बरखा के लिए दो रिश्ते आ जाते हैं , पहले वाला मेहनती और गरीब था , किंतु दूसरा तलाकशुदा ,अधेड़ उम्र का था , उसके पास बहुत पैसा था। प्यारेलाल जानता था ,यदि मैंने घर में,दूसरे रिश्ते की सच्चाई सबको बताई, तो कोई भी दूसरे रिश्ते के लिए तैयार नहीं होगा। किंतु प्यारेलाल कीआंखें तो ,पैसों के कारण चमक रही थीं।हो भी क्यों न...... इस पैसे को कमाने के लिए ,वो पूरी ज़िंदगी रिक्शा चलाता रहा ,किन्तु इतने मेहनत के पश्चात भी ,दो समय की रोटी ही कमा पाया। वो पैसे की कीमत को समझता है ,बिना पैसे तो, गुजारा ही नहीं ,आदर्श और बड़ी -बड़ी बातें भी तभी सुहाती हैं ,जब पेट भरा हो। उसे वो दिन स्मरण हो आये ,जब वो बीमार हो गया था और सोचना पडता था। रोटी खाएं या दवाई ,पैसों के लिए ही ,तो उसने अपनी बीमारी में भी रिक्शा खींचा। हाँ ,खींचना ही तो पड़ता था ,तन में ताकत नहीं थी ,रिक्शा चलाना भी मुश्किल लग रहा था। उसके मन में एक तरकीब आई और अपने घर आ गया।
दूसरी तरफ बरखा भी, अपनी नौकरी से संतुष्ट थी और उसका विशाल से मिलना भी हो जाता था। धनंजय जी भी , मन ही मन बरखा के काम छोड़ कर, जाने के कारण संतुष्ट थे , वह खुश थे ,उनके पोते का बरखा से पीछा छूटा। हर आदमी अपने में सतर्क और होशियार था , अपने कर्मों के आधार पर प्रसन्न भी था, किंतु सभी यह नहीं जानते , यदि जिंदगी इतनी आसान होती, सभी अपनी इच्छानुसार कार्य हो रहे होते। तो शायद ,इस दुनिया में परेशान होने वाले लोगों की संख्या कम होती । किंतु'' जिंदगी किसी के कहेनुसार नहीं चलती, किसी की सोच पर नहीं चलती , जिंदगी अपने अनुसार उन्हें चलाती है। '' यहीं इंसान मात खा जाता है , जैसा उसने सोचा हुआ होता है, वैसा तो होता ही नहीं। यही उन तीनों की जिंदगी में चल रहा था। सभी अपनी -अपनी समझदारी पर प्रसन्न थे।
प्यारेलाल घर में आकर , उसे लड़के का रिश्ता बताता है , उसकी पत्नी भी,यह सुनकर प्रसन्न हो जाती है। स्कूल से जब बरखा घर आती है, तब उसकी मां खुश होकर , उससे वह बात बताती है किंतु बरखा थी कि उसने कोई भी [इस बात में] दिलचस्पी नहीं दिखाई। किंतु मां के सामने यह भी दर्शाना नहीं चाहती थी कि वह खुश नहीं है। जब उसने धनंजय जी के घर का काम छोड़ा था, तब उसने सोच लिया था -'अब इसका उस लड़के यानी विशाल से कोई मतलब नहीं होगा।''ऐसा सोचना उसकी भूल थी।
माँ ने समझाया-'' ऐसे रिश्ते बार-बार नहीं आते , लड़का मेहनती है नौकरी करता है , कोई ठेला नहीं चलाता, पढ़ा- लिखा भी है , एक बेहतर रिश्ते के लिए और क्या चाहिए ? उसका व्यवहार उसके संस्कार उसके मिलने पर मालूम होंगे।
न चाहते हुए भी ,बरखा ने इस रिश्ते के लिए हां कर दी। नियत समय पर लड़का और उसके माता-पिता बरखा को देखने आ गए। बरखा को अच्छे से सजाया गया। लड़का तो बरखा को देखते ही, उस पर लटटू हो गया। माता-पिता को भी बरखा अच्छी लगी। श्याम भी देखने में सीधा और अच्छा इंसान लग रहा था। दोनों की रजामंदी से , लड़के लड़की को एक साथ बातचीत करने के लिए, एक स्थान पर बैठाया गया। शाम का परिवार प्यारेलाल के परिवार से, थोड़ा अच्छा खाता-पीता परिवार था। चाहत तो, उनकी बहुत थी कि दहेज में, काफी सामान मिले, लड़की भी कमा रही है , उसने भी कुछ पैसा जोड़ा होगा किंतु इस बात के लिए , अभी शांत रहे।
एकांत में श्याम ने बरखा से पूछा -तुम्हें मैं पसंद हूं ना.......
