Shrapit kahaniyan [part 92]

मनोहर दास जी ,अभ्यासी व्यक्ति थे , उन्हें पहाड़ी स्थलों पर चढ़ने का अच्छा अभ्यास था। अपने गुरु से मिलने भी, अक्सर जाया करते थे। शेफाली पहली बार तो नहीं , किंतु इतनी अधिक ऊंचाई पर ,वह पहली बार जा रही थी। मनोहर दास जी तो, बिना किसी सहारे के ,पहाड़ी पर ऐसे चढ़े चले जा रहे हैं , जैसे ऊंचाई पर चढ़ते समय उन पर कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा हो , समतल और पहाड़ उनके लिए बराबर हैं। तभी वे एक झरने से होते हुए , एक गुफा के अंदर चले गए, कितना अद्भुत दृश्य था ? कोई उसे देख कर कह नहीं सकता था, कि झरने के पीछे ,एक मार्ग भी हो सकता है। शेफाली भी, उधर से ही निकली , पहले तो वह घबरा रहे थी , उसके पास अन्य वस्त्र भी नहीं है ,कहीं वह भीग ना जाए। उस झरने के करीब जाकर देखा तो ,बहुत बड़ा द्वार बना हुआ था। उस द्वार से, उसने प्रवेश किया, उस गुफा से होते हुए, एक जंगल की तरफ निकल गए , जहां पर अनेक फलों से लदे पेड़ थे। 


 मनोहर दास जी वहां रुक गए और शेफाली से बोले -तुम्हें भूख लगी होगी ,कुछ फलाहार कर लो ! अब शेफाली ने उनके शब्दों का रहस्य समझा , जंगल में तो अधिकतर ,जंगली पेड़ या जंगली जानवर ही होते हैं किंतु यह जंगल , फलों से लदा था। शेफाली थक चुकी थी कुछ फल तोड़कर खाए। 

शेफाली फल खाकर , आराम करना चाहती थी , तभी मनोहर दास जी उठ खड़े हुए और बोले -शीघ्रता करो ! उसके पश्चात ,उन्होंने न जाने कैसी जड़ी बूटी उसे खाने के लिए दी ? खाने से पहले शेफाली ने पूछा -यह क्या है ?

इसे खा लो ! तन में चेतना आ जाएगी , वास्तव में ही चमत्कार हो गया , उस जड़ी को खाते ही , शेफाली का आलस्य थकावट सब दूर हो गई , वह नई स्फूर्तिं  महसूस कर रही थी। मन ही मन सोच रही थी -प्रभु तेरी लीला भी अद्भुत है। इसी संसार में तूने न जाने क्या-क्या ,चीजें और रहस्य छुपाए हुए हैं ? इनको शायद वही जान सकता है , जो तुझे जान जाएगा। इस समय शेफाली नहीं जानती थी , कि वह किस स्थान पर है ? वह तो मनोहर दास जी उसके साथ हैं , वरना इन पहाड़ियों की भूल भुलैया में खोकर रह जाएगी। एक गुफा से होते हुए वह दूसरी गुफा में प्रवेश करते हैं। वहां पर बहुत सारे साधक उन्हें दिखाई देते हैं। वह भी अघोरी ही थे। सभी शिवभक्त हैं। वहां के  वातावरण ने , शेफाली पर न जाने कैसा असर किया ? और बड़े तेज स्वर में बोली -बम बम भोले !बम बम भोले ! वह स्वयं ही नहीं समझ पाई, उसने ऐसा क्यों किया ? किंतु उस वातावरण में , उसे एक अद्भुत शक्ति का एहसास हो रहा था , तभी उसके मन में , वही स्फटिक माला को  देखने की इच्छा जागरुक हो चुकी। उसने देखा ,उसकी माला बहुत ही चमक रही है। 

क्या अभी भी तुम्हें , परीक्षा की आवश्यकता है ,एकाएक मनोहर दास जी बोले। कब तक उसकी परीक्षा लेती रहोगी ? यहां का वातावरण , अद्भुत ऊर्जा स्रोतों से परिपूर्ण है। शेफाली ने वह माला झट से छुपा ली और मनोहर दास के करीब आकर बोली -क्या आप यह सब जानते हैं ?

