शेफाली ने दीपशिखा को समझाना चाहा , वह यह सब जो भी कर रही है ,वह सही नहीं है ,गलत है। मैंने तुम्हें एक सच्ची लड़की समझकर तुम्हारी सहायता करने लगी थी ,किंतु तुमने लोगों के विश्वास का, और अपने इस रूप का अनावश्यक लाभ उठाया। काश ! तुम जितनी सुंदर हो , तुम्हारा दिल भी ,उतना ही सुंदर होता। मैं तुम्हारी दोस्त, तुम्हारे प्रेम के कारण बनी थी किंतु तुमने प्रेम के अर्थ को समझा ही नहीं।'' प्रेम को प्रेम से जीता जाता है ,हासिल नहीं किया जाता है।'' मैं समझती थी -यह लड़का भी , तुमसे प्रेम करता है किंतु तुम्हारा साथ देना मेरी भूल थी। आज मैं ,अपनी इस भूल को सुधारना चाहती हूं , और तुम्हें समझाने आई हूं , तुम जो भी गलत कर रही हो , अभी भी वक्त है संभल जाओ ! इससे कुछ भी हासिल नहीं होगा।
दीपशिखा ने इंस्पेक्टर' धीरेंद्र लालवानी ' को अपने सम्मोहन से मुक्त कर दिया था। वह अपने को एक 'पहाड़ी स्थल' पर देखकर आश्चर्यचकित था कि मैं यहां क्यों और कैसे आया हूं ? वह कुछ भी नहीं समझ पा रहा था। उसके सामने चार महिलाएं और एक पुरुष खड़ा था। उन में तीन को तो वह पहचानता था , जो रमा और रमा की मम्मी थीं , दूसरी तरफ दीपशिखा जो सेठ ''जेठानी लाल जी 'की बेटी थी, जिनके घर की तलाशी लेने के लिए वह गया था और उसने वह कमरा भी देखा था। उसके पश्चात क्या हुआ ?उसे कुछ भी याद नहीं और अब अपने को इस स्थान पर प्रकार सोच रहा था -कि वह यहां कैसे आया ? उसने अपनी स्मरण शक्ति पर जोर दिया -वह कमरा उसे स्मरण हो रहा था , जिसमें तंत्र-मंत्र की कुछ चीजें रखी हुई थीं। जमीन पर कुछ आड़ी तिरछी ,आकृतियां बनी हुई थीं , जिन्हें अक्सर तांत्रिक लोग बनाते हैं। एक आसान भी बिछा हुआ था , जिसे देखकर लग रहा था ,कि यहां कोई तंत्र क्रिया करता है। जब उसने दीप शिखा से इस विषय में बातचीत करनी चाही। तब दीपशिखा ने उसे एक कुर्सी पर प्यार से बिठाया और स्वयं उसके सामने आकर बैठ गई। दीपशिखा उसकी आंखों में देख रही थी, और मधुर स्वर में बोली - पूछिए !इंस्पेक्टर साहब क्या पूछना चाहते हैं ?इससे पहले कि वह उससे कुछ प्रश्न करता ,न जाने उसने ऐसा क्या किया ? उसे कुछ भी याद नहीं आ रहा और अब उसे यह भी नहीं मालूम, कि वह किस गांव की पहाड़ी पर खड़ा है ? इससे पहले कि वह उन लोगों से प्रश्न पूछता।
उसे दीपशिखा के चिल्लाने की आवाज आई -जो उस अनजान लड़की से कह रही थी - अब तुम मुझे सिखलाओगी, कि मुझे क्या करना है और क्या नहीं ? क्या तुम मुझे नहीं जानती ?
