सुबोध के मुंह से , दीपशिखा की बातें सुनकर ,प्रभा को क्रोध आया और बोली -कितनी ढीठ लड़की थी ? जबरदस्ती ही अधिकार जतला रही थी।
प्रभा की बात सुनकर, सुबोध बोला -वह लड़की नहीं चुड़ैल थी , जो लड़की के रूप में नजर आ रही थी।
आगे क्या हुआ ? यह तो बताओ ! प्रभा बोली।
आगे क्या होना था ? तुम्हारा पति ठहरा ,आशिक मिजाज आदमी और उसके सामने जब सौंदर्य की रानी 'मेनका अप्सरा' खड़ी हो तो बताओ, एक सीधा-साधा आदमी क्या कर सकता है ?इतने बड़े ऋषि ,मुनि भी मेनका के सामने न टिक सके , मैं तो एक आम इंसान हूं। मुस्कुरा कर सुबोध ने अपनी पत्नी की तरफ देखा। क्या होना था ? हुआ वही ,जो दीपशिखा चाहती थी।
तुम..... और सीधे-साधे , प्रभा सबोध को घूरते हुए बोली-मुझसे तो पूछो ! मैं कैसे ,इतने सीधे पति के साथ रहती हूं ? प्रभा ने सुबोध की बात से चिढ़ने की बजाय , उस पर ही तंज कसा।
कैसे रहती हो ?जरा हमें भी तो बताओ !कहते हुए सुबोध ,उसके करीब आया ,वो और करीब आ पाता ,उससे पहले ही ,प्रभा ने अपने हाथ आगे करके उसे रोक दिया और बोली -पहले दीपशिखा नाम की उस चुड़ैल के विषय में तो बताओ !आगे क्या हुआ ?उसने तुम्हें ''श्राप ''कैसे दिया ?उसका अंत हुआ या नहीं।
बता रहा हूँ ,जरा ''मूड़ फ्रैश ''करने के लिए एक कप चाय हो जाये।
ठीक है ,लाती हूँ ,कहते हुए प्रभा चली जाती है। उसके जाने पर सुबोध सोच रहा था - एक ये है ,कितनी सुलझी हुई ,हमेशा साथ खड़ी रहती है ,और एक वो थी जिसे अपने सिवा न ही माता -पिता दिखे ,न ही उसे किसी से प्यार था, कितनी स्वार्थी थी ?चाय का कप ,पकड़ाते हुए प्रभा मुस्कुराते हुए बोली -किस चुड़ैल के विषय में सोच रहे हो ?उसने ये सोचकर पूछा था ,अवश्य ही... ये दीपशिखा के विषय में सोच रहा होगा।
अब इसमें ,मेरी कोई गलती नहीं है ,चाय पीते हुए , सुबोध को हंसी आ गयी।
ऐसा तुमने क्या किया ?जो अपनी गलती की पहले ही ,सफाई दे रहे हो।
तुम ही तो पूछ रहीं थीं- किस चुड़ैल के विषय में सोच रहे हो ,''गुस्ताख़ी माफ़ मोहतरमा !''मैं आपके विषय में ही सोच रहा था- कि मेरी बीवी कितनी अच्छी है ?कहते हुए वो हंसने लगा।
बात को समझकर ,प्रभा खिसिया गयी ,वो अपनी इस वार्तालाप से सुबोध को हराना चाहती थी किन्तु उसका दाव अब भी, गलत पड़ गया , तब उसने तकिया उठाया और उसके मारते हुए बोली -देखा ,मेरा पति कितना सीधा है ?अपने व्यंग्यों से ही,मुझे मात दे रहा है ,इससे आगे अब मेरी लड़ने की इच्छा नहीं हैं ,अब अपनी कहानी को आगे बढ़ाइए।
हाँ ,हाँ आज भी दीपशिखा मेरे कमरे में आई थी ,और मैं अब उसके विषय में जान गया था ,इसीलिए अपने परिवार को लेकर थोड़ी घबराहट थी। वो अपनी मादक अदाओं का जलवा मुझ पर बिखेर रही थी। मुझे उस पर क्रोध आने के साथ -साथ ,हमदर्दी भी हो रही थी कि कितने अच्छे परिवार की लड़की न जाने किन लफड़ों में फंस गयी ? तब मैंने उससे पूछा-क्या तुम्हारे घर वालों को यह सब मालूम है ?