मैं भी मनुष्य हूं, हम मनुष्य हर चीज का निरीक्षण -परीक्षण करके ही मानते हैं। उस  शक्ति पर जब तक , पूरी तरह विश्वास नहीं हो जाता ,परीक्षा लेते ही रहते हैं। 

वह तो बाबा ने मुझसे कहा था ना , मैंने सोचा-एक बार निरीक्षण करके देखी लेती हूं। 

मनोहर दास जी एक पल भी नहीं रुके आगे बढ़ते रहे , एक गुफा से निकलकर दूसरी गुफा ,दूसरी से तीसरी गुफा ,शेफाली समझ ही नहीं पा रही थी, हम कितना दूर तक पहुंच गए या कितना अभी और आगे जाना है ? तभी शेफाली के सामने एक विषैला भयंकर बड़ा सर्प आ जाता है। अचानक से उसे इस तरह सामने देखकर ,शेफाली की चीख निकल जाती है। मनोहर दास जी पीछे मुड़कर देखते हैं , शेफाली डर से पीछे खड़ी हुई , थरथर कांप रही थी। 

मनोहर दास जी बोले- हिलना मत , यह भी मेरी तरह ही दास हैं , तभी उन्हें व्यंग सूझा और बोले -प्रभु ने इन्हें तुम्हारे निरीक्षण के लिए भेजा है ,कह कर मुस्कुराए और विषधर की तरफ , देख कर बोले-हम तो प्रभु की सेवा में ही आ रहे हैं , उन्हें हमारा संदेश दे सकते हैं। मनोहर दास जी के इतना कहते ही, वह सर्प , वहां से लहराता हुआ चला गया। इस गुफा से निकले ही थे, तभी बहुत ठंड का एहसास होने लगा इतनी बर्फ में भी , वहां पर हरी लताएं लहरा रही थीं। अचानक से इतनी ठंड कैसे बढ़ गई ? शेफाली ने प्रश्न किया। 

प्रभु की जैसी इच्छा ! जैसा भी रखना चाहे ! उन घनी लताओं से होते हुए , वे लोग आगे बढ़ रहे थे , तभी मनोहर दास जी को वहां पर एक पुष्प दिखलाई दिया, उन्होंने वह पुष्प तोड़कर , आधा स्वयं खाया और आधा शेफाली को दे दिया। उसके खाते ही शेफाली के अंदर गर्मी का एहसास होने लगा। क्या अद्भुत जड़ी बूटियां हैं ? मनोहर दास जी ,क्या यह मैदानों में नहीं मिलती हैं ?

 नहीं , इसकी हर किसी को पहचान नहीं , यह पुष्प छह  महीने में एक बार ही खिलता है , यदि इसकी जानकारी, स्वार्थी  मानव को हो जाए , तो वह लालच में , इसका अस्तित्व ही समाप्त कर दें , क्योंकि यह जड़ी बूटियां , कोई इंसान नहीं उगाता , यह स्वयं पल्लवित होती हैं। इंसान के वश  में हो , तो वह इनका भी व्यापार करने लगेगा। ईश्वर ने इंसान को बनाया है , उसने  उसकी सेहत के लिए ,उसकी सुरक्षा के लिए , साधन भी तैयार किए हैं। किंतु इंसान ईश्वर को भूलकर, माया जाल में फंस जाता है। उसी 'मायाजाल' में फंसने के कारण , इस तरह की अमूल्य निधियों से वंचित रह जाता है। 

शेफाली महसूस कर रही थी , यहां का वातावरण कितना शांत, कितना निर्मल, मन को शांति देने वाला है , लगता है ,जैसे यहां आकर सब इच्छाएं समाप्त हो गईं , अब कहने और करने को कुछ बचा ही नहीं , असीम शांति का आभास हो रहा था। शेफाली समय का ज्ञान करना चाहती थी किंतु उसके पास कुछ भी ऐसा साधन नहीं था जिससे जानकारी मिल सके, इस समय क्या बजा है ?



