बरखा अमृता जी को अपनी कहानी सुना रही थी ,अमृता जी भी ,उसकी कहानी में दिलचस्पी ले रही थीं ,तब बरखा ने अमृता जी को,अपनी और विशाल के प्रेम की कहानी सुनाई - बरखा जिस कोठी में कार्य करती थी , उस कोठी में, अधेड़ दंपति रहते थे। वह उसके कार्य से खुश थे , जो भी वेतन उसे मिलता उससे वह अपने पढ़ाई और अपने परिवार के सहयोग के लिए, प्रयोग करती। इस बीच उसकी जिंदगी में विशाल आ गया , दोनों एक दूसरे को चाहने लगे, उनकी चाहत बहुत ही आगे बढ़ गई थी, बरखा गरीब घर की होने के बावजूद अच्छे व्यवहार की थी , विशाल पैसे वाले घर से होकर भी , एक प्रेम भरा दिल रखता था। दोनों ने ही अपनी चाहत को अंजाम तक पहुँचाने के लिए , शिक्षा पूर्ण करके, अपने पैरों पर खड़े होकर , विवाह के बंधन में बंध जाने का निश्चय किया था। संसार में ऐसे बहुत से प्रेमी हुए हैं, जो हर सीमा को लांघकर , एक दूसरे के हो जाना चाहते थे ,किंतु कहीं धर्म आगे आ जाता था। कहीं जाति -बिरादरी आड़े आ जाती थी , तो कहीं अमीरी- गरीबी , उनका रुतबा उनके प्रेम के आड़े आ जाता था। आज भी यही हाल था , दोनों ही अपनी दुनिया में खोये थे , किंतु अपनी दुनिया से बाहर निकल कर, उन्होंने झांकना नहीं चाहा , कि उनकी दुनिया से भी अलग एक और दुनिया है ,जो उन्हें मिलने नहीं देगी।
इन दोनों के प्रेम में तो जाति- बिरादरी तो क्या ? रहन -सहन का स्तर ,अमीरी -गरीबी का भी भेदभाव था, फिर भी दोनों अपने प्रेम की पतंग उड़ा रहे थे। उन्होंने तो अपने जीवन को व्यवस्थित करने का निर्णय ले लिया था, पहले अपने पैरों पर खड़ा होना है और फिर विवाह करना है। घरवाले मानते हैं तो ठीक है ,नहीं मानते हैं, तो कोर्ट में जाकर शादी कर लेंगे। कहते हैं ना...... '' इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते '' बरखा की , प्रसन्नता उसके चेहरे पर झलक रही थी। उसके चेहरे का रंग बता रहा था ,कि बात कुछ और ही है। विशाल के दादाजी ''धनंजय '', और उसकी दादी ने दुनिया देखी है, अनुभवी व्यक्ति हैं, उनके घर में क्या हो रहा है , क्या वह नहीं समझ पाएंगे ? जब विशाल पंद्रह दिनों पश्चात ही ,वापस यूनिवर्सिटी के काम के बहाने से, घर आया तो उसके दादाजी और दादी के कान खड़े हो गए। दादाजी समझ रहे थे- यह यूनिवर्सिटी का कार्य नहीं ,बल्कि बरखा का आकर्षण उसे खींच कर ला रहा है।अपनी जगह उनकी सोच सही थी। इस उम्र में, एक लड़के का लड़की की ओर आकर्षित होना लाजमी है , जिसमें कि दोनों हमउम्र ही हैं। जहां ''आग और फूंस ''एक साथ होंगे ,तो आग लगना स्वाभाविक ही है।जिसमें कि उन्हें इतने बड़े घर में खुलकर मिलने का मौका मिल रहा था।
