Jail 2[ part 23]

  बड़े घर का दिखने वाला ,एक पढ़ा -लिखा ,सभ्य व्यक्ति ,उसकी उम्र लगभग साठ या पैंसठ होगी। वह   मलिन बस्तियों की तरफ बढ़ा जा रहा था। उसने, वहां की गंदगी और बदबू को देखकर ,मुंह पर रुमाल रख लिया है , उन गंदी ,बदबूदार गलियों को पार करता हुआ ,वह आगे बढ़ रहा है। सड़क पर जगह-जगह गड्ढे हैं और उनमें पानी भरा हुआ है , कहीं -कहीं गंदगी भी पड़ी है , उन से बचते हुए ,उसने आगे बढ़कर , एक व्यक्ति से पूछा -बरखा का घर कहां है ?

उस व्यक्ति ने उनकी तरफ देखा, दो -तीन घर  छोड़कर ,उसने एक झोपड़ी की तरफ इशारा किया , और उस व्यक्ति ने उससे पूछा -उससे क्या काम है ? आप बरखा को कैसे जानते हैं ?और आप कौन हैं ?

मुझे उससे कोई काम नहीं है ,मुझे उसके पिता से बात करनी है।  किंतु उन्होंने अपना परिचय नहीं दिया। वह व्यक्ति संदिग्ध नजरों से उनकी तरफ देख रहा था , क्योंकि इन झोपड़पट्टिओं में ,इस तरह के अमीर लोग , अक्सर आते रहते  हैं। इन बस्तियों की लड़कियों का यही भाग्य है , इस गरीबी में, कोई पैसे वाला व्यक्ति आता है और अपने स्वार्थ  के लिए ,खरीदकर ले जाता है। किसी -किसी का भाग्य अच्छा भी निकलता है, जो किसी सभ्य परिवार के घर की बहू बन जाती है। यह लोग अपनी बेटियों का विवाह नहीं करते, थोड़ा पढ़ा लिखा भी देते हैं , ताकि इन गंदी बस्तियों से बाहर निकल कर रहने की , उनमें अक्ल आ जाए  इसीलिए उस व्यक्ति ने धनंजय को भी ,इसी तरह का व्यक्ति समझा , उन्हें देर तक जाते हुए देखता रहा। 


तभी वह  व्यक्ति ,उन्हें  रोककर बोला -क्या आपको उससे  विवाह करना है ? आप किसके लिए ,बरखा को पूछ रहे हैं ? मेरे पास ,बरखा से भी अच्छा माल है।

 उसके प्रश्नों से, उसके विचार समझकर ,'धनंजय जी, झुंझला गए और बोले -ऐसा कुछ भी नहीं है, तुम अपने काम से काम रखो ! कहकर आगे बढ़ गए। व्यक्ति द्वारा बताई गई झोपड़ी के सामने खड़े होकर, बाहर से ही पुकारते हैं -अरे कोई है ! कोई है क्या ?

झोपड़ी के अंदर से, छह -सात , साल की एक बच्ची निकल कर  बाहर आई , उन्होंने उससे ही पूछ लिया -तुम्हारे पापा अंदर हैं। 

पापा अभी आ रहे हैं ,उस लड़की ने जवाब दिया। 

जब तक वह आता है, धनंजय जी ने उस  बच्ची से पूछा -तुम बरखा को जानती हो , बरखा तुम्हारी कौन लगती है ?

वह मुंह में उंगली डालते हुए बोली - वह मेरी बहन है। 

तब एक, स्याह और कृशकाय तन बाहर निकलकर आया। सिर पर कपड़ा लिपटा हुआ था ,मुँह में बीड़ी दबाये था ,अपनी लुंगी को ठीक से बांधते हुए बोला -जी कहिये !

उसकी हालत को देखते हुए ,धनंजय जी ने सोचा -बरखा ऐसे घर में रहती है ,यदि मेरे बेटे को पता चला तो...... पता नहीं ,वो क्या कर बैठे ? उसकी तरफ देखते हुए ,धनंजय जी बोले -क्या तुम्हीं बरखा के पिता हो ?

जी हां ,बीड़ी का धुआं छोड़ते हुए ,उस व्यक्ति ने जवाब दिया। 

यहां तो बदबू और गंदगी के कारण ,वैसे ही खड़ा होना मुश्किल हो रहा है, ऊपर से यह इस बीड़ी का धुआं.......  धनंजय जी, ने मुंह बनाते हुए कहा -तुमसे कुछ बात करनी है ,जरा बस्ती से बाहर आओ ! कहकर वह वहां से ऐसे निकले जैसे उनके पीछे कोई भूत पडा हो , मन ही मन सोच रहे थे ,इस लड़के ने भी, ने न जाने क्या कर दिया ? किसी भी तरह इस मुसीबत से निकलना होगा।तभी उनका ध्यान बरखा की तरफ गया एक बात तो है,इस लड़की ने अपने को ऐसी स्थिति में भी ,कितना संभाल कर रखा हुआ है ?साफ-सफाई हर चीज बढ़िया तरीके से रखती है , कोई कह नहीं सकता कि वह इस बस्ती की पैदाइश है। या ऐसी जगह में रहती है। इसी कारण तो मेरा पोता भी........ बहक  गया। बचते- बचाते किसी भी  तरह वो  बस्ती से बाहर आ जाते हैं और उस व्यक्ति की प्रतीक्षा करने लगे। कुछ देर इसी तरह खड़े रहने पर सोचा -वह आएगा भी,या  नहीं , अभी इसी पशोपेश में थे , तभी दूर से ही आता, उन्हें दिखाई दिया। 

