सुबोध की बेरुखी के कारण , दीपशिखा को बुरा लगता है और वह नाराज होकर कहती है -''अब तुम अपनी कहानियों के संग ही जीना ,वे भी जीवित हो जाएगी।'' उसे समय तो सुबोध ,उन शब्दों का अर्थ नहीं समझ सका। किंतु जैसे-जैसे समय बिता और उसने अपनी कहानी लिखी , वैसे-वैसे उसे आभास होने लगा , कि उसकी कहानी जीवंत हो रही हैं। जो घटनाएं अथवा दुर्घटना है वह अपनी कहानी में दर्शा रहा था। वैसा ही प्रत्यक्ष हो रहा था। उसके लिखने की उड़ान में,अब अवरोध आ गया था , उसे सोच कर लिखना पड़ रहा था ताकि कुछ गलत ना हो जाए किंतु ऐसा संभव नहीं था। अपने शब्दों को परखने के लिए , उसने आदिवासियों के ऊपर एक कहानी लिखी , उसने सोचा -'आसपास यहां कोई आदिवासी तो रहता नहीं है , इस कहानी का प्रभाव कितनी दूर तक जा सकता है ? कहानी लिखकर वह निश्चित हो गया।उसे ऐसा कुछ भी सुनने नहीं मिला ,जिसके कारण ,उसे गलत लगे।
एक दिन ,वह बैठा हुआ , टेलीविजन पर, आदिवासियों के ऊपर'' वृत्तचित्र'' देख रहा था। जिसमें हुबहू उन घटनाओं को दिखलाया गया ,जो कि उसने अपनी कहानी में लिखी थीं। यह देखकर वह आश्चर्य चकित रह गया और थोड़ा घबरा भी गया। अपनी कहानी को उठाकर लाया , कहीं उसे कोई भूल तो नहीं हो गई किंतु उसने देखा उस' वृत्तचित्र 'में भी वही दिखलाया गया है। एक आध बार और उसने लिखने का साहस किया किंतु अब लिखते समय उसे डर लगने लगता। इन चीजों से घबराकर उसने लिखना ही छोड़ दिया।
अच्छा !तो आपका, कहानी ना लिखने का यह कारण है , प्रभा उसकी बातों का अर्थ समझते हुए बोली -तुम उससे मिलकर , भी तो अपनी समस्या का समाधान कर सकते थे।
कैसे करता ? कुछ दिन तो, इस बात को समझने में और परखने में ही बीत गए , मैं तो यह समझ रहा था ,चलो ! उसने मुझे छोड़ दिया किंतु मुझे क्या मालूम था ? वह मुझे जिंदगी भर का'' श्राप ''देकर गई है। मैं बहुत परेशान रहा , तब मैंने सोचा- उससे ही मिलकर बात कर लेता हूं ,कॉलेज गया ,किंतु वह मुझे नहीं मिली।
इधर इंस्पेक्टर ने रमा को , मंदिर के पीछे वाले बगीचे में बुलाया था किंतु रमा अभी सतर्क थी, और उसे समय भी नहीं मिल पाया। इंस्पेक्टर तो, 'दीपशिखा 'के सम्मोहन में था। तब इंस्पेक्टर ने रमा को धमकी देते हुए , कहा-मैं यह सब आप लोगों के लिए ही कर रहा हूं , मैं अपनी जान जोखिम में डालकर,आप लोगों की जान बचाना चाहता हूं और आप हैं कि सहयोग नहीं कर रही हैं। यदि आपको यहां पर, इस शहर में, दीपशिखा का डर है, तब मैं आपसे शहर से बाहर भी मिल सकता हूं। जिस स्थान पर उसने मिलने के लिए बुलाया , वह एक पहाड़ी इलाका था। दिन निश्चित करके , वह लोग उस स्थान पर पहुंचे।
मैं भी,'' दीपशिखा'' की तलाश में , तांत्रिक मतंग के पास पहुंच गया। मेरे बहुत कहने -सुनने पर ,समझाने पर , उसने मुझे बताया -आज एक लड़की का अंत निश्चित है , और वह लोग'' अमवां '' गांव में मिलने वाले हैं। मेरी समझ में नहीं आया। ऐसी कौन सी लड़की है ? जो ''अमवां '' गांव में मिलने जा रही है। मैं जैसे ही , तांत्रिक मतंग ''की झोपड़ी से बाहर आया , मुझे एहसास हुआ ,जैसे मेरे साथ कोई है। मैं बहुत घबराया हुआ था , कुछ समझ नहीं आ रहा था। कौन लड़की है और उसकी मुझे कैसे जान बचानी है ?
