मेरी पसंद -
अपनी पसंद को दिल और आँखों में बसा ,
ग़ैरों की पसंद को ,अपनाते रहे।
कभी अपनी पसंद का ख्याल ,रखा ही नहीं ,
ग़ैरों के दिलों की, परवाह करते रहे।
न स्वयं खुश रह सके,गैरों की परवाह में ,
हमने जब ,अपनी परवाह की ,
हमारी ख़ुशी को देखकर,गैरों से सहा न गया।
जी लें ज़रा -
जीते हम रोज हैं।
जीने का उद्देश्य क्या है?
उठता, यह प्रश्न है ?
जीना, किसके लिए है ?
अपने लिए ,
अपनी खुशियों के लिए ,
तो ' स्वार्थी 'कह लाऊंगी।
जीना है ,यदि !
अपनों के लिए !
उन्हें खुश करते हुए ,
अपनेआप को खो जाऊंगी।
जीना है ,हमसफ़र के लिए,
कुछ स्वर्णिम पलों के लिए ,
वे पल ,रह-रहकर सताएंगे।
अपनी प्रीत की याद दिलाएंगे।
पलों को, बार-बार दोहराएंगे।
जीना क्यों है, किसके लिए ?
पल -पल जीते हैं , जिंदगी !
थोड़ी-थोड़ी, सभी के लिए ,
टुकड़ों में बंटी ,ये जिंदगी !
कहता है ,मन-आ जी लें ,जरा !