शेफाली बोली- तुम भी मुझे नहीं जानती हो, किंतु यदि तुम्हारा यही बर्ताव रहा तो, शीघ्र ही जान जाओगी।
दीपशिखा ने अपने दोनों हाथ फैलाए ,उसके हाथों से एक अद्भुत सी शक्ति निकली जो उसने रमा की तरफ फ़ेंक दी, जिसके कारण रमा का दम घुटने लगा और वह तड़प रही थी।
दीपशिखा ने अपना वह लॉकेट रमा की तरफ फेंका , जो ' ब्रह्मानंद जी 'ने, उसे उन असुरों का नाश करने के लिए दिया था। जिसकी शक्ति कवच का कार्य करती है, जिसके कवच के अंदर आज भी, दीपशिखा सुरक्षित रहती है, किंतु आज रमा को इसकी ज्यादा आवश्यकता थी। वह लॉकेट रमा की गोद में जाकर गिरा , उस लॉकेट में एक आंख बनी हुई थी , उसे आंख से दीपशिखा की काली शक्ति टकराई और वापस दीपशिखा तक पहुंच गई। दीपशिखा को इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि शेफाली के पास ऐसी भी कोई शक्ति हो सकती है। अपनी ही शक्ति से आहत होकर , वह एक तरफ को गिर पड़ी। दीपशिखा को इस तरह गिरने पर ,शेफाली पर बहुत गुस्सा आया। इससे उसे अपना अपमान लगा , वह यहां इन सबको इसीलिए लेकर आई थी , ताकि उन्हें अपनी शक्ति दिखाकर ,उन्हें डरा सके, किंतु यहां तो दाव ही उल्टा पड़ गया। अपमान और क्रोध से दीपशिखा जलने लगी। उसने बारी-बारी सब की तरफ देखा ,वे सब भी उसकी तरफ देख रहे थे, तब उसने सुबोध की तरफ देखा , सुबोध को देखकर उसका दर्द छलक उठा और बोली- मैं तुमसे प्रेम करती हूं , क्या तुम भी मेरे साथ नहीं हो ?
सुबोध बोला अभी तुम्हें दीपशिखा ने क्या बताया -''प्रेम को जीता जाता है हासिल नहीं किया जाता। '' मैं तुमसे प्रेम नहीं करता , तुम ही जबरदस्ती मेरे पीछे पड़ी हो ,सुबोध का स्पष्ट उत्तर सुनकर ,उसे बहुत क्रोध आया। इन सब के बीच वह अकेली खड़ी थी। तभी उसने सुबोध को दंड देने के लिए , अपने हाथ उठा इससे पहले कि वह कुछ और कर पाती। दीपशिखा के हाथ में, अघोरी ''कपाली नाथ ''का दिया हुआ दंड आ गया। शेफाली बोली -अब भी संभल जाओ ! मैं तुम्हें आखिरी चेतावनी दे रही हूं। इस समय दीपशिखा के सामने उसके दो विरोधी खड़े थे रमा और सुबोध ! और उनके साथ दे रही थी - शेफाली !
सुबोध ने भी उसे बहुत तड़पाया है, उसकी भावनाओं की कभी कदर नहीं की , रमा के हाथ में,अब शेफाली का फेंका हुआ, लॉकेट था। तब उसने सुबोध को निशाना बनाना चाहा , हो सकता है ,वह उन लोगों को ध्यान भटकाना चाहती हो। जो भी था, दीपशिखा समझने के लिए तैयार ही नहीं थी, अचानक से वह हवा में उड़ी और जोर-जोर से हंसने लगी। शेफाली सतर्क थी, वह जानती थी ,यह काली शक्तियों के माध्यम से, किसी को भी हानि पहुंचा सकती है। इंस्पेक्टर धीरेंद्र लालवानी तो आंखें फाड़- फाड़ कर सबको देख रहा था उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था यह क्या हो रहा है ?
