Shrapit kahaniyan [part 90]

शेफाली हिमाचल की तलहटी के  एक गांव ''खराहल 'में पहुंच जाती है। बस उसे उतार कर ,आगे बढ़ जाती है। वहां पर थोड़ी -थोड़ी धुंध थी , आसपास हरे भरे पेड़ , शेफाली वहां तक आ तो गई लेकिन उसे रास्ते की कोई भी जानकारी नहीं है. बाबा ने तो कहा था- कि मनोहर उसे सही जगह पर पहुंचा देगा, किंतु मनोहर से कैसे मिले ? वह तो मनोहर को भी नहीं जानती, जल्दबाजी में , मनोहर के विषय में पूछना ही भूल गई।सोच रही थी- यदि कोई दिख जाए तो ,उससे ही'' खराहल '' गांव के मनोहर के विषय में पूछ लूँ। कुछ देर की प्रतीक्षा के बाद, उसे एक व्यक्ति उधर से आता दिखाई देता है , उसे रोककर शेफाली'' खराहल'' गांव के विषय में पूछना चाहती है। वह व्यक्ति उसे ''खराहल'' गांव में ले जाने के लिए ,सहर्ष  तैयार हो जाता है। 

शेफाली ने देखा ,वह जिस रास्ते से उसे ले जा रहा है , वहां कोई सड़क ही नहीं है , देखने से तो लगता है ,जैसे वह उसे अंदर, घने जंगल  की तरफ ले जा रहे हैं , शेफाली को उस पर संदेश हुआ और बोली-क्या यह सही रास्ता है ? यहां तो कोई सड़क भी, नहीं दिख रही है। 



जिस रास्ते से मैं ,आपको ले जा रहा हूं ,वह रास्ता छोटा पड़ेगा , जंगल से होते हुए ,हम शीघ्र ही ,गांव में पहुंच जाएंगे उस व्यक्ति ने जवाब दिया। 

शेफाली को कुछ भी ठीक नहीं लग रहा था , उसने बाबा की दी हुई ,'स्फटिक 'की माला निकाल ली और उस माला को लेकर , बाबा का दिया हुआ मंत्र पढ़ते हुए , आगे बढ़ने लगी। जैसे ही ,वह उस व्यक्ति के करीब गई ,उस माला के सभी मोती' स्याह' पड़ गए।

 शेफाली समझ चुकी थी , यह कोई आम इंसान नहीं है , यह कोई काली या पैशाचिक शक्ति है। शेफाली घबरा गई , इस काली शक्ति से किस तरह वह बच कर बाहर निकले ?यही सोच रही थी - समझ नहीं पा रही थी, किस बहाने से इससे पीछा छुड़ाया जाए ? यदि वह भागती भी है, तो वह समझ जाएगा ,कि उस पर मुझे  शक हो गया है।तब न जाने वो क्या करे ?उसकी शक्तियों के विषय में कोई जानकारी भी नहीं है।  वो इधर -उधर देख रही थी , ताकि कोई व्यक्ति उसे दिखाई दे और उससे वह सहायता मांग सके। किंतु उसने  अपनी शक्ति से  पहले ही ,अपना कार्य कर दिया था , उसने शेफाली को भ्रमित करने के लिए , कुछ अलग ही रास्ता दिखाया था , जो देख और समझ रही थी ,वास्तव में वह था ही नहीं ।

 घबराहट में शेफाली का हाथ ,अपने ताबीज पर गया। जिसे देखकर वह प्रसन्न हो उठी  , बाबा ब्रह्मानंद ने तो उसे पहले ही ''सुरक्षा कवच ''दिया हुआ है। जब उसने इतनी नकारात्मक शक्तियों का सामना किया है तब यह क्या बड़ी चीज है ? यही सोचते हुए ,उसने अपने ताबीज पर हाथ लगाया और वही मंत्र बुदबुदाने लगी , जिस मंत्र से ,उसने उन  काली शक्तियों को उस गुफा से भगा दिया था। उस मंत्र ने ,अपना प्रभाव दिखाया , धीरे-धीरे वह व्यक्ति , हवा में विलीन हो गया। उसने जो मायाजाल बनाया था वह भी हट गया। शेफाली को अपने सामने रास्ता स्पष्ट दिखाई दे रहा था , वह उसी  रास्ते की ओर बढ़ चली। 

कुछ देर पश्चात ही, वह गांव के करीब पहुंच गई , एक दो लोगों से , भक्त'' मनोहर दास ''के विषय में पूछा - मनोहर को गांव के सभी व्यक्ति जानते थे , उसका पता लगाने में, उसे ज्यादा देर नहीं हुई , कुछ बच्चे तो मनोहर बाबा का घर बताने के लिए , शेफाली के साथ हो लिए , मन ही मन शेफाली प्रसन्न हो रही थी और खुश होकर सोच रही थी - कि बाबा सब जानते हैं , इसीलिए उन्होंने पहले ही मुझे यह ,स्फटिक की माला दी थी। 

