Jail 2 [part 25]

जैसा कि प्यारेलाल और उसकी पत्नी ने सोच रखा था ,वैसा ही ,उसकी पत्नी ने किया और बरखा से बोली -जिस कोठी में तुम काम करती हो ,उस कोठी में कितने लोग हैं ? बरखा खुश होते हुए बोली -वहां तो सिर्फ ,दो अधेड़ उम्र के पति पत्नी ही रहते हैं। जब व्यक्ति का मन अच्छा होता है ,खुश होता है ,सब अच्छा ही अच्छा सोचता है ,उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था ,कि उसके माता पिता उसके लिए क्या सोच रहे हैं ? 

क्या उनके अपनी  कोई औलाद नहीं है ?

है ना ,उनका एक बेटा है ,जो बाहर रहकर नौकरी करता है,और उसका परिवार है।क्यों ,तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो  ?आज तक तो कभी नहीं पूछा। 

नहीं ,ऐसी कोई बात नहीं ,आज मन किया पूछ लिया।  इसमें उसकी मां को कुछ भी बुरा नहीं लगा ,उसने सोचा - कहीं,उस बुड्ढे की नियत ही तो ,हमारी बरखा पर नहीं डोल गई ,आजकल कब क्या हो जाए कुछ पता नहीं ?बुड्ढों - बुड्ढों  का भी मन, फिसलता रहता है।गरीब की बेटी देखी नहीं,कि नियत डोलने लगती है यदि उसका मन इस पर फिसलता तो फिर यहां आकर ,उसके विवाह की बात क्यों करता ?क्या ?वह अपने विवाह के लिए तो नहीं सोच रहा। 

बरखा बोली -मां ,क्या सोच रही हो ?


कुछ नहीं , तेरा विवाह करने की सोच रहे हैं। 

नहीं मां,अभी मुझे विवाह नहीं करना है। 

हमारे यहां, ऐसे कोई मना नहीं करता ,एक अच्छा रिश्ता आया है ,लड़का अच्छा कमाता है वह भी पढ़ा लिखा है ,तेरे पिता ने तो हां कर दी। 

किससे, पूछकर हां कर दी ?बरखा चिढ गई और बोली -मैं किसी से विवाह नहीं करूंगी। 

क्यों नहीं करेगी ? तेरे बाप ने जबान दी है। 

मेरे से बिना पूछे ही ,कैसे जबान दे दी ? मैंने तो उसे देखा भी नहीं। 

हमारे यहां , बड़े घरों की तरह ,देखने  -दिखाने के चोंचले नहीं  होते हैं  , तेरे बाप को भी मैंने, विवाह के बाद ही देखा था।हमारे यहां बड़ों ने जो रिश्ता तय कर दिया, सो कर दिया।

तुम पढ़ी-लिखी नहीं थीं ,मैं पढ़ी-लिखी हूं ,मैं अपना भला-बुरा जानती हूं। तुम लोग कैसे ?मेरे से बिना पूछे ,मेरा विवाह तय कर सकते हो ?

बरखा की मां भी उसकी  भाषा से चिढ़  गई और बोली -बड़े घरों में काम कर - करके ,उनके जैसी ही बोली बोलना सीख गई , आने दे ,तेरे बाप को , कैसे तेवर दिखा रही है ? अरे तू अपने आप को भूल गई क्या ? तू इस झोपड़ी की पैदाइश है। दो-तीन साल बाद ही क्या ?कोई तुझे राजकुमार ब्याहकर ले जाएगा। तब भी एक बस्ती से दूसरी बस्ती में चली जाएगी। अभी तो इतना ही पढ़ी  है तब इतनी जुबान चला रही है , कुछ ज्यादा ही पढ़ गई तो ,मां-बाप को भी, कुछ नहीं समझेगी। 

तभी प्यारेलाल घर के अंदर प्रवेश करता है , क्या हो रहा है ? क्यों चिल्ला रही हो ?

ये  तुम्हारी लाडली ! विवाह के लिए मना कर रही है , चंपा की लड़की को देखो ! चौदह बरस  की है और उसके बाप ने विवाह तय कर दिया , मजाल है ,लड़की ने' चूँ' तक भी की हो। 

तो कौन सा महलों में जा रही है ? बरखा भी क्रोध में ,फुफकारते हुए बोली -जिससे उसका विवाह हो रहा है वह तीस साल का है , कोई राजकुमार नहीं, सब्जियां बेचता है। 

सुन ली  इसकी बात , अपने पति की तरफ इशारा करते हुए बोली -इसे तो जैसे ब्याहने  राजकुमार आ जाएगा। 

हां ,राजकुमार ही आएगा। 

तूने देखा है ,उसे , मन ही मन बरखा ने सोचा -देखा हुआ तो है ,किंतु अभी इन्हें बताऊंगी नहीं , बोली -देखा हुआ नहीं है ,तो देख लूंगी। कहीं ना कहीं तो, पैदा हुआ ही होगा। मैं तो सोच रही हूं - जब मैं पढ़ -लिख जाऊंगी , तब ऐसी कोठी बनाऊंगी , जैसी कोठियों में मैं,आज काम करती हूं , उसमें तुम सब को ले जाऊंगी।