एकदम से हवाएँ चलने लगीं , हवा नहीं वरन आंधी चलने लगी , आंधी इतनी तेज थी ,उस चट्टान पर ,उन लोगों का खड़ा होना मुश्किल हो रहा था। किसी को कुछ भी दिखलाई नहीं पड़ रहा था। दीपशिखा भी दिखलाई नहीं दे रही थी। वह आँधी बहुत तेज थी , किसी का भी खड़ा होना मुश्किल हो रहा था। ऐसा लग रहा था ,यह आंधी सबको उड़ा कर ले जाएगी। तब शैफाली ने अपना दंड घुमाया और एक स्थान पर स्थिर कर दिया , उसके स्थिर करते ही, तेज आंधी एकदम थम गई। आश्चर्य चकित हो, दीपशिखा देख रही थी -उसकी शक्तियों से भी बड़ी, कोई शक्ति यहां पर स्थित है। तब शेफाली ने अपना त्रिशूल रूपी दंड उठाया और दीपशिखा की तरफ किया। उसकी शक्ति की ताकत से, उड़ती हुई ,दीपशिखा धम्म से नीचे आ गिरी।
तब शेफाली उससे बोली- मैं सही में तुम्हारी मदद करना चाहती थी और मैं तुम्हारी दोस्त ही बनकर रहना चाहती थी , और अब भी चाहती हूं किंतु तुम अपनी आदतों से बाज आ जाओ ! वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा। मैं नहीं चाहती, कि मेरे हाथ से ऐसा कुछ हो जाए , जिसके लिए मुझे जीवनभर दुख रहे।
वाह ! तुमने मुझे इस छड़ी से नीचे क्या गिरा दिया ? तुम तो अपने को तांत्रिका समझने लगीं , अभी तुमने मेरी शक्ति देखी ही कहाँ है ?
मुझे तुम्हारी शक्तियों को देखने का कोई शौक नहीं है , जो भी शक्तियां तुम्हारे पास हैं ,उन्हेंअपने पास रखो और उन्हें किसी अच्छाई के कार्य में लगाओ।
अब तुम मुझे बताओगी, कि मुझे क्या करना है और क्या नहीं ? जिसकी अपनी ही कोई हस्ती नहीं थी। जो स्वयं 'श्रापित ' होकर घूम रही है। यह सब तामझाम तुम्हें किसने दिया ? उस माला और दंड की तरफ ,हाथ से इशारा करते हुए बोली -बाकी तुम मेरे सामने कुछ भी नहीं हो।
तुम समझ नहीं रही हो , तुम जैसे पहले जिंदगी जीती आई थी आज भी वैसे ही ,जी सकती हो। इन शक्तियों को संभालना तुम्हारे बस की बात नहीं।
शेफाली की बात सुनकर दीपशिखा ,जोर-जोर से हंसने लगी, और तभी उसने सुबोध पर अपना प्रहार करना चाहा , उससे पहले कि वह कामयाब होती, शैफाली ने अपना दंड उसकी तरफ कर दिया , उस दंड से निकलती चिंगारियां , जब दीपशिखा को लगीं तो ,दीपशिखा चिल्लाने लगी , वह उस दंड की पवित्र अग्नि को झेल नहीं पा रही थी, बचते हुए पीछे की तरफ दौड़ी और सीधी चट्टान से नीचे गई। हम सभी, उसे नीचे गिरते देख रहे थे ,कुछ कर भी नहीं सकते थे। इंस्पेक्टर साहब को बाद में, संपूर्ण बातें बतला दी गईं । वह स्वयं अचंभित थे, इस बात से निकल नहीं पा रहे थे कि वह किसी तंत्र के वशीभूत होकर, स्वयं कातिल बनने जा रहे थे। रमा और रमा की मम्मी अपने घर चली गई और मैं भी अपने घर आ गया , इस तरह सुबोध ने दीपशिखा की कहानी प्रभा को सुनाई । प्रभा उस कहानी को सुनकर सोने से पहले बोली - अगले दिन, मुझे ,मालिनी जी के पास जाना है ,अब वही कोई उपाय बतलाएंगीं।
अगले दिन प्रभा तैयार होकर मालिनी जी से मिलने जाती है। वो तो जैसे पहले ही, प्रभा की प्रतीक्षा में थीं , उसे देखते ही बोलीं -आज बहुत दिनों पश्चात ,आना हुआ ,क्या हुआ था ?
मैडम मैं एक दुविधा में फंस गई थी , आपने बताया था, कि मेरे पति पर किसी 'श्राप का साया' है, कोई आत्मा है , जो नहीं चाहती कि मेरा परिवार बढे , इसकी जानकारी के लिए ,मुझे अपने पति के मुख से, उस'' श्राप'' की संपूर्ण कहानी सुननी थी।

