Wo din mera apna hoga !

 ना बहकते ,जज्बात होंगे। 

ना अश्कों का तूफान होगा। 

न विचारों का जलजला होगा।

न मन में कोई, मलाल  होगा। 

ना किसी की फिकर होगी।

उस एकांत में, अपने को ढूंढती मैं !

जिस दिन अपने को पा जाऊंगी। 

वह 'दिन ही 'मेरा अपना होगा। 



न बाहर कोई ,कोलाहल होगा।

न दुखों का, सिलसिला होगा। 

शांत ,क्षितिज सी ,हो जाऊँगी।

मन से ,''आईना ''हो जाउंगी। 

प्रेम की फुलवारी सी महक जाऊंगी

वह ''दिन ही ' मेरा अपना होगा।    

रेत में, सुकून का अहसास होगा।  

संपूर्ण खुला ,विस्तृत आकाश होगा। 

सपनों सा वो दिन,मेरा अपना होगा। 

सबसे बेपरवाह सुकूँ का जीवन होगा। 

सागर तीरे,सूर्योदय सी चमक जाऊंगी। 

जब उससे ''लौ ''लगाऊँगी।  

वह ''दिन ही ''मेरा अपना होगा। 


बस ,एक दिन -

इतना जीवन गुजर गया ,

 दिन ,महीने ,साल बन  गए। 

एक  दिन भी, इसी तरह जाना है। 

जिंदगी का कोई' एक दिन 'ऐसा आए ,

जो जिंदगी को मेरी ,सफल कर जाए। 

अब तक न कुछ हुआ ,

वह ''एक दिन ''क्या कर जाएगा ?

जैसे आया था ,वैसा ही चला जाएगा। 

नायक नहीं बनना चाहता ,''एक दिन ''का,

दिलों पर राज करना है मुझे ,हर दिन का। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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