Shrapit kahaniyan [part 89]

इंस्पेक्टर धीरेंद्र लालवानी''एक दिन'' जेठानी लाल'' सेठ जी के बंगले पर पहुंच जाते हैं ,जो सम्मानित व्यापारी होने के साथ-साथ दीपशिखा के पिता भी हैं। पुलिस का कार्य तो अपना काम करते हो ना ही है उन्होंने उनके घर को देखनेऔर उनकी बेटी से मिलने का बहाना बनाया। वह जानना चाहते थे, जो बातें रमा और उसकी मम्मी ने उन्हें बताई हैं ,उनमें कितनी सच्चाई है ? तब वह जेठानी लाल जी के नौकर रामदीन के साथ, उनके घर का मुआयना करते हैं। घर देखने  के साथ-साथ वह रामदीन से कुछ प्रश्न भी पूछते जा रहे हैं। जो उनकी तहकीकात का ही , एक हिस्सा भी है। तब वह उस कमरे के करीब जाते हैं जिस कमरे में कभी-कभी रामदीन को कुछ आवाजें सुनाई पड़ती  हैं। पहले तो रामदीन ने सोचा था , कोई चूहा होगा, किंतु सफाई के उद्देश्य से, एक दिन वह उस कमरे का ताला खोलने का प्रयास भी करता है किंतु दीपशिखा उससे मना कर देती है। 

आज उसी दरवाजे के सामने से रामदीन और इंस्पेक्टर धीरेंद्र निकल कर जा रहे हैं , तब इंस्पेक्टर ने पूछा -यह कमरा किसका है ?


यह कमरा तो......  किसी का भी नहीं है, साहब ! 

क्या ,कुछ सामान इसमें  है ?

नहीं ,बहुत दिन से खोला भी नहीं गया , एक  दिन मैं  इसे खोलने जा रहा था ,क्योंकि इसमें से कुछ आवाजें आ रही थीं ,मैंने सोचा -शायद चूहा होगा , किंतु बड़ी बिटिया ने मना कर दिया। 

उसने क्यों ,मना किया ?

कह रही थीं - तुम रहने दो !मैं अपने आप देख लूंगी। 

जरा इस दरवाजे को खोलो !....... 

नहीं साहब ! यह नहीं खुलेगा क्योंकि इसकी चाबी भी ,उन्हीं मैडम के पास है। 

अच्छा ,चलो !तो पहले तुम्हारी उन  मैडम से ही मिल लेते हैं। 

जब वह दीपशिखा  के कमरे के नजदीक पहुंचे , उसका दरवाजा अंदर से बंद था , रामदीन ने आवाज लगाई -मैडम ! मैडम !

अंदर से आवाज आई - कौन है ?

यह साहब !,आप से मिलने आए हैं ?

कौन ?साहब !

इंस्पेक्टर साहब ! उसके इतना कहते ही दरवाजा फटाक से खुल गया। सामने जो लड़की खड़ी थी उसे देखकर, इंस्पेक्टर की आंखें खुली की खुली रह गई। यही हैं , दीपशिखा मैडम ! यह बात बताकर रामदीन  वापस चल दिया। 

दीपशिखा बेहद खूबसूरत थी ,जो भी उसे देखे उसकी ,नजर ठहर जाये ,गुलाबी रंगत लिए उसकी त्वचा ,कुछ कहती सी, उसकी नजरें , होठों के नीचे काला तिल , ठीक ही तो है ,भगवान ने जब इसे इतना सुंदर बनाया है ,थोड़ा बहुत गुरुर होना स्वाभाविक है। इंस्पेक्टर धीरेन्द्र ,अपने विचारों में ऐसा खोया ,अपने आने का उद्देश्य ही जैसे भूल गया। 

कहिये ,इंस्पेक्टर साहब ! कैसे आना हुआ ?मुझसे क्या काम है ?

दीपशिखा की आवाज ने ,उसके विचारों की शृंखला को तोडा ,एक पल के लिए मौन हो ,इंस्पेक्टर सोचने लगा ,जैसे वो यहाँ आने का उद्देश्य ही भूल गया था ,कि वो यहाँ क्यों आया है ? तब स्मरण करते हुए बोला -क्या तुम जानती हो ? तुम्हारे कॉलेज में हादसे हो रहे हैं।

 दीपशिखा , अनजान बनते हुए बोली -हां ,मैंने सुना तो है , एक लड़की है और एक शायद ,कोई लड़का भी है लापरवाही से बोली।  

क्या तुम मुझे बता सकती हो ?कि इन हादसों के पीछे किसका हाथ हो सकता है ?

