इंस्पेक्टर तनु ,उस लड़की की लाश देखकर, भावुक हो जाती है। वह कैदियों को समझाना चाहती है ,कि जो भी ये कार्य कर रहा है। वो सही नहीं है ,''जेल'' में अपनी सजा पाने के लिए आते हैं किन्तु इस सजा को वो ,दिल से महसूस नहीं करते ,उस सजा से सीख़ लेना नहीं चाहते। सुधरना नहीं चाहते, अपनी ज़िंदगी को संवारना नहीं चाहते , क्या उनकी आत्मा उन्हें नहीं कचोटती ? कि वह इस तरह का गुनाह क्यों कर रहे हैं ? इंस्पेक्टर तनु भाषण देकर चली जाती है।
तब एक बुजुर्ग कैदी कहते हैं -इन्हें तो कोई नेता होना चाहिए था ,भाषण अच्छा देती हैं। क्या इन्होंने उन कैदियों की जिंदगी देखी है ? क्या इन्होंने उनके दर्द को महसूस किया है ? किस तरह वह यहाँ , जिंदगी बसर करते हैं। वह किस तरीके से जीते हैं। संपूर्ण जवानी तो उनकी इसी 'जेल' में कट जानी है। बाहर निकलकर भी क्या हो जाएगा ? न ही लोग अपनाएंगे, न ही पहचानेंगे। यहां भी लोग कीड़े -मकोड़ों की तरह ही जीते हैं। जब इंसान अपराध की , एक सीढ़ी चढ़ जाता है , तब उसे आगे बढ़ना ही पड़ता है वरना मसल दिया जाता है। कई बार तो जो गुनाह नहीं भी किए होते ,उन गुनाहों की सजा पाता है। उनकी अनुभवी आंखें बहुत कुछ कह रही थीं।
क्या करें ?यह लोग भी, इनकी ड्यूटी बनती है, इन्होंने समाज को सुधारने का ठेका जो लिया है , हम जैसे कैदियों को सुधारने का एक प्रयास है। इसका उन्हें पैसा जो मिलता है, अपना फर्ज निभा रहे हैं। अभी यहां की हकीकत से रूबरू नहीं हुए। बरखा ने ,उन बुजुर्ग कैदी की सभी बातें सुन ली थीं। अब वह अमृता जी के पास आकर खड़ी हो गई थी , जो लाइन में सबसे पीछे खड़ी थीं। उसने अमृता जी से पूछा-क्या आपने भी ? मैडम, का भाषण सुना ?
हां सुना तो है, सही तो कह रही हैं, एक बार इस दलदल में फंस गए तो निकलना नहीं होता , यदि इंसान को इस दलदल से निकलना है तो अपने हिम्मत और साहस से स्वयं ही निकलना होगा। किसी के कहने सुनने से आदमी ,न ही बिगड़ा है, न ही सुधरता है, यह उसकी अपनी प्रकृति है , जैसी उसकी प्रकृति होगी उसका झुकाव भी उधर ही होगा। अपराधिक प्रवृत्ति का आदमी अपराधिक चीजें ही देखेगा या उनमें दिलचस्पी दिखलायेगा। उसी में से रास्ता निकालता है। यदि उसे सुधरना होगा अपनी जिंदगी को आगे संवारना होगा , यदि उससे कोई गलती हो भी गई , तो वही अपनी गलती पर विराम कर देगा और जिंदगी को सही राह पर ले आएगा। अमृता जी ने बरखा से कहा।
आपका कथन भी सही है ,एक तरह से देखा जाए तो , अभी मैंने एक बुजुर्ग की बात सुनी ,जो शायद बहुत पुराना कैदी है ,उसके कथनानुसार, जब किसी कैदी को ,ताउम्र कैद की सजा मिली है , और उसकी उम्र भी कम है ,यानि बीस -पच्चीस वर्ष ,तब जो उम्र उसकी ,अपनी जिंदगी को संवारने में व्यतीत होनी थी वह उम्र तो यहीं इस'' जेल'' में कैदी के रूप में बीत जाती है। बाहर जाकर न ही कोई ,किसी से रिश्ता रखना चाहता है न ही कोई पहचानता है। तब उसे ऐसी स्थिति में ही जीना है तो जीने के लिए राह भी तो उसे निकालनी होगी , वरना हालात इस लड़की जैसी हो जाएगी।
मैं कुछ समझी नहीं अमृता जी ने कहा।
यदि आदमी सीधा और सच्चा है, पहली बात तो वह जेल में ही नहीं आएगा , परिस्थितिवश यदि वह जेल में आ भी गया तब उसे जेल में अपना, अस्तित्व कायम रखने के लिए , अपना रौब दिखाना होगा , या तो वह स्वयं कुचला जाए या कुचल दे। तभी वह यहां रह सकता है। जेल में रहकर भी तो इंसान की अपनी आवश्यकताएं ही होती हैं , उन्हें वह कैसे पूर्ण करेगा ? प्यार से तो कोई मानेगा नहीं, जबरदस्ती ही करनी पड़ेगी । वह लड़की नई थी, ऐसे वातावरण में ढ़ली नहीं थी, आते ही उसके साथ ऐसा सब कुछ हो गया उसके मान-सम्मान को कुचला गया। जो वह सहन नहीं कर पाई , और मौत को गले लगा लिया।
तुम एक लड़की होकर ,यह सब कैसे कह सकती हो ?
