,विशाल के कहने पर ,मैं छोटे बच्चों को पढ़ाने लगी, इससे मेरे अंदर आत्मविश्वास जगा ,मैं उस घरेलू नोेकरानी की कुंठा से बाहर आ गयी। उधर धनंजय जी ,जो विशाल के दादा जी थे ,उन्हें भी, मेरे काम छोड़ने से प्रसन्नता हुई किन्तु तब तक मैं नहीं जानती थी कि धनंजय जी को ,हमारे विषय में ,सब पता चल चुका है ,उनकी नाराजगी का कारण भी वही था। अब विशाल जब भी आता ,किसी न किसी दोस्त के माध्यम से मुझे संदेश भिजवा देता और मैं कॉलिज जाती। वहाँ से हम दोनों ,उसके किसी दोस्त के हॉस्टल के कमरे में मिलते। मैं उससे अब. किसी अजनबी की तरह नहीं वरन उस पर अपना अधिकार समझती थी।
इधर मेरे परिवार में ,एक बात और मेरी ज़िंदगी में ,हलचल मचाने के लिए शुरुआत हो रही थी। एक आदमी अक्सर मुझे रोजाना घर से जाते देखता ,उसने मेरे लिए ,रिश्ता भी बताया। मेरे पापा को समझाया -अब तुम्हारी लड़की पढ़ भी ली और नौकरी भी कर रही है ,मेरी नजर में ,एक लड़का है ,अच्छी नौकरी करता है। तू कहे तो, उससे ब्याह की बात चलाऊँ।
दान -दहेज़ देना ,मेरे बस का नहीं है। उनसे पहले ही बात कर लेना।
नहीं ,उसे तो अच्छी लड़की चाहिए ,तेरी लड़की तो पढ़ी -लिखी है ,नौकरी करके ,उसका हाथ ही बटायेगी।
फिर ठीक है जैसा ,तुम चाहो !
उसकी हाँ सुनकर ,वो चल दिया तभी जैसे उसे कुछ स्मरण हुआ और बोला -एक रिश्ता और है ,तू कहे तो उनसे भी पूछकर देख लूँ ,वे थोड़े पैसेवाले हैं। पैसेवाले की बात सुनकर ,प्यारेलाल की लार टपकने लगी।
तब उसके और करीब आकर बोला -ये रिश्ता पहले क्यों नहीं बताया ?
क्योंकि इस रिश्ते में एक कमी है , वह लड़का कुछ ज्यादा बड़ी उम्र का है।
कितनी ज्यादा उम्र है ?
यही कोई ,[सोचते हुए ]पैंतीस -छत्तीस का होगा। किंतु अच्छे खाते पीते घर - परिवार का है , सेहतमंद है इतनी उम्र का लगता नहीं है।
यह तुम कह रहे हो ,प्यारेलाल बोला- यदि तुमने ,पेंतीस -छत्तीस का बताया है तो जरूर दो-चार साल और बड़ा ही होगा, प्यारेलाल अपनी अनुभवी नजरों से बोला।
अरे मैं क्या पंडित हूं , या उसकी मां ,जो सही उम्र बता दूंगा अंदाजा लगाया है , हो सकता है, दो-चार साल उम्र कम भी हो, किंतु पैसा बहुत है , अपना काम है, बहुत बड़ा मकान है। तुम कहोगे तो,चालीस -पचास हजार जेब में भी डलवा दूंगा , माचिस की तीली से अपने कान को कुरेदते हुए बोला -तुम लोग भी, ब्याह के लिए अपने अच्छे-अच्छे कपड़े बनवा लेना।
एक बात पूछूं ,
पूछो !