हां ,पसंद तो हो , किंतु अभी मैं शादी नहीं करूंगी।
क्यों ?
मैं अभी अपनी स्नातक की शिक्षा पूर्ण करना चाहती हूं , जिससे आगे चलकर, मेरी इससे भी अच्छी नौकरी लग सकती है।
बरखा के इस फैसले को श्याम सहर्ष मान गया। इसमें उसे कोई भी बुराई नजर नहीं आई , आगे पढ़ने आगे बढ़ना तो, अच्छी बात है , उसने अपनी सहमति जताई।
बरखा के मन में कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी , श्याम के माता-पिता के मन में ,दूसरी ही खिचड़ी पक रही थी और प्यारेलाल के मन में, अलग ही षड्यंत्र चल रहा था। हर व्यक्ति अपने को समझदार होशियार समझ रहा था , किंतु'' होनी ने जो लिखा है , उसे कोई टाल नहीं सकता।''
श्याम मन ही मन प्रसन्न था , उसे इतनी समझदार, सुंदर , पढ़ी-लिखी,सुलझी हुई लड़की मिली।
बरखा सोच रही थी- इसको शिक्षा के बहाने , अभी टरकाती रहूंगी और एक दिन विशाल और अपने बारे में इसे स्पष्ट रूप से सब समझा दूंगी।
श्याम के मन में कोई भी ऐसा भाव नहीं था कि वह कुछ भी गलत सोचे , वह तो अपने भाग्य को सराह रहा था। वह बरखा को देखते हुए,मन ही मन गुनगुना रहा था -
''धीरे-धीरे प्यार को बढ़ाना है ,हद से गुजर जाना है।'' वह खुश था , हमारा विवाह अब नहीं, कुछ दिनों बाद ही सही किंतु इस बीच हम एक दूसरे को जान लेंगे।
बिचौलिया श्याम के घर पर आया और उसने बरखा के माता-पिता से पूछा - लड़की कैसी लगी ?
लड़की तो ठीक है ,किन्तु मुझे नहीं लगता उसका बाप कुछ देगा।
कर दी न.... ओछी बात ,कमाऊ लड़की तो दे रहा है ,दहेज तो एक बार आएगा ,वो तो हर महीने दहेज में ,अपनी तनख्वाह लाएगी और पूरी जिंदगी कमाकर देगी ,उसके बाप ने तो दहेज के लिए पहले ही मना कर दिया था। अब तो भगवान से शुक्र मनाओ !कि उस लड़की से तुम्हारे लड़के का विवाह हो जाये ,उसका बाप बहुत लालची है। वो तो अपनी बेटी का विवाह ,किसी पैसेवाले से करने के जुगाड़ में है।जहां से उसे ही दो पैसों का फायदा होगा। वो तो ,मैंने तुम्हारी बात पहले रखी ,एक आँख मारते हुए ,जैसे उसने कोई रहस्य खोला हो । तुम लोगों में इतनी पढ़ी -लिखी और कमाऊं लड़की मिलती ही कहाँ है ?अच्छा रिश्ता है ,'आँख मूंदकर विवाह कर लो !''फायदे में रहोगे।
श्याम के माता -पिता को ,ये बात जम गयी,उसकी माँ ने कहा -देर किस बात की है ?भाईसाहब ! आप बात आगे बढ़ाइए , उसके हाथ में चाय की प्याली पकड़ाते हुए बोली।
बहनजी !वो ही तो मैं कह रहा हूँ ,चाय का घूंट भरते हुए वो बोला -आगे कोई अड़चन न आये इसीलिए ,जो हो रहा है ,चुपचाप हो जाने दीजिये ,उनके किसी शुभचिंतक की तरह उन्हें समझा रहा था क्योंकि बरखा के पिता की आँखों में, उसने लालच देखा है ,उसे नहीं लग रहा था ,वो इस रिश्ते को इतनी आसानी से होने देगा।

