बरखा ,उदास होकर अमृता जी से बताती है , आपको मैं अपनी स्थिति के बारे में क्या बताऊं ? क्या कुछ मैंने यहां नहीं झेला है। गरीब घर की लड़की थी , मैंने अपना गुनाह कबूल कर लिया और यहां आ गई बस मेरे लिए इतना ही काफी था। हमारे लिए गरीबी भी एक अभिशाप है ,जेल हो या बाहर, गरीब की लड़की पर सबकी नजर रहती है।
ऐसा कुछ भी नहीं है, लड़की तो लड़की होती है ,गरीब हो या अमीर की , जिनकी नजर में चोर होता है ,पाप होता है ,उनके लिए सिर्फ वह एक लड़की होती है , अमीर या गरीब कुछ नहीं होता ,अमृता जी ने उसकी विचारधारा का विरोध किया।
जब मैं यहां पर आई थी, मुझसे बहुत सारे काम करवाये और एक रात्रि , यह जो जेल की ये जो गुंडी बनती हैं , नाजिया, सुल्ताना !इनके साथ पहले एक और भी थी ,उसका नाम था ,''बिट्टो ''अब वो नहीं है।
क्यों ?वो कहाँ गयी ?अमृता जी ने प्रश्न किया। वो कैसी औरत थी ?
वो बहुत ही धाकड़ औरत थी ,शरीर से बहुत तगड़ी थी ,मेरे जैसी तो उसमें से तीन बन जाएँ , वह रात्रि में मेरे करीब आई और बोली -उठ ,चल ! तुझे कहीं जाना है।
इतनी रात्रि को मुझे कहां जाना है, मैंने उससे पूछा ?
ज्यादा मत बोल ! चुपचाप चलती रह, यहां ज्यादा किसी को बोलने की इजाजत नहीं है, जैसा मैं कहती हूं वैसा ही करती जा ! कहकर मुझे एक कोठरी में ले गई और वहां पहले से कई, बदमाश जैसे, आदमी थे। मुझे आगे करके ,उनसे बोली -लो ! इसे ले आई , सुबह 4:00 बजे लेने आ जाऊंगी, जितने मजे करने हैं कर लो !यह कह कर मुझे वहां छोड़कर चली गई और जाते -जाते मुझसे बोली-जैसा यह कहें , वैसा करती जाना , समझी ! ज्यादा चूँ चपड़ की तो छोडूँगी नहीं।
मैं समझ गई थी, कि मेरे साथ क्या होने वाला है ? विशाल तो अकेला था किंतु यहाँ चार लोग थे। उन्हें देखकर मैंने कहा- मैं यह सब नहीं करूंगी।
उसने जाते हुए मेरी बात सुन ली और वापस लौट कर आई , और सीधे मेरे मुंह पर तमाचा लगाया , कैसे नहीं करेगी? तेरा यहां रहना दूभर कर देंगे। बड़ी सती सावित्री बन रही है। कहते हुए, उसने मुझे उस कोठरी के अंदर धकेला। मैं रोने लगी , मेरे रोने का किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।
न जाने उसे [बिट्टो ]को मुझ पर तरस आया या उसने क्या सोचा ? कुछ देर बाद एक लड़की को ले आई और बोली-दो इसके साथ आ जाओ ! उस लड़की ने कोई ना नुकूर नहीं की। उसे तो जैसे इस कार्य की आदत थी। मुझे लगता है ,वह बहुत अनुभव भी थी , शायद मेरी तरह शुरुआत में उसने भी यह झेला हो। उसने अपने को इस वातावरण में ढाल लिया था। मुझसे बोली -रोने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता , यदि यहां रहना है, तो यह सब तो झेलना ही होगा , इससे तो बेहतर है, इसकी बात को खुशी-खुशी मान लो ! और मजे लो ! यहां ना ही हमारी कोई सुनने वाला है , न ही कोई बचाने वाला।
उसकी बात सुनकर मुझे भी लगा , मैंने विशाल के लिए, क्या-क्या नहीं किया ? और आज मैं ''जेल ''में सजा काट रही हूं और वह आज तक भी मुझसे मिलने नहीं आया।