मैं भी इसी' जेल 'में रहती हूं , और लोगों को देख समझ रही हूं, परख रही हूं। आप 'जेल 'की बात कर रही हैं , बाहर समाज में भी तो यही होता है। अपनी आवश्यकताओं के लिए आदमी कुछ ना कुछ उपाय तो निकाल ही लेता है। बाहर समाज में उसके लिए खुला आसमान है, जहां से आवश्यकता पूर्ण नहीं होती तो दूसरी जगह चला जाता है , किंतु यह' जेल 'है , सीमित स्थान ,सीमित लोग , ऐसे में आदमी क्या करेगा ? आदमी हो या पुरुष दोनों की ही आवश्यकताएं होती हैं। कुछ स्त्रियां मान जाती हैं , सहर्ष तैयार हो जाती हैं। जबरदस्ती वहां होती है , जहां कोई मानने को तैयार नहीं।
बाहर विशाल का और मेरा रिश्ता भी तो ,इसी तरह से बना था, उसमें मेरी स्वयं की रजामंदी थी, मेरी महत्वाकांक्षाओं के सामने , यह सब मुझे गौण लग रहा था। मेरे लिए ,मेरी महत्वाकांक्षाएं, मेरी इच्छाएं ज्यादा महत्वपूर्ण थीं किंतु लोगों से ,यह भी नहीं देखा गया। सब जगह यही चलता है, इस हाथ दे उस हाथ ले। आपने सुना भी होगा ,प्यार के बदले प्यार, तब इसमें मैं कहां गलत थी ? माना कि, मेरी इच्छाएं महत्वाकांक्षाएं बड़ी थीं , बदले में, विशाल की इच्छाएं भी तो ,पूर्ण हो रही थीं। आजकल कोई भी,'' दूध का धुला '' नहीं है। समाज हो या जेल ,इस तरह आदान-प्रदान तो चलता ही रहता है , इसी से जिंदगी चलती है। आप कहीं भी जाकर देख लीजिए , मुफ्त में कोई कार्य नहीं होता, उसके बदले , धन या तन या फिर भावनाओं का व्यापार चलता ही रहता है। यह जीवन भी तो एक व्यापार ही है और हम सब व्यापारी ! कोई धन का व्यापार करता है ,कोई मन का व्यापार करता है, कोई किसी की भावनाओं से खेलता है , तो बदले में उसे भावनाएं नहीं बदला ही मिलता है। सभी व्यापारी अपने-अपने तरीके से अपने व्यापार में सक्षम होते हैं।
तुम तो बहुत बड़ी-बड़ी बातें करने लगी हो।
उम्र मेरी भले ही छोटी हो, किंतु इतनी सी ही उम्र में मैंने , बहुत कुछ सीखा है , कुछ अपने अनुभव से सीखा ,कुछ लोगों ने सिखला दिया। अभी मैं चलती हूं , समय मिलेगा तो फिर आऊंगी , कह कर बरखा चली गई।
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