ना बहकते ,जज्बात होंगे।
ना अश्कों का तूफान होगा।
न विचारों का जलजला होगा।
न मन में कोई, मलाल होगा।
ना किसी की फिकर होगी।
उस एकांत में, अपने को ढूंढती मैं !
जिस दिन अपने को पा जाऊंगी।
वह 'दिन ही 'मेरा अपना होगा।
न बाहर कोई ,कोलाहल होगा।
न दुखों का, सिलसिला होगा।
शांत ,क्षितिज सी ,हो जाऊँगी।
मन से ,''आईना ''हो जाउंगी।
प्रेम की फुलवारी सी महक जाऊंगी
वह ''दिन ही ' मेरा अपना होगा।
रेत में, सुकून का अहसास होगा।
संपूर्ण खुला ,विस्तृत आकाश होगा।
सपनों सा वो दिन,मेरा अपना होगा।
सबसे बेपरवाह सुकूँ का जीवन होगा।
सागर तीरे,सूर्योदय सी चमक जाऊंगी।
जब उससे ''लौ ''लगाऊँगी।
वह ''दिन ही ''मेरा अपना होगा।
बस ,एक दिन -
इतना जीवन गुजर गया ,
दिन ,महीने ,साल बन गए।
एक दिन भी, इसी तरह जाना है।
जिंदगी का कोई' एक दिन 'ऐसा आए ,
जो जिंदगी को मेरी ,सफल कर जाए।
अब तक न कुछ हुआ ,
वह ''एक दिन ''क्या कर जाएगा ?
जैसे आया था ,वैसा ही चला जाएगा।
नायक नहीं बनना चाहता ,''एक दिन ''का,
दिलों पर राज करना है मुझे ,हर दिन का।