Chand mere angna aata tha

 चांद रोज़ ,मेरे अंगना आता था। 

 मुझे देख,हौले से मुस्कुराता था।

 तारों की टोली ,संग ले आता था।

 मेरे अंगना में ,झिलमिलाता था। 

चाँद रोज ,मेरे अंगना आता था। 

जहां भी मैं जाती ,पीछे आता था। 

मैं छुप जाती वो ,आँख -मिचौली! 

खिड़की में देख ,मुस्कुराता था। 

चाँद  रोज ,मेरे अंगना आता था।

अपने तारों से मुझे मिलवाता था। 


शहर हो या गांव !मिलनेआ जाता था। 

अब न जाने चाँद !कहाँ खो गया ? 

अंगना मेरा सूना हो गया ,

 घर मेरा , कई मंजिला जो हो गया।

आज भी दरीचों में,मुझे ढूंढता होगा।

घर में आना ,उसका दूभर हो गया। 

चाँद मेरा न जाने , कहाँ खो गया ? 

अब उसका आना मुश्किल हो गया।   

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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