प्यारेलाल अपनी बेटी के सपने सुनकर ,भावुक हो उठा और बोला -सपने देखना कोई बुरी बात नहीं है , किंतु जितना बड़ा तुम सपना देख रही हो, उसे पूरा करने में, जिंदगी निकल जाएगी। यहां एक- एक पल का ठिकाना नहीं, दो बख़त की रोटी टाइम पर मिल जाए , तो भगवान का शुक्रिया अदा करो। तू तो लाखों करोड़ों के सपने देख रही है ,व्यंग से वह मुस्कुराया और बोला -सपने वही देखने चाहिंए जिन्हें तुममें   पूरा करने की ताकत हो।'' चादर से लंबे पैर पसारोगे '' तो कहीं के नहीं रहोगे। तू एक रिक्शेवाले की बेटी है , तुझसे कोई रेहडी वाला , कोई छोटा दुकानदार , ऑटो वाला ही ब्याह करेगा। कोठियों के सपने छोड़ दे , ठीक से पक्का मकान ही बन जाए ,वही बहुत है। 

अपने पिता की बात सुनकर , एक बार तो बरखा का आत्मविश्वास डगमगा गया , अब तक जो वह सोच रही थी वह सब सपने और ख्याल उसके आत्मविश्वास को बढ़ा रहे थे , किंतु जब उसके पिता ने उसके पैर जमीन पर जमाने चाहे , तो वह घबरा उठी और मन ही मन सोचने लगी -कहीं विशाल मुझे धोखा तो नहीं दे देगा। जैसे मेरे माता-पिता मुझे समझा रहे हैं , उसके माता-पिता ने समझाया तो........ क्या वह उनका विरोध कर पाएगा ? अभी तक तो वह मेरे साथ है , हमारे रिश्ते की विषय में, घर में किसी को नहीं मालूम है , यदि उसके दादा -दादी को भी पता चल गया , तो क्या वह हमारा रिश्ता स्वीकार कर लेंगे ? हो सकता है ,अभी अकेले में वो  मुझसे मिलता है और खुश रहता है। जब यह बात, उसके माता-पिता को पता चलेगी तब अपने माता-पिता का कैसे सामना कर पाएगा ? सोचते -सोचते उसका दिमाग थकने लगा , भूख भी मिट गई , मां से बोली -मुझे अभी भूख नहीं है , जहां से मैं आई हूं, वहीं से खाकर आई हूं ,कहकर अपनी चारपाई पर लेट गई। पिता जो कह रहें हैं -सही लग रहा है ,एक कोठीवाला पढ़ा -लिखा लड़का मुझसे विवाह क्यों करेगा ?मेरे बाप का तो एक ,छोटा सा पक्का मकान भी नहीं है।  

अभी कुछ दिन पहले ही तो जिंदगी कितनी ,खुशनुमा नजर आ रही थी ,कितनी सरल लग रही थी ?अब ऐसा लग रहा है जैसे किसी ने रास्ते में कांटे बिछा दिये हों। कुछ समझ नहीं आ रहा था,क्या करूं?मां-बाप के कहे अनुसार विवाह  कर लूं या एक बार विशाल से बात कर लूँ ,या अपनी मां को सब बता दूं। मन में विचारों का सैलाब उमड़ा हुआ था ,कुछ भी समझ नहीं आ रहा था ,क्या करूं ?

बेचैनी कुछ अधिक ही बढ़ गई ,तब मां से धीमे स्वर में बोली -मां , एक बात बोलूं। 

मां भी तारे गिन रही थी , वह शायद इसी उम्मीद में थी- कि बेटी उसे कुछ बताएं। 

जिस कोठी में मैं काम करती हूं , उनके बेटे का बेटा है। 

तू तो कह रही थी - दो  बुड्ढे -बुड्ढी  रहते हैं , उनका बेटा बाहर रहता है। 

हां ,यह बात सही है किंतु अभी कुछ महीने पहले ,उनका पोता  छुट्टियों में आया था। 

क्या ,उसने तुझसे कुछ कहा ?

हां ,वह मुझसे प्यार करता है। 

तू पगली है, क्या ?मां जोर जोर से हंसी , मां के तेज हंसने पर, बरखा घबरा गई और बोली -इतनी रात में इतनी तेजी से क्यों हंस रही हो ?



हंसू  नहीं तो क्या रोऊँ ? तू भी कितनी मूर्ख है ? बड़े घर के लोग कभी प्यार करते हैं। 

क्यों ,प्यार क्यों नहीं करते ? क्या उनके दिल नहीं होता ?

होता है, कुछ ज्यादा ही बड़ा दिल होता है , जो जरूरतमंदों की सहायता करता है, उनकी गरीबी और मजबूरी का लाभ उठाता है , और तुम जैसे लोगों को , वो अपनी बातों में, फुसला लेते हैं। 

नहीं ,विशाल ऐसा नहीं है , उसी ने मुझसे कहा है-जब उसकी नौकरी लग जाएगी ,तब वह अपने घर वालों से बात करेगा और यदि  उसके घर वाले नहीं मानते हैं , तब हम दोनों , कोर्ट में शादी कर लेंगे , उसी ने तो मेरा दाखिला करवाया है , ताकि मैं भी  पढ़ -लिख जाऊं ! आखिर में बरखा ने अपने मन का भेद ,अपनी मां के सामने खोल ही दिया। 

अच्छा , माँ  अविश्वास से बोली। 

क्या, तुझे उसने छुआ है ? माँ ने गहरी नजर से बरखा को देखा। 

मां के इस प्रश्न पर , बरखा चुप हो गई और घबरा भी गई। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post