मां !तुम कितनी लापरवाह हो ? अपना तनिक भी ख्याल नहीं रखतीं। रमेश ,माँ को आज डॉक्टर को दिखलाकर लाया है। माँ, कई दिनों से ,थकावट ,घुटनों में दर्द , इत्यादि बीमारियों की शिकायत कर रही थीं। रमेश ने सोचा -आज छुट्टी है ,चलो ! मां को दिखा लाता हूं।
डॉक्टर ने तो कई सारी बीमारियां बतला दीं। समय से खाना नहीं खाती हैं। खून की भी कमी है , खाना ठीक से नहीं पच रहा है। लिवर में भी सूजन आई हुई है। तब डॉक्टर ने , रमेश से कहा -तुम्हारी मां की इतनी उम्र हो गई है ,तुम्हें तनिक भी उनकी बीमारियों का ,या उनकी परेशानियों का ख्याल नहीं है।
डॉक्टर के मुंह से यह बात सुनकर रमेश को बहुत बुरा लगा , मन ही मन सोच रहा था- डॉक्टर भी क्या सोचेगा ,कितना लापरवाह बेटा है ? किंतु डॉक्टर के सामने माँ ने ही बात संभाली और बोलीं -डॉक्टर साहब यह तो सारा दिन अपने काम पर लगा रहता है। सारा दिन काम करके थक जाता है , मैं ही थोड़ी सी लापरवाह हूं। छोटे-छोटे बच्चे हैं ,जो इसे रात भर जगाते रहते हैं। यह तो अपनी परेशानियों में इतना उलझा रहता है, स्वयं का भी ख्याल नहीं रख पाता। मां के शब्दों से रमेश को थोड़ी राहत मिली। किंतु इस सच्चाई से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता , कि अपनी व्यस्त जिंदगी को लेकर, वह इतना परेशान रहता है कि अपनी मां का भी ख्याल नहीं रख सकता जबकि उसकी मां, अभी भी घर के आधे से ज्यादा कार्य कर देती है। उसके बच्चों को भी संभालती है और उसने कभी भी ,यह तक नहीं पूछा -कि मां आपने खाना खा लिया या नहीं खाया। कल को माँ न रही , तो उसकी घर गृहस्थी तो जैसे अस्त-व्यस्त हो जाएगी , जिसको मां ने बखूबी संभाला हुआ है। जितना कार्य मां संभालती है , रिचा उसका आधा भी नहीं कर पाती, उसे तो अभी काम भी समझाना पड़ता है।
रमेश को अपनी गलती का एहसास होता है और मन ही मन सोचता है -अब वह अपनी मां का, स्वयं खयाल रखेगा। यदि माँ , बिस्तर पर पड़ गईं , तो उनकी देखरेख कौन करेगा ? कैसे वो ? यह सब संभालेगा ?यही सोचकर वह कांप उठा , इससे बेहतर है, मां का ही ख्याल रखा जाए। अपनी मम्मी को सख्त हिदायत देते हुए बोला -आज से आपको समय पर खाना खाना है. जो भी मैं लाऊंगा वही आपको खाना है और समय पर दवाई भी खानी है। अपनी मां के विषय में सोचते हुए ,वह भावुक हो उठा।
डॉक्टर के यहां से वापस आते हुए, उसने अपनी मां के लिए कुछ फल भी ले लिए थे , ताकि वह उन्हें खाकर चुस्त-दुरुस्त रहें, डॉक्टर ने बताया था -रक्त नहीं बन रहा है , इसीलिए मां के लिए कुछ, अनार भी ले लिए, जो कि बाकी फलों से कुछ महँगे थे। कोई बात नहीं, तीन-चार दिन तक इन्हें खा लेंगी , फिरऔर ले आऊंगा। आज छुट्टी के दिन ,उसने अपनी मां को दिखाया और उनकी सेवा का उसे अवसर मिला, इस बात से वह मन ही मन प्रसन्न था कि अपनी मां के लिए, उसने कुछ समय निकाला। उनकी दवाई उनके फल -फ्रूट, सब उनके कमरे में सजा दिए। दवाई भी ठीक से समझा दी और बोला -सुबह - शाम की दवाई तो मैं दे दिया करूंगा, बाकी दिन में जो भी दवाई हैं ,आपको स्वयं लेनी है , भूलना नहीं है ,आकर मैं जांच करूंगा। अपनी पत्नी से भी बोला -मां को समय पर उनकी दवाई याद दिलवा देना या उन्हें दवाई दे देना। सभी बातें समझा कर वह ,अपने काम पर चला गया।