इसमें मैं , आपको क्या बतला सकती हूं ?ये तो आप ही पता लगाइये ! हादसे ही हैं ,जो हो जाते हैं ,हादसों की किसी को पहले से जानकारी थोड़े ही होती है। 

हादसे तो हैं , किंतु यह हादसे जानबूझकर किए गए हैं , यह हत्याएं हैं , मैं यह पूछना चाहता था, कि इन हत्याओं में किसका हाथ हो सकता है ? तुम उसी कॉलेज में पढ़ती हो , शायद, इसकी तुम्हें कोई जानकारी हो। 

जी नहीं ,मुझे इसकी कोई भी जानकारी नहीं है , मैं तो इतना ही जानती हूं , जितना सब लोग जानते हैं , मुझे तो यह भी नहीं मालूम कि वह हत्याएं हुई हैं , अब किसने की है ?यह तो पता लगाना पुलिस का काम है ना...... दीपशिखा अनजान और भोली बनते हुए ,बोली। 

इंस्पेक्टर धीरेंद्र उसके कमरे में घुसा था ,तो उसे अजीब सा सिर में भारीपन और अजीब सी हालत हो गई थी ऐसे लग रहा था -जैसे वह अपने आप में नहीं रहा ,अब थोड़ा-थोड़ा उसे हल्का महसूस हो रहा है और अब वह उसके कमरे से बाहर निकलता है। सोचता है - क्या ये लड़की क़ातिल हो सकती है ? नहीं, रमा और उसकी मम्मी को अवश्य ही कोई गलतफहमी हुई होगी।

 तभी दीपशिखा अपने कमरे से बोली - इंस्पेक्टर साहब बहुत से लोगों को, बहुत-बहुत सी गलतफहमी हो जाती हैं , फिर हम तो इंसान हैं कहकर वह मुस्कुराई। धीरेंद्र ने मुड़कर देखा ,वह ठीक उसके पीछे ही खड़ी थी , धीरेन्द्र सोचने लगा -इसने क्या  मेरे विचारों को पढ़ लिया ? उसकी तरफ देख कर बोला -जरा उस कमरे की चाबी देना। 

किस कमरे की ? दीपशिखा के माथे पर बल पड़ गए। 

वही जो, सीढ़ियों से दस कदम आगे है। 

वो कमरा तो हमेशा बंद रहता है , उसे कोई नहीं खोलता ,उसने तुरंत ही जवाब दिया। 

तब आज हम ,खोल लेते हैं , इस कमरे की चाबी दो !उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया और बोला -अब यह मत कहना, कि उस कमरे की चाबी तुम्हारे पास नहीं है। दीपशिखा बिना ना नुकूर  किए , अंदर जाती है और चाबी लेकर बाहर आती है , कहती है -आइए चलिए !मैं आपको यह कमरा दिखला देती हूं। कहते हुए इंस्पेक्टर के आगे- आगे चल देती है। कमरा खोल कर कमरे में अंदर प्रवेश करती है ,उसके पीछे ही इंस्पेक्टर भी प्रवेश करता है। कुछ देर बाद , कमरे से  निकल कर सीधा बाहर आता है और अपनी गाड़ी में बैठ कर ,चुपचाप चला जाता है , उसे देख कर लग रहा था जैसे किसी ने उसके अंदर चाबी भर दी हो और वह चाबी से चल रहा है। उस कमरे में खड़ी दीपशिखा ,जोर जोर से हंस रही थी -हा हा हा हा हा......  बडा आया मेरी तहकीकात करने...... 



रमा अपने घर में बैठे हुए, सोच रही थी -क्या ?इंस्पेक्टर साहब !दीपशिखा से मिले होंगे , क्या वे उसके गुनाह ,उससे कबूल करवा पाएंगे ? या अभी तक इंस्पेक्टर साहब ने कोई तहकीकात आरंभ भी नहीं की है या नहीं ,अनेक प्रश्नों को लिए रमा परेशान थी।

शेफाली ,हिमाचल की तलहटियों के एक गांव ''खराहल ''पहुंच जाती है ,उसके लिए ,ये स्थान अजनबी था  यहाँ के लोग भी ,अजनबी थे। बस उसे उतरकर आगे बढ़ जाती है ,उस रास्ते पर धुंध जमी थी,चारों तरफ घने बड़े पेड़ थे। सड़क पर वो खड़ी सोच रही थी -किससे'' मनोहर ''के विषय में पूछूं ? मन ही मन पछता रही थी ,जल्दबाज़ी में मैंने बाबा से न ही, मनोहर की कोई ज्यादा जानकारी ली ,न ही उसका पता माँगा। अभी वो यही सोच रही थी -तभी दूसरी तरफ से एक व्यक्ति जाता दिखलाई दिया । शेफाली ने उसे रोका - सुनो ! 

कुछ कदम ,वह चलता रहा ,उसके पश्चात ,मुड़कर देखा और बोला -क्या आपने मुझसे कुछ कहा। 

शेफाली बोली -हाँ भइया ! क्या यही ''खराहल ''गांव है। 

जी ,उसने एक रास्ता दिखाते हुए कहा ,ये रास्ता उधर ही जाता है। मैं ,उस तरफ ही जा रह था ,चलिए !आपको भी छोड़ देता हूँ। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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