शेफाली मनोहर दास जी के साथ ''कपाली नाथ ''बाबा की गुफा में पहुंच जाती है। प्रातः काल ही, उसने अपनी यात्रा आरंभ कर दी थी , चलते-चलते सारा दिन बीत गया था , हालांकि' मनोहर दास जी' उसका बखूबी ख्याल रख रहे थे। किंतु पहाड़ों पर चढ़ने का उन्हें अच्छा अभ्यास था , शेफाली पहली बार, इतनी ऊंचाई पर चढ़कर आई थी। थकावट होना तो स्वाभाविक ही है किंतु कपाली नाथ जी, के दर्शन होते ही , आधी थकावट तो दूर ही हो गई। अघोरी'' कपाली नाथ'' जी सहृदय व्यक्ति थे। उनके चेहरे पर अद्भुत तेज़ था। शेफाली को उन्हें देखकर ऐसा लगा -जैसे वह साक्षात शिव को ही देख रही है। कपाली नाथ जी ने अपने चक्षु खोलकर , शेफाली की तरफ देखा -और उसे एक ''हिम शिला'' पर बैठा कर , उसके दिन भर की थकावट उसके दर्द को कम कर दिया। शेफाली आश्चर्यचकित हो उठी , और बोली - बाबा ! धन्य हैं।
कपाली नाथ जी, उसके आने का मंतव्य जानते थे , तब भी उन्होंने शेफाली के शब्दों से ही , उसके मिलने का कारण जानना चाहा। तब शेफाली ने ,अपने आने का मंतव्य ,उनको बतलाया। जिसे सुनकर बाबा सोच में पड़ गए और बोले -बेटी ! यही तो होता है ,किसी भी गलत व्यक्ति के साथ, यदि तुम रहते हो ,उसके व्यवहार ,उसकी सोच का असर हम पर अवश्य पड़ता ही है। मैं मानता हूं ,''कुंभर्क '' तुम्हारा पुराना प्रेमी था किंतु उसके दुष्कर्मों ने , तुम्हें क्या से क्या बना दिया ? अपने पिछले जन्म के दुष्कर्मों के कारण ,वह इस जन्म में , शापित राक्षस योनि को प्राप्त हुआ। उसके साथ के कारण, भले ही वह, तुमसे प्रेम करता था , आज तुम भी एक 'शापित जीवन' जी रही हो। किंतु तुम्हारे जीवन की अच्छाई -सच्चाई , उसमें बदलाव तो लाएगी ही , अगले आने वाले जन्म में तुम दोनों , एक सुखी और सफल जीवन व्यतीत कर सकोगे। जहां तक मैं देख रहा हूं , तुम इसी जन्म में 'श्राप 'से मुक्त हो जाओगी वह समय शीघ्र ही आने वाला है।
इसीलिए तो बाबा ने मुझे, आपके पास भेजा है। चंडालिका का नया रूप' दीपशिखा 'के रूप में जो कॉलेज में , लड़के और लड़कियों की जान के लिए खतरा बनी हुई है , मैं अपने' श्राप' के कारण ही ,उसके संपर्क में आई, उससे कैसे मुक्ति मिलेगी ? उसकी शक्तियों का सामना किस प्रकार किया जा सकता है ? बाबा ब्रह्मानंद जी ने , मुझे आपके पास इसीलिए भेजा है , क्योंकि मैं अपने'' शापित जीवन ''के कारण , अपनी शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकती , मेरी शक्तियां बंध चुकी हैं।
तुम्हारी परेशानी को मैं समझ सकता हूं , शापित जीवन के कारण , तुम्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा होगा। मैं उस श्राप को काट तो नहीं सकता, किंतु मैं तुम्हें एक ऐसी शक्ति दे सकता हूं , जिसके माध्यम से ,तुम उस चंडालिका का सामना करने में ,सक्षम हो, सकती हो। वह अनेक रूप बदलेगी किंतु अपनी अच्छाइयों के साथ ,तुम्हें उसका सामना करना होगा ,कहते हुए ,उसे एक 'स्वर्णजड़ित 'त्रिशूल के आकार का एक दण्ड दिया और बोले -यह दीपशिखा की शक्तियों का सामना करने में सक्षम है। तुम इसका प्रयोग करके , उसके गलत मंसूबों पर पानी फेर सकती हो।
यह दंड तो बहुत बड़ा है, इसे मैं कैसे ? सबके सामने ले जा सकती हूं , शेफाली शंका से बोली।