मेरी घबराहट इतनी बढ़ गई थी ,कि मैं सड़क पर चलते हुए ,यह भी नहीं देख पाया कि सामने से बहुत बड़ा ट्रक आ रहा था। मैं अपनी ही परेशानी में ,सीधा आगे बढ़ा चला जा रहा था। तभी मुझे एहसास हुआ ,जैसे मुझे खींचकर किसी ने, सड़क के किनारे पर खड़ा कर दिया। जब मैं ''तांत्रिक मतंग'' के आश्रम से बाहर निकला था , तब मुझे किसी के होने का एहसास तो हुआ था किंतु इसका दोषी मैं उस तांत्रिक को समझ रहा था , शायद उसने मेरे पीछे कोई जादूई शक्ति या कोई आत्मा छोड़ दी है। यही मेरी घबराहट का कारण था। किंतु उस अदृश्य शक्ति ने मुझे बचा लिया , तब मुझे एहसास हुआ, कि वह शक्ति मेरी जान के पीछे नहीं ,बल्कि मुझे बचा रही है। तब मैंने हाथ जोड़कर ,उस अदृश्य शक्ति से कहा -''तुम जो कोई भी हो, तुमने मेरी जान बचाई है , उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ! किंतु यदि तुममें और भी शक्तियां हैं , तुम कोई अच्छी आत्मा हो ! तो मेरी मदद करो ! मैं नहीं जानता, वह कौन लड़की है ?जो आज कालग्रसित होने वाली है। मैं यह भी नहीं जानता , मैं किस तरह उसकी सहायता करूंगा ? किंतु अब मैं, उस लड़की को बचाने के लिए ''अमवां '' गांव जाने वाला हूं। हो सके तो ,उस लड़की को बचाने में मेरी सहायता करना। ''
मैंने जिससे जो भी कहा , मुझे उसका प्रमाण नहीं मिला कि सच में वहां कोई था या नहीं , कोई मेरे साथ है या नहीं , किंतु ऐसा अवश्य लग रहा था जैसे मेरे चारों ओर कोई सुरक्षा कवच बना हुआ है और मैं उसे घेरे में सुरक्षित हूं। मेरे आस-पास किसी के होने का मुझे एहसास हो रहा था। किंतु मैं उस अनजान लड़की के लिए , चिंतित था। अपने घर जाकर ,पहले मैंने अपने घरवालों को बता दिया -कि मैं पास के ही गांव में जा रहा हूं ताकि उन्हें मेरी फिक्र ना हो। उस गांव में पहुंच कर देखा वहां पर तो बहुत सी पहाड़ियां हैं , किस पहाड़ी पर , उन लोगों को मिलना है। मैं वहां के ग्रामीण लोगों से पूछते हुए , आगे बढ़ रहा था। अनजान दिशा ,अनजान लोग और जिन्हें मैं बचाने का प्रयत्न कर रहा था, वह भी अनजान ही थे , मैं सिर्फ इतना ही जानता था -कि कोई पुलिस वाला है , जिसने उस लड़की को बुलाया है। मुझे घबराहट ,इस बात की भी थी , यदि वह पुलिस वाला ,साधारण वेशभूषा में हुआ , तब मुझे, उन लोगों को ढूंढना और भी कठिन हो जाएगा।
