प्रातः काल ,जब अमृता जी उठीं ,तब उन्हें ज्ञात हुआ ,कि ''जेल ''में पुरुषों की जेल की तरफ हड़कंप मचा था। क्या घटना हुई ,अभी किसी को भी ,कोई जानकारी नहीं है। इंस्पेक्टर' तनु 'जेल का एक चक्कर लगाने आती है। इतने खूंखार और डरावने से अपराधी देखकर ,एक बारगी ,उसे भी ड़र का एहसास होता है। कोई -कोई तो इतना लम्बा -तगड़ा है ,उसके सामने वो अपने को बौना महसूस करती है। फिर भी उसे अपना कर्तव्य तो निभाना ही है। जांच द्वारा पता चलता है , आज एक नई लड़की नहीं है , वह अभी कुछ दिन पहले ही तो आई थी। इस तरह अकेली, जेल की दीवारें फांदकर, कैसे जा सकती है ? तनु का माथा ठनका , वह कोई जन्मजात अपराधी नहीं थी , ऊपर से लड़की जात, जिस जेल की दीवारों को , बड़े-बड़े अपराधी नहीं फांद सके ,एक नई लड़की कैसे दीवार फांदकर जा सकती है ?
बरखा, जब अमृता जी के करीब आई , तब वह बोली -ऐसा हो ही नहीं सकता , अवश्य ही जेल में, उसे लड़की के साथ कुछ अनर्थ हुआ है।
तुम यह बात इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकती हो ?अमृता ने पूछा।
मैं उसे लड़की को जानती हूं, मैंने उसे देखा है और उससे बात की है। हां ,यह मानती हूं कि उससे गलती हुई है किंतु मुझे नहीं लगता ,कि वह इस तरह , बिना किसी की सहायता के जेल से भाग सकती है। मुझे तो लगता है ,लड़कियां गायब तो हो रहीं हैं किन्तु उसके पीछे भी कोई दूसरा ही लाभ उठा रहा है। आपने देखा नहीं ,कितने वहशी, खूंखार कैदी इस जेल में है ?इंस्पेक्टर साहिबा भी ,उनसे कुछ दूरी बनाकर रखतीं हैं।
नहीं ,मैं तो यहीं आसपास ही घूमकर ,अपने स्थान पर चली जाती हूँ। जब ज्यादा किसी से लेना -देना ही नहीं है ,तो क्यों ज्यादा बटोरना है ? सब यहीं रह जाना है ,अब तुम यही देख लो !ये तो जेल है ,किन्तु बाहर भी हम समाज में ,समाज की बातों में ,जितनी गहराई तक चले जाते हैं ,उतनी ही,हमारी परेशानियाँ बढ़ती जाती हैं।
बरखा उनका दृष्टांत सुनकर मुस्कुराई और बोली -मैडम जी ,आपकी उम्र हो चली है ,इस उम्र में थकावट होना स्वाभाविक है ,आप देखने और सुनने के सिवा क्या कर सकतीं हैं ?किन्तु इतना तो मैं जानती हूँ ,इस जीवन में ,हमें अपने -अपने कर्म करने हैं ,अच्छाई -बुराई को अलग करके ,जितना सम्भव हो सके ,उतनी ही हमे अपने समाज और परिवार के प्रति उत्तरदायित्वों को पूर्ण करना चाहिए। अपनी उम्र या कोई और बहाना लेकर हम, इस जीवन के उत्तरदायित्वों से मुक्त नहीं हो सकते। कोई अच्छा करता है या बुरा किन्तु हमारा अपना व्यवहार है किन्तु उसके कारण हमें ,अपने अन्य उत्तरदायित्व नहीं भूलने हैं।
बरखा की बातें सुनकर ,अमृता जी उससे प्रभावित हुईं और बोलीं -जब तुम इतनी ही समझदार हो ,तब तुम्हारी कहानी में ,कैसे परिवर्तन हुआ ? तुम कैसे ''जेल ''पहुंच गयीं।
वो तो ,मैडम जी ,दिल का मामला था ,उस बात से ,उसके चेहरे के भाव तुरंत ही बदल गए ,बोली -मैडम जी ,उस दिन मैं, काम पर जाना नहीं चाहती थी किन्तु मुझे मेरी माँ की एक बात जो मेरे दिल को लगी कि समय पर न आने के कारण ,या किसी भी बहाने से उन्होंने मुझे काम से निकाल दिया और मेरा उनके घर में आना -जाना बंद हो गया, तब मैं, विशाल से कैसे मिलूंगी ?मुझे उसके आने का भी नहीं पता चल पायेगा। ऐसी स्थिति में,तब विशाल अपने दादा-दादी से ये तो नहीं पूछेगा - कि बरखा कहाँ है ?उसका घर कहाँ है ?उसके दादाजी पता नहीं क्यों ? आजकल वैसे ही मुझसे नाराज रहते हैं। यही सब सोचकर मैं, अपने काम पर चली गई किंतु उस दिन मन उदास था।
मेरा चेहरा देखकर ,उसकी दादी ने भी पूछा था -क्या कोई बात है या कोई परेशानी है ?
