बरखा ,अमृता जी को, अपनी जेल की कहानी सुना रही है, किस तरह उसने जेल में दिन काटे , यह चर्चा चलते-चलते उसके रिश्ते पर आ पहुंची , वह अमृता जी से पूछती है -'कि मैं कहां गलत थी ?' क्या ऊंचे सपने देखना, अच्छा सोचना , आगे बढ़ना, क्या यह गलत था ?
यह सब गलत नहीं है, अमृता जी ने उसे जवाब दिया किंतु किसी को धोखा देना ,उसे झूठे सपने दिखाना भी तो गलत है। तुम एक शादी जैसे पवित्र रिश्ते में बंध रही थीं किंतु उस रिश्ते को झूठे से भी निभाना नहीं चाहती थीं। जिससे तुमने सगाई की ,वह भी तो गलत नहीं था। वह भी तो तुम्हारे साथ जीवन के सुंदर ख्वाब सजाना चाहता था ,इसमें उसकी ही गलती कहां है ?जब हमारा किसी से रिश्ता बन जाता है ,तब अधिकार की भावना तो स्वतः ही आ जाती है। जब श्याम का रिश्ता तुमसे बना, वह तुम्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में देखने लगा। आखिर तुम उसकी जीवन संगिनी बनने जा रही थीं। तुम्हारे विषय में जानना , तुमसे मिलना उसके अधिकार में आ जाता है। तुम्हारा रिश्ता कोई चोरी, छुपे नहीं हुआ था। तुम्हारे और उसके माता-पिता ,सबकी सहमति से हुआ था। तुम जो उसके साथ खेल खेलना चाह रही थीं , वह गलत था।
किसी की भावनाओं से खेलोगी , तब उसे आग से तुम भी, नहीं बच सकतीं , जो भी रिश्ता तुम्हारे पास था उसे सच्चाई से और ईमानदारी से तुम्हें निभाना था। यदि तुम्हें विशाल से ही रिश्ता निभाना था तो अपने माता-पिता से इनकार कर देतीं , किंतु तुम्हें उस पर भी विश्वास नहीं था। यह तुम्हारा सोचना था।
नहीं मैडम! ऐसा नहीं है , यदि मुझे श्याम को धोखा देना होता , तब मैं उसे भी घुमा सकती थी उसके साथ घूमती फिरती, और मौका पड़ने पर उससे इनकार कर देती।
नहीं ,इस बात में हम यह कह सकते हैं , तुम विशाल को खोना नहीं चाहती थीं , यदि वह तुम्हें श्याम के साथ घूमते-फिरते देख लेता ,तो बर्दाश्त नहीं करता इसलिए तुम्हें इस बात का भी डर था, उसको विश्वास में लेने के लिए ही तुमने उससे कहा- कि मैंने सगाई तो कर ली है किंतु उससे दूरी बनाए हुए हूं। अच्छा एक बात बताओ ! यदि तुम विशाल का दो-तीन वर्षों तक इंतजार करतीं , और किसी कारणवश तुम्हारा उससे विवाह न होता ,हो सकता है ,उसके परिवार वाले उसे, मजबूर कर देते कहीं और विवाह करने के लिए , यह तो तुम जानती ही हो, कि उसके घर वाले तुम्हें अपनी बहू के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे। तब तुम क्या करतीं ?
अमृता के प्रश्न को सुनकर , बरखा सोच में पड़ गई और बोली- मैं नहीं जानती ,उस समय मैं क्या करती ? मैं उसके सामने गिड़गिड़ाती उससे अपने प्यार की भीख मांगती। हो सकता है ,उसके धोखे के लिए मैं ,उसे कभी क्षमा ही नहीं करती। अपने दिमाग पर ज्यादा जोर न देते हुए, बोली-आप यह सब छोड़िए ! जो हुआ ही नहीं ,उसके विषय में क्या सोचना ?
हुआ तो है , तुमने देखा नहीं जब से तुम जेल में आई हो,वो तुमसे मिलने नहीं आया , या तो परिवार का दबाव है, या समाज का डर , अब इसे तुम क्या कहोगी ? वैसे तुम आगे की कहानी सुनाओ आगे क्या हुआ मेरे प्रश्नों का जवाब तुम्हें उसी में मिल जाएगा।
होना क्या था ? श्याम ने मेरे पीछे अपना जासूस छोड़ा हुआ था , वह मुझ पर नजर रखे हुए था मैं स्कूल जाती ,कॉलेज जाती वह देखता, मेरे पल- पल की खबर उसे देता ,वैसे मैं ,कॉलेज कभी पढ़ाई के लिए तो नहीं गई ,हमेशा विशाल से मिलने ही गई।
एक दिन श्याम ने मुझे बुलाया , मुझे तुमसे कुछ बात कहनी है और कुछ पूछना भी है
मैंने बेरुखी से जवाब दिया -क्या बात करनी है ? क्या पूछना है ?यहां आकर पूछ ले !
