Shrapit kahaniyan [part 88]

इंस्पेक्टर ने ,चिराग की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मंगवाई , वह चिराग की मृत्यु का कारण जानना चाहता था किन कारणों से चिराग की मृत्यु हुई है ? अभी जो बुरखे में लड़की और उसकी मम्मी आई थी - जो भी ,उन्होंने बताया, क्या वे दोनों  सही हैं  ?यही से पता लगाना था। उसका मन उससे कह रहा था -हो सकता है,वे  दोनों सही हों ,वरना इन्हें इस तरह ,छुपते -छुपाते आने की क्या आवश्यकता थी ? किंतु आज के समय में,यह तंत्र -मंत्र कोेन  मानता है ? यही प्रश्न उसने हवलदार से भी किया। हवलदार , भी कोई उचित जवाब ना दे सका। आगे दुर्घटना न हो ,इसके लिए इसकी तह तक तो जाना ही होगा।  

कॉलेज में वह इतने बड़े-बड़े कांड कर रही थी, और आपको इसकी जानकारी नहीं थी ,प्रभा ने सुबोध से पूछा।


 जब मुझे उसके किसी भी कार्य में या उसमें ,कोई दिलचस्पी ही नहीं थी तब मैं ,उसके विषय में जानकारी रखकर  क्या करता ?

हां ,यह भी सही है, इस बहाने, उससे तुम्हारा पीछा तो छूटा। 

नहीं ,उसकी  नजर हमेशा मुझ पर ही रहती ,न जाने, मेरी कविताओं में क्या हो रहा था ?मैं सोचता कुछ था ,लिखता कुछ था ,और पता नहीं ,लोगों को क्या नजर आता था ? मेरी रचनाऐं लोगों को पसंद ही नहीं आ रहीं थीं। जिस पत्रिका में मेरी रचनाएँ छपती थीं ,अब वापस आने लगीं ,उसके सम्पादक ने कहा -ये कविताएं लिखना तुम्हारे बस की  बात नहीं , कुछ और कार्य करो या कोई लेख ,या फिर कहानियाँ लिखो ! मैं उनकी बातें सुनकर ,हताश -निराश होकर ,वापस आ गया। 

एक दिन दीपशिखा मेरे करीब आई ,और बोली -और कवि साहब !आपकी कविताएं अभी भी चल रही हैं ,या आपकी प्रेरणा ,अब समाप्त हो गयी। यदि ऐसा कुछ है ,तो मैं भी तुम्हारी प्रेरणा बन सकती हूँ ,मुझ पर ही लिखकर देख लो !कहते हुए ,मुस्कुराकर वहां से चली गयी।

मैं सोच रहा था -इसको मेरे विषय में इतनी जानकारी कैसे हैं ?क्या इसने ही तो ,कुछ नहीं कर दिया ? तब मैंने अपने मन को समझाया -रचनाएं मेरी हैं  ,लिखता मैं हूं ,इसमें इसका क्या दोष हो सकता है ? यदि इसका दोष नहीं है ,तो फिर यह मुझसे यह प्रश्न क्यों पूछने आई है ?मेरी रचनाएं लिखी जा रही हैं या नहीं लिखी जा रही हैं ,छप रही हैं या नहीं छप रही हैं ,इससे इसको क्या लाभ हो सकता है ? मैं तो पहले से ही निराश था , तब मैंने सोचा-जब यह कह रही है ,एक रचना इसको लेकर लिख कर देखता हूं। 

तब क्या तुमने दीपशिखा पर कोई रचना लिखी ,प्रभा ने उत्सुक होकर पूछा। 

मैं लिखने बैठा, किंतु शब्द ही नहीं आ रहे थे , कोई कल्पना ही नहीं कर पा रहा था , उसके विषय में कुछ सोच ही नहीं ,पा रहा था , विचार न जाने कहां, विलुप्त हो गए ? तब मैंने कोई भी रचना लिखने का ,विचार ही त्याग दिया और अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने लगा। 

जब तुमने कोई रचना ही नहीं लिखी ,तब उसने तुम्हें श्राप कैसे दिया ?

