Shrapit kahaniyan [part 91]

भक्त मनोहर दास ,जो अपने को' दास ', कहलवाना पसंद करते हैं। वह शेफाली से वायदा करते हैं ,कि कल उसे  लेकर ''कपाली नाथ ''जी से मिलाने ले जाएंगे इसीलिए रात्रि में, शेफाली उनके घर पर ही रुक जाती है। इससे पहले वह अपने स्फटिक की माला , से यह देखने का प्रयास करती है ,कि वह 'मनोहर दास जी' के रहने पर चमक रही है ,या नहीं।  वास्तव में ही ,वह माला कोई 'जादुई माला' थी। जब तक मनोहर दास जी रहे ,तब तक वह माला चमकती रही। शेफाली ने मन ही मन सोचा -' बाबा ब्रह्मानंदजी 'ने इनका नाम सुझाया है, तो अवश्य ही इनमें  कोई अद्भुत शक्ति होगी। रात्रि में देर तक ,शेफाली को नींद नहीं आई ,खिड़की से बाहर देखने लगती है। अँधेरे में ,खूबसूरत वादियां भी ,भयावह लग रही थीं किन्तु ठंडी हवा अंदर प्रवेश कर रही थी। शेफाली ने उन हवाओं को महसूस करते हुए ,अपना चेहरा ऊपर उठाया सर्द हवाओं ने अपना प्रभाव दिखाया।


 दिन में तो इतनी ठंड नहीं थी ,किन्तु इस समय ठंड पूरे जोरों पर थी। खिड़की से आकर ठंड ने ,कमरे को और भी ठंडा कर दिया। इतने कपड़े पहनने के बावजूद भी , शेफाली को ठंड लगने लगी, उसने अपने कमरे की खिड़की बंद कर दी। तब उसने कमरे से बाहर झाँका। बाहर अँधेरा था ,एक छोटे बल्ब की रौशनी हो रही थी। वो वापस अपने कमरे में जाने वाली ही थी ,तभी उसे एक प्रकाश दिखलाई दिया ,ये प्रकाश किसी बल्ब का तो नहीं लग रहा था। तब ये प्रकाश केेसा है ?शेफाली की उत्सुकता बढ़ी और वो उस कमरे की तरफ बढ़ी।शेफाली ने , दरवाजे की झिरकी में से झांक कर देखा , मनोहर दास जी , बहुत तल्लीन होकर ,कुछ लिख रहे हैं। उनके पास ही एक चमकता पत्थर है जिसकी  रोशनी में वो लिख रहें  है , उस रोशनी में ही वह लिख रहे हैं। इतनी तेज रोशनी वाला पत्थर, आज उसने पहली बार देखा है , यह किस तरह का पत्थर हो सकता है ? मैंने तो आज तक, इसके विषय में कभी सुना ही नहीं। इसकी रौशनी  इतनी तेज है , कोई  साधारण मानव इसे , इस तरह सामने से ,नहीं देख सकता, उसकी आंखें बंद हो जाए किंतु मनोहर दास जी उस रोशनी में, कुछ लिख रहे हैं वो भी इतनी तल्लीनता से ,यह क्या हो सकता है ? इस तरह दरवाजा खोल कर अंदर भी नहीं जा सकती , हो सकता है ,इसका परिणाम कुछ गलत ही हो जाए। तब शेफाली ने अपने कमरे में जाने का इरादा किया , और सोचा-  मनोहर दास जी से प्रातः काल पूछ लूंगी।

शेफाली को रात्रि में, देरी से नींद आने के कारण ,वह  सुबह जल्दी नहीं उठ पाई। मनोहर दास जी के बेटे की बहू ने उसे उठाया। जब वह उठी, सुबह के आठ बज रहे थे। माया के कहने पर, वह हड़बड़ा कर उठ बैठी, शेफाली चाय पी कर तैयार होने लगी , तब माया ने उसे बताया-मनोहर दास जी ,उसकी बहुत देर से प्रतीक्षा कर रहे हैं।

तुम मुझे शीघ्र उठा सकती थीं। 

माया ने बताया- उसको शीघ्र उठाने के लिए, मनोहर दास जी ने ही मना किया था, कह रहे थे -रात्रि को तुम देर से सोई थीं। लंबा सफर है, थोड़ा आराम करने दो ! 