तब एक दिन वह मेरे स्कूल के करीब आया उसे देखते ही, मैं स्कूल के अंदर घुस गई , उस स्कूल के चपरासी से मैंने पहले ही कह दिया था कि अगर यह व्यक्ति स्कूल आता है तो उसे स्कूल के अंदर मत आने देना। उसे देखते ही चपरासी ने बुरी तरह से झिड़क दिया , मुझे लगता है ,इस अपमान से उसे बहुत क्रोध आया। एक दिन रास्ते में मेरा हाथ पकड़ लिया और कहने लगा - जब मैं तुमसे मिलना चाहता हूं ,तो तुम मिलती क्यों नहीं हो ?मुझे कुछ बातें भी करनी है।
मैंने उससे अपना हाथ छुड़ाया और कहा -अभी हमारा विवाह नहीं हुआ है।
तो क्या हुआ ?सगाई तो हो गई है ,विवाह भी हो जाएगा।
पूछो !क्या पूछना चाहते हो ?मैंने कड़क स्वर में कहा।
यहां नहीं, कहीं बैठकर बात करते हैं।
मुझे कहीं नहीं जाना, जो कुछ भी पूछना है, यहीं पूछ लो !
जब तुम ऐसा चाहती हो तो ऐसा ही सही, मैं यह पूछना चाहता हूं ,क्या यह विवाह तुम्हारी इच्छा से हो रहा है ?
हां, मुझसे कौन जबरदस्ती करेगा ?
ठीक है ,कहकर वह चला गया।
इससे आगे उसने कुछ नहीं पूछा ,आश्चर्य से अमृता जी ने पूछा।
नहीं,
तब आगे क्या हुआ ?
एक दिन मैं कॉलेज जा रही थी, कॉलेज क्या ?विशाल से मिलने ही जा रही थी। मैंने आसपास देखा और मैं उसी दरवाजे से, कॉलेज के हॉस्टल में चली गई। विशाल अब मुझसे नाराज नहीं था ,क्योंकि उसे मैंने पहले ही अपने रिश्ते के विषय में बता दिया था और अपना उद्देश्य भी बता दिया था। उस दिन वह खुश भी था , मुझे देखते ही ,मुझे अपनी बाहों में भर लिया। उसका दोस्त कमरे से जा चुका था, मैंने उसकी खुशी का कारण पूछा ,बोला - मेरी नौकरी लग गई है , मैं भी बहुत खुश थी, कि हमारी मंजिल करीब ही है। मुझे अपनी बाहों में लपेटकर, वह वहीं बिस्तर पर गिर गया। तभी भड़ाक ! से उस कमरे का दरवाजा खुला और हम एक -दूसरे से अलग हुए ,हमने देखा - तीन-चार लड़के, उस दरवाजे पर खड़े थे ,उन्हें देखकर , हम दोनों घबरा गए क्योंकि हम दोनों एक दूसरे की बाहों में थे। मैं उन लड़कों को नहीं जानती थी इसीलिए मैंने विशाल की तरफ देखा।
कौन हो ? तुम लोग ! इस तरह कमरे में घुसने का क्या मतलब है ?
तभी एक लड़का बोला -यह हॉस्टल है कोई अय्याशी का अड्डा नहीं , तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ?इस हॉस्टल में ऐसा गंदा काम करने की।
तुमसे मतलब ! हम कौन सा गंदा काम कर रहे हैं ,तूने ऐसा क्या देख लिया ?
तू इस लड़की की बाहों में झूल रहा है , तुम दोनों बिस्तर पर पड़े थे ,क्या है ?यह। क्या यह धर्मात्मा का काम कर रहा है तू !
अरे ,तू कौन होता है ?मुझसे ऐसे पूछने वाला, तेरी क्या बहन लगती है ?
तभी उन लड़कों के पीछे से, श्याम आया और बोला -इसकी बहन लगती है और मेरी मंगेतर लगती है किंतु तेरी क्या लगती है ? उसकी आंखें क्रोध से जल रही थीं। उसको इसमें अपमान भी महसूस हो रहा था क्योंकि उसके दोस्तों ने ,उसकी मंगेतर को, किसी गैर की बाहों में जो देख लिया था।
श्याम को देखते ही, मैं बुरी तरह घबरा गई और विशाल के पीछे छुप गई।
तू , इसके लिए मुझसे , ऐसा व्यवहार कर रही थी, मैं तुझसे पूछता रहा , यह विवाह तेरी मर्जी से हो रहा है किंतु तेरा वही जवाब था, हां, मेरी मर्जी से हो रहा है। मेरे साथ खेल खेल रही थी ,वह लगभग चिंघाड़ते हुए, मेरे नजदीक आने का प्रयत्न करने लगा किंतु इस बीच विशाल ने उसे पकड़ लिया। सालआआआआ ..... तेरी हिम्मत कैसे हुई ? मेरा इस तरह हाथ पकड़ने की ,धीरे-धीरे वहां भीड़ इकट्ठी होने लगी।

