले लिया उसके अन्य दोस्त भी उसके साथ जाने लगे किंतु इंस्पेक्टर नहीं, मना कर दिया। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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