उसे देखते ही उन्हें ,उससे घृणा सी महसूस होने लगी। यह लोग गरीब तो हैं किंतु बीड़ी पीने के लिए, शराब पीने के लिए ,इन पर पैसे आ जाते हैं। शरीर से चालीस -पैंतालीस का लग रहा था। बदन पर एक बनियान था, और लुंगी पहने हुए था। बरखा शायद बता रही थी -कि रिक्शा चलाता है , उसके काम को  स्मरण कर रहे थे। गरीबी और परिस्थितियां भी न......  आदमी को समय से पहले ही कमजोर बना देती हैं , सारा दिन धूप में रिक्शा चलाता होगा , तभी चमड़ी ऐसी हो गई है। अभी वह इतना ही सोच पाए थे ,तभी वह करीब आकर बोला -जी बताइए ! आपको क्या कहना है ?

बरखा तुम्हारी ही बेटी है , अविश्वास से धनंजय जी बोले। 

हां ,मेरी ही बेटी है , आप इस तरह क्यों पूछ रहे हैं ,क्या उसने कुछ किया है ?

नहीं, किया तो कुछ नहीं है किंतु मैं चाहता हूं अब उसकी विवाह की उम्र हो गई है ,अब तुम्हें उसके लिए कोई अच्छा सा लड़का देख लेना चाहिए ,वो इस तरह से बात कर रहे थे ,जैसे ,उन लोगों के लिए सोचकर ,वे उन पर एहसान कर रहें हों।  वैसे तुम्हारा नाम क्या है ?

जी, मेरा नाम ''प्यारेलाल ''है। हम लोगों में तो बेटियों का विवाह जल्दी हो जाता है किंतु अभी तक कोई ऐसा लड़का नहीं मिला। वह भी कहती है -अभी पढ़ रही हूं , अभी मुझे विवाह नहीं करना है। वैसे मैं जान सकता हूं ,आप कौन साहब हैं ? आपको मेरी बेटी की  इतनी फ़िक्र क्यों हो रही है ?

बरखा , मेरे ही घर में काम करती है , मैंने सोचा -अच्छी लड़की है , समझदार है, पढ़ भी रही है , इसके पिता को ,इसके विवाह की चिंता होगी इसीलिए तुमसे पूछने चला आया। स्यानी लड़की को इतने दिनों तक  अपने घर में रखना ठीक नहीं , तुम्हें किसी भी सहायता की आवश्यकता हो तो, निसंकोच बता देना ,कुछ साड़ियां सामान वगैरह तो उसकी आंटी भी उसके लिए कर देगी ,धनंजय जी उस पर एहसान दिखलाते हुए बोले। 



''प्यारे लाल''  को लगा ,यह हमारे शुभचिंतक हैं , इनकी बात भी सही है , मैं भी तो अट्ठारह  बरस का था जब मेरा विवाह हो गया था , और यह तो लड़की की जात , उसे थोड़ा लालच आया , जब यह सामने से सहायता के लिए आए हैं ,तो इनके सामने थोड़ा दुखड़ा रो ही देता हूं और बोला -साहब चार  बच्चे हैं , दिनभर रिक्शा चलाता हूं , इसकी मां और दोनों बच्चे कचरा बीन कर लाते हैं। अब बरखा आपके यहां काम करती ही है , मालकिन थोड़ा बहुत अच्छा कपड़ा दे देती है , आप लोगों की देखा- देखी, लड़की ठीक से रहना सीख गई है। रिश्ते तो उसके कई आए थे , किंतु उसने ही मना कर दिया। एक आदमी तो ,पचास हजार देने को तैयार था , किंतु लड़की जिद पर अड़ गई , अभी नहीं करना है। 

मन ही मन धनंजय जी सोच रहे थे, जिद पर तो अड़ेगी ही ,जब मेरे पोते को पटा लिया है। ख़ैर ! जो भी है अपनी बेटी को समझाओ और कोई सही लड़का देखकर ,उसका विवाह कर दो !कहीं उसके ''पैर फिसल गए ,''तो पचास हजार के लायक भी नही रहोगे। तुम्हें जितने भी पैसों की जरूरत होगी , मैं तुम्हारी सहायता करूंगा , कहकर धनंजय जी वहां से चले आए। 

प्यारेलाल भी कोई , मूर्ख इंसान नहीं था ,उसने भी दुनिया देखी है ,सब समझता है। कुछ बात तो अवश्य है, जो इतनी बड़ी कोठी का मालिक, मेरी बेटी के विवाह की चिंता कर रहा है। चलो जो भी है ,अच्छा ही होगा , विवाह के नाम से ही सही कुछ पैसे तो आएंगे , उसका काईया मन मुस्कुरा उठा। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post