कपाली नाथ जी ,उसकी बात सुनकर मुस्कुराए और बोले-यह यंत्र कितना बड़ा है ? मात्र तुम्हारी उंगली के बराबर , देखते ही देखते , वह त्रिशूल जैसा दण्ड , एक लॉकेट बन गया। तब बाबा ने कहा, इसे गले में लटका कर तुम ,कहीं भी जा सकती हो, यह तुम्हारे'' सुरक्षा कवच'' की तरह ही ,तुम्हारे साथ रहेगा। जब तक यह, तुम्हारे तन से स्पर्श करता रहेगा। कोई भी नकारात्मक शक्ति तुम्हें छू नहीं सकती। जब भी इसकी आवश्यकता हो, तुम इसे गले से उतार कर ,अपने हाथ में ले लेना, यह अपने असली रूप में आ जाएगा। इसका एक ही वार , दुश्मन को यमपुरी पहुंचाने के लिए काफी है।
यदि दुश्मन को मारना ना हो, उसे समझाना ही उद्देश्य हो।
शेफाली की बात सुनकर ,मनोहर दास जी मुस्कुराए और बोले -ऐसा तुम ही ,सोच सकती हो , कि दुश्मन को पहले समझाया जाए। इस त्रिशूल की नोक देख रही हो , इससे पवित्र ज्वाला निकलेगी , जो पाप आत्मा का नाश कर देगी या उसे समझा देगी ,कि बुराई से भी बड़ी ,कोई ताकत है।
अभी तो मेरा उद्देश्य यही है , कि वह लड़की , जो अभी तक अपने को नहीं जानती है , हो सकता है, मेरे न रहने पर, जान भी गई हो। मेरा उद्देश्य उसको समझाने का ही होगा कि बुराई का रास्ता त्यागकर , इंसानियत के रास्ते पर चले किंतु उसने असीमित शक्तियां , प्राप्त कर ली हैं , इसलिए मुझे लगता है ,आसानी से वह ,वो यह रास्ता नहीं छोड़ेगी। बाबा जी आपने, और मनोहर दास जी ने, मेरी बहुत बड़ी समस्या हल कर दी। आपको शत-शत'नमन' है। जब तक आप जैसी, पुण्यात्मा इस पृथ्वी पर हैं, इस धरती की रक्षा होती रहेगी।अब बाबा आज्ञा और आशीर्वाद दोनों दीजिये ,मैं अपने कार्य में ,सफल हो सकूँ ,कहते हुए ,उन्हें प्रणाम करती है।
बाबा कपाली नाथ जी , शेफाली को आशीर्वाद देते हैं ,'' हिमशिला ''से उतरकर, शेफाली मनोहर दास जी से कहती है -चलिए ,मनोहर दास जी ! हमें वापस भी जाना है। पहुंचते-पहुंचते दिन निकल जाएगा। अभी मुझे आगे की यात्रा भी आरंभ करनी है , पता नहीं, मेरे पीछे , उस दीपशिखा ने क्या गुल खिलाए होंगे ? अघोरी कपाली नाथ जी, मनोहर और शेफाली , दोनों को खाने के लिए कुछ फल देते हैं। तब मनोहर और शेफाली दोनों उन्हें दंडवत प्रणाम करते हैं। जैसे ही वह अपने नेत्र खोलते हैं ,तो आश्चर्यचकित रह जाते हैं , जिस चट्टान से खड़े होकर , शेफाली ने उस स्थान की ऊंचाई को देखा था , वो वहीं पर खड़ी थी। अपने को इस स्थान पर पाकर अचंभित रह जाती है। मनोहर दास जी से पूछती है , अभी हम कपाली नाथ जी के समीप थे , इतनी शीघ्र यहां कैसे आ गए? ऐसे लग रहा है ,जैसे मैं कोई सपना देख रही थी।
मनोहर दास जी मुस्कुराए और बोले -यह सब प्रभु की लीला है ,ताकि तुम अपना कार्य शीघ्र अति शीघ्र कर सको। आज की रात्रि यहीं ठहर जाना , कल प्रातः काल ही निकल जाना। मनोहर दास जी की बातों पर शेफाली का ध्यान ही नहीं था , वह तो आश्चर्यचकित हो सोच रही थी , क्या मैं वास्तव में ही ,कपाली नाथ जी से मिली हूं , अपने गले में , वह लॉकेट और हाथों में फल देखकर ,उसे विश्वास करना पड़ा कि वह कपाली नाथ जी से मिलकर ही आ रही है। उनके भक्तजन ही , कितनी लीला दिखला देते हैं ?