दोपहर में बच्चे रो रहे थे , कुछ खाने की इच्छा हो रही थी , रोते हुए ,दादी के करीब गए, वहां पर फल देखकर फ़ल मांगने लगे , हालांकि रमेश उनके लिए, अलग से फल लाया था किंतु दादी के अनार देखकर उनकी भी अनार खाने की इच्छा हो गई। यह बालपन की फितरत ही होती है , बच्चों को जिस चीज के लिए मना किया जाए ,उसी को पाने की ललक होती है ,तब पार्वती जी ने, दोनों बच्चों के लिए अनार छीलकर और एक कटोरी में करके उन्हें दे दिए।
बच्चों को अनार खाता देखकर, उनकी बहु ने ,बच्चों से मना किया और बोली -नहीं , यह दादी के फल हैं , आप और कुछ खा लो !बच्चे थे, जिद पर अड़ गए , नहीं ,उन्हें तो अनार ही खाने हैं। पार्वती जी ने बहू को भी समझा दिया। क्या मैं अकेली अनार खाती अच्छी लगूँगी ,मुझसे ,इस तरह नहीं खाए जाएंगे, ये फल !बच्चे मुझे देखेंगे और मैं फल खाती रहूंगी ,ऐसा मुझसे नहीं हो पाएगा। कहकर उन्होंने स्वयं ही उन्हें फल दे दिए।
शाम को यह बात रमेश को पता चली तो वह बच्चों और पत्नी पर नाराज हुआ। तुम लोगों को पता है ,कि मां की तबीयत ठीक नहीं है। अनार अभी बहुत महंगे हैं , उनकी इन्हें बहुत आवश्यकता है और मां को डांट कर बोला-आप इसी तरह अपने खाने की चीज बांट देती हो, तभी यह बीमारियां आपको लगी हैं। जो चीज आपको खाने को दी जाए, वह खानी चाहिए , इसलिए शरीर में कमजोरी आ जाती है।
बेटा मुझसे इतना स्वार्थी नहीं हुआ जाता , कि मैं बैठी, फल खाती रहूं और मेरे बच्चे देखते रहें , कुछ और खा लूंगी ,दवाई खा लूंगी लेकिन मुझसे ऐसे नहीं देखा जाएगा ,न ही खाया जाएगा , इतना स्वार्थी नहीं हुआ जाता।
रमेश मां की भावनाओं को समझ कर बोला-मां ,थोड़ा स्वार्थी बनना भी पड़ता है , आपकी सेहत का सवाल है , मैं भी तो ,अपनी मां के लिए स्वार्थी बन गया हूं , ताकि मेरी मां स्वस्थ रहें , बच्चे तो बच्चे हैं , किंतु आपको, अपने स्वास्थ्य के लिए और हम लोगों के लिए थोड़ा'' स्वार्थी'' बनना पड़ेगा , कहकर रमेश भावुक हो उठा। यही भावना तो, आगे चलकर , महिलाओं को बीमारी के द्वार पर लाकर खड़ा कर देती है। मैं यह बात आपके लिए ही नहीं, हर उस माँ के लिए कह रहा हूं , जो परिवार की खुशी के लिए अपना ख्याल रखना भूल जाती है। पहले सबको खिला कर , तब जो भी बचता है , चुपचाप उसे खा लेती है। उसी परिवार की खुशी के लिए , थोड़ा तो ''स्वार्थी ''होना बनता है , कह कर रमेश अपनी मां के लिए फल काट कर ले आया।
Excellent writing, written from heart and depicts the reality of our Indian society wherein women compromise on their well being and health in pursuit of keeping everybody else happy...things should change now
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