एक चुनौती बन , उभरती है , एक नई उलझन !
कभी पहेली बन जाती है , एक ना एक उलझन!
खट्टा -मीठा,तीखा स्वाद दिलाती है हर उलझन !
इच्छाओं के आडंबर में ,उलझाती है..., उलझन !
रिश्तों की भीड़ में ,बढ़ जाती हैं और, यह उलझन !
कौन ?तुम्हारे साथ खड़ा है यह समझाती हैउलझन !
न जाने कब बीती उम्र ? सुलझाते-सुलझाते उलझन !
काव्य लिखूं या कोई कहानी, कैसी आन पड़ी उलझन!
बलात जीवन में ,चली आती हैं ,न जाने कहां से ?उलझन !
किया कभी महसूस ,अपने को हारा,सुलझाती हूँ उलझन !
होेले से आ ,मेरी जिंदगी में ठहर जाती है ,कोई न कोई उलझन !
दुनिया और जिंदगी की हकीकत से रूबरू कराती हैं , उलझन!
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों सी ,उलझाती हैं ,ये उलझन !
व्यक्तित्व निखरकर आ जाता है,जब आती हैं उलझन !
सही क्या ? गलत क्या ? पहचान करातीं हैं ,ये उलझन !
फ़ितरत से अपनी वाकिफ़ हूं उलझकर भी, सुलझाती हूं ,उलझन !