कौन मैं ? क्या मेरी पहचान है ?क्या सिर्फ़ 'अल्फाज़'हूँ।
क्या मैं कोई' कलाकार 'हूं ? जो ऊंची भरता ,उड़ान है।
क्या मैं कोई' अभिनेता' हूं, अपने दर्द ओ ग़म से बेजार है।
छुपा लेता है ,जो उन अश्रुओं को,और दिखाता मुस्कान है।
क्या मैं एक 'लेखक 'हूं ? जिसे नित्य नवीन सृजन की तलाश है।
क्या एक नेक ' पत्नी '? जो निभाती अपने सहभागी का साथ है।
एक' बहन' जिसने ,अपने रिश्तों से बांधी, प्रेम की एक डोर है।
एक बेटी ,जो अपने पापा की' शहज़ादी' ,बढ़ाती उनका मान है।
एक' मां,' उत्तरदायित्वों को पूर्ण करती ,ढूंढती अपने आप को है।
या फिर एक जिद्दी 'चट्टान 'अड़ी है जो,अपने दम पर खड़ी है,वो !
या फिर एक 'भावुक मन ', जो गैरों के गम से, भावुक हो जाता है।
अपनों के लिए चिंतित , यह तन न जाने ,कितने रूप निभाता है ?
ओढ़े हैं उसने, न जाने कितने सामाजिक ,पारिवारिक उत्तरदायित्व !
पूछती हूं ,अपने आप से, क्या अभी भी मुझे पहचान की तलाश है ?
मेरे नाम की पहचान ,मेरे काम की पहचान ,या मैं सिर्फ़ अल्फाज़ हूँ।
उस मोहक अंतरात्मा की , जिसमें सभी रूप समाये हैं।
मैं एक नाम नहीं, एक रिश्ता नहीं, मैं। मैं[अहं ] भी नहीं ,
जो पढे भावों को ,छू ले मन को , ऐसा एक एहसास हूं।
मैं अपने में ही...अपने आप की, एक नई ''पहचान ''हूँ।
