कुंठा ग्रसित रिश्ते ,
बेमानी रिश्ते ,
मतलब परस्त रिश्ते ,
लोभी रिश्ते,
आज... , रिश्तों की ,
बस ,यही पहचान है।
यही साझेदारी है।
जो न समझ सका,
वो मूर्ख और नादाँ है।
रिश्तों की भूल भुलैया,
में जो खो जाता है।
तब ठगा सा ,
वो रह जाता है।
अब और रिश्तो की,
क्या कहें ?
नजदीकी रिश्ते भी,
अब नहीं रहे अपने,
जिसने अपनाया ,
उसको भी भुला दिया।
रिश्ते दिखलाई देते हैं ,
होते नहीं हैं , अपने !
यही साझेदारी है।