इस समय लगभग , 4:00 बजे होंगे , मनोहर दास जी बोले-अभी हमें दो-तीन घंटे और लगेंगे। 

मनोहर दास जी , शेफाली को अपनी बातों से , अपने कार्य से ,हर बार आश्चर्य में डाल देते। 

कुछ देर आगे सीधी चढ़ाई थी , मनोहर दास जी ने , शेफाली को सहारे के लिए , पास ही पड़ी ,एक मोटी सी डंडी दे दी , और स्वयं आगे बढ़ गए। यह चढ़ाई कुछ ज्यादा ही कठिन थी , शेफाली के पैर दर्द करने लगे थे, सुबह से, अब तक चल ही रही है किंतु आज उसे 'अघोरी कपाली नाथ जी 'से जो मिलना है , उसके मार्गदर्शक के रुप में मनोहर दास जी उसके साथ हैं। कई लोगों की जिंदगी और मौत का सवाल है। उस दुर्गम चढ़ाई को करने के पश्चात , वो फिर से एक गुफा में गए। चारों तरफ बर्फ ही बर्फ जमी थी। उस गुफा के अंदर पहुंचते ही, शेफाली की माला चमकने लगी और उसका प्रकाश इतना तेज था , वह गुफा जगमगा उठी। उस रोशनी में शेफाली ने और मनोहर दास जी ने , एक अघोरी को देखा , जो अपने सामने त्रिशूल खड़ा करके , अपने ध्यान में लीन थे। एक बार को तो शेफाली डर गई , कहीं इतनी जगमगाहट से अघोरी बाबा नाराज ना हो जाएं । उनके चेहरे पर ही इतना तेज था, शेफाली को लग रहा था जैसे साक्षात'' शिव ''के दर्शन कर रही हो। उसने और मनोहर दास ने, हाथ जोड़कर प्रणाम किया। और उनके चक्षु  खुलने की  प्रतीक्षा करने लगे। 

''कपाली नाथ जी''  ने , अधिक प्रतीक्षा नहीं करवाई उन्होंने शीघ्र ही नेत्र खोल दिए। बेटी बहुत दूर से आई हो , अपने से ज्यादा दूसरों की चिंता अधिक रहती है। कहते हुए ,उन्होंने एक'' हिमशिला ''पर बैठने के लिए कहा। शैफाली ने मनोहर दास जी की तरफ देखा , उन्होंने इशारे से हां में गर्दन हिलाई , यह देखकर ''कपालीनाथ'' जी  मुस्कुराए। शेफाली चुपचाप जाकर उस'' हिमशिला ''पर बैठ गई , उस हिमशिला पर बैठते ही , जैसे चमत्कार हो गया। शेफाली की सारी थकावट और पैरों का दर्द सब समाप्त हो गए , उसे लग रहा था, वह एक अलौकिक दुनिया में है , यहां दुख -दर्द ,पीड़ा किसी का भी आभास नहीं हो रहा था , बहुत ही अलौकिक अनुभूति थी। तब शेफाली बोली -बाबा चमत्कार हो गया , मेरी सभी पीड़ा समाप्त हो गई , ऐसा लग रहा है जैसे पर चलकर ही नहीं आई। आप धन्य हैं !

 कपालीनाथ जी शेफाली से बोले - हमसे क्या चाहती हो ?

मुझे बाबा ब्रह्मानंद जी ने आपसे मिलने के लिए भेजा है , शेफाली ने अपना मंतव्य बताना चाहा। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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