Shrapit kahaniyan [part 97]

इंस्पेक्टर धीरेंद्र लालवानी , रमा को' अमवां ' गांव में बुला लेता है , वो  यह नहीं जानता था कि अनजाने में ही सही , सुबोध भी उसके पीछे आ रहा है। एक चट्टान पर आकर , इंस्पेक्टर धीरेंद्र लालवानी का व्यवहार आक्रामक हो जाता है। असल में वह स्वयं में[ इंस्पेक्टर] था ही नहीं, वरन  वह दीपशिखा ,के के सम्मोहन में बंधा हुआ था। जैसा वह उसे चला रही थी ,वैसा ही वह कर रहा था। रमा की मां और सुबोध , रमा को इंस्पेक्टर से बचाते हैं। तब सुबोध के साथ जो एक कोई अदृश्य शक्ति थी , वह इंस्पेक्टर को अदृश्य पाश  से बांध देती है। वहां उपस्थित सभी को, इंस्पेक्टर की चिल्लाने की और चीखने की आवाज़ तो सुनाई दे रही थीं किंतु समझ नहीं आ रहा था। वह ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है ? इस समय रमा उसकी दुश्मन थी और उसे मारकर वह, अपना लक्ष्य पूर्ण कर लेना चाहता था। वह चट्टान सूनी और अकेली थी यानी उसकी ऊंचाई तक कोई नहीं जाता था। रमा का शक सही निकला, जब उसने इंस्पेक्टर का इस तरह का बदला व्यवहार देखा , वह समझ गई ,वह अपने आप में नहीं है। वह जानती थी,' दीपशिखा' अपना बदला लेने के लिए कुछ भी कर सकती है। अबकी बार उसने इंस्पेक्टर को ही चुन लिया। जब'' रक्षक ही भक्षक'' बनने लगे , तब किससे रक्षा की गुहार लगाई जाए। 


उस' अदृश्य शक्ति ''का बंधन इतना मजबूत था कि इंस्पेक्टर अपने को छुड़ा नहीं पाया। दीपशिखा को अपनी योजना निष्फल लग रही थी। वह समझ नहीं पा रही थी -कि उसकी योजना क्यों निष्फल हो रही है ? किंतु आज वह हाथ आए शिकार को , हाथ से जाने देना नहीं चाहती थी। उसकी अंतर दृष्टि कह रही थी - ,'कोई तो है जो उनकी सहायता कर रहा है किंतु दिखलाई नहीं दे रहा। '' आखिर उसका इससे रिश्ता क्या है ? वह क्यों उनकी सहायता कर रहा है ? अपनी शक्ति के मद में चूर , दीपशिखा स्वयं उसी  चट्टान पर पहुंच जाती है और इंस्पेक्टर पर दबाव बनाती है,'' कि तुम इस लड़की को मार डालो ! उसके दबाव से प्रभावित हो , वह उस पाश से छूटना चाहता है किंतु छूट नहीं पाता। दीपशिखा , अपनी शक्तियों से जानने का प्रयास करती है कि ऐसी कौन सी शक्ति इस चट्टान पर है ? जो इसकी सुरक्षा कर रही है किंतु निष्फल हो जाती है। 

वह नहीं जानती थी , यदि शेफाली न चाहे , तो वह दीपशिखा को भी नहीं दिख सकती ,तब वह चिल्ला कर पूछती है , तुम जैसी भी शक्ति हो ,तुम्हें मैं नहीं जानती , किंतु जो कोई भी हो ,मेरे बीच में ना आए। चेतावनी देते हुए बोली - वरना ,अच्छा नहीं होगा। यदि मेरा सामना करने का साहस है, तो मेरे सामने आओ !

 दीपशिखा के सामने आने का अर्थ है ,सभी के सामने आ जाना। शेफाली को यह आशीर्वाद मिला हुआ था , यदि वह नहीं चाहेगी तो वह किसी को भी नहीं दिखेगी। उसके दंड का परिणाम देने से पहले , शैफाली ने सोचा-इसे समझा कर ही देख लेती हूं और वह दीपशिखा  को दिखने लगती है। उसे देखकर दीपशिखा हैरत में पड़ जाती है , और शेफाली को देखकर, आश्चर्य से उससे पूछती है -तुम यहाँ ..... 