वही तो बता रहा हूं , उसे अपनी शक्तियों पर गुमान होने लगा था , उसे लग रहा था जैसा वह चाहती है,अपनी शक्तियों के बल पर, वैसा कर सकती है। अभी मुझे उसके विषय में ,कोई भी जानकारी नहीं थी , कॉलेज में जो भी हादसे हुए ,मैं सिर्फ हादसे  ही समझ रहा था। मैं यह सपने में भी नहीं सोच सकता था ,कि इन हादसों के पीछे'' दीपशिखा'' का हाथ हो सकता है। मैं यह मानता था -कि यह लड़की थोड़ी जिद्दी और अहंकारी है , किंतु यह इस हद तक आगे निकल चुकी है ,कि किसी की जान भी ले सकती है यह मेरे ज्ञान में नहीं था। 

इंस्पेक्टर ''धीरेंद्र लालवानी'' एक दिन जेठानी लाल सेठ जी के बंगले पर पहुंच जाते हैं , वह एक सम्मानित व्यापारी हैं , पैसा भी बहुत कमाया है , सज्जन व्यक्ति हैं इसीलिए सभी लोग उन्हें जानते हैं। इंस्पेक्टर को अपने दरवाजे पर खड़ा देखकर पहले तो आश्चर्यचकित हो गए ,कि मेरे घर पर पुलिस का क्या काम ? यह जेठानी लाल जी के सम्मान की बात तो ,हो ही नहीं सकती ,कि उनके घर पर पुलिस आती है। लोगों के कान खड़े हो जाते हैं -ऐसा उन्होंने क्या किया है ? कि उनके घर पर पुलिस आई है। जेठानी लालजी इंस्पेक्टर धीरेंद्र को जानते थे , उन्होंने मुस्कुराकर ,इस्पेक्टर का स्वागत किया,-आइए ,इंस्पेक्टर साहब ! आइए ! कैसे आना हुआ ?

बिना ठोस सबूत के, इंस्पेक्टर साहब ,उन्हें कुछ भी नहीं बताना चाहते थे ,इसीलिए बोले -वैसे ही आपसे मिलने चला आया , बहुत दिन हो गए हैं ,आपका घर भी नहीं देखा था , आपके परिवार से मिलने चला आया। 

ओह !ठीक है, ठीक है, जेठालाल जी गहरी सांस लेते हुए कहा -आप ही का घर है ,जब जी चाहे ,मिलने आ जाइए , कहते हुए ,अपने नौकर को चाय बनाने के लिए आदेश दिया ,किन्तु मन ही मन सोच रहे थे -इंस्पेक्टर ,यहाँ बिना कारण तो नहीं आया होगा ,अवश्य ही कोई बात तो है। चाय पीते हुए ,उन्होंने अपने मन की शांति के लिए ,पूछ ही लिया -इंस्पेक्टर साहब !क्या इधर किसी केस के सिलसिले में आये हैं ?

अरे ,जेठानी लाल जी !आप घबराइए नहीं ,पर हां ,थोड़ा सा परेशान तो हूं , आजकल कॉलेज में कुछ हादसे हो रहे हैं ,दो बच्चों की हत्या भी हो चुकी है , आपकी बिटिया भी उसी कॉलेज में पढ़ती है, मैंने सोचा -थोड़ी सी जानकारी या पूछताछ उससे भी कर लूँ। 

क्या??? जेठानी लाल जी आश्चर्य से बोले -कॉलेज में ,हत्याएं हो रही हैं  , हमें तो हमारी  बेटी ने कभी कुछ नहीं बताया। 