सामाजिक दृष्टि से देखा जाए तो ,इस लड़की ने अपनी सीमाएं लांघ दी हैं ,क्या वह जानती नहीं है ?कि वह सिर्फ इस घर की नौकरानी है , और इस कोठी के मालकिन बनने के सपने देख रही है। उस दिन मैंने भी उसे बहू के रूप में कह कर, बहुत बड़ी गलती कर दी। शायद ,वह तो अपने को इस घर की बहू ही समझने लगी। विशाल के बाप को पता चलेगा, तो हमें ही डांटेगा , कि हमने इसे इतनी खुली छूट क्यों दी ? उस नौकरानी को इतना सिर पर क्यों चढ़ाया ? कि वह अपनी सीमाएं भूल जाए ,उस दिन जब मैं, विशाल के कमरे में गया था ,तब मुझे कुछ लगा तो था ,जैसे -कोई उसके कमरे में है , फिर सोचा- मेरा भ्रम होगा, इस समय हम तीनों के सिवा कौन हो सकता है ? किंतु जब मैं लॉबी में बैठा हुआ अख़बार पढ़ रहा था तो उसकी खिड़की से मैंने देखा , ये लड़की ,उसके कमरे से निकलकर ,पीछे के रास्ते गई थी। तभी मेरा माथा ठनका था। जब लड़का सोकर देर से उठा , उसने अपने कमरे की कुंडी भी लगाई हुई थी , जबकि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था।
हाय ,राम ! कितनी चालाक है ? यह लड़की ! मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था, यह इस तरह पैंतरे बाजी करेगी, हम तो इसे अपनी बेटी की तरह, प्यार से रख रहे थे किंतु इसने हमारे प्यार का, अपनेपन का कुछ अलग ही अर्थ निकाल लिया। छोटे घर की लड़कियां, पहले ही सब कुछ सीख जाती हैं और अमीर घर के लड़कों को पटाने लगती हैं। अपने घर में तो गरीबी देखी है ,वहां बैठने तक की जगह नहीं है और यहां आते ही पंख फैला दिए। अपना रूप दिखा कर ,पैसे के लिए हमारे पोते को फंसा रही है और वह फंस भी गया। अपने पति के मुख से विशाल और बरखा के कारनामें सुनकर वो बोलीं।
अभी इन दोनों से कुछ भी नहीं कहना है ,धनंजय जी ने,अपनी पत्नी को समझाया, इनकी उम्र कम है, यदि हम ने किसी भी तरह की जबरदस्ती की , डांटा फटकारा, तो शायद विद्रोह पर न उतर आएं इसीलिए इस केस को सावधानी से सुलझाना होगा।
दादा जी भी ,अपनी जगह सही थे , विशाल का यूनिवर्सिटी में कोई काम ही नहीं था ,बल्कि वह तो बरखा का दाखिला कराने के लिए आया था। दादी -बाबा ,उनके रिश्ते को जानते हुए भी ,अंजान बने हुए थे।उन्होंने सोच लिया था -अब बेटे को रोकने से क्या लाभ ?जो होना था हो चुका , इसीलिए रात्रि में आज भी उसने अपने कमरे में ही सोने का निर्णय लिया। उस रात्रि भी , दो प्रेमी दुनिया के षड्यंत्र से अनजान ,अपने प्रेम की दुनिया में खो गए थे।
धनंजय जी के लिए ,ये प्रेम नहीं ,वरन एक -दूसरे के प्रति शारीरिक आकर्षण था ,जिसकी पूर्ति वो एक -दूसरे से मिलकर कर रहे थे। उनकी दृष्टि में दोषी बरखा ही थी , विशाल, बरखा के पीछे नहीं वरन बरखा ही उनके पोते से मिलने आती है।
एक दिन, एक व्यक्ति झोपड़ियों की सीमाओं के अंदर घूम रहा था ,वो मलिन बस्ती , जहां हर कोई सभ्य व्यक्ति जाना पसंद नहीं करेगा, छोटी-छोटी झोपड़ियां ,छोटी-छोटी गंदी गलियां,जगह -जगह गड्ढों में भरा गंदा पानी , कट्टो से बोरो से ढके हुए ,टूटे हिस्से, बिना नहाए , अर्धनग्न में घूमते गंदे बच्चे, किसी -किसी की तो नाक भी बह रही थी। वो व्यक्ति नाक पर रुमाल रखकर आगे बढ़ रहा था।