रमा , सुबोध और रमा की मम्मी आश्चर्य से उस ओर देख रहे थे, जिस तरफ देख कर,' दीपशिखा ' किसी से बात कर रही थी। क्योंकि उन्हें तो वहां कोई भी नहीं दिखाई पड़ रहा था। वे लोग यह भी नहीं समझ पा रहे थे यह जो कोई भी अदृश्य इंसान है , वह दीपशिखा को भी जानता है और दीपशिखा उसे जानती है ,तब वह हमारी सहायता क्यों कर रहा है ? शैफाली ने उसे समझाया -तुम सुबोध के प्रेम में थीं , मुझे लगा -'तुम एक अच्छी लड़की हो , जिसका एक प्यारा सा प्यार भरा दिल है ,'किंतु तुम मेरे विचारों के विरुद्ध निकलीं। तुम यह सब क्यों कर रही हो ? मैं जानती हूं ,तुम्हारा पिछला जन्म कैसा था ? किंतु इस जन्म में तुम अपने कर्मों को सुधार तो सकती थीं तुमने अपने इस जीवन को भी व्यर्थ कर डाला। 

तुम तो मेरी दोस्त हुआ करती थी ना........ दीपशिखा उसे अदृश्य, इंसान से बोली। 

हाँ ,मैं तब तक तुम्हारी दोस्ती थी जब तक तुम ,एक नेक दिल इंसान थीं। किंतु आज तुमने देखा है कि तुम कहां से कहां आ गई हो ? मैं चाहती हूं तुम्हें जीने का एक और मौका मिले। 

तुम मुझे मौका देने वाली तुम, होती कौन हो ?'' तुमने मेरी पीठ मे छुरा घोंपा है। '' मेरी दोस्त होकर ,मेरे  दुश्मनों की सहायता कर रही हो। 

तभी उस अनजानी  दिशा की तरफ देखते हुए ,सुबोध आगे आया और बोला -तुम जो कोई भी हो, हमारी सहायता के लिए ,आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ! किंतु मैं जानना चाहता हूं जो हमारी सहायता कर रहा है , असल में वह है ,कौन ? तुम इसे दिखलाई दे सकती हो -हमें क्यों नहीं ? क्या हमें इतना भी जानने का हक नहीं, कि हमारा शुभचिंतक कौन है ? सुबोध की बात सुनकर, तब दीपशिखा को मालूम हुआ ,कि शेफाली मुझे ही दिख रही है किसी और को नहीं दिख रही। अब तक तो वह ,यही समझती आई थी कि शेफाली सभी को दिखती है किंतु आज उसे पता चला, कि  शेफाली कोई' अदृश्य छाया 'है। दीपशिखा भी जानना चाहती थी , आखिर यह कौन है ? मुझे ही क्यों दिख रही है ?


तभी सभी के सामने ,देवी जैसी सुंदरता लिए , एक लड़की, चट्टान पर खड़ी उन्हें दिखलाई देती है। यह देखकर ,सभी हतप्र्भ रह जाते हैं। सुबोध ने ही नहीं , अन्य सभी ने भी ,उस लड़की को देखा।  श्वेत वस्त्रों में वह कोई परी सी लग रही थी। दूध सी उज्जवल थी। फूलों सी उसकी मुस्कान थी। उसे देखकर सब देखते रह गए। वह कितनी सहज और सरल लग रही थी, तभी वह अपनी मधुर वाणी में बोली -मैं भी आप लोगों की तरह ही इंसान हूं , मैं एक'' शापित कन्या ''हूं। मेरा नाम शेफाली है,अपनी श्राप के कारण ही मैं ,किसी को दिखलाई नहीं देती  किंतु मुझे आशीर्वाद भी मिला हुआ है , यह मेरी इच्छा पर निर्भर करता है कि मुझे किसको दिखना है और किसको नहीं। 

दिखने में तो ,दीपशिखा भी उससे  काम नहीं थी किंतु उसकी सोच और उसके व्यवहार के कारण ,वह सभी को विभत्स्व  नजर आ रही थी। उसका चरित्र उसका व्यवहार , उसका डरावना रूप प्रस्तुत कर रहा था। जब दीपशिखा को एहसास हुआ कि यह तो कोई साधारण सी  लड़की है , तब वह बोली - तुम लोग मुझे नहीं जानते।  इंस्पेक्टर अभी भी, उसके सम्मोहन में था, तब दीपशिखा शेफाली से बोली -यदि तुम अपना भला चाहती हो और अपने को मेरी दोस्त मानती हो, तब तुम मेरे बीच में नहीं आओगी। 

शैफाली ने उसे समझाना चाहा , जो हो चुका उसको भूल जाते हैं , अब तुम अपना सामान्य जीवन जी सकती हो, इस तरह जिंदगी में आगे बढ़ते हैं। 

उसकी बात से , क्रोधित होकर, दीपशिखा, लगभग चिल्लाते हुए बोली -तुम अभी मेरी शक्तियों से परिचित नहीं हो मैं चाहूं तो तुम्हें ,चुटकियों में मसल सकती हूँ। 

अपनी शक्तियों का पर अभिमान मत करो , इन शक्तियों का उपयोग भलाई के लिए कर सकती हो किंतु किसी को कष्ट पहुंचाने के लिए नहीं, शेफाली उसे बार-बार समझा रही थी। ताकि दीपशिखा को सुधरने का मौका मिल सके। इंस्पेक्टर से कुछ भी करने की उम्मीद दीपशिखा छोड़ चुकी थी , उसने  इंस्पेक्टर से अपना सम्मोहन समाप्त कर ,तब वह स्वयं रमा की ओर लपकती है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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