रमा के पास एक फोन आता है -हेलो !
रमा जैसे ही फोन उठाती है , उधर से आवाज आती है,मैं इंस्पेक्टर ''धीरेंद्र लालवानी'' बोल रहा हूं।
जी इंस्पेक्टर साहब !रमा खुश होते हुए , उनसे पूछती है, क्या कुछ पता चल पाया ? आपने कातिल को पकड़ा।
यह कैसी बातें कर रही हैं ? बिना किसी ठोस सबूत के हम, कैसे किसी को गिरफ्तार कर सकते हैं ? हमारे संदेह के घेरे में, वह आ चुकी है ,तहकीकात चल रही है। अभी आपसे कुछ प्रश्न पूछने हैं , आप मुझसे मिलने मंदिर के पीछे वाले बगीचे, में आ जाइए।
इंस्पेक्टर की बात सुनकर रमा का माथा ठनका , वह सोच रही थी, इंस्पेक्टर ने मुझे मिलने के लिए , थाने में क्यों नहीं बुलाया ? मंदिर के बगीचे में ही क्यों बुलाया है ? तब सोचा, मुझसे कोई विशेष जानकारी जानना चाहते होंगे या दीपशिखा को किसी प्रकार का शक ना हो , इसलिए अलग बुलाया होगा। यही सोचकर उसने इंस्पेक्टर से आने का वादा कर दिया।
दीपशिखा भी कम नहीं थी , न जाने कहां से कहां पहुंच जाती थी ? इससे पहले कि मनुष्य कुछ समझ पाता वह अपना काम कर जाती थी। सुबोध को अभी तक वह भूली नहीं थी , सुबोध पर उसे क्रोध था , सुबोध ने उसके प्रेम को ठुकराया था। अब तो उसके पास इतनी शक्तियां हैं , सुबोध जैसे, न जाने कितने लड़कों को लाइन में खड़ा कर सकती है ? पता नहीं, सुबोध पर ही उसका दिल क्यों आया ? शायद उसकी बेरुखी ही , दीपशिखा को उसकी ओर खींच रही थी। सुबोध ,अपने कमरे में बैठा कुछ लिख रहा था। शायद अपनी मन की भावनाएं उन पन्नों पर रहा था या फिर कोई कहानी। तभी अचानक से , दीपशिखा उसके पास जाकर खड़ी हो जाती है। उसे देखकर सुबोध आश्चर्यचकित रह जाता है ,तुम ! यहां कैसे आ गईं ?
अपने प्यार को पाने के लिए ,दीपशिखा कहीं भी चली जाती है, कामुक अदाओं से वो , सुबोध की तरफ देखते हुए बोली।
यह तुम क्या कह रही हो ? किसी भी लड़की का इतनी रात्रि में ,मेरे घर पर आना उचित नहीं है। तुम अभी यहां से चली जाओ ! सुबोध क्रोधित होते हुए बोला।
चली जाऊंगी, इतनी जल्दी भी क्या है ?
जल्दी है, मेरे परिवार के सभी सदस्य इसी घर में रहते हैं, कोई भी उठ गया, और मुझसे पूछने लगा कि यह कौन है ,तब मैं उन्हें क्या जवाब दूंगा ?