चांद रोज़ ,मेरे अंगना आता था।
मुझे देख,हौले से मुस्कुराता था।
तारों की टोली ,संग ले आता था।
मेरे अंगना में ,झिलमिलाता था।
चाँद रोज ,मेरे अंगना आता था।
जहां भी मैं जाती ,पीछे आता था।
मैं छुप जाती वो ,आँख -मिचौली!
खिड़की में देख ,मुस्कुराता था।
चाँद रोज ,मेरे अंगना आता था।
अपने तारों से मुझे मिलवाता था।
शहर हो या गांव !मिलनेआ जाता था।
अब न जाने चाँद !कहाँ खो गया ?
अंगना मेरा सूना हो गया ,
घर मेरा , कई मंजिला जो हो गया।
आज भी दरीचों में,मुझे ढूंढता होगा।
घर में आना ,उसका दूभर हो गया।
चाँद मेरा न जाने , कहाँ खो गया ?
अब उसका आना मुश्किल हो गया।