शेफाली सोच रही थी -क्या मनोहर दास जी ,को मालूम है, कि मैं उस समय जाग रही थी , या मैंने उन्हें उस रोशनी में कुछ लिखते देखा है।  अभी कुछ भी सोचने का समय नहीं था ,वह शीघ्र अति शीघ्र तैयार होती है , अपना आवश्यक सामान लेकर ,एक थैले में भर लेती है और मनोहर लाल जी के करीब पहुंच जाती है , शिकायत भरे लहजे में बोली -आपने मुझे उठाने क्यों नहीं दिया ?

उन्होंने मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखा और बोले- लंबा सफर है, विश्राम भी आवश्यक है , रात्रि को तुम देर से सोई थी ना...... 

तब शेफाली ने उलाहना दिया , आप भी तो देर रात्रि ,जगे हुए थे। 

वह मुस्कुराए और बोले - मेरी तो , यह दिनचर्या में शामिल है। अब चलो !आगे बढ़ते हुए बोले। तभी शेफाली का बैग देखकर बोले - यह सब कहां ले जा रही हो ? इस सामान की कोई आवश्यकता नहीं है। 

थोड़ा खाने -पीने का सामान ही है, शेफाली ने बताया। 

तुम प्रभु के करीब जा रही हो , उनके दर पर जाओगी ,वह क्या तुम्हें भूखा रहने देंगे , तुम्हारे खाने का साधन भी वही कर देंगे , तुम अब उनकी शरण में जा रही हो ,फ़िक्र अब तुम्हें नहीं ,उन्हें करनी होगी। कहकर मनोहरदास आगे बढ़ गए। 


शेफाली ने वह थैला ,वहीं पर छोड़ दिया , और सोचने लगी -इन्हें अपने ईश्वर पर कितना विश्वास है ?

उन पर विश्वास करना पड़ता है, हमारी श्रद्धा का एक भाव विश्वास ही है , जितनी अधिक श्रद्धा होगी विश्वास भी उतना ही प्रगाढ़ होगा। जब हम अपनी परवाह नहीं करेंगे,सब उस पर छोड़ देंगे तो वह स्वयं हमारी परवाह करेगा , उसी ने तो हमें बनाया है , फिक्र भी वही करेगा। कहते  हुए ,मनोहर दास ,तेज कदमों से आगे बढ़ रहे थे ,शैफाली ने पूछा -हमें जाना कहाँ है ?

बिना रुके ,वो बोले -आगे बढ़ती रहो ,वो भी बता दूंगा। 

मनोहर दास की चाल बहुत तेज थी ,उसे साथ के लिए ,शेफाली को लगभग उनके पीछे दौड़ना पड़ रहा था ,लगभग आधा घंटा चलने के पश्चात ,वो रुककर एक टीले पर चढ़कर बोले -वो सामने पहाड़ी देख रही हो ,बस हमें किसी तरह ,उस पहाड़ी तक पहुंचना है। 

इतनी ऊंचाई पर , शेफाली आश्चर्य से बोली -वहां तक पहुंचने में तो ,दो -तीन दिन लग जायेंगे। 

नहीं ,इतना वक्त नहीं है ,हमे आज ही पहुंचना है ,कहते हुए, फिर से आगे बढ़ गए। शेफाली भी उनके पीछे- पीछे चल दी। वह तो बस अपनी धुन में आगे बढ़े जा रहे थे , शेफाली तो सोच रही थी -उनसे बातें करते हुए आगे बढ़ेंगे। किंतु उन्होंने तो एक चुनौती और दे डाली इतना लंबा सफर आज ही तय करना है। यह चुनौती उन्होंने शेफाली को ही दी है क्योंकि वह तो ,पहाड़ी स्थल पर, पहले से ही रहते  आये हैं। इन्हें  तो पहाड़ी पर चढ़ने का अच्छा अभ्यास होगा। इस बात में कोई दो राय भी नहीं थी , वह अपने सफर पर शीघ्रता से आगे बढ़ रहे थे किंतु शेफाली थकने लगी थी। एक जगह वह रुक भी गई , तब उन्होंने पीछे मुड़कर देखा और बोले- शीघ्रता करो , अभी हम आधे में भी नहीं पहुंचे हैं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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