मैंने अपना दर्द, अपने अंदर छुपा लिया , सोच रही थी -इनसे बताने से भी क्या हो जाएगा ? मेरी परेशानियां तो कम नहीं हो जाएंगीं। मैं बस विशाल के प्रतीक्षा में थी। बस एक बार वह आ जाए, तो सारी बातें समझ में आ जाएं। एक दिन मैंने ,दादी जी को बताया -मेरे विवाह के लिए घर पर लड़का देख रहे हैं।
दादी खुश होते हुए बोलीं -इसमें बुराई ही क्या है ? यह तो अच्छी बात है , जीवन में आगे बढ़ना चाहिए , तुम कब तक ? इस तरह काम करके अपने परिवार वालों का पेट पालती रहोगी , तुम्हारी अपनी भी जिंदगी है। एक तरह से देखा जाए तो वह भी सही कह रही थीं। आखिर मेरा इंतजार समाप्त हुआ , एक दिन विशाल आ ही गया ,मैंने उससे बताया - कि मेरे घरवाले मेरे लिए लड़का देख रहे हैं।
तब उसने क्या जवाब दिया ?अमृता जी ने पूछा।
उसने मुझे , उसके घर की नौकरी छोड़ने के लिए कह दिया और बोला -तुम कोई अनपढ़ नहीं हो,' स्नातक' कर रही हो। घरों में नौकरी, करना ठीक नहीं , तुम इतनी सक्षम हो ,किसी छोटे स्कूल में भी ,पढ़ाकर इससे ज्यादा पैसे कमा सकती हो , ट्यूशन पढ़ाकर भी, और पैसे कमा सकती हो।
मैं सोच रही थी -इसने कितना अच्छा सुझाव दिया है ? यह तो मैं सोच ही नहीं सकती थी, उन घरों में काम करते-करते आदत सी जो बन गई थी।
तब उसने बताया -''मेरे घरवाले उनके ही घर में ,काम करनेवाली नौकरानी से ,मेरा विवाह नहीं करेंगे ,कल को मेरे दोस्त भी पूछने लगे ,जिससे तुम्हारी शादी हो रही है ,वो क्या करती है ? उनसे क्या कहूंगा ? कि यह पहले मेरे घर में, नौकरानी का कार्य करती थी।'' अपने को आगे बढ़ाओ और अपनी सोच को भी.......
आज जो बातें उसने बताईं , मैं सोच रही थी, मेरे जेहन में क्यों नहीं आई ? वह सही तो कह रहा है , अब मुझे आगे बढ़ना चाहिए, किन्तु मुझे लग रहा था ,यदि मैंने इस घर का कार्य छोड़ दिया तो मैं उससे कब और कैसे मिलूंगी ? शायद , इस घर में काम करने की मेरी एक वजह यह भी थी। तब मैंने उसे अपनी समस्या बताई , और उससे पूछा -यदि मैं यहां से चली गई ,तब हम कैसे मिलेंगे ?
वो बोला - मैं तुमसे कॉलेज में मिलने आया करूंगा , यह बात मुझे अच्छी लगी और हमने एक योजना के तहत ,ऐसा ही किया ,मैं एक स्कूल में ,हजार रूपये मासिक वेतन पर छोटे बच्चों को पढ़ाने लगी। नौकरी तो मैं विशाल के घर में भी करती थी ,किन्तु इस नौकरी से मुझे, जो सम्मान मिला ,वो उसमें नहीं था। मुझे लग रहा था ,मेरी ज़िंदगी फिर से एक नई मंजिल की ओर बढ़ रही है। मुझे देखकर ,मेरे बहन -भाई भी आगे बढ़ रहे थे।
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