उस गांव के  बच्चे ,शेफाली को लेकर 'मनोहर बाबा 'के घर पहुंचाते हैं और स्वयं ही दरवाजा खटखटाते हैं। शेफाली सोच रही थी -इस गांव के व्यक्ति, कितने मिलनसार और सीधे -सच्चे नजर आ रहे हैं। बच्चों की तरफ देखकर मुस्कुराती है ,तभी अपने पर्स में से कुछ मीठी -खट्टी गोलियां निकालकर ,उन बच्चों में बाँट देती है क्योंकि बच्चों ने उसे सही स्थान पर पहुंचने में उसकी सहायता की ,मेहनताना तो बनता ही है।तभी उस घर का द्वार खुलता है ,जिस घर के सामने वह लोग खड़े थे। उस दरवाजे पर एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति खड़े थे , उनके माथे पर सफेद और लाल चंदन का तिलक लगा हुआ था , उन्होंने गेरुवे वस्त्र पहने हुए थे। वे शेफाली  को देख कर  मुस्कुराए , उनकी मुस्कान बड़ी ही मनमोहक थी। शेफाली ने  उन्हें देखकर अभिवादन किया। 

वे मुस्कुरा कर बोले -आने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई , कहते हुए ,दरवाजे से हट गए। बच्चे अभी भी वहीं  खड़े थे ,चलो !अब जाओ ! और खेलो , बाबा ने बच्चों से कहा ,तब मुस्कुराकर शेफाली से बोले -मैं जानता था ,यह' वानर सेना ' तुम्हें मेरे घर तक ले ही आएगी।

 शेफाली बोली -आप ही , भक्त मनोहर बाबा हैं ,घर के अंदर जाकर चारों तरफ देखने लगी ,छोटा सा घर है ,साधारण सी सजावट है ,दो -तीन कमरे होंगे।   

उनकी कृपा से मैं ,ही मनोहर हूँ  किन्तु कितना उनका भक्त हूँ ?ये तो वही जानते हैं ,उनकी कृपा बनी रहे।तभी उनकी बहु ,दो गिलास पानी लेकर आई और पास रखे स्टूल पर रख दिया।मेरे कुछ भी पूछने से पहले बाबा ने ,ही उसका परिचय दिया ,ये मेरे बेटे 'सदाशिव 'की बहु 'माया 'है।

शेफाली को एक बात समझ नहीं आई ,ये बाबा यानि मनोहर जी कह रहे थे -'कि मैं जानता था -'ये वानर सेना मुझे लेकर आ ही जाएगी ',क्या इन्हें  मेरे आने की जानकारी पहले से ही थी ?मेरे आते ही ,मुझसे ऐसे बातें कर रहें हैं ,जैसे मुझे बहुत पहले से जानते हैं ,मेरा नाम तक जानने का इन्होंने प्रयास भी नहीं किया। तब स्वयं ही अपना परिचय देते हुए ,शेफाली बोली -मेरा नाम 'शेफाली 'है।मुझे बाबा ब्रह्मानंद जी ने भेजा है। 

जानता हूं,उनका संदेश पहुंच गया था। 

क्या???आश्चर्य से  बोली। 

हाँ , उनका संदेशवाहक आया था ,जिसके माध्यम से मुझे पता चला -कि कोई तो है ,जो आ रहा है। 

बाबा ब्रह्मानंद का 'संदेशवाहक 'आज तक तो मैंने उसे नहीं देखा। 


उनकी बहुत सारी बातें ऐसी है , जो तुम अभी जानती नहीं हो , ख़ैर , तुम्हारा इस तरफ़ आना कैसे हुआ ?

वह बाबा....... कुछ रुककर शेफाली ने पूछा -क्या मैं ,आपको' बाबा 'बुला सकती हूं ?

 नहीं , मैं अभी उस लायक नहीं हूं मुझे 'दास 'कह सकती हो , मैं अपने प्रभु का दास हूं ,मुझे' दास 'कहलवाना ही पसंद है। 

जी, कहकर शेफाली बोली मुझे अघोरी ''कपाली नाथ ''जी से मिलना है , उनसे मिलकर ही मेरी समस्याओं का निदान होगा। 

शेफाली की बात सुनकर, ''मनोहर दास '' सोच में पड़ गए और बोले -वह रास्ता तो बहुत ही दुर्गम है। 

मुझे दुर्गम रास्तों  का कोई डर नहीं , आप बस मुझे बस ''कपाली नाथ '' जी से मिलवा दीजिए। उनसे मिलना, मेरा बहुत जरूरी है, कई  इंसानों की, जिंदगी -मौत का सवाल है , कहते हुए शेफाली ने मनोहर दास को ,सम्पूर्ण  कहानी विस्तार से सुना दी। 

उस कहानी को सुनकर ,मनोहर दास जी बोले -ठीक है ,मैं ,तुम्हारी सहायता करने के लिए तैयार हूं , कल उनसे मिलने के लिए ,सफर पर निकलेंगे ,आज यही विश्राम कर लो ! कहते हुए ,उसे एक कमरा दिखाते हैं ,आज की रात्रि तुम इस कमरे में विश्राम कर सकती हो ,कल हम ''कपालीनाथ '' जी से मिलने के लिए  चलेंगे। 

 

 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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