तब जैसे कोई मेरे लिए'' पथ प्रदर्शक'' बनकर आ गया , एक व्यक्ति मेरे सामने आया और बोला मैंने एक लड़की और एक महिला को एक पुलिस वाले के साथ, जाते देखा है और उसने मुझे रास्ता भी बतलाया। ऐसे समय में वह व्यक्ति मुझे , भगवान का भेजा हुआ कोई दूत ही नजर आ रहा था , हो सकता है , जो अदृश्य आत्मा मेरे साथ चल रही है उसका ही दिया हुआ कोई इशारा हो। मैं इस दिशा में आगे बढ़ गया। लगभग आधा घंटा चलने के पश्चात , मुझे तीन चार लोग दिखाई दिए , वह लोग मुझे नहीं जानते थे और मैं उन्हें नहीं जानता था किंतु जब मैंने रमा को देखा तो उसे पहचान गया, अरे !यह तो मेरे कॉलेज की ही लड़की है , हालांकि मैंने कभी उससे बात नहीं की थी , कभी कभार उसे कॉलेज में ही आते -जाते देखा था।
मुझे देखकर बोली-भैया आप मुझे पहचान गए , मैं आपकी जूनियर हूं, मैं आपको अच्छे से पहचानती हूं। पुलिस वाले ने मुझे देखा और मैंने उसे देखा ,वह बस मुझे लगातार घूरे जा रहा था। जैसे अपने आपे में ही नहीं था।
इंस्पेक्टर ने मुझे डांटते हुए कहा -तुम यहां क्या कर रहे हो ?
वैसे ही सर ! घूमने आया था , मैं इंस्पेक्टर पर नजर रखते हुए ,आसपास टहलने लगा। एकाएक इंस्पेक्टर का रूप बदल गया और वह रमा से बोला -यह तूने अच्छा नहीं किया , इसे साथ में क्यों लेकर आई ?
इंस्पेक्टर साहब ! मैं इन्हें ,अपने साथ नहीं लाई हूं। मैं तो इन्हें जानती भी नहीं और ना ही यह है मुझे जानते हैं। हम लोग तो आज अचानक ही मिल गए। अब आप अपनी बात बतलाइए ,आपने मुझे इस गांव में, इस तरह क्यों बुलाया है ?
तभी इंस्पेक्टर बोला -तू क्या समझती है ? इंस्पेक्टर से मेरी शिकायत करके ,तू दीपशिखा से बच जाएगी ,ये तूने अच्छा नहीं किया। दीपशिखा अपने दुश्मन को इतनी आसानी से नहीं छोड़ती। दूर खड़ा सुबोध उन पर नजर तो रखे हुए था किंतु समझ नहीं पा रहा था ,इंस्पेक्टर ,रमा से क्या बातचीत कर रहा है ? तभी सुबोध ने देखा , इंस्पेक्टर आक्रामक हो चला था , दौड़कर सुबोध ने , इंस्पेक्टर को पीछे से आकर कसकर पकड़ लिया। न जाने इंस्पेक्टर में, कहां से इतनी ताकत आ गई थी ? उसने सुबोध को धक्का दिया और रमा की तरफ लपका , अपनी बेटी को बचाने के लिए , उसकी मां भी ,इंस्पेक्टर के सामने आकर खड़ी हो गई। इंस्पेक्टर किसी रोबोट की तरह , किसी के कहेअनुसार अपना कार्य कर रहा था। वह यह नहीं जानता था कि वह सही कर रहा है या गलत ! उसकी नौकरी के लिए भी यह अच्छा नहीं था किंतु उस समय वह अपने आपमें नहीं था। वह तो दीपशिखा के सम्मोहन में था ना......
तभी हमें लगा जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने , इंस्पेक्टर को बांध दिया हो। वह चीख रहा था ,चिल्ला रहा था किंतु हिल नहीं पा रहा था। उसे देखकर ऐसा लग रहा था ,रमा उसकी दुश्मन है और आज उसका लक्ष्य , उसे पूर्ण करना है।

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