आप किस दुनिया में रहते हैं ? कॉलिज में एक लड़की और एक लड़के की हत्या हो चुकी है किन्तु अभी तक क़ातिल का कुछ भी पता नहीं चला है। पहला केस ही सुलझा नहीं था ,तब किसी ने बड़ी बेरहमी से एक लड़के की हत्या कर दी। आज ही उसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखी , तब जानकारी मिली ,वो मरा नहीं मारा गया है। पहले किसी लड़की के साथ था ,उसके पश्चात ,किसी ने उसे ऐसे मारा है ,जैसे कोई राक्षस या पिशाच ने मारा हो। उस लड़के की गर्दन तोड़ दी ,उसकी आँखें भी बाहर को निकली हुईं थीं किसी ने उसका दिल भी निकाल लिया ,कितना अमानवीय कार्य किया है ?

हे मेरे भगवान !यह क्या हो रहा है ? हमारी बेटी दीपशिखा उसी कॉलिज में जाती है किंतु उसने आज तक हमें ऐसी कोई जानकारी नहीं दी ,ना ही हमें कुछ बताया। 

तभी तो कहता हूं ,जेठानी लाल जी ! थोड़ा अपने बच्चों पर ध्यान दिया कीजिए , ताकि वह अपनी बात खुलकर आपको बता सकें। 

शायद ,उसने भी सोचा होगा -, पापा या घरवाले परेशान होंगे बता कर भी क्या हो जायेगा ? वैसे आपकी बिटिया है कहां ?मैं उससे मिलना चाहता हूं। 

हां ,यह भी हो सकता है ,पता नहीं, किधर होगी ?शायद ,अपने कमरे में होगी  , मुझे तो अपने काम से फुर्सत ही नहीं मिलती है , उसकी मम्मी को ही पता रहता है, कि बच्चे कहां हैं ,क्या कर रहे हैं ? तब उन्होंने रामदीन को आवाज दी। रामदीन ! जरा देखना ,दीपशिखा घर में है या नहीं। 

देखता हूं ,साहब ! कहते हुए वहां से चला गया। 

तभी इंस्पेक्टर धीरेंद्र उठा और बोला -रामदीन रुको ! मैं भी ,तुम्हारे साथ चलता हूं। यदि वह अपने कमरे में हुई तो मैं वहीं उससे मिलूंगा कहते हुए उसने जेठानी लाल जी की तरफ देखा। जेठानीलाल जी ने ' हां 'में गर्दन हिलाई।

रामधन के साथ चलते हुए,इंस्पेक्टर धीरेंद्र लालवानी ,अपनी तहकीकात भी करते जा रहा था ,उसने रामदीन से पूछा -तुम यहां कितने वर्षों से हो ?

यही कोई दस वर्षों से ,

इस घर में ,कुल मिलाकर कितने सदस्य होंगे ?



रामदीन ,अँगुलियों पर घर के सदस्यों को गिन रहा था , किंतु धीरेंद्र लालवानी की नजरें सम्पूर्ण घर पर घूम रहीं थीं और वो उन कमरों के विषय में भी ,पूछ रहा था ,किस कमरे में कौन रहता है ?तभी वो लोग उस कमरे के नजदीक भी जाते हैं। उस कमरे के विषय में भी ,धीरेन्द्र ने रामदीन से पूछा -उस कमरे को देखकर रामदीन चुप हो गया और बोला -यह कमरा तो अधिकतर बंद ही रहता है। 

क्यों क्या इस कमरे का कोई उपयोग नहीं है ?इसमें कोई नहीं जाता। 

कभी-कभी, बड़ी मैडम को उधर जाते देखा है, रामदीन ने बताया। 

बड़ी मैडम, कौन ?

दीपशिखा बिटिया ! वैसे यह कमरा हमेशा ही बंद रहता है। 

इसमें ,तुम्हें कुछ खास बात नजर आती है। 

नहीं ,कोई विशेष बात नहीं ,हां , कभी -कभी थोड़ी बहुत आवाज आती है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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