Do kavitayen

मेरी पसंद -

 अपनी पसंद को दिल और आँखों में बसा ,

 ग़ैरों की पसंद को ,अपनाते रहे। 

कभी अपनी पसंद का ख्याल ,रखा ही नहीं ,

 ग़ैरों के दिलों की, परवाह करते रहे। 


 न स्वयं खुश रह सके,गैरों की परवाह में ,

  हमने जब ,अपनी परवाह की   ,

हमारी ख़ुशी को देखकर,गैरों से सहा न गया। 


जी लें ज़रा - 

जीते हम रोज हैं। 

जीने का उद्देश्य क्या है? 

उठता, यह प्रश्न है ?

जीना, किसके लिए है ?

अपने लिए ,

अपनी खुशियों के लिए ,

तो ' स्वार्थी 'कह लाऊंगी। 



जीना है ,यदि !

अपनों के लिए ! 

उन्हें खुश करते हुए ,

अपनेआप को खो जाऊंगी। 

जीना है ,हमसफ़र के लिए,

कुछ स्वर्णिम पलों के लिए ,

वे पल ,रह-रहकर सताएंगे। 

अपनी प्रीत की याद दिलाएंगे। 

पलों को, बार-बार दोहराएंगे।

जीना क्यों है, किसके लिए ?

पल -पल जीते हैं , जिंदगी !

थोड़ी-थोड़ी, सभी के लिए ,

टुकड़ों में बंटी ,ये  जिंदगी !

कहता है ,मन-आ जी लें ,जरा !



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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