वह मुस्कुराते हुए बोली -मैं ऐसा क्या कर रही हूं ?जो उन्हें पता होना चाहिए। तुमसे मिलने आना कोई गलत बात है , क्या, तुम मेरे दोस्त नहीं ? कहते हुए वो मेरे करीब आई।
किंतु तुम तो मुझे कुछ और ही समझती हो, उसकी आंखों में झांकते हुए मैंने उससे पूछा।
हाँ ,,मैंने तुम्हें दिल दिया है ,किन्तु तुम्हारे पास तो दिल ही नहीं ,कहते हुए ,उसने मेरे सीने की तरफ हाथ फिराया ,न जाने उसने ऐसा क्या किया ?मेरे दिल में दर्द सा होने लगा , यह तुमने क्या किया ? घबराते हुए मैंने पूछा। मुझे दर्द हो रहा है।
उसने अपना हाथ हटा लिया और बोली -देखना चाहती थी, तुम्हारे सीने में दिल है या नहीं।
अपने दर्द को सहलाते हुए ,मैंने कहा ,ऐसे कौन देखता है ?
बस, मेरा यही अंदाज है ,कहकर वो मुस्कुरा दी।
इससे पहले कि वो कुछ और हरकत करे ,मैंने उससे कहा -अब मैं अपनी कहानी लिख लेता हूँ ,तुम थोड़ा शांत रहोगी।
तुम्हारे सामने जीती -जागती कहानी है ,तुम उसे पढ़ो न.... इसे छोड़ दो ! कहते हुए ,उसने मेरे कागज- पैन हटाकर एक तरफ कर दिए और बोली -पहले किसी की याद में ,कविता लिखते थे ,अब किसको लेकर कहानी लिख रहे हो।अभी तो शुरू ही की है ,मेरे ऊपर कहानी लिखो न.... यहाँ से कहानी लिखना आरम्भ करो !कहकर उसने सुबोध को अपनी तरफ खींचा । उसके इस तरह अचानक खींचने से सुबोध लड़खड़ा गया। वैसे तो वो संभलकर बोल रहा था किन्तु अचानक ही उसके मुँह से निकला ,ये क्या बदतमीजी है ?सबसे पहले तो तुमने मुझे कहानी लिखते हुए रोका , मेरा सामान कितनी लापरवाही से फेंक दिया ?मेरे अचानक इस बदले रवैये से ,अचानक से उसके चेहरे का रंग भी बदल गया। मेरे इस तरह डांटने पर ,वो अपने को अपमानित महसूस कर रही थी। उसके चेहरे से स्पष्ट नजर आ रहा था।'' जाओ !अब तुम अपनी कहानी लिखो ,तुम्हारे लिए ,मेरे यहाँ आने का कोई महत्व नहीं ,''अब तुम अपनी कहानियों के संग ही जीना ,वे भी जीवित हो जायेंगी। ''कहकर वो बाहर निकल गयी। मुझे डर था ,कहीं वो मुझ पर या मेरे घरवालों पर कोई जादू -टोना ,या कुछ तंत्र -मंत्र न कर दे किन्तु उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया और चली गयी।
इसमें तो कुछ भी बुरा नहीं है ,जो ऐसा लगे कि उसने श्राप दिया है ,प्रभा बोली।
पहले मैं भी ,यही समझता था किन्तु बाद में मुझे एहसास हुआ कि जो वो कह कर गयी ,मेरे लिए श्राप बन गया क्योंकि जैसे ही मैंने कहानी लिखी ,मेरे आस -पास ऐसे ही मिलती -जुलती घटनाएं होने लगीं। पात्र ,घटनाएँ ऐसे ही होने लगीं ,मैंने परखने के लिए ,कुछ भी लिखकर ,कहानी के कुछ हिस्से लिखकर देखें ,तब घटनाएं ऐसी ही होने लगीं। कोई कहानी अच्छी बनी तो अच्छा हुआ ,तब मुझे आभास हो गया ,अब कहानियों की उड़ान भरना मेरे लिए आसान नहीं था ,मेरा दायरा सीमित होने लगा धीरे -धीरे मैंने कहानी लिखना ही बंद कर दिया।

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