यह क्या कह रही हो ?तुम ! क्या वह आज तक भी, तुमसे मिलने नहीं आया ? अमृता जी ने आश्चर्य से पूछा।
नहीं, शायद इसीलिए मिलने ना आया हो ,एक कातिल से मिलने में उनके परिवार की इज्जत चली जाती , एक कातिल से, वह कैसे मिलता ? किस रिश्ते से मिलने आता ? अनेकों बातें हो सकती हैं , हो सकता है , उसके परिवार वालों ने ही , मुझसे मिलने के लिए मना कर दिया हो ,उनके लिए तो मैं तब भी कुछ नहीं थी , एक गरीब घर की लड़की ,उनके घर की नौकर थी बस यही तो मेरी पहचान थी। किंतु मैं सच्चाई को झूठला कर , सच्चाई से भाग रही थी और आसमान को छूने के सपने देख रही थी जिसका परिणाम आज आपके सामने है।
क्यों ,ऐसा क्या हुआ था ? तुम तो दोनों विवाह करने के लिए तैयार थे , तुम्हारी तो सुदृढ़ योजना थी।
जब किस्मत खराब होती है,''सोना भी मिटटी बन जाता है। '' किस्मत में जो लिखा होता है ,उससे विपरीत जब हम चलते हैं , तब सभी योजनाएं धरी की धरी रह जाती हैं। मैं सपने तो देख सकती थी, पूरा करने का प्रयत्न भी कर सकती थी, किंतु जो किस्मत में लिखवाकर लाई हूं, उसको तो नहीं मिटा सकती थी , लोग कहते हैं-' 'भाग्य 'अपनी मेहनत से बनता है,'' अब आप ही बताइए! मेरी मेहनत में कहां कमी रह गई थी ? पढ़ भी रही थी और कमाने के लिए मेहनत भी कर रही थी किंतु मेरी किस्मत में तो ''जेल ''जाना लिखा था ,तो मेरे साथ अच्छा कैसे हो सकता था ?
अच्छा यह तो बताओ ! हुआ क्या था ? श्याम से तुम्हारी सगाई हो गई थी , यह बात विशाल को भी मालूम थी , और किसी दोस्त के कहने पर, श्याम ने तुम्हारी जासूसी भी करवाई थी , जिस कारण उसे भी पता चल गया कि तुम्हारी जिंदगी में कोई अन्य लड़का है। योजना तो तुम्हारी अच्छी थी किंतु किसी तीसरे के आने पर,ही सब गड़बड़ हो गयी।
हां मैडम !सोचा तो मैंने अच्छे के लिए ही था , दो नावों में पैर रखने चली थी , इस कारण फिसल गई , माता-पिता की खुशी के लिए, सोचा -कुछ दिन के लिए श्याम से रिश्ता बना लेती हूं , उसके पश्चात जब सब ठीक हो जाएगा तो मैं उसे रिश्ते से इनकार कर दूंगी। किंतु श्याम, सगाई होते ही , मुझ पर अपना अधिकार जतलाने लगा। यदि वह ऐसा ना करता, तो शायद ,आज मैं जेल में नहीं विशाल के घर में उसकी पत्नी बनकर रह रही होती।
यह बात तो स्वाभाविक है , जब किसी से तुम रिश्ता बना रहे हो जिसमें की शादी जैसा रिश्ता है, दो अजनबी लोग मिलते हैं , एक दूसरे को जानने और पहचानने का प्रयत्न करते हैं , एक दूसरे की पसंद ना पसंद, उसकी खुशी ,उसके दुख बांट लेना चाहते हैं , उसका तुम्हारे करीब आना स्वाभाविक था। तुम्हें लेकर अपनी जिंदगी के सपने जो सजाने चला था वह अपनी जगह सही था।
तब गलत कौन था ? मैडम ! क्या मैं गलत थी ? कुछ समय की मोहलत ही तो मांग रही थी उससे !
उसकी तरफ देखते हुए अमृता जी बोली -मुझसे बेहतर तो अपने आप को तुम समझती हो।