उसकी इतनी उम्र हो गई ,अभी तक उसने विवाह नहीं किया।
आंखें चुराते हुए वह बोला -अब पैसे वाला आदमी इतने दिन कहां कुंवारा बैठा रहेगा ? वह तो पहले वाली से तलाक हो गया , उससे पटती नहीं थी।
तो यह कहो ना तलाकशुदा आदमी से, रिश्ता लेकर आए हो।
तुम्हें क्या करना है ? तुम्हारे घर में एक ढंग की खाट तो है नहीं, तुम्हारी लड़की को, वह सुख मिलेगा जो उसने,अब तक पूरी जिंदगी में न देखा होगा। तब तो वह मालकिन हो जाएगी , तेरी और तेरे बच्चों की भी मदद कर दिया करेगी, उसने प्यारेलाल को लालच दिया। प्यारेलाल को यह रिश्ता पसंद तो आ रहा था , उसकी चमकती आंखों को देखकर वह व्यक्ति बोला -तुम्हारी बिटिया राज करेगी , नौकर जाकर होंगे , उसके साथ ही तेरे घर के रास्ते को भी ,लक्ष्मी देख लेगी, उसके घर जाते-जाते ,तेरे घर भी ठहर जाया करेगी आखिर तेरा घर भी तो, मालकिन का मायका जो ठहरा।
तो तुम बात चलाओ ! मैं भी घर में बात करके देखता हूँ।
किससे ? अपना पान सड़क पर थूकते हुए , उसने मुस्कुरा कर प्यारे लाल की तरफ देखा।
प्यारेलाल असमंजस में पड़ गया , वह सोच रहा था -यदि मेरी पत्नी को , या बरखा को पता चल गया कि अधेड़ उम्र के व्यक्ति से , मैंने रिश्ते की बात कही है, कहीं घर में कोहराम न मचा दें। यदि उस लड़के की बात करता हूं , उसके लिए शायद ,वह मान जाए। धीरे-धीरे उसे पैसे वाले आदमी की भी बात करके देख लूंगा। प्यारेलाल उस व्यक्ति से बोला -पहले उसे लड़के का रिश्ता लेकर आओ !
उसे व्यक्ति ने पान चबाते हुए प्यारेलाल की तरफ देखा, वह मन ही मन सोच रहा था, बड़ा काइंया आदमी है। अवश्य ही ,इसके मन में कोई न कोई योजना चल रही है।
जैसी तुम्हारी मर्जी कहकर, वह वहां से चला गया। प्यारेलाल सोच रहा था पहले इस लड़के का रिश्ता लेकर जाता हूं , कुछ दिन पश्चात ,उसमें कुछ न कुछ कमी निकाल कर ,उससे रिश्ते को इनकार कर दूंगा , उसके पश्चात, उस आदमी का रिश्ता बताऊंगा। लक्ष्मी मेरे घर का रास्ता देखना चाहती है, तो क्यों ना मैं ,उसका दोनों हाथों से स्वागत करूं।
अपने घर में धनंजय जी और उनकी पत्नी अब शांत थे , उन्होंने बरखा के स्थान पर , किसी अन्य लड़की को अपने घर के काम के लिए रख लिया था। मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे, चलो !उस लड़की से पिंड छूटा , उसने तो हमारे पोते को ही , अपनी जवानी के जाल में फंसा लिया। कैसे मां-बाप हैं ? जो लड़कियों को इतनी छूट दे देते हैं।
हम उस लड़की को जितना सीधा समझ रहे थे ,उतनी सीधी नहीं थी, अपनी बेटी की तरह मान सम्मान दिया , वह तो हमारे घर की मालकिन ही बनने की सोचने लगी ,धनंजय जी अपनी पत्नी से बोले।
चलो जी ,जो होता है अच्छे के लिए ही होता है , सुना है ,कहीं स्कूल में नौकरी कर रही है , वैसे लड़की होशियार बड़ी थी , सारा काम झट से सीख गयी और अपनी पढ़ाई भी की। अब जो नई लड़की आई है ,मुझे उसे काम समझाना पड़ता है , उसके साथ वहीं खड़े रहना पड़ता है , बरखा के रहने पर मैं निश्चित थी।
होशियार थी , तभी तो हमें होशियारी दिखाने लगी , अपनी निश्चितता का नतीजा देख लिया ,सीधे हमारे पोते के बिस्तर पर ही पहुंच गयी ,वो तो अब उसे नहीं दिखेगी ,उसके प्रेम में पड़ जाता तो मैं, विशाल के बाप को क्या मुँह दिखाता ? धनंजय जी